००५ पुरोहितयाने

भागसूचना

पञ्चमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भगवान् श्रीकृष्णका द्वारकागमन, विराट और द्रुपदके संदेशसे राजाओंका पाण्डवपक्षकी ओरसे युद्धके लिये आगमन

मूलम् (वचनम्)

वासुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपपन्नमिदं वाक्यं सोमकानां धुरंधरे।
अर्थसिद्धिकरं राज्ञः पाण्डवस्यामितौजसः ॥ १ ॥

मूलम्

उपपन्नमिदं वाक्यं सोमकानां धुरंधरे।
अर्थसिद्धिकरं राज्ञः पाण्डवस्यामितौजसः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(तत्पश्चात् भगवान्) श्रीकृष्णने कहा— सभासदो! सोमकवंशके धुरंधर वीर महाराज द्रुपदने जो बात कही है, वह उन्हींके योग्य है। इसीसे अमित तेजस्वी पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिरके अभीष्ट कार्यकी सिद्धि हो सकती है॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतच्च पूर्वं कार्यं नः सुनीतमभिकाङ्क्षताम्।
अन्यथा ह्याचरन् कर्म पुरुषः स्यात् सुबालिशः ॥ २ ॥

मूलम्

एतच्च पूर्वं कार्यं नः सुनीतमभिकाङ्क्षताम्।
अन्यथा ह्याचरन् कर्म पुरुषः स्यात् सुबालिशः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमलोग सुनीतिकी इच्छा रखनेवाले हैं; अतः हमें सबसे पहले यही कार्य करना चाहिये। जो अवसरके विपरीत आचरण करता है, वह मनुष्य अत्यन्त मूर्ख माना जाता है॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं तु सम्बन्धकं तुल्यमस्माकं कुरुपाण्डुषु।
यथेष्टं वर्तमानेषु पाण्डवेषु च तेषु च ॥ ३ ॥

मूलम्

किं तु सम्बन्धकं तुल्यमस्माकं कुरुपाण्डुषु।
यथेष्टं वर्तमानेषु पाण्डवेषु च तेषु च ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु हमलोगोंका कौरवों और पाण्डवोंसे एक-सा सम्बन्ध है। पाण्डव और कौरव दोनों ही हमारे साथ यथायोग्य अनुकूल बर्ताव करते हैं॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते विवाहार्थमानीता वयं सर्वे तथा भवान्।
कृते विवाहे मुदिता गमिष्यामो गृहान् प्रति ॥ ४ ॥

मूलम्

ते विवाहार्थमानीता वयं सर्वे तथा भवान्।
कृते विवाहे मुदिता गमिष्यामो गृहान् प्रति ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस समय हम और आप सब लोग विवाहोत्सवमें निमन्त्रित होकर आये हैं। विवाहकार्य सम्पन्न हो गया; अतः अब हम प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घरोंको लौट जायँगे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भवान् वृद्धतमो राज्ञां वयसा च श्रुतेन च।
शिष्यवत् ते वयं सर्वे भवामेह न संशयः ॥ ५ ॥

मूलम्

भवान् वृद्धतमो राज्ञां वयसा च श्रुतेन च।
शिष्यवत् ते वयं सर्वे भवामेह न संशयः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप समस्त राजाओंमें अवस्था तथा शास्त्रज्ञान दोनों ही दृष्टियोंसे सबकी अपेक्षा बड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि हम सब लोग आपके शिष्यके समान हैं॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भवन्तं धृतराष्ट्रश्च सततं बहु मन्यते।
आचार्ययोः सखा चासि द्रोणस्य च कृपस्य च ॥ ६ ॥

मूलम्

भवन्तं धृतराष्ट्रश्च सततं बहु मन्यते।
आचार्ययोः सखा चासि द्रोणस्य च कृपस्य च ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा धृतराष्ट्र भी सदा आपको विशेष आदर देते हैं, आचार्य द्रोण और कृप दोनोंके आप सखा हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भवान् प्रेषयत्वद्य पाण्डवार्थकरं वचः।
सर्वेषां निश्चितं तन्नः प्रेषयिष्यति यद् भवान् ॥ ७ ॥

मूलम्

स भवान् प्रेषयत्वद्य पाण्डवार्थकरं वचः।
सर्वेषां निश्चितं तन्नः प्रेषयिष्यति यद् भवान् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अतः आप ही आज पाण्डवोंकी कार्य-सिद्धिके अनुकूल संदेश भेजिये। आप जो भी संदेश भेजेंगे, वह हम सब लोगोंका निश्चित मत होगा॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदि तावच्छमं कुर्यान्न्यायेन कुरुपुङ्गवः।
न भवेत् कुरुपाण्डूनां सौभ्रात्रेण महान् क्षयः ॥ ८ ॥

मूलम्

यदि तावच्छमं कुर्यान्न्यायेन कुरुपुङ्गवः।
न भवेत् कुरुपाण्डूनां सौभ्रात्रेण महान् क्षयः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन न्यायके अनुसार शान्ति स्वीकार करेगा, तो कौरव और पाण्डवोंमें परस्पर बन्धुजनोचित सौहार्दवश महान् संहार न होगा॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ दर्पान्वितो मोहान्न कुर्याद् धृतराष्ट्रजः।
अन्येषां प्रेषयित्वा च पश्चादस्मान् समाह्वये ॥ ९ ॥

मूलम्

अथ दर्पान्वितो मोहान्न कुर्याद् धृतराष्ट्रजः।
अन्येषां प्रेषयित्वा च पश्चादस्मान् समाह्वये ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि धृतराष्ट्र-पुत्र दुर्योधन मोहवश घमंडमें आकर हमारा प्रस्ताव न स्वीकार करे, तो आप दूसरे राजाओंको युद्धका निमन्त्रण भेजकर सबके बाद हमलोगोंको आमन्त्रित कीजियेगा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो मन्दः सहामात्यः सबान्धवः।
निष्ठामापत्स्यते मूढः क्रुद्धे गाण्डीवधन्वनि ॥ १० ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो मन्दः सहामात्यः सबान्धवः।
निष्ठामापत्स्यते मूढः क्रुद्धे गाण्डीवधन्वनि ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो गाण्डीवधन्वा अर्जुनके कुपित होनेपर मन्दबुद्धि मूढ दुर्योधन अपने मन्त्रियों और बन्धुजनोंके साथ सर्वथा नष्ट हो जायगा॥१०॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सत्कृत्य वार्ष्णेयं विराटः पृथिवीपतिः।
गृहान् प्रस्थापयामास सगणं सहबान्धवम् ॥ ११ ॥

मूलम्

ततः सत्कृत्य वार्ष्णेयं विराटः पृथिवीपतिः।
गृहान् प्रस्थापयामास सगणं सहबान्धवम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! तदनन्तर राजा विराटने सेवकवृन्द तथा बान्धवोंसहित वृष्णिकुलनन्दन भगवान् श्रीकृष्णका सत्कार करके उन्हें द्वारका जानेके लिये विदा किया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्वारकां तु गते कृष्णे युधिष्ठिरपुरोगमाः।
चक्रुः सांग्रामिकं सर्वं विराटश्च महीपतिः ॥ १२ ॥

मूलम्

द्वारकां तु गते कृष्णे युधिष्ठिरपुरोगमाः।
चक्रुः सांग्रामिकं सर्वं विराटश्च महीपतिः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्णके द्वारका चले जानेपर युधिष्ठिर आदि पाण्डव तथा राजा विराट युद्धकी सारी तैयारियाँ करने लगे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सम्प्रेषयामास विराटः सह बान्धवैः।
सर्वेषां भूमिपालानां द्रुपदश्च महीपतिः ॥ १३ ॥

मूलम्

ततः सम्प्रेषयामास विराटः सह बान्धवैः।
सर्वेषां भूमिपालानां द्रुपदश्च महीपतिः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बन्धुओंसहित राजा विराट तथा महाराज द्रुपदने मिल-कर सब राजाओंके पास युद्धका निमन्त्रण भेजा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वचनात् कुरुसिंहानां मत्स्यपाञ्चालयोश्च ते।
समाजग्मुर्महीपालाः सम्प्रहृष्टा महाबलाः ॥ १४ ॥

मूलम्

वचनात् कुरुसिंहानां मत्स्यपाञ्चालयोश्च ते।
समाजग्मुर्महीपालाः सम्प्रहृष्टा महाबलाः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुकुलके सिंह पाण्डव, मत्स्यनरेश विराट तथा पांचालराज द्रुपदके संदेशसे (दूर-दूरके) महाबली नरेश बड़े हर्ष और उत्साहमें भरकर वहाँ आने लगे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छ्रुत्वा पाण्डुपुत्राणां समागच्छन्महद् बलम्।
धृतराष्ट्रसुताश्चापि समानिन्युर्महीपतीन् ॥ १५ ॥

मूलम्

तच्छ्रुत्वा पाण्डुपुत्राणां समागच्छन्महद् बलम्।
धृतराष्ट्रसुताश्चापि समानिन्युर्महीपतीन् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंके यहाँ विशाल सेना एकत्र हो रही है; यह सुनकर धृतराष्ट्रके पुत्रोंने भी भूमिपालोंको बुलाना आरम्भ कर दिया॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समाकुला मही राजन् कुरुपाण्डवकारणात्।
तदा समभवत् कृत्स्ना सम्प्रयाणे महीक्षिताम् ॥ १६ ॥
संकुला च तदा भूमिश्चतुरङ्गबलान्विता।

मूलम्

समाकुला मही राजन् कुरुपाण्डवकारणात्।
तदा समभवत् कृत्स्ना सम्प्रयाणे महीक्षिताम् ॥ १६ ॥
संकुला च तदा भूमिश्चतुरङ्गबलान्विता।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार कौरवों तथा पाण्डवोंके उद्देश्यसे दूर-दूरके नरेश अपनी सेना लेकर प्रस्थान करने लगे। इनकी चतुरंगिणी सेनासे सारी पृथ्वी व्याप्त हुई-सी जान पड़ने लगी॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बलानि तेषां वीराणामागच्छन्ति ततस्ततः ॥ १७ ॥
चालयन्तीव गां देवीं सपर्वतवनामिमाम्।

मूलम्

बलानि तेषां वीराणामागच्छन्ति ततस्ततः ॥ १७ ॥
चालयन्तीव गां देवीं सपर्वतवनामिमाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

चारों ओरसे उन वीरोंके जो सैनिक आ रहे थे, वे पर्वतों और वनोंसहित इस सारी पृथ्वीको प्रकम्पित-सी कर रहे थे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रज्ञावयोवृद्धं पाञ्चाल्यः स्वपुरोहितम्।
कुरुभ्यः प्रेषयामास युधिष्ठिरमते स्थितः ॥ १८ ॥

मूलम्

ततः प्रज्ञावयोवृद्धं पाञ्चाल्यः स्वपुरोहितम्।
कुरुभ्यः प्रेषयामास युधिष्ठिरमते स्थितः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पांचालनरेशने युधिष्ठिरकी सम्मतिके अनुसार बुद्धि और अवस्थामें भी बढ़े-चढ़े अपने पुरोहितको कौरवोंके पास भेजा॥१८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि सेनोद्योगपर्वणि पुरोहितयाने पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत सेनोद्योगपर्वमें पुरोहितप्रस्थानविषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५॥