०५९ अर्जुनाश्वत्थामयुद्धे

भागसूचना

एकोनषष्टितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अश्वत्थामाके साथ अर्जुनका युद्ध

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो द्रौणिर्महाराज प्रययावर्जुनं रणे।
तं पार्थः प्रतिजग्राह वायुवेगमिवोद्धतम्।
शरजालेन महता वर्षमाणमिवाम्बुदम् ॥ १ ॥

मूलम्

ततो द्रौणिर्महाराज प्रययावर्जुनं रणे।
तं पार्थः प्रतिजग्राह वायुवेगमिवोद्धतम्।
शरजालेन महता वर्षमाणमिवाम्बुदम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— महाराज! तदनन्तर द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने रणभूमिमें जब अर्जुनपर बड़े वेगसे आक्रमण किया, तब अर्जुनने भी प्रचण्ड वायुवेगके समान तीव्र गतिसे आते हुए अश्वत्थामाको रोका। उस समय जल बरसानेवाले मेघकी भाँति वह महान् शरसमूहकी वर्षा कर रहा था॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोर्देवासुरसमः संनिपातो महानभूत् ।
किरतोः शरजालानि वृत्रवासवयोरिव ॥ २ ॥

मूलम्

तयोर्देवासुरसमः संनिपातो महानभूत् ।
किरतोः शरजालानि वृत्रवासवयोरिव ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंमें देवताओं और असुरोंके समान भारी संघर्ष होने लगा। वे दोनों (एक-दूसरेपर) बाणसमूहोंकी बौछार करते हुए वृत्रासुर और इन्द्रके समान जान पड़ते थे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न स्म सूर्यस्तदा भाति न च वाति समीरणः।
शरजालावृते व्योम्निच्छायाभूते समन्ततः ॥ ३ ॥

मूलम्

न स्म सूर्यस्तदा भाति न च वाति समीरणः।
शरजालावृते व्योम्निच्छायाभूते समन्ततः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके बाणोंके जालसे आच्छादित होकर आकाश सब ओरसे अन्धकारमय हो रहा था। उस समय न तो सूर्य प्रकाशित हो रहे थे और न वायु ही चल पाती थी॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महांश्चटचटाशब्दो योधयोर्हन्यमानयोः ।
दह्यतामिव वेणूनामासीत् परपुरंजय ॥ ४ ॥

मूलम्

महांश्चटचटाशब्दो योधयोर्हन्यमानयोः ।
दह्यतामिव वेणूनामासीत् परपुरंजय ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुविजयी जनमेजय! जब दोनों योद्धा एक दूसरेपर आघात करते, तब जलते हुए बाँसोंके चटखनेकी भाँति चटचट शब्द होने लगता था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयानस्यार्जुनः सर्वान् कृतवानल्पजीवितान् ।
ते राजन् न प्रजानन्त दिशं काञ्चन मोहिताः ॥ ५ ॥

मूलम्

हयानस्यार्जुनः सर्वान् कृतवानल्पजीवितान् ।
ते राजन् न प्रजानन्त दिशं काञ्चन मोहिताः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनने अश्वत्थामाके घोड़ोंको घायल करके अल्पजीवी बना दिया। राजन्! वे मोहग्रस्त (मूर्च्छित) होनेके कारण किसी भी दिशाको नहीं जान पाते थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो द्रौणिर्महावीर्यः पार्थस्य विचरिष्यतः।
विवरं सूक्ष्ममालोक्य ज्यां चिच्छेद क्षुरेण ह।
तदस्यापूजयन् देवाः कर्म दृष्ट्वातिमानुषम् ॥ ६ ॥

मूलम्

ततो द्रौणिर्महावीर्यः पार्थस्य विचरिष्यतः।
विवरं सूक्ष्ममालोक्य ज्यां चिच्छेद क्षुरेण ह।
तदस्यापूजयन् देवाः कर्म दृष्ट्वातिमानुषम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर महापराक्रमी अश्वत्थामाने रणभूमिमें विचरते हुए अर्जुनका छोटा-सा छिद्र (तनिक-सी असावधानी) देखकर क्षुर नामक बाणसे उनकी प्रत्यंचा काट डाली। उसके इस अतिमानुष कर्मको देखकर सब देवता उसकी बड़ी प्रशंसा करने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणो भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्चैव महारथाः।
साधु साध्विति भाषन्तोऽपूजयन् कर्म तस्य तत् ॥ ७ ॥

मूलम्

द्रोणो भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्चैव महारथाः।
साधु साध्विति भाषन्तोऽपूजयन् कर्म तस्य तत् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोण, भीष्म, कर्ण और कृपाचार्य—ये सभी महारथी साधुवाद देते हुए अश्वत्थामाके उस कार्यकी सराहना करने लगे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो द्रौणिर्धनुः श्रेष्ठमपकृष्य रथर्षभम्।
पुनरेवाहनत् पार्थं हृदये कङ्कपत्रिभिः ॥ ८ ॥

मूलम्

ततो द्रौणिर्धनुः श्रेष्ठमपकृष्य रथर्षभम्।
पुनरेवाहनत् पार्थं हृदये कङ्कपत्रिभिः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर द्रोणपुत्रने अपना श्रेष्ठ धनुष खींचकर कंक पक्षीके पंखवाले बाणोंद्वारा रथियोंमें श्रेष्ठ पार्थकी छातीमें पुनः भारी आघात पहुँचाया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पार्थो महाबाहुः प्रहस्य स्वनवत् तदा।
योजयामास नवया मौर्व्या गाण्डीवमोजसा ॥ ९ ॥

मूलम्

ततः पार्थो महाबाहुः प्रहस्य स्वनवत् तदा।
योजयामास नवया मौर्व्या गाण्डीवमोजसा ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय महाबाहु पार्थ ठहाका मारकर हँसने लगे। फिर उन्होंने गाण्डीव धनुषपर बलपूर्वक नयी प्रत्यंचा चढ़ा दी॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽर्धचन्द्रमावृत्य तेन पार्थः समागमत्।
वारणेनेव मत्तेन मत्तो वारणयूथपः ॥ १० ॥

मूलम्

ततोऽर्धचन्द्रमावृत्य तेन पार्थः समागमत्।
वारणेनेव मत्तेन मत्तो वारणयूथपः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पसीनेसे अर्धचन्द्राकार धनुषकी डोरीको माँजकर अर्जुन अश्वत्थामासे भिड़ गये, मानो कोई उन्मत्त गजयूथाधिपति किसी दूसरे मतवाले हाथीके साथ जा भिड़ा हो॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रववृते युद्धं पृथिव्यामेकवीरयोः।
रणमध्ये द्वयोरेवं सुमहल्लोमहर्षणम् ॥ ११ ॥

मूलम्

ततः प्रववृते युद्धं पृथिव्यामेकवीरयोः।
रणमध्ये द्वयोरेवं सुमहल्लोमहर्षणम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद उस रणभूमिमें भूमण्डलके इन दोनों अनुपम वीरोंका ऐसा भयंकर संग्राम हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ वीरौ ददृशुः सर्वे कुरवो विस्मयान्विताः।
युध्यमानौ महावीर्यौ यूथपाविव संगतौ ॥ १२ ॥

मूलम्

तौ वीरौ ददृशुः सर्वे कुरवो विस्मयान्विताः।
युध्यमानौ महावीर्यौ यूथपाविव संगतौ ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

समस्त कौरव विस्मयविमुग्ध होकर उन दोनों वीरोंकी ओर देखने लगे। महापराक्रमी अश्वत्थामा और अर्जुन परस्पर भिड़े हुए दो यूथपतियोंकी भाँति लड़ रहे थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ समाजघ्नतुर्वीरावन्योन्यं पुरुषर्षभौ ।
शरैराशीविषाकारैर्ज्वलद्भिरिव पन्नगैः ॥ १३ ॥

मूलम्

तौ समाजघ्नतुर्वीरावन्योन्यं पुरुषर्षभौ ।
शरैराशीविषाकारैर्ज्वलद्भिरिव पन्नगैः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों पुरुषसिंह वीर विषधर सर्पके समान आकारवाले जलते हुए-से बाणोंद्वारा एक-दूसरेको चोट पहुँचाने लगे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अक्षय्याविषुधी दिव्यौ पाण्डवस्य महात्मनः।
तेन पार्थो रणे शूरस्तस्थौ गिरिरिवाचलः ॥ १४ ॥

मूलम्

अक्षय्याविषुधी दिव्यौ पाण्डवस्य महात्मनः।
तेन पार्थो रणे शूरस्तस्थौ गिरिरिवाचलः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महात्मा पाण्डुनन्दनके पास दो दिव्य अक्षय तूणीर थे, इससे कुन्तीपुत्र शूरवीर अर्जुन रणभूमिमें पर्वतकी भाँति अविचल खड़े रहे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वत्थाम्नः पुनर्बाणाः क्षिप्रमभ्यस्यतो रणे।
जग्मुः परिक्षयं तूर्णमभूत् तेनाधिकोऽर्जुनः ॥ १५ ॥

मूलम्

अश्वत्थाम्नः पुनर्बाणाः क्षिप्रमभ्यस्यतो रणे।
जग्मुः परिक्षयं तूर्णमभूत् तेनाधिकोऽर्जुनः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु संग्राममें शीघ्रतापूर्वक बार-बार शरसंधान करनेवाले अश्वत्थामाके बाण जल्दी समाप्त हो गये। इस कारण अर्जुन उसकी अपेक्षा अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुए॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कर्णो महाचापं विकृष्याभ्यधिकं तदा।
अवाक्षिपत् ततः शब्दो हाहाकारो महानभूत् ॥ १६ ॥

मूलम्

ततः कर्णो महाचापं विकृष्याभ्यधिकं तदा।
अवाक्षिपत् ततः शब्दो हाहाकारो महानभूत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कर्णने अपने महान् धनुषको बड़े जोरसे खींचकर टंकार की। उससे वहाँ महान् हाहाकारका शब्द होने लगा॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततश्चक्षुर्दधे पार्थो यत्र विस्फार्यते धनुः।
ददर्श तत्र राधेयं तस्य कोपो व्यवर्धत ॥ १७ ॥

मूलम्

ततश्चक्षुर्दधे पार्थो यत्र विस्फार्यते धनुः।
ददर्श तत्र राधेयं तस्य कोपो व्यवर्धत ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अर्जुनने जहाँ धनुषकी टंकार हो रही थी, उधर दृष्टि डाली, तो वहाँ राधानन्दन कर्ण दिखायी पड़ा। इससे उनका क्रोध बहुत बढ़ गया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स रोषवशमापन्नः कर्णमेव जिघांसया।
तमैक्षत विवृत्ताभ्यां नेत्राभ्यां कुरुपुङ्गवः ॥ १८ ॥

मूलम्

स रोषवशमापन्नः कर्णमेव जिघांसया।
तमैक्षत विवृत्ताभ्यां नेत्राभ्यां कुरुपुङ्गवः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कुरुश्रेष्ठ अर्जुन रोषके वशीभूत हो कर्णको ही मार डालनेकी इच्छासे दोनों आँखें फाड़-फाड़कर उसकी ओर देखने लगे॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा तु विमुखे पार्थे द्रोणपुत्रस्य सायकान्।
त्वरिताः पुरुषा राजन्नुपाजह्रुः सहस्रशः ॥ १९ ॥

मूलम्

तथा तु विमुखे पार्थे द्रोणपुत्रस्य सायकान्।
त्वरिताः पुरुषा राजन्नुपाजह्रुः सहस्रशः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार जब अर्जुनने उधरसे दृष्टि हटाकर दूसरी ओर मुँह फेर लिया, तब बहुत-से सैनिक तुरंत वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने द्रोणपुत्रके हजारों बाणोंको (रणभूमिसे उठाकर) उन्हें समर्पित कर दिया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्सृज्य च महाबाहुर्द्रोणपुत्रं धनंजयः।
अभिदुद्राव सहसा कर्णमेव सपत्नजित् ॥ २० ॥

मूलम्

उत्सृज्य च महाबाहुर्द्रोणपुत्रं धनंजयः।
अभिदुद्राव सहसा कर्णमेव सपत्नजित् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शत्रुविजयी महाबाहु धनंजयने द्रोणपुत्रको वहीं छोड़कर सहसा कर्णपर ही धावा किया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमभिद्रुत्य कौन्तेयः क्रोधसंरक्तलोचनः ।
कामयन् द्वैरथं तेन युद्धं वचनमब्रवीत् ॥ २१ ॥

मूलम्

तमभिद्रुत्य कौन्तेयः क्रोधसंरक्तलोचनः ।
कामयन् द्वैरथं तेन युद्धं वचनमब्रवीत् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

और कर्णके पास पहुँचकर उसके साथ द्वन्द्वयुद्धकी इच्छा रखते हुए कुन्तीकुमारने क्रोधसे लाल आँखें करके यह बात कही॥२१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि गोहरणपर्वणि उत्तरगोग्रहे अर्जुनाश्वत्थामयुद्धे एकोनषष्टितमोऽध्यायः ॥ ५९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत गोहरणपर्वमें उत्तरगोग्रहके समय अर्जुन और अश्वत्थामाके युद्धसे सम्बन्ध रखनेवाला उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५९॥