भागसूचना
चतुष्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अर्जुनका कर्णपर आक्रमण, विकर्णकी पराजय, शत्रुंतप और संग्रामजित्का वध, कर्ण और अर्जुनका युद्ध तथा कर्णका पलायन
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शत्रुसेनां तरसा प्रणुद्य
गास्ता विजित्याथ धनुर्धराग्र्यः ।
दुर्योधनायाभिमुखं प्रयातो
भूयो रणं सोऽभिचिकीर्षमाणः ॥ १ ॥
मूलम्
स शत्रुसेनां तरसा प्रणुद्य
गास्ता विजित्याथ धनुर्धराग्र्यः ।
दुर्योधनायाभिमुखं प्रयातो
भूयो रणं सोऽभिचिकीर्षमाणः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! धनुषधारियोंमें श्रेष्ठ अर्जुनने शत्रुसेनाको बड़े वेगसे दबाकर उन गौओंको जीत लिया और वे युद्धकी इच्छासे फिर दुर्योधनकी ओर चले॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोषु प्रयातासु जवेन मत्स्यान्
किरीटिनं कृतकार्यं च मत्वा।
दुर्योधनायाभिमुखं प्रयातं
कुरुप्रवीराः सहसा निपेतुः ॥ २ ॥
मूलम्
गोषु प्रयातासु जवेन मत्स्यान्
किरीटिनं कृतकार्यं च मत्वा।
दुर्योधनायाभिमुखं प्रयातं
कुरुप्रवीराः सहसा निपेतुः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब गौएँ तीव्र गतिसे मत्स्यदेशकी राजधानीकी ओर भाग गयीं और अर्जुन अपने कार्यमें सफल होकर दुर्योधनकी ओर बढ़ चले, तब यह सब जानकर कौरव वीर सहसा वहाँ आ पहुँचे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामनीकानि बहूनि गाढं
व्यूढानि दृष्ट्वा बहुलध्वजानि ।
मत्स्यस्य पुत्रं द्विषतां निहन्ता
वैराटिमामन्त्र्य ततोऽभ्युवाच ॥ ३ ॥
मूलम्
तेषामनीकानि बहूनि गाढं
व्यूढानि दृष्ट्वा बहुलध्वजानि ।
मत्स्यस्य पुत्रं द्विषतां निहन्ता
वैराटिमामन्त्र्य ततोऽभ्युवाच ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी अनेक सेनाएँ थीं और उन सबकी अच्छी तरह व्यूह-रचना की गयी थी। उन सेनाओंमें बहुत-सी ध्वजा-पताकाएँ फहरा रही थीं। शत्रुओंका नाश करनेवाले अर्जुनने उन सबको देखकर विराटपुत्र उत्तरको सम्बोधित करके कहा—॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतेन तूर्णं प्रतिपादयेमान्
श्वेतान् हयान् काञ्चनरश्मियोक्त्रान् ।
जवेन सर्वेण कुरु प्रयत्न-
मासादयेऽहं कुरुसिंहवृन्दम् ॥ ४ ॥
गजो गजेनेव मया दुरात्मा
योद्धुं समाकाङ्क्षति सूतपुत्रः ।
तमेव मां प्रापय राजपुत्र
दुर्योधनापाश्रयजातदर्पम् ॥ ५ ॥
मूलम्
एतेन तूर्णं प्रतिपादयेमान्
श्वेतान् हयान् काञ्चनरश्मियोक्त्रान् ।
जवेन सर्वेण कुरु प्रयत्न-
मासादयेऽहं कुरुसिंहवृन्दम् ॥ ४ ॥
गजो गजेनेव मया दुरात्मा
योद्धुं समाकाङ्क्षति सूतपुत्रः ।
तमेव मां प्रापय राजपुत्र
दुर्योधनापाश्रयजातदर्पम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजकुमार! सुनहरी रस्सियोंसे जुते हुए मेरे इन सफेद घोड़ोंको तुम शीघ्र ही इस मार्गसे ले चलो और सम्पूर्ण वेगसे ऐसा प्रयत्न करो कि मैं कुरुश्रेष्ठ दुर्योधनकी सेनाके पास पहुँच जाऊँ। यह देखो, जैसे हाथी हाथीके साथ भिड़ना चाहता हो, उसी प्रकार यह दुरात्मा सूतपुत्र कर्ण मेरे साथ युद्ध करना चाहता है। पहले इसीके पास मुझे ले चलो। यह दुर्योधनका सहारा पाकर बड़ा घमंडी हो गया है॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तैर्हयैर्वातजवैर्बृहद्भिः
पुत्रो विराटस्य सुवर्णकक्षैः ।
व्यध्वंसयत् तद् रथिनामनीकं
ततोऽवहत् पाण्डवमाजिमध्ये ॥ ६ ॥
मूलम्
स तैर्हयैर्वातजवैर्बृहद्भिः
पुत्रो विराटस्य सुवर्णकक्षैः ।
व्यध्वंसयत् तद् रथिनामनीकं
ततोऽवहत् पाण्डवमाजिमध्ये ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके विशाल घोड़े वायुके समान वेगशाली थे। उनकी जीनके नीचे लगे हुए कपड़ेके दोनों पिछले छोर सुनहरे थे। विराटपुत्र उत्तरने तेजीसे हाँककर उन घोड़ोंके द्वारा कौरव रथियोंकी सेनाको कुचलवाते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुनको सेनाके मध्यभागमें पहुँचा दिया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं चित्रसेनो विशिखैर्विपाठैः
संग्रामजिच्छत्रुसहो जयश्च ।
प्रत्युद्ययुर्भारतमापतन्तं
महारथाः कर्णमभीप्समानाः ॥ ७ ॥
मूलम्
तं चित्रसेनो विशिखैर्विपाठैः
संग्रामजिच्छत्रुसहो जयश्च ।
प्रत्युद्ययुर्भारतमापतन्तं
महारथाः कर्णमभीप्समानाः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इतनेमें ही चित्रसेन, संग्रामजित्, शत्रुसह तथा जय आदि महारथी विपाठ नामक बाणोंकी वर्षा करते हुए कर्णकी रक्षा करनेके उद्देश्यसे वहाँ आक्रमण करनेवाले अर्जुनके सामने आ डटे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स तेषां पुरुषप्रवीरः
शरासनार्चिः शरवेगतापः ।
व्रातं रथानामदहत् समन्यु-
र्वनं यथाग्निः कुरुपुङ्गनाम् ॥ ८ ॥
मूलम्
ततः स तेषां पुरुषप्रवीरः
शरासनार्चिः शरवेगतापः ।
व्रातं रथानामदहत् समन्यु-
र्वनं यथाग्निः कुरुपुङ्गनाम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब पुरुषश्रेष्ठ वीरवर अर्जुन क्रोधसे युक्त हो आग-बबूले हो गये। धनुष मानो उस आगकी ज्वाला थी और बाणोंका वेग ही आँच बन गया था। जैसे आग वनको जला डालती है, उसी प्रकार वे उन कुरुश्रेष्ठ महारथियोंके रथसमूहोंको भस्म करने लगे॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिंस्तु युद्धे तुमुले प्रवृत्ते
पार्थं विकर्णोऽतिरथं रथेन ।
विपाठवर्षेण कुरुप्रवीरो
भीमेन भीमानुजमाससाद ॥ ९ ॥
मूलम्
तस्मिंस्तु युद्धे तुमुले प्रवृत्ते
पार्थं विकर्णोऽतिरथं रथेन ।
विपाठवर्षेण कुरुप्रवीरो
भीमेन भीमानुजमाससाद ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार घोर युद्ध छिड़ जानेपर कुरुकुलके श्रेष्ठ वीर विकर्णने रथपर सवार हो विपाठ नामक बाणोंकी भयंकर वर्षा करते हुए भीमके छोटे भाई अतिरथी वीर अर्जुनपर आक्रमण किया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो विकर्णस्य धनुर्विकृष्य
जाम्बूनदाग्र्योपचितं दृढज्यम् ।
अपातयत् तं ध्वजमस्य मथ्य
च्छिन्नध्वजः सोऽप्यपयाज्जवेन ॥ १० ॥
मूलम्
ततो विकर्णस्य धनुर्विकृष्य
जाम्बूनदाग्र्योपचितं दृढज्यम् ।
अपातयत् तं ध्वजमस्य मथ्य
च्छिन्नध्वजः सोऽप्यपयाज्जवेन ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने अपने बाणोंसे जाम्बूनद नामक उत्तम सुवर्ण मढ़े हुए सुदृढ़ प्रत्यञ्जावाले विकर्णके धनुषको काटकर उसके ध्वजको भी टुकड़े-टुकड़े करके गिरा दिया। रथकी ध्वजा कट जानेपर विकर्ण बड़े वेगसे भाग निकला॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं शात्रवाणां गणबाधितारं
कर्माणि कुर्वन्तममानुषाणि ।
शत्रुंतपः पार्थममृष्यमाणः
समार्दयच्छरवर्षेण पार्थम् ॥ ११ ॥
मूलम्
तं शात्रवाणां गणबाधितारं
कर्माणि कुर्वन्तममानुषाणि ।
शत्रुंतपः पार्थममृष्यमाणः
समार्दयच्छरवर्षेण पार्थम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुदलके वीरोंका वध करनेवाले कुन्तीनन्दन अर्जुनको इस प्रकार अमानुषिक पराक्रम करते देख शत्रुंतप नामक वीर उनके सामने आया। वह अर्जुनका पराक्रम न सह अपनी बाणवर्षासे पार्थको पीड़ा देने लगा॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेन राज्ञातिरथेन विद्धो
विगाहमानो ध्वजिनीं कुरूणाम् ।
शत्रुंतपं पञ्यभिराशु विद्धा
ततोऽस्य सूतं दशभिर्जघान ॥ १२ ॥
मूलम्
स तेन राज्ञातिरथेन विद्धो
विगाहमानो ध्वजिनीं कुरूणाम् ।
शत्रुंतपं पञ्यभिराशु विद्धा
ततोऽस्य सूतं दशभिर्जघान ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौरवसेनामें विचरनेवाले अर्जुनने अतिरथी राजा शत्रुंतपके बाणोंसे घायल होकर उसे भी तुरंत ही पाँच बाणोंसे बींध डाला। फिर उसके सारथिको दस बाण मारकर यमलोक पहुँचा दिया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स विद्धो भरतर्षभेण
बाणेन गात्रावरणातिगेन ।
गतासुराजौ निपपात भूमौ
नगो नगाग्रादिव वातरुग्णः ॥ १३ ॥
मूलम्
ततः स विद्धो भरतर्षभेण
बाणेन गात्रावरणातिगेन ।
गतासुराजौ निपपात भूमौ
नगो नगाग्रादिव वातरुग्णः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ अर्जुनके बाण कवच छेदकर शरीरके भीतर घुस जाते थे। उनके द्वारा घायल होकर राजा शत्रुंतपके प्राणपखेरू उड़ गये और जैसे आँधीसे उखड़ा हुआ वृक्ष पर्वतशिखरसे नीचे गिरे, उसी प्रकार वह रथसे रणभूमिमें गिर पड़ा॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरर्षभास्तेन नरर्षभेण
वीरा रणे वीरतरेण भग्नाः।
चकम्पिरे वातवशेन काले
प्रकम्पितानीव महावनानि ॥ १४ ॥
मूलम्
नरर्षभास्तेन नरर्षभेण
वीरा रणे वीरतरेण भग्नाः।
चकम्पिरे वातवशेन काले
प्रकम्पितानीव महावनानि ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरश्रेष्ठ वीरवर धनंजयके बाणोंकी मार खाकर कौरवसेनाके कितने ही श्रेष्ठ वीर घायल हो इस प्रकार काँपने लगे, जैसे समयानुसार प्रचण्ड आँधीके वेगसे बड़े-बड़े जंगलोंके वृक्ष हिलने लगते हैं॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतास्तु पार्थेन नरप्रवीरा
गतासवोर्व्यां सुषुपुः सुवेषाः ।
वसुप्रदा वासवतुल्यवीर्याः
पराजिता वासवजेन संख्ये ॥ १५ ॥
मूलम्
हतास्तु पार्थेन नरप्रवीरा
गतासवोर्व्यां सुषुपुः सुवेषाः ।
वसुप्रदा वासवतुल्यवीर्याः
पराजिता वासवजेन संख्ये ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुन्तीपुत्र अर्जुनके द्वारा मारे गये बहुतेरे उत्कृष्ट नरवीर जो सुन्दर वेश-भूषासे सुशोभित थे, प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर सो गये। जो वीर दूसरोंको वसु (धन) देनेवाले और वासव (इन्द्र) के तुल्य पराक्रमी थे, वे भी वासवनन्दन अर्जुनके द्वारा उस युद्धमें पराजित हो गये॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुवर्णकार्ष्णायसवर्मनद्धा
नागा यथा हैमवताः प्रवृद्धाः।
तथा स शत्रून् समरे विनिघ्नन्
गाण्डीवधन्वा पुरुषप्रवीरः ॥ १६ ॥
चचार संख्ये विदिशो दिशश्च
दहन्निवाग्निर्वनमातपान्ते ।
मूलम्
सुवर्णकार्ष्णायसवर्मनद्धा
नागा यथा हैमवताः प्रवृद्धाः।
तथा स शत्रून् समरे विनिघ्नन्
गाण्डीवधन्वा पुरुषप्रवीरः ॥ १६ ॥
चचार संख्ये विदिशो दिशश्च
दहन्निवाग्निर्वनमातपान्ते ।
अनुवाद (हिन्दी)
उनमेंसे कुछ तो सोनेके कवच पहने थे और कुछ लोगोंने काले लोहेके बख्तर बाँध रखे थे। वे उस युद्धभूमिमें पड़े हुए हिमालयप्रदेशके विशालकाय गजराजोंके समान जान पड़ते थे। इस प्रकार संग्राममें शत्रुओंका संहार करनेवाले गाण्डीव-धारी वीरशिरोमणि नररत्न अर्जुन वहाँ सब दिशाओंमें इस प्रकार विचरने लगे, मानो ग्रीष्म-ऋतुमें दावानल सम्पूर्ण वनको दग्ध करता हुआ चारों ओर फैल रहा हो॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रकीर्णपर्णानि यथा वसन्ते
विशातयित्वा पवनोऽम्बुदांश्च ॥ १७ ॥
तथा सपत्नान् विकिरन् किरीटी
चचार संख्येऽतिरथो रथेन ।
मूलम्
प्रकीर्णपर्णानि यथा वसन्ते
विशातयित्वा पवनोऽम्बुदांश्च ॥ १७ ॥
तथा सपत्नान् विकिरन् किरीटी
चचार संख्येऽतिरथो रथेन ।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वसन्तऋतुमें (तेज चलनेवाली) हवा पतझड़के बिखरे पत्तोंको उड़ाती और बादलोंको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उस रणभूमिमें रथपर बैठे हुए अतिरथी वीर किरीटधारी अर्जुन शत्रुओंका संहार करते हुए विचरने लगे॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शोणाश्ववाहस्य हयान् निहत्य
वैकर्तनभ्रातुरदीनसत्त्वः ।
एकेन संग्रामजितः शरेण
शिरो जहाराथ किरीटमाली ॥ १८ ॥
मूलम्
शोणाश्ववाहस्य हयान् निहत्य
वैकर्तनभ्रातुरदीनसत्त्वः ।
एकेन संग्रामजितः शरेण
शिरो जहाराथ किरीटमाली ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके हृदयमें दीनताका लेश भी नहीं था। वे सुन्दर किरीट और मालाओंसे अलंकृत थे। उन्होंने लाल घोड़ेवाले रथपर बैठकर अपने सामने आये हुए कर्णके भाई संग्रामजित्के घोड़ोंको मार डाला और एक बाणसे उसके मस्तकको भी धड़से अलग कर दिया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् हते भ्रातरि सूतपुत्रो
वैकर्तनो वीर्यमथाददानः ।
प्रगृह्य दन्ताविव नागराजो
महर्षभं व्याघ्र इवाभ्यधावत् ॥ १९ ॥
मूलम्
तस्मिन् हते भ्रातरि सूतपुत्रो
वैकर्तनो वीर्यमथाददानः ।
प्रगृह्य दन्ताविव नागराजो
महर्षभं व्याघ्र इवाभ्यधावत् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने भाई संग्रामजित्के मारे जानेपर सूतपुत्र कर्णने कुपित हो पराक्रम दिखानेकी इच्छासे अर्जुन और उत्तरपर इस प्रकार हठपूर्वक धावा किया, मानो कोई गजराज दो पर्वतशिखरोंसे भिड़ने चला हो अथवा कोई व्याघ्र किसी महाबली साँड़पर टूट पड़ा हो॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पाण्डवं द्वादशभिः पृषत्कै-
र्वैकर्तनः शीघ्रमथो जघान ।
विव्याध गात्रेषु हयांश्च सर्वान्
विराटपुत्रं च करे निजघ्ने ॥ २० ॥
मूलम्
स पाण्डवं द्वादशभिः पृषत्कै-
र्वैकर्तनः शीघ्रमथो जघान ।
विव्याध गात्रेषु हयांश्च सर्वान्
विराटपुत्रं च करे निजघ्ने ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूर्यपुत्र कर्णने बड़ी शीघ्रताके साथ पाण्डुनन्दन अर्जुनको बारह बाणोंसे घायल किया, उनके घोड़ोंके शरीर छेदकर छलनी कर दिये और विराटपुत्र उत्तरके हाथमें भी भारी चोट पहुँचायी॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सहसा किरीटी
वैकर्तनं वै तरसाभिपत्य ।
प्रगृह्य वेगं न्यपतज्जवेन
नागं गरुत्मानिव चित्रपक्षः ॥ २१ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सहसा किरीटी
वैकर्तनं वै तरसाभिपत्य ।
प्रगृह्य वेगं न्यपतज्जवेन
नागं गरुत्मानिव चित्रपक्षः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्णको सहसा आते देख किरीटधारी अर्जुन भी तीव्र गतिसे आगे बढ़कर जैसे विचित्र पंखवाले गरुड़ किसी नागपर जोरसे आक्रमण करते हों, उसी प्रकार बड़े वेगसे उसपर टूट पड़े॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावुत्तमौ सर्वधनुर्धराणां
महाबलौ सर्वसपत्नसाहौ ।
कर्णस्य पार्थस्य निशम्य युद्धं
दिदृक्षमाणाः कुरवोऽभितस्थुः ॥ २२ ॥
मूलम्
तावुत्तमौ सर्वधनुर्धराणां
महाबलौ सर्वसपत्नसाहौ ।
कर्णस्य पार्थस्य निशम्य युद्धं
दिदृक्षमाणाः कुरवोऽभितस्थुः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों ही सम्पूर्ण धनुर्धर वीरोंमें श्रेष्ठ, महान् बलवान् तथा समस्त शत्रुओंका वेग सहन करनेवाले थे। कर्ण और अर्जुनका युद्ध सुनकर समस्त कौरववीर उसे देखनेके लिये दर्शकोंकी भाँति खड़े हो गये॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पाण्डवस्तूर्णमुदीर्णकोपः
कृतागसं कर्णमुदीक्ष्य हर्षात् ।
क्षणेन साश्वं सरथं ससारथि-
मन्तर्दधे घोरशरौघवृष्ट्या ॥ २३ ॥
मूलम्
स पाण्डवस्तूर्णमुदीर्णकोपः
कृतागसं कर्णमुदीक्ष्य हर्षात् ।
क्षणेन साश्वं सरथं ससारथि-
मन्तर्दधे घोरशरौघवृष्ट्या ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने अपराधी कर्णको सामने देखकर पाण्डुनन्दन अर्जुनकी क्रोधाग्नि भड़क उठी। वे तुरंत ही हर्ष एवं उत्साहसे भर गये और भयंकर बाणोंकी वर्षा करके उन्होंने क्षणभरमें घोड़े, रथ और सारथिसहित कर्णको ढँक दिया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सुविद्धाः सरथाः सनागा
योधा विनेदुर्भरतर्षभाणाम् ।
अन्तर्हिता भीष्ममुखाः सहाश्वाः
किरीटिना कीर्णरथाः पृषत्कैः ॥ २४ ॥
मूलम्
ततः सुविद्धाः सरथाः सनागा
योधा विनेदुर्भरतर्षभाणाम् ।
अन्तर्हिता भीष्ममुखाः सहाश्वाः
किरीटिना कीर्णरथाः पृषत्कैः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर कौरवसेनाके रथियों और हाथीसवारों-सहित सम्पूर्ण योद्धा अत्यन्त घायल होकर चीखने-चिल्लाने लगे। किरीटधारी पार्थके बाणोंसे रथ आच्छादित हो जानेके कारण भीष्म आदि सभी महारथी घोड़ोंसहित अदृश्य हो गये॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स चापि तानर्जुनबाहुमुक्ता-
ञ्छराञ्छरौघैः प्रतिहत्य वीरः ।
तस्थौ महात्मा सधनुः सबाणः
सविस्फुलिङ्गोऽग्निरिवाशु कर्णः ॥ २५ ॥
मूलम्
स चापि तानर्जुनबाहुमुक्ता-
ञ्छराञ्छरौघैः प्रतिहत्य वीरः ।
तस्थौ महात्मा सधनुः सबाणः
सविस्फुलिङ्गोऽग्निरिवाशु कर्णः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महामना वीर कर्ण भी बाणसमूहोंद्वारा अर्जुनकी भुजाओंसे छोड़े गये सम्पूर्ण बाणोंको शीघ्र ही काटकर अपने धनुष और बाणोंके साथ चिनगारियोंसे युक्त अग्निकी भाँति सुशोभित होने लगा॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्त्वभूद् वै तलतालशब्दः
सशङ्गभेरीपणवप्रणादः ।
प्रक्ष्वेडितज्यातलनिःस्वनं तं
वैकर्तनं पूजयतां कुरूणाम् ॥ २६ ॥
मूलम्
ततस्त्वभूद् वै तलतालशब्दः
सशङ्गभेरीपणवप्रणादः ।
प्रक्ष्वेडितज्यातलनिःस्वनं तं
वैकर्तनं पूजयतां कुरूणाम् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो वहाँ कर्ण बार-बार प्रत्यंचा खींचकर धनुषकी टंकार फैलाने लगा और उसकी प्रशंसा करनेवाले कौरवोंके दलमें हथेलियों और तालियोंकी गड़गड़ाहट होने लगी। शंख बज उठे, नगाड़े पीटे जाने लगे और ढोलोंका गम्भीर शब्द सब ओर गूँजने लगा॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उद्धूतलाङ्गूलमहापताक-
ध्वजोत्तमांसाकुलभीषणान्तम् ।
गाण्डीवनिर्ह्रादकृतप्रणादं
किरीटिनं प्रेक्ष्य ननाद कर्णः ॥ २७ ॥
मूलम्
उद्धूतलाङ्गूलमहापताक-
ध्वजोत्तमांसाकुलभीषणान्तम् ।
गाण्डीवनिर्ह्रादकृतप्रणादं
किरीटिनं प्रेक्ष्य ननाद कर्णः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके रथकी ध्वजापर बैठे वानरवीरकी पूँछ बहुत बड़ी पताकाके समान हिल रही थी और उसके अग्रभागपर भयंकर भूतोंका भैरवनाद हो रहा था। इसके साथ ही वज्रकी गड़गड़ाहटके समान गाण्डीव धनुषकी टंकार फैल रही थी। ऐसे किरीटधारी अर्जुनकी ओर देखकर कर्ण बार-बार सिंहनाद करने लगा॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स चापि वैकर्तनमर्दयित्वा
साश्वं ससूतं सरथं पृषत्कैः।
तमाववर्ष प्रसभं किरीटी
पितामहं द्रोणकृपौ च दृष्ट्वा ॥ २८ ॥
मूलम्
स चापि वैकर्तनमर्दयित्वा
साश्वं ससूतं सरथं पृषत्कैः।
तमाववर्ष प्रसभं किरीटी
पितामहं द्रोणकृपौ च दृष्ट्वा ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने भी घोड़े, सारथि एवं रथसहित कर्णको बाणोंद्वारा पीड़ित करके पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्यकी ओर देखते हुए कर्णपर हठपूर्वक बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ की॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स चापि पार्थं बहुभिः पृषत्कै-
र्वैकर्तनो मेघ इवाभ्यवर्षत् ।
तथैव कर्णं च किरीटमाली
संछादयामास शितैः पृषत्कैः ॥ २९ ॥
मूलम्
स चापि पार्थं बहुभिः पृषत्कै-
र्वैकर्तनो मेघ इवाभ्यवर्षत् ।
तथैव कर्णं च किरीटमाली
संछादयामास शितैः पृषत्कैः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख कर्णने भी अर्जुनपर मेघकी भाँति बहुत-से बाणोंकी झड़ी लगा दी। इसी प्रकार किरीटमाली अर्जुनने भी अपने तीखे सायकोंसे कर्णको ढँक दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोः सुतीक्ष्णान् सृजतोः शरौघान्
महाशरौघास्त्रविवर्धने रणे ।
रथे विलग्नाविव चन्द्रसूर्यौ
घनान्तरेणानुददर्श लोकः ॥ ३० ॥
मूलम्
तयोः सुतीक्ष्णान् सृजतोः शरौघान्
महाशरौघास्त्रविवर्धने रणे ।
रथे विलग्नाविव चन्द्रसूर्यौ
घनान्तरेणानुददर्श लोकः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार जहाँ राशि-राशि बाणोंद्वारा भीषण मार-काट मची हुई थी, उस रणक्षेत्रमें वे दोनों वीर अत्यन्त तीक्ष्ण शरसमूहोंकी बौछार कर रहे थे। लोगोंने देखा, वे रथपर बैठे हुए बाणसमूहके भीतरसे इस प्रकार प्रकाशित हो रहे हैं, मानो बादलोंके भीतरसे सूर्य और चन्द्रमा चमक रहे हों॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथाशुकारी चतुरो हयांश्च
विव्याध कर्णो निशितैः किरीटिनः।
त्रिभिश्च यन्तारममृष्यमाणो
विव्याध तूर्णं त्रिभिरस्य केतुम् ॥ ३१ ॥
मूलम्
अथाशुकारी चतुरो हयांश्च
विव्याध कर्णो निशितैः किरीटिनः।
त्रिभिश्च यन्तारममृष्यमाणो
विव्याध तूर्णं त्रिभिरस्य केतुम् ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्णको अर्जुनका पराक्रम असह्य हो उठा। उसने अपनी आशुकारिता (शीघ्र बाण छोड़नेकी कला) का परिचय देते हुए तीखे बाणोंसे अर्जुनके चारों घोड़ोंको बींध डाला; फिर तीन बाणोंसे उनके सारथिको घायल किया और तुरंत ही तीन बाण मारकर ध्वजको भी छेद डाला॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽभिविद्धः समरावमर्दी
प्रबोधितः सिंह इव प्रसुप्तः।
गाण्डीवधन्वा ऋषभः कुरूणा-
मजिह्मगैः कर्णमियाय जिष्णुः ॥ ३२ ॥
मूलम्
ततोऽभिविद्धः समरावमर्दी
प्रबोधितः सिंह इव प्रसुप्तः।
गाण्डीवधन्वा ऋषभः कुरूणा-
मजिह्मगैः कर्णमियाय जिष्णुः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुकुलके श्रेष्ठ पुरुष गाण्डीवधारी अर्जुन समर-भूमिमें शत्रुओंको रौंद डालनेवाले थे। वे सूतपुत्रके बाणोंसे घायल होकर सोये हुए सिंहके समान जाग उठे और विपक्षियोंपर सीधे आघात करनेवाले बाणोंद्वारा कर्णका सामना करनेके लिये आगे बढ़े॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरास्त्रवृष्ट्या निहतो महात्मा
प्रादुश्चकारातिमनुष्यकर्म ।
प्राच्छादयत् कर्णरथं पृषत्कै-
र्लोकानिमान् सूर्य इवांशुजालैः ॥ ३३ ॥
मूलम्
शरास्त्रवृष्ट्या निहतो महात्मा
प्रादुश्चकारातिमनुष्यकर्म ।
प्राच्छादयत् कर्णरथं पृषत्कै-
र्लोकानिमान् सूर्य इवांशुजालैः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्णकी बाणवर्षासे आहत हुए महात्मा अर्जुनने अतिमानुष पराक्रम प्रकट किया। जैसे सूर्य अपनी किरणोंके समूहसे समस्त संसारको आच्छादित कर देते हैं, उसी प्रकार उन्होंने बाणसमुदायसे कर्णके रथको ढक दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स हस्तिनेवाभिहतो गजेन्द्रः
प्रगृह्य भल्लान् निशितान् निषङ्गात्।
आकर्णपूर्णं च धनुर्विकृष्य
विव्याध गात्रेष्वथ सूतपुत्रम् ॥ ३४ ॥
मूलम्
स हस्तिनेवाभिहतो गजेन्द्रः
प्रगृह्य भल्लान् निशितान् निषङ्गात्।
आकर्णपूर्णं च धनुर्विकृष्य
विव्याध गात्रेष्वथ सूतपुत्रम् ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अर्जुनकी दशा उस गजराजकी भाँति हो रही थी, जो अपने प्रतिद्वन्द्वी गजका प्रहार सहकर स्वयं भी उसपर चोट करनेके लिये उद्यत हो। उन्होंने तरकससे भल्ल नामक तीखे बाण निकाले और धनुषको कानतक खींचकर सूतपुत्रके अंगोंको बींध डाला॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथास्य बाहूरुशिरोललाटं
ग्रीवां वराङ्गानि परावमर्दी ।
शितैश्च बाणैर्युधि निर्बिभेद
गाण्डीवमुक्तैरशनिप्रकाशैः ॥ ३५ ॥
मूलम्
अथास्य बाहूरुशिरोललाटं
ग्रीवां वराङ्गानि परावमर्दी ।
शितैश्च बाणैर्युधि निर्बिभेद
गाण्डीवमुक्तैरशनिप्रकाशैः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंका मान-मर्दन करनेवाले वीर धनंजयने गाण्डीव धनुषसे छूटकर वज्रके समान प्रकाशित होनेवाले तीखे सायकोंद्वारा उस युद्धमें कर्णकी दोनों भुजाओं, जाँघों, मस्तक, ललाट तथा ग्रीवा आदि उत्तम अंगोंको छेद डाला॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पार्थमुक्तैरिषुभिः प्रणुन्नो
गजो गजेनेव जितस्तरस्वी ।
विहाय संग्रामशिरः प्रयातो
वैकर्तनः पाण्डवबाणतप्तः ॥ ३६ ॥
मूलम्
स पार्थमुक्तैरिषुभिः प्रणुन्नो
गजो गजेनेव जितस्तरस्वी ।
विहाय संग्रामशिरः प्रयातो
वैकर्तनः पाण्डवबाणतप्तः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके छोड़े हुए बाणोंकी चोट खाकर सूर्यपुत्र कर्ण तिलमिला उठा और एक हाथीसे पराजित हुए दूसरे वेगशाली हाथीकी भाँति वह पाण्डुनन्दन अर्जुनके बाणोंसे संतप्त हो युद्धका मुहाना छोड़कर भाग निकला॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि गोहरणपर्वणि उत्तरगोग्रहे कर्णापयाने चतुष्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत गोहरणपर्वमें उत्तरगोग्रहके समय कर्णका युद्धसे पलायनविषयक चौवनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५४॥