भागसूचना
त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
बृहन्नलाद्वारा उत्तरको पाण्डवोंके आयुधोंका परिचय कराना
मूलम् (वचनम्)
बृहन्नलोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यन्मां पूर्वमिहापृच्छः शत्रुसेनापहारिणम् ।
गाण्डीवमेतत् पार्थस्य लोकेषु विदितं धनुः ॥ १ ॥
सर्वायुधमहामात्रं शातकुम्भपरिष्कृतम् ।
एतत् तदर्जुनस्यासीद् गाण्डीवं परमायुधम् ॥ २ ॥
मूलम्
यन्मां पूर्वमिहापृच्छः शत्रुसेनापहारिणम् ।
गाण्डीवमेतत् पार्थस्य लोकेषु विदितं धनुः ॥ १ ॥
सर्वायुधमहामात्रं शातकुम्भपरिष्कृतम् ।
एतत् तदर्जुनस्यासीद् गाण्डीवं परमायुधम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बृहन्नला बोली— राजकुमार! तुमने पहले जिसके विषयमें मुझसे प्रश्न किया है, वही यह अर्जुनका विश्वविख्यात गाण्डीव धनुष है, जो शत्रुओंकी सेनाके लिये कालरूप है। यह सब आयुधोंसे विशाल है। इसमें सब ओर सोना मढ़ा है। यही उत्तम आयुध गाण्डीव अर्जुनके पास रहा करता था॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् तच्छतसहस्रेण सम्मितं राष्ट्रवर्द्धनम्।
येन देवान् मनुष्यांश्च पार्थो विजयते मृधे ॥ ३ ॥
चित्रमुच्चावचैर्वर्णैः श्लक्ष्णमायतमव्रणम् ।
देवदानवगन्धर्वैः पूजितं शाश्वतीः समाः ॥ ४ ॥
मूलम्
यत् तच्छतसहस्रेण सम्मितं राष्ट्रवर्द्धनम्।
येन देवान् मनुष्यांश्च पार्थो विजयते मृधे ॥ ३ ॥
चित्रमुच्चावचैर्वर्णैः श्लक्ष्णमायतमव्रणम् ।
देवदानवगन्धर्वैः पूजितं शाश्वतीः समाः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह अकेला ही एक लाख धनुषोंकी बराबरी करनेवाला तथा अपने राष्ट्रको बढ़ानेवाला है। पृथापुत्र अर्जुन इसीके द्वारा युद्धमें मनुष्यों तथा देवताओंपर विजय पाते आ रहे हैं। हलके-गहरे अनेक प्रकारके रंगोंसे इसकी विचित्र शोभा होती है। यह चिकना, चमकदार और विस्तृत है। इसमें कहीं कोई चोटका चिह्न नहीं आया है। देवताओं, दानवों तथा गन्धर्वोंने इसका बहुत वर्षोंतक पूजन किया है॥३-४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतद् वर्षसहस्रं तु ब्रह्मा पूर्वमधारयत्।
ततोऽनन्तरमेवाथ प्रजापतिरधारयत् ॥ ५ ॥
त्रीणि पञ्चशतं चैव शक्रोऽशीति च पञ्च च।
सोमः पञ्चशतं राजा तथैव वरुणः शतम्।
पार्थः पञ्च च षष्टिं च वर्षाणि श्वेतवाहनः ॥ ६ ॥
मूलम्
एतद् वर्षसहस्रं तु ब्रह्मा पूर्वमधारयत्।
ततोऽनन्तरमेवाथ प्रजापतिरधारयत् ॥ ५ ॥
त्रीणि पञ्चशतं चैव शक्रोऽशीति च पञ्च च।
सोमः पञ्चशतं राजा तथैव वरुणः शतम्।
पार्थः पञ्च च षष्टिं च वर्षाणि श्वेतवाहनः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पूर्वकालमें ब्रह्माजीने इसे एक हजार वर्षोंतक धारण किया था। तदनन्तर प्रजापतिने पाँच सौ तीन वर्षोंतक इसे अपने पास रखा। फिर इन्द्रने पचासी वर्षोंतक रखा। इन्द्रके बाद सोमने पाँच सौ तथा राजा वरुणने सौ वर्षोंतक इसे धारण किया। तत्पश्चात् श्वेतवाहन अर्जुन पैंसठ वर्षोंसे इसे धारण करते चले आ रहे हैं॥५-६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महावीर्यं महादिव्यमेतत् तद् धनुरुत्तमम्।
एतत् पार्थमनुप्राप्तं वरुणाच्चारुदर्शनम् ॥ ७ ॥
मूलम्
महावीर्यं महादिव्यमेतत् तद् धनुरुत्तमम्।
एतत् पार्थमनुप्राप्तं वरुणाच्चारुदर्शनम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सर्वोत्तम धनुष देखनेमें बड़ा ही मनोहर है। इसके द्वारा महान् पराक्रम प्रकट होता है। अर्जुनको यह महादिव्य धनुष साक्षात् वरुणदेवसे प्राप्त हुआ था॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पूजितं सुरमर्त्येषु बिभर्ति परमं वपुः।
सुपार्श्वं भीमसेनस्य जातरूपग्रहं धनुः।
येन पार्थोऽजयत् कृत्स्नां दिशं प्राचीं परंतपः ॥ ८ ॥
मूलम्
पूजितं सुरमर्त्येषु बिभर्ति परमं वपुः।
सुपार्श्वं भीमसेनस्य जातरूपग्रहं धनुः।
येन पार्थोऽजयत् कृत्स्नां दिशं प्राचीं परंतपः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तथा दूसरा देवताओं और मनुष्योंमें पूजित उत्कृष्ट रूप धारण करनेवाला धनुष भीमसेनका है, जिसके दोनों किनारे बड़े सुन्दर हैं और मध्यभागमें सोना मढ़ा हुआ है। यह वही धनुष है, जिससे शत्रुओंको संताप देनेवाले कुन्तीकुमार भीमसेनने सम्पूर्ण प्राचीदिशापर विजय पायी थी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इन्द्रगोपकचित्रं च यदेतच्चारुदर्शनम् ।
राज्ञो युधिष्ठिरस्यैतद् वैराटे धनुरुत्तमम् ॥ ९ ॥
मूलम्
इन्द्रगोपकचित्रं च यदेतच्चारुदर्शनम् ।
राज्ञो युधिष्ठिरस्यैतद् वैराटे धनुरुत्तमम् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उत्तर! जिसके ऊपर ‘इन्द्रगोप’ (वीरबहूटी) नामक कीटोंका चित्र है और जो देखनेमें मनोहर है, वही यह उत्तम धनुष राजा युधिष्ठिरका है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सूर्या यस्मिंस्तु सौवर्णाः प्रकाशन्ते प्रकाशिनः।
तेजसा प्रज्वलन्तो वै नकुलस्यैतदायुधम् ॥ १० ॥
मूलम्
सूर्या यस्मिंस्तु सौवर्णाः प्रकाशन्ते प्रकाशिनः।
तेजसा प्रज्वलन्तो वै नकुलस्यैतदायुधम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसमें सुवर्णके बने हुए प्रकाशपूर्ण सूर्य प्रकाशित हो रहे हैं और जो तेजसे जाज्वल्यमान जान पड़ते हैं, वही यह नकुलका आयुध है॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शलभा यत्र सौवर्णास्तपनीयविचित्रिताः ।
एतन्माद्रीसुतास्यापि सहदेवस्य कार्मुकम् ॥ ११ ॥
मूलम्
शलभा यत्र सौवर्णास्तपनीयविचित्रिताः ।
एतन्माद्रीसुतास्यापि सहदेवस्य कार्मुकम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसके ऊपर सुवर्णजटित मीनेके फतिंगे सुशोभित हैं, वही यह माद्रीनन्दन सहदेवका धनुष है॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये त्विमे क्षुरसंकाशाः सहस्रा लोमवाहिनः।
एतेऽर्जुनस्य वैराटे शराः सर्पविषोपमाः ॥ १२ ॥
मूलम्
ये त्विमे क्षुरसंकाशाः सहस्रा लोमवाहिनः।
एतेऽर्जुनस्य वैराटे शराः सर्पविषोपमाः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
विराटपुत्र! ये जो छुरेके समान मजबूत और चमकीले बाण हैं, जिनमें पंख लगे हुए हैं और जो साँपोंके विषके समान प्रभाव रखते हैं, ये सब अर्जुनके ही हैं॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते ज्वलन्तः संग्रामे तेजसा शीघ्रगामिनः।
भवन्ति वीरस्याक्षय्या व्यूहतः समरे रिपून् ॥ १३ ॥
मूलम्
एते ज्वलन्तः संग्रामे तेजसा शीघ्रगामिनः।
भवन्ति वीरस्याक्षय्या व्यूहतः समरे रिपून् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये युद्धमें तेजसे प्रकाशित होकर बड़ी तेजीसे शत्रुपर आघात करते हैं। रणमें शत्रुओंपर बाणवर्षा करनेवाले वीरके लिये भी इन बाणोंका काटना असम्भव है॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये चेमे पृथवो दीर्घाश्चन्द्रबिम्बार्धदर्शनाः।
एते भीमस्य निशिता रिपुक्षयकराः शराः ॥ १४ ॥
हारिद्रवर्णा ये त्वेते हेमपुङ्खाः शिलाशिताः।
मूलम्
ये चेमे पृथवो दीर्घाश्चन्द्रबिम्बार्धदर्शनाः।
एते भीमस्य निशिता रिपुक्षयकराः शराः ॥ १४ ॥
हारिद्रवर्णा ये त्वेते हेमपुङ्खाः शिलाशिताः।
अनुवाद (हिन्दी)
ये जो मोटे, विशाल और अर्धचन्द्राकार दिखायी देते हैं; वे भीमसेनके तीखे बाण हैं, जो शत्रुओंका संहार कर डालते हैं। ये हल्दीके समान रंगवाले और सुनहरी पाँखोंसे सुशोभित हैं। इन्हें पत्थरपर रगड़कर तेज किया गया है॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नकुलस्य कलापोऽयं पञ्चशार्दूललक्षणः ॥ १५ ॥
येनासौ व्यजयत् कृत्स्नां प्रतीचीं दिशमाहवे।
कलापो ह्येष तस्यासीन्माद्रीपुत्रस्य धीमतः ॥ १६ ॥
मूलम्
नकुलस्य कलापोऽयं पञ्चशार्दूललक्षणः ॥ १५ ॥
येनासौ व्यजयत् कृत्स्नां प्रतीचीं दिशमाहवे।
कलापो ह्येष तस्यासीन्माद्रीपुत्रस्य धीमतः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसपर पाँच सिंहोंके चिह्न हैं, वही यह नकुलका ‘कलाप’ (तरकस) है, जिससे उन्होंने युद्धमें सम्पूर्ण पश्चिमदिशापर विजय पायी थी। उस समय बुद्धिमान् माद्रीपुत्र नकुलके पास यही कलाप था॥१५-१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये त्विमे भास्कराकाराः सर्वपारसवाः शराः।
एते चित्रक्रियोपेताः सहदेवस्य धीमतः ॥ १७ ॥
मूलम्
ये त्विमे भास्कराकाराः सर्वपारसवाः शराः।
एते चित्रक्रियोपेताः सहदेवस्य धीमतः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
और ये जो सूर्यके समान आकृतिवाले चमकीले बाण हैं, इनके द्वारा सम्पूर्ण शत्रुसमूहोंका विनाश होता है। विचित्र क्रियाशक्तिसे सम्पन्न ये सभी बाण बुद्धिमान् सहदेवके हैं॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये त्विमे निशिताः पीताः पृथवो दीर्घवाससः।
हेमपुङ्खास्त्रिपर्वाणो राज्ञ एते महाशराः ॥ १८ ॥
मूलम्
ये त्विमे निशिताः पीताः पृथवो दीर्घवाससः।
हेमपुङ्खास्त्रिपर्वाणो राज्ञ एते महाशराः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये जो तीखे, पानीदार, मोटे और बड़ी-बड़ी पाँखोंवाले तीन पर्वोंके बाण हैं और जिनकी पाँखें सोनेकी बनी हुई हैं; ये सब राजा युधिष्ठिके महान् शर हैं॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्त्वयं सायको दीर्घः शिलीपृष्ठः शिलीमुखः।
अर्जुनस्यैष संग्रामे गुरुभारसहो दृढः ॥ १९ ॥
मूलम्
यस्त्वयं सायको दीर्घः शिलीपृष्ठः शिलीमुखः।
अर्जुनस्यैष संग्रामे गुरुभारसहो दृढः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसके पृष्ठभागमें मेढकीका चित्र है और जिसका मुखभाग भी मेढकीके मुखके समान ही बना हुआ है, यह विशाल खड्ग अर्जुनका है। यह युद्धभूमिमें भारी आघातको सह सकनेमें समर्थ और मजबूत है॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वैयाघ्रकोशः सुमहान् भीमसेनस्य सायकः।
गुरुभारसहो दिव्यः शात्रवाणां भयंकरः ॥ २० ॥
मूलम्
वैयाघ्रकोशः सुमहान् भीमसेनस्य सायकः।
गुरुभारसहो दिव्यः शात्रवाणां भयंकरः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसकी म्यान व्याघ्रचर्मकी बनी हुई है, वह महान् खड्ग भीमसेनका है। यह भी गुरुतर भार सहन करनेवाला, दिव्य एवं शत्रुओंके लिये भयंकर है॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुफलश्चित्रकोशश्च हेमत्सरुरनुत्तमः ।
निस्त्रिंशः कौरवस्यैष धर्मराजस्य धीमतः ॥ २१ ॥
मूलम्
सुफलश्चित्रकोशश्च हेमत्सरुरनुत्तमः ।
निस्त्रिंशः कौरवस्यैष धर्मराजस्य धीमतः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसकी धार सुन्दर एवं पतली है, जिसकी म्यान विचित्र और मूठ सोनेकी है, वह तीस अंगुलसे बड़ा सर्वोत्तम खड्ग परम बुद्धिमान् कुरुनन्दन धर्मराजका है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्तु पाञ्चनखे कोशे निहितश्चित्रयोधने।
नकुलस्यैष निस्त्रिंशो गुरुभारसहो दृढः ॥ २२ ॥
मूलम्
यस्तु पाञ्चनखे कोशे निहितश्चित्रयोधने।
नकुलस्यैष निस्त्रिंशो गुरुभारसहो दृढः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो बकरेके चमड़ेकी बनी हुई म्यानमें बंद है तथा नाना प्रकारके युद्धोंमें शस्त्रोंका भारी आघात सहन करनेमें समर्थ और मजबूत है, वह यह नकुलका खड्ग है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्त्वयं विपुलः खड्गो गव्ये कोशे समर्पितः।
सहदेवस्य विद्ध्येनं सर्वभारसहं दृढम् ॥ २३ ॥
मूलम्
यस्त्वयं विपुलः खड्गो गव्ये कोशे समर्पितः।
सहदेवस्य विद्ध्येनं सर्वभारसहं दृढम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
और यह जो गोचर्मकी म्यानमें रखा गया है, यह सहदेवका विशाल खड्ग है। इसे सब प्रकारके अघात-प्रत्याघात सहनेमें समर्थ और सुदृढ़ जानो॥२३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि गोहरणपर्वणि उत्तरगोग्रहे आयुधवर्णनं नाम त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः॥४३॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत गोहरणपर्वमें उत्तरगोग्रहके अवसरपर आयुधवर्णनविषयक तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४३॥