०४२ उत्तरस्य दिव्यास्त्रविषयकप्रश्नः

भागसूचना

द्विचत्वारिंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

उत्तरका बृहन्नलासे पाण्डवोंके अस्त्र-शस्त्रोंके विषयमें प्रश्न करना

मूलम् (वचनम्)

उत्तर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिन्दवो जातरूपस्य शतं यस्मिन् निपातिताः।
सहस्रकोटिसौवर्णाः कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ १ ॥

मूलम्

बिन्दवो जातरूपस्य शतं यस्मिन् निपातिताः।
सहस्रकोटिसौवर्णाः कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उत्तरने पूछा— बृहन्नले! जिसपर सोनेकी सौ फूलियाँ जड़ी हैं, जिसके दोनों सिरे बहुत ही मजबूत और चमकीले हैं, यह उत्तम धनुष किस यशस्वी वीरका है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वारणा यत्र सौवर्णाः पृष्ठे भासन्ति दंशिताः।
सुपार्श्वं सुग्रहं चैव कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ २ ॥

मूलम्

वारणा यत्र सौवर्णाः पृष्ठे भासन्ति दंशिताः।
सुपार्श्वं सुग्रहं चैव कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसकी पीठपर सोनेके प्रकाशमान हाथी सुशोभित हो रहे हैं तथा जिसके दोनों किनारे बड़े सुन्दर और मध्यभाग बहुत ही उत्तम है, यह श्रेष्ठ धनुष किसका है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तपनीयस्य शुद्धस्य षष्टिर्यस्येन्द्रगोपकाः ।
पृष्ठे विभक्ताः शोभान्ते कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ ३ ॥

मूलम्

तपनीयस्य शुद्धस्य षष्टिर्यस्येन्द्रगोपकाः ।
पृष्ठे विभक्ताः शोभान्ते कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसके पृष्ठभागमें शुद्ध सुवर्णके बने हुए लाल-पीले रंगवाले साठ इन्द्रगोप (वीरबहूटी) नामक कीट पृथक्-पृथक् शोभा पा रहे हैं, यह उत्तम धनुष किसका है?॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूर्या यत्र च सौवर्णास्त्रयो भासन्ति दंशिताः।
तेजसा प्रज्वलन्तो हि कस्यैत्‌द धनुरुत्तमम् ॥ ४ ॥

मूलम्

सूर्या यत्र च सौवर्णास्त्रयो भासन्ति दंशिताः।
तेजसा प्रज्वलन्तो हि कस्यैत्‌द धनुरुत्तमम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसमें परस्पर सटे हुए तीन सुवर्णमय सूर्यचिह्न प्रकाशित हो रहे हैं, जो तेजसे मानो प्रज्वलित हैं, यह उत्तम धनुष किसका है?॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शलभा यत्र सौवर्णास्तपनीयविभूषिताः ।
सुवर्णमणिचित्रं च कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ ५ ॥

मूलम्

शलभा यत्र सौवर्णास्तपनीयविभूषिताः ।
सुवर्णमणिचित्रं च कस्यैतद् धनुरुत्तमम् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसपर तप्त-सुवर्णभूषित मीनेके फतिंगे शोभा पा रहे हैं तथा जो उत्तम वर्णकी मणियोंसे जटित होनेके कारण विचित्र दिखायी देता है, यह उत्तम धनुष किसका है?॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इमे च कस्य नाराचाः साहस्रा लोमवाहिनः।
समन्तात् कलधौताग्रा उपासंगे हिरण्मये ॥ ६ ॥
विपाठाः पृथवः कस्य गार्ध्रपत्राः शिलाशिताः।
हारिद्रवर्णाः सुमुखाः पीताः सर्वायसाः शराः ॥ ७ ॥

मूलम्

इमे च कस्य नाराचाः साहस्रा लोमवाहिनः।
समन्तात् कलधौताग्रा उपासंगे हिरण्मये ॥ ६ ॥
विपाठाः पृथवः कस्य गार्ध्रपत्राः शिलाशिताः।
हारिद्रवर्णाः सुमुखाः पीताः सर्वायसाः शराः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये जो सोनेके तरकसमें सहस्रों नाराच रखे हुए हैं, जिनके सब ओर विशेषतः अग्रभागमें सोनेका पानी चढ़ा है और जो सबके सब पंखवाले हैं, ये किसके उपयोगमें आते हैं? ये मोटे-मोटे विपाठ (स्थूल दण्डवाले बाणविशेष) किसके हैं? इनमें गीधकी पाँखें लगी हुई हैं। इन बाणोंको पत्थरपर रगड़कर तेज किया गया है। इनके रंग हल्दीके समान हैं और अग्रभाग बहुत ही सुन्दर हैं। कारीगरने इनपर भी खूब पानी चढ़ाया है। ये सबके सब लोहेके ही बाण हैं (अर्थात् इनमें नीचे काठका डंडा नहीं लगा है)॥६-७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्यायमसितश्चापः पञ्चशार्दूललक्षणः ।
वराहकर्णव्यामिश्रान् शरान् धारयते दश ॥ ८ ॥

मूलम्

कस्यायमसितश्चापः पञ्चशार्दूललक्षणः ।
वराहकर्णव्यामिश्रान् शरान् धारयते दश ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सिरपर पाँच सिंहोंके चिह्न हैं, ऐसा यह काले रंगका धनुष किसका है? यह तो सूअरके कानके समान नोकवाले दस बाणोंको एक साथ धारण कर सकता है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्येमे पृथवो दीर्घाश्चन्द्रबिम्बार्धदर्शनाः ।
शतानि सप्त तिष्ठन्ति नाराचा रुधिराशनाः ॥ ९ ॥

मूलम्

कस्येमे पृथवो दीर्घाश्चन्द्रबिम्बार्धदर्शनाः ।
शतानि सप्त तिष्ठन्ति नाराचा रुधिराशनाः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये जो शत्रुओंका रक्त पीनेवाले मोटे, विशाल तथा अर्धचन्द्राकार दिखायी देनेवाले सात सौ नाराच रखे हुए हैं, किसके हैं?॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्येमे शुकपत्राभैः पूर्वैरर्धैः सुवाससः।
उत्तरैरायसैः पीतैर्हेमपुङ्खैः शिलाशितैः ॥ १० ॥

मूलम्

कस्येमे शुकपत्राभैः पूर्वैरर्धैः सुवाससः।
उत्तरैरायसैः पीतैर्हेमपुङ्खैः शिलाशितैः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके पूर्वार्धभाग तोतेकी पाँखके समान रंगवाले और उत्तरार्धभाग सुवर्णमय पंखसे युक्त एवं पीले हैं, जो पत्थरपर घिसकर तेज किये हुए और लोहेके बने हैं, ऐसे ये सुन्दर पाँखवाले बाण किसके हैं?॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गुरुभारसहो दिव्यः शात्रवाणां भयंकरः।
कस्यायं सायको दीर्घः शिलीपृष्ठः शिलीमुखः ॥ ११ ॥

मूलम्

गुरुभारसहो दिव्यः शात्रवाणां भयंकरः।
कस्यायं सायको दीर्घः शिलीपृष्ठः शिलीमुखः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसके पृष्ठभागमें मेढ़कीका चित्र है और जिसका मुखभाग भी मेढ़कीके मुख-सा बना हुआ है, ऐसा यह भारी भार सहन करनेमें समर्थ, दिव्य और शत्रुमण्डलीके लिये भयंकर विशाल खड्‌ग किसका है?॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैयाघ्रकोशे निहितो हेमचित्रो दुरासदः।
सुफलश्चित्रकोशश्च किङ्किणीसायको महान् ॥ १२ ॥
कस्य हेमत्सरुर्दिव्यः खड्गः परमनिर्मलः।

मूलम्

वैयाघ्रकोशे निहितो हेमचित्रो दुरासदः।
सुफलश्चित्रकोशश्च किङ्किणीसायको महान् ॥ १२ ॥
कस्य हेमत्सरुर्दिव्यः खड्गः परमनिर्मलः।

अनुवाद (हिन्दी)

जो बाघके चमड़ेकी बनी हुई म्यानके भीतर रखा गया है, जो सुवर्णचित्रित और शत्रुओंके लिये असह्य है, जिसका अग्रभाग भी बहुत ही सुन्दर है, जिसकी म्यानपर चित्रकारी की हुई है, जो घुँघरूदार और विशाल है, वह सोनेकी मूठवाला दिव्य एवं अत्यन्त निर्मल खड्‌ग किसका है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्यायं विमलः खड्‌गो गव्ये कोशे समर्पितः ॥ १३ ॥
हेमत्सरुरनाधृष्यो नैषध्यो भारसाधनः ।

मूलम्

कस्यायं विमलः खड्‌गो गव्ये कोशे समर्पितः ॥ १३ ॥
हेमत्सरुरनाधृष्यो नैषध्यो भारसाधनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

जिसे गोचर्मकी म्यानमें रखा गया है, जो निषधदेशका बना हुआ है, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता, जो भारी भार सह सकता है, वह सोनेकी मूठवाला विमल खड्‌ग किसका है?॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्य पाञ्चनखे कोशे सायको हेमविग्रहः ॥ १४ ॥
प्रमाणरूपसम्पन्नः पीत आकाशसंनिभः ।

मूलम्

कस्य पाञ्चनखे कोशे सायको हेमविग्रहः ॥ १४ ॥
प्रमाणरूपसम्पन्नः पीत आकाशसंनिभः ।

अनुवाद (हिन्दी)

जिसे बकरेके चमड़ेकी बनी हुई म्यानमें रखा गया है, जो सोनेकी मूठसे युक्त और सुवर्णभूषित स्वरूपवाली है, वह उचित लंबाई-चौड़ाई एवं आकृतिवाली, आकाशके समान नीलोज्ज्वल एवं पानीदार तलवार किसकी है?॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्य हेममये कोशे सुतप्ते पावकप्रभे ॥ १५ ॥
निस्त्रिंशोऽयं गुरुः पीतः सायकः परनिर्व्रणः।
कस्यायमसितः खड्‌गो हेमबिन्दुभिरावृतः ॥ १६ ॥
आशीविषसमस्पर्शः परकायप्रभेदनः ।

मूलम्

कस्य हेममये कोशे सुतप्ते पावकप्रभे ॥ १५ ॥
निस्त्रिंशोऽयं गुरुः पीतः सायकः परनिर्व्रणः।
कस्यायमसितः खड्‌गो हेमबिन्दुभिरावृतः ॥ १६ ॥
आशीविषसमस्पर्शः परकायप्रभेदनः ।

Misc Detail

गुरुभारसहो दिव्यः सपत्नानां भयप्रदः ॥ १७ ॥ 1

अनुवाद (हिन्दी)

जो अग्निके समान प्रकाशमान एवं आगमें तपाये शुद्ध सुवर्णकी बनी हुई म्यानमें सुरक्षित, भारी, पानीदार तथा तीस अंगुलसे बड़ा है, जो स्वर्णबिन्दुओंसे विभूषित तथा काले रंगका है, जिसे शत्रु काट नहीं सकते, जिसका स्पर्श सर्पके समान है, जो शत्रुके शरीरको चीर डालनेवाला, भारी भार सहन करनेमें समर्थ, दिव्य एवं शत्रुओंके लिये भयदायक है, वह खड्‌ग किसका है?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्दिशस्व यथातत्त्वं मया पृष्टा बृहन्नले।
विस्मयो मे परो जातो दृष्ट्वा सर्वमिदं महत् ॥ १८ ॥

मूलम्

निर्दिशस्व यथातत्त्वं मया पृष्टा बृहन्नले।
विस्मयो मे परो जातो दृष्ट्वा सर्वमिदं महत् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बृहन्नले! मैंने जो पूछा है, उसे ठीक-ठीक बताओ। ये सब महान् अस्त्र-शस्त्र देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है॥१८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि गोहरणपर्वणि उत्तरवाक्यं नाम द्विचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत गोहरणपर्वमें उत्तरवाक्यविषयक बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४२॥


  1. ये १६, १७ श्लोक अन्य बहुत-सी प्रतियोंमें नहीं हैं, परंतु नीलकंठवाली प्रतिमें हैं, इसलिये यहाँ ले लिये गये हैं। किंतु अगले अध्यायमें जो उत्तर दिया गया है, उससे इन श्लोकोंका मेल नहीं है। ↩︎