०१५ कीचकगृहं प्रति द्रौपदीप्रेषणम्

भागसूचना

पञ्चदशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

रानी सुदेष्णाका द्रौपदीको कीचकके घर भेजना

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्याख्यातो राजपुत्र्या सुदेष्णां कीचकोऽब्रवीत्।
अमर्यादेन कामेन घोरेणाभिपरिप्लुतः ॥ १ ॥

मूलम्

प्रत्याख्यातो राजपुत्र्या सुदेष्णां कीचकोऽब्रवीत्।
अमर्यादेन कामेन घोरेणाभिपरिप्लुतः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! राजकुमारी द्रौपदीके द्वारा इस प्रकार ठुकरा दिये जानेपर कीचक असीम एवं भयंकर कामसे विवश होकर अपनी बहिन सुदेष्णासे बोला—॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा कैकेयि सैरन्ध्री समेयात् तद् विधीयताम्।
येनोपायेन सैरन्ध्री भजेन्मां गजगामिनी।
तं सुदेष्णे परीप्सस्व प्राणान् मोहात् प्रहासिषम् ॥ २ ॥

मूलम्

यथा कैकेयि सैरन्ध्री समेयात् तद् विधीयताम्।
येनोपायेन सैरन्ध्री भजेन्मां गजगामिनी।
तं सुदेष्णे परीप्सस्व प्राणान् मोहात् प्रहासिषम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘केकयराजनन्दिनि! जिस उपायसे भी वह गजगामिनी सैरन्ध्री मेरे पास आवे और मुझे अंगीकार कर ले, वह करो। सुदेष्णे! तुम स्वयं ही ऊहापोह करके युक्तिसे वह उचित उपाय ढूँढ़ निकालो, जिससे मुझे (मोहके वश हो) प्राणोंका त्याग न करना पड़े’॥२॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य सा बहुशः श्रुत्वा वाचं विलपतस्तदा।
विराटमहिषी देवी कृपां चक्रे मनस्विनी ॥ ३ ॥

मूलम्

तस्य सा बहुशः श्रुत्वा वाचं विलपतस्तदा।
विराटमहिषी देवी कृपां चक्रे मनस्विनी ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! इस प्रकार बारंबार विलाप करते हुए कीचककी बात सुनकर उस समय राजा विराटकी मनस्विनी महारानी सुदेष्णाके मनमें उसके प्रति दयाभाव प्रकट हो गया॥३॥

मूलम् (वचनम्)

(सुदेष्णोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरणागतेयं सुश्रोणी मया दत्ताभया च सा।
शुभाचारा च भद्रं ते नैनां वक्तुमिहोत्सहे॥

मूलम्

शरणागतेयं सुश्रोणी मया दत्ताभया च सा।
शुभाचारा च भद्रं ते नैनां वक्तुमिहोत्सहे॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुदेष्णा बोली— भाई! यह सुन्दरी सैरन्ध्री मेरी शरणमें आयी है। इसे मैंने अभय दे रखा है। तुम्हारा कल्याण हो। यह बड़ी सदाचारिणी है। मैं इससे तुम्हारी मनोगत बात नहीं कह सकती।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैषा शक्या हि चान्येन स्प्रष्टुं पापेन चेतसा।
गन्धर्वाः किल पञ्चैनां रक्षन्ति रमयन्ति च॥

मूलम्

नैषा शक्या हि चान्येन स्प्रष्टुं पापेन चेतसा।
गन्धर्वाः किल पञ्चैनां रक्षन्ति रमयन्ति च॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसे कोई भी दूसरा पुरुष मनमें दूषित भाव लेकर नहीं छू सकता। सुनती हूँ, पाँच गन्धर्व इसकी रक्षा करते हैं और इसे सुख पहुँचाते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेषा ममाचष्टे तथा प्रथमसंगमे।
तथैव गजनासोरुः सत्यमाह ममान्तिके॥
ते हि कुद्धा महात्मानो नाशयेयुर्हि जीवितम्।

मूलम्

एवमेषा ममाचष्टे तथा प्रथमसंगमे।
तथैव गजनासोरुः सत्यमाह ममान्तिके॥
ते हि कुद्धा महात्मानो नाशयेयुर्हि जीवितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

इसने यह बात मुझसे उसी समय जब कि मेरी इससे पहले-पहल भेंट हुई थी, बता दी थी। इसी प्रकार हाथीकी सूँड़के समान जाँघोंवाली इस सुन्दरीने मेरे निकट यह सत्य ही कहा है कि यदि किसीने मेरा अपमान किया, तो मेरे महात्मा पति कुपित होकर उसके जीवनको ही नष्ट कर देंगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजा चैव समीक्ष्यैनां सम्मोहं गतवानिह॥
मया च सत्यवचनैरनुनीतो महीपतिः।

मूलम्

राजा चैव समीक्ष्यैनां सम्मोहं गतवानिह॥
मया च सत्यवचनैरनुनीतो महीपतिः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजा भी इसे यहाँ देखकर मोहित हो गये थे, तब मैंने इसकी कही हुई सच्ची बातें बताकर उन्हें किसी प्रकार समझा-बुझाकर शान्त किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽप्येनामनिशं दृष्ट्‌वा मनसैवाभ्यनन्दत ॥
भयाद् गन्धर्वमुख्यानां जीवितस्योपघातिनाम् ।
मनसापि ततस्त्वेनां न चिन्तयति पार्थिवः॥

मूलम्

सोऽप्येनामनिशं दृष्ट्‌वा मनसैवाभ्यनन्दत ॥
भयाद् गन्धर्वमुख्यानां जीवितस्योपघातिनाम् ।
मनसापि ततस्त्वेनां न चिन्तयति पार्थिवः॥

अनुवाद (हिन्दी)

तबसे वे भी सदा इसे देखकर मन-ही-मन इसका अभिनन्दन करते हैं। जीवनका विनाश करनेवाले उन श्रेष्ठ गन्धर्वोंके भयसे महाराज कभी मनसे भी इसका चिन्तन नहीं करते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते हि क्रुद्धा महात्मानो गरुडानिलतेजसः।
दहेयुरपि लोकांस्त्रीन् युगान्तेष्विव भास्कराः॥

मूलम्

ते हि क्रुद्धा महात्मानो गरुडानिलतेजसः।
दहेयुरपि लोकांस्त्रीन् युगान्तेष्विव भास्कराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे महात्मा गन्धर्व गरुड़ और वायुके समान तेजस्वी हैं। वे कुपित होनेपर प्रलयकालके सूर्चोंकी भाँति तीनों लोकोंको दग्ध कर सकते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सैरन्ध्र्या ह्येतदाख्यातं मम तेषां महद् बलम्।
तव चाहमिदं गुह्यं स्नेहादाख्यामि बन्धुवत्॥

मूलम्

सैरन्ध्र्या ह्येतदाख्यातं मम तेषां महद् बलम्।
तव चाहमिदं गुह्यं स्नेहादाख्यामि बन्धुवत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

सैरन्ध्रीने स्वयं ही मुझसे उनके महान् बलका परिचय दिया है। भ्रातृस्नेहके कारण मैंने तुमसे यह गोपनीय बात भी बता दी है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

मा गमिष्यसि वै कृच्छ्रां गतिं परमदुर्गमाम्।
बलिनस्ते रुजं कुर्युः कुलस्य च धनस्य च॥

मूलम्

मा गमिष्यसि वै कृच्छ्रां गतिं परमदुर्गमाम्।
बलिनस्ते रुजं कुर्युः कुलस्य च धनस्य च॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसे ध्यानमें रखनेसे तुम अत्यन्त दुःखदायिनी संकटपूर्ण परिस्थितिमें नहीं पड़ोगे। गन्धर्वलोग बलवान् हैं। वे तुम्हारे कुल और सम्पत्तिका भी नाश कर सकते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मान्नास्यां मनः कर्तुं यदि प्राणाः प्रियास्तव।
मा चिन्तयेथा मा गास्त्वं मत्प्रियं च यदीच्छसि॥

मूलम्

तस्मान्नास्यां मनः कर्तुं यदि प्राणाः प्रियास्तव।
मा चिन्तयेथा मा गास्त्वं मत्प्रियं च यदीच्छसि॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसलिये यदि तुम्हें अपने प्राण प्रिय हैं और यदि तुम मेरा भी प्रिय करना चाहते हो तो इस सैरन्ध्रीमें मन न लगाओ। उसका चिन्तन छोड़ दो और उसके पास कभी न जाओ।

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु दुष्टात्मा भगिनीं कीचकोऽब्रवीत्।

मूलम्

एवमुक्तस्तु दुष्टात्मा भगिनीं कीचकोऽब्रवीत्।

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! सुदेष्णाके ऐसा कहनेपर दुष्टात्मा कीचक अपनी बहिनसे बोला।

मूलम् (वचनम्)

कीचक उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

गन्धर्वाणां शतं वापि सहस्रमयुतानि वा॥
अहमेको हनिष्यामि गन्धर्वान् पञ्च किं पुनः।

मूलम्

गन्धर्वाणां शतं वापि सहस्रमयुतानि वा॥
अहमेको हनिष्यामि गन्धर्वान् पञ्च किं पुनः।

अनुवाद (हिन्दी)

कीचकने कहा— बहिन! मैं सैकड़ों, सहस्रों तथा अयुत गन्धर्वोंको भी अकेला ही मार गिराऊँगा, फिर पाँचकी तो बात ही क्या है?।

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्ता सुदेष्णा तु शोकेनाभिप्रपीडिता॥
अहो दुःखमहो कृच्छ्रमहो पापमिति स्म ह।
प्रारुदद् भृशदुःखार्ता विपाकं तस्य वीक्ष्य सा॥
पातालेषु पतत्येष विलपन् वडवामुखे।

मूलम्

एवमुक्ता सुदेष्णा तु शोकेनाभिप्रपीडिता॥
अहो दुःखमहो कृच्छ्रमहो पापमिति स्म ह।
प्रारुदद् भृशदुःखार्ता विपाकं तस्य वीक्ष्य सा॥
पातालेषु पतत्येष विलपन् वडवामुखे।

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! कीचकके ऐसा कहनेपर सुदेष्णा शोकसे अत्यन्त व्यथित हो उठी और मन-ही-मन कहने लगी—‘अहो! यह महान् दुःख, महान् संकट और महान् पापकी बात हो रही है।’ इस कर्मके भावी परिणामपर दृष्टिपात करके वह अत्यन्त दुःखसे आतुर हो रोने लगी और मन-ही-मन बोली—‘मेरा यह भाई तो ऊटपटाँग बातें बोलकर स्वयं ही पाताल अथवा बडवानलके मुखमें गिर रहा है’। (तत्पश्चात् वह कीचकको सुनाकर कहने लगी—)

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वत्कृते विनशिष्यन्ति भ्रातरः सुहृदश्च मे॥
किं नु शक्यं मया कर्तुं यत् त्वमेवमभिप्लुतः।
न च श्रेयोऽभिजानीषे काममेवानुवर्तसे॥

मूलम्

त्वत्कृते विनशिष्यन्ति भ्रातरः सुहृदश्च मे॥
किं नु शक्यं मया कर्तुं यत् त्वमेवमभिप्लुतः।
न च श्रेयोऽभिजानीषे काममेवानुवर्तसे॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं देखती हूँ; तेरे कारण मेरे सभी भाई और सुहृद् नष्ट हो जायँगे। तू ऐसी अनुचित इच्छाको अपने मनमें स्थान दे रहा है; मैं इसके लिये क्या कर सकती हूँ? अपनी भलाई किस बातमें है, यह तू नहीं समझता है और केवल कामका ही गुलाम हो रहा है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्रुवं गतायुस्त्वं पाप यदेवं काममोहितः।
अकर्तव्ये हि मां पापे नियुनङ्‌क्षि नराधम॥

मूलम्

ध्रुवं गतायुस्त्वं पाप यदेवं काममोहितः।
अकर्तव्ये हि मां पापे नियुनङ्‌क्षि नराधम॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पापी! निश्चय ही तेरी आयु समाप्त हो गयी है; तभी तू इस प्रकार कामसे मोहित हो रहा है। नराधम! तू मुझे ऐसे पापपूर्ण कार्यमें लगा रहा है, जो कदापि करने योग्य नहीं है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपि चैतत् पुरा प्रोक्तं निपुणैर्मनुजोत्तमैः।
एकस्तु कुरुते पापं स्वजातिस्तेन हन्यते॥

मूलम्

अपि चैतत् पुरा प्रोक्तं निपुणैर्मनुजोत्तमैः।
एकस्तु कुरुते पापं स्वजातिस्तेन हन्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘प्राचीनकालके श्रेष्ठ एवं कुशल मनुष्योंने यह ठीक ही कहा है कि कुलमें एक मनुष्य पाप करता है और उसके कारण सभी जाति-भाई मारे जाते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

गतस्त्वं धर्मराजस्य विषयं नात्र संशयः।
अदूषकमिमं सर्वं स्वजनं घातयिष्यसि॥

मूलम्

गतस्त्वं धर्मराजस्य विषयं नात्र संशयः।
अदूषकमिमं सर्वं स्वजनं घातयिष्यसि॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘तू यमराजके लोकमें गया हुआ ही है, इसमें रत्तीभर भी संदेह नहीं रह गया है। तू अपने साथ इन समस्त निरपराध स्वजनोंको भी मरवा डालेगा।

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतत् तु मे दुःखतरं येनाहं भ्रातृसौहृदात्।
विदितार्था करिष्यामि तुष्टो भव कुलक्षयात्॥)

मूलम्

एतत् तु मे दुःखतरं येनाहं भ्रातृसौहृदात्।
विदितार्था करिष्यामि तुष्टो भव कुलक्षयात्॥)

अनुवाद (हिन्दी)

‘मेरे लिये सबसे महान् दुःखकी बात यह है कि मैं सारे परिणामोंको समझ-बूझकर भी भ्रातृ-स्नेहके कारण तेरी आज्ञाका पालन करूँगी। तू अपने कुलका संहार करके संतुष्ट हो ले’।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वमन्त्रमभिसंधाय तस्यार्थमनुचिन्त्य च ।
उद्योगं चैव कृष्णायाः सुदेष्णा सूतमब्रवीत् ॥ ४ ॥

मूलम्

स्वमन्त्रमभिसंधाय तस्यार्थमनुचिन्त्य च ।
उद्योगं चैव कृष्णायाः सुदेष्णा सूतमब्रवीत् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर सुदेष्णाने अपने कार्यका विचार करके कीचकके मनोभावपर ध्यान दिया और फिर उसे द्रौपदीकी प्राप्ति करानेके लिये उचित उपायका निश्चय करके उसने सूतसे कहा—॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पर्वणि त्वं समुद्दिश्य सुरामन्नं च कारय।
तत्रैनां प्रेषयिष्यामि सुराहारीं तवान्तिकम् ॥ ५ ॥

मूलम्

पर्वणि त्वं समुद्दिश्य सुरामन्नं च कारय।
तत्रैनां प्रेषयिष्यामि सुराहारीं तवान्तिकम् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कीचक! तुम किसी पर्व या त्यौहारके दिन अपने घरमें मदिरा तथा अन्न-भोजनकी सामग्री तैयार कराओ। फिर मैं इस सैरन्ध्रीको वहाँसे सुरा ले आनेके बहाने तुम्हारे पास भेजूँगी॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र सम्प्रेषितामेनां विजने निरवग्रहे।
सान्त्वयेथा यथाकामं सान्त्व्यमाना रमेद् यदि ॥ ६ ॥

मूलम्

तत्र सम्प्रेषितामेनां विजने निरवग्रहे।
सान्त्वयेथा यथाकामं सान्त्व्यमाना रमेद् यदि ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘वहाँ भेजी हुई इस सेविकाको एकान्तमें, जहाँ कोई विघ्न-बाधा न हो, अपनी इच्छाके अनुसार समझाना-बुझाना। सम्भव है, तुम्हारी सान्त्वना मिलनेपर यह रमणके लिये उद्यत हो जाय’॥६॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्युक्तः स विनिष्क्रम्य भगिन्या वचनात् तदा।
सुरामाहारयामास राजार्हां सुपरिष्कृताम् ॥ ७ ॥
भक्ष्यांश्च विविधाकारान् बहूंश्चोच्चावचांस्तदा ।
कारयामास कुशलैरन्नं पानं सुशोभनम् ॥ ८ ॥

मूलम्

इत्युक्तः स विनिष्क्रम्य भगिन्या वचनात् तदा।
सुरामाहारयामास राजार्हां सुपरिष्कृताम् ॥ ७ ॥
भक्ष्यांश्च विविधाकारान् बहूंश्चोच्चावचांस्तदा ।
कारयामास कुशलैरन्नं पानं सुशोभनम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! बहिनके वचनसे इस प्रकार आश्वासन मिलनेपर कीचक उस समय वहाँसे चला गया और घर जाकर उसने यथासमय चतुर रसोइयोंके द्वारा राजाओंके उपयोगमें आने योग्य उत्तम एवं परिष्कृत मदिरा मँगवायी और भाँति-भाँतिके अनेक विशिष्ट और साधारण भक्ष्य पदार्थ एवं परम उत्तम अन्न-पानकी तैयारी करायी॥७-८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् कृते तदा देवी कीचकेनोपमन्त्रिता।

मूलम्

तस्मिन् कृते तदा देवी कीचकेनोपमन्त्रिता।

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी व्यवस्था हो जानेपर कीचकने सुदेष्णाको भोजनके लिये आमन्त्रित किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(त्वरावान् कालपाशेन कण्ठे बद्धः पशुर्यथा।
नावबुध्यत मूढात्मा मरणं समुपस्थितम्॥

मूलम्

(त्वरावान् कालपाशेन कण्ठे बद्धः पशुर्यथा।
नावबुध्यत मूढात्मा मरणं समुपस्थितम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

मूढात्मा कीचक कण्ठमें कालपाशसे बँधे हुए पशुकी भाँति अपने निकट आयी हुई मृत्युको नहीं जान पाता था। वह द्रौपदीको पानेके लिये उतावला हो रहा था।

मूलम् (वचनम्)

कीचक उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

मधु मद्यं बहुविधं भक्ष्याश्च विविधाः कृताः।
सुदेष्णे ब्रूहि सैरन्ध्रीं यथा सा मे गृहं व्रजेत्॥

मूलम्

मधु मद्यं बहुविधं भक्ष्याश्च विविधाः कृताः।
सुदेष्णे ब्रूहि सैरन्ध्रीं यथा सा मे गृहं व्रजेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

कीचक बोला— सुदेष्णे! मैंने नाना प्रकारकी मीठी मदिरा मँगा ली है और विविध प्रकारकी रसोई भी तैयार कर ली है। अब तुम सैरन्ध्रीसे कह दो, जिससे वह मेरे घरमें पधारे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

केनचित् त्वद्य कार्येण त्वर शीघ्रं मम प्रियम्॥
अहं हि शरणं देवं प्रपद्ये वृषभध्वजम्।
समागमं मे सैरन्ध्र्या मरणं वा दिशेति वै॥

मूलम्

केनचित् त्वद्य कार्येण त्वर शीघ्रं मम प्रियम्॥
अहं हि शरणं देवं प्रपद्ये वृषभध्वजम्।
समागमं मे सैरन्ध्र्या मरणं वा दिशेति वै॥

अनुवाद (हिन्दी)

किसी कामके बहाने उसे जल्दी मेरे यहाँ भेजो। मेरा प्रिय कार्य सिद्ध करनेमें शीघ्रता करो। मैं भगवान् शंकरकी शरण लेकर यह प्रार्थना करता हूँ कि प्रभो! मुझे सैरन्ध्रीसे मिला दो अथवा मृत्यु प्रदान करो।

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा तमाह विनिःश्वस्य प्रतिगच्छ स्वकं गृहम्।
एषाहमपि सैरन्ध्रीं सुरार्थे तूर्णमादिशे॥

मूलम्

सा तमाह विनिःश्वस्य प्रतिगच्छ स्वकं गृहम्।
एषाहमपि सैरन्ध्रीं सुरार्थे तूर्णमादिशे॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! तब सुदेष्णा लंबी साँस खींचकर उससे बोली—‘तुम अपने घर लौट जाओ। मैं सैरन्ध्रीको शीघ्र ही वहाँसे मदिरा ले आनेके लिये आज्ञा देती हूँ’।

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु पापात्मा कीचकस्त्वरितः पुनः।
स्वगृहं प्राविशत् तूर्णं सैरन्ध्रीगतमानसः॥)

मूलम्

एवमुक्तस्तु पापात्मा कीचकस्त्वरितः पुनः।
स्वगृहं प्राविशत् तूर्णं सैरन्ध्रीगतमानसः॥)

अनुवाद (हिन्दी)

उसके ऐसा कहनेपर सैरन्ध्रीका चिन्तन करता हुआ पापात्मा कीचक फिर तुरंत ही अपने घरको लौट गया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदेष्णा प्रेषयामास सैरन्ध्रीं कीचकालयम् ॥ ९ ॥

मूलम्

सुदेष्णा प्रेषयामास सैरन्ध्रीं कीचकालयम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब सुदेष्णाने सैरन्ध्रीको कीचकके घर जानेके लिये कहा॥९॥

मूलम् (वचनम्)

सुदेष्णोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्तिष्ठ गच्छ सैरन्ध्रि कीचकस्य निवेशनम्।
पानमानय कल्याणि पिपासा मां प्रबाधते ॥ १० ॥

मूलम्

उत्तिष्ठ गच्छ सैरन्ध्रि कीचकस्य निवेशनम्।
पानमानय कल्याणि पिपासा मां प्रबाधते ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुदेष्णा बोली— सैरन्ध्री! उठो और कीचकके घर जाओ। कल्याणी! मुझे प्यास विशेष कष्ट दे रही है; अतः वहाँसे मेरे पीने योग्य रस ले आओ॥१०॥

मूलम् (वचनम्)

सैरन्ध्र्युवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

न गच्छेयमहं तस्य राजपुत्रि निवेशनम्।
त्वमेव राज्ञि जानासि यथा स निरपत्रपः ॥ ११ ॥

मूलम्

न गच्छेयमहं तस्य राजपुत्रि निवेशनम्।
त्वमेव राज्ञि जानासि यथा स निरपत्रपः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सैरन्ध्रीने कहा— राजकुमारी! मैं उसके घर नहीं जा सकती। महारानी! आप तो जानती ही हैं कि वह कैसा निर्लज्ज है॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चाहमनवद्याङ्गि तव वेश्मनि भामिनि।
कामवृत्ता भविष्यामि पतीनां व्यभिचारिणी ॥ १२ ॥

मूलम्

न चाहमनवद्याङ्गि तव वेश्मनि भामिनि।
कामवृत्ता भविष्यामि पतीनां व्यभिचारिणी ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

निर्दोष अंगोंवाली देवि! मैं आपके महलमें अपने पतियोंकी दृष्टिमें व्यभिचारिणी और स्वेच्छाचारिणी होकर नहीं रहूँगी॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वं चैव देवि जानासि यथा स समयः कृतः।
प्रविशन्त्या मया पूर्वं तव वेश्मनि भामिनि ॥ १३ ॥

मूलम्

त्वं चैव देवि जानासि यथा स समयः कृतः।
प्रविशन्त्या मया पूर्वं तव वेश्मनि भामिनि ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भामिनि! देवि! पहले आपके इस राजभवनमें प्रवेश करते समय मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे भी आप जानती ही हैं॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कीचकस्तु सुकेशान्ते मूढो मदनदर्पितः।
सोऽवमंस्यति मां दृष्ट्‌वा न यास्ये तत्र शोभने ॥ १४ ॥

मूलम्

कीचकस्तु सुकेशान्ते मूढो मदनदर्पितः।
सोऽवमंस्यति मां दृष्ट्‌वा न यास्ये तत्र शोभने ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कमनीय केशोंवाली सुन्दरी! मूर्ख कीचक तो काम-मदसे उन्मत्त हो रहा है। वह मुझे देखते ही अपमानित कर बैठेगा। इसलिये मैं वहाँ नहीं जाऊँगी॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सन्ति बह्व्यस्तव प्रेष्या राजपुत्रि वशानुगाः।
अन्यां प्रेषय भद्रं ते स हि मामवमंस्यते ॥ १५ ॥

मूलम्

सन्ति बह्व्यस्तव प्रेष्या राजपुत्रि वशानुगाः।
अन्यां प्रेषय भद्रं ते स हि मामवमंस्यते ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजपुत्री! आपके अधीन तो और भी बहुत-सी दासियाँ हैं; उन्हींमेंसे किसी दूसरीको भेज दीजिये। आपका कल्याण हो। मेरे जानेसे कीचक मेरा अपमान करेगा॥

मूलम् (वचनम्)

सुदेष्णोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैव त्वां जातु हिंस्यात् स इतः सम्प्रेषितां मया।
इत्युक्त्वा प्रददौ पात्रं सपिधानं हिरण्मयम् ॥ १६ ॥

मूलम्

नैव त्वां जातु हिंस्यात् स इतः सम्प्रेषितां मया।
इत्युक्त्वा प्रददौ पात्रं सपिधानं हिरण्मयम् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुदेष्णा बोली— शुभे! मैंने तुम्हें यहाँसे भेजा है, अतः वह कभी तुम्हें कष्ट नहीं देगा। यह कहकर सुदेष्णाने द्रौपदीके हाथमें ढक्कनसहित एक सुवर्णमय पात्र दे दिया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा शङ्कमाना रुदती दैवं शरणमीयुषी।
प्रातिष्ठत सुराहारी कीचकस्य निवेशनम् ॥ १७ ॥

मूलम्

सा शङ्कमाना रुदती दैवं शरणमीयुषी।
प्रातिष्ठत सुराहारी कीचकस्य निवेशनम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रौपदी मदिरा लानेके लिये उस पात्रको लेकर शंकित हो रोती हुई कीचकके घरकी ओर चली और अपने सतीत्वकी रक्षाके लिये मन-ही-मन भगवान् सूर्यकी शरणमें गयी॥१७॥

मूलम् (वचनम्)

सैरन्ध्र्युवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथाहमन्यं भर्तृभ्यो नाभिजानामि कंचन।
तेन सत्येन मां प्राप्तां मा कुर्यात् कीचको वशे॥१८॥

मूलम्

यथाहमन्यं भर्तृभ्यो नाभिजानामि कंचन।
तेन सत्येन मां प्राप्तां मा कुर्यात् कीचको वशे॥१८॥

अनुवाद (हिन्दी)

सैरन्ध्रीने कहा— भगवन्! यदि मैं अपने पतियोंके सिवा दूसरे किसी पुरुषको मनमें नहीं लाती, तो इस सत्यके प्रभावसे कीचक अपने घरमें आयी हुई मुझ अबलाको अपने वशमें न कर सके॥१८॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपातिष्ठत सा सूर्यं मुहूर्तमबला ततः।
स तस्यास्तनुमध्यायाः सर्वं सूर्योऽवबुद्धवान् ॥ १९ ॥
अन्तर्हितं ततस्तस्या रक्षो रक्षार्थमादिशत्।
तच्चैनां नाजहात् तत्र सर्वावस्थास्वनिन्दिताम् ॥ २० ॥

मूलम्

उपातिष्ठत सा सूर्यं मुहूर्तमबला ततः।
स तस्यास्तनुमध्यायाः सर्वं सूर्योऽवबुद्धवान् ॥ १९ ॥
अन्तर्हितं ततस्तस्या रक्षो रक्षार्थमादिशत्।
तच्चैनां नाजहात् तत्र सर्वावस्थास्वनिन्दिताम् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! सब प्रकारके बलसे रहित द्रौपदी दो घड़ीतक भगवान् सूर्यकी उपासना करती रही। तदनन्तर श्रीसूर्यदेवने पतले कटिभागवाली द्रुपदकुमारीकी सारी परिस्थिति समझ ली और उसकी रक्षाके लिये अदृश्यरूपसे एक राक्षसको नियुक्त कर दिया। वह राक्षस किसी भी अवस्थामें सती-साध्वी द्रौपदीको वहाँ असहाय नहीं छोड़ता था॥१९-२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तां मृगीमिव संत्रस्तां दृष्ट्‌वा कृष्णां समीपगाम्।
उदतिष्ठन्मुदा सूतो नावं लब्ध्वेव पारगः ॥ २१ ॥

मूलम्

तां मृगीमिव संत्रस्तां दृष्ट्‌वा कृष्णां समीपगाम्।
उदतिष्ठन्मुदा सूतो नावं लब्ध्वेव पारगः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

डरी हुई हरिणीकी भाँति भयभीत द्रौपदीको समीप आयी देख सूत कीचक आनन्दमें भरकर खड़ा हो गया; मानो नदीके पार जानेवाला पथिक नौका पाकर प्रसन्न हो गया हो॥२१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि कीचकवधपर्वणि द्रौपदीसुराहरणे पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्वके अन्तर्गत कीचकवधपर्वमें द्रौपदीके द्वारा मदिरानयनसम्बन्धी पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके २५ श्लोक मिलाकर कुल ४६ श्लोक हैं।)