भागसूचना
वनपर्व-श्रवण-महिमा
विश्वास-प्रस्तुतिः
इदमारण्यकं श्रुत्वा महापापैः प्रमुच्यते।
अधनो धनमाप्नोति पुत्रपौत्रसमन्वितः ॥ १ ॥
मूलम्
इदमारण्यकं श्रुत्वा महापापैः प्रमुच्यते।
अधनो धनमाप्नोति पुत्रपौत्रसमन्वितः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस वनपर्वको सुनकर मनुष्य बड़े-बड़े पापोंसे मुक्त हो जाता है, निर्धन धन पाता है और पुत्र-पौत्रोंसे सम्पन्न होता है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं यं प्रार्थयते कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम्।
नारी वा पुरुषो वापि शुचिः प्रयतमानसः ॥ २ ॥
आरण्यके श्रुतेऽधीते ब्राह्मणान् पायसादिभिः।
भोजयेद् वस्त्रगोस्वर्णदानै रत्नैः प्रपूजितान् ॥ ३ ॥
मूलम्
यं यं प्रार्थयते कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम्।
नारी वा पुरुषो वापि शुचिः प्रयतमानसः ॥ २ ॥
आरण्यके श्रुतेऽधीते ब्राह्मणान् पायसादिभिः।
भोजयेद् वस्त्रगोस्वर्णदानै रत्नैः प्रपूजितान् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह जिस-जिस मनोवाञ्छित वस्तुके लिये प्रार्थना करता है, उसे निश्चय ही पा लेता है। स्त्री हो या पुरुष; शुद्ध एवं एकाग्रचित्त होकर इस वनपर्वका श्रवण अथवा पाठ करनेपर वस्त्र, गौ, सुवर्ण तथा रत्नोंके दानसे ब्राह्मणोंका सम्मान करके उन्हें खीर आदिका भोजन करावे॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्राह्मणेषु च तुष्टेषु संतुष्टाः पाण्डुनन्दनाः।
ब्रह्मा विष्णुस्तथा रुद्रः शक्रो देवगणास्तथा ॥ ४ ॥
भूतानि मुनयो देव्यस्तथा पितृगणाश्च ये।
वाचकं पूजयेच्छक्त्या वस्त्रान्नैः स्वर्णभूषणैः ॥ ५ ॥
मूलम्
ब्राह्मणेषु च तुष्टेषु संतुष्टाः पाण्डुनन्दनाः।
ब्रह्मा विष्णुस्तथा रुद्रः शक्रो देवगणास्तथा ॥ ४ ॥
भूतानि मुनयो देव्यस्तथा पितृगणाश्च ये।
वाचकं पूजयेच्छक्त्या वस्त्रान्नैः स्वर्णभूषणैः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्राह्मणोंके संतुष्ट होनेपर पाण्डव, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र, देवगण, भूतगण, मुनिगण, देवियाँ तथा पितृगण—ये सभी संतुष्ट होते हैं। अपनी शक्तिके अनुसार अन्न-वस्त्र और आभूषण देकर वाचककी पूजा करनी चाहिये॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशेषतस्तु कपिला देया तु जयपाठके।
कांस्यदोहा रौप्यखुरा स्वर्णशृङ्गी सभूषणा।
पाण्डूनां परितोषार्थं दद्यादन्नं द्विजातये ॥ ६ ॥
मूलम्
विशेषतस्तु कपिला देया तु जयपाठके।
कांस्यदोहा रौप्यखुरा स्वर्णशृङ्गी सभूषणा।
पाण्डूनां परितोषार्थं दद्यादन्नं द्विजातये ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाभारतके वाचकको विशेषतः एक कपिला गौ देनी चाहिये। उसके साथ काँसेका एक दुग्धपात्र होना चाहिये। गायके खुरोंमें चाँदी और सींगोंमें सोना मढ़ा दे। उसे अन्य आभूषणोंसे भी विभूषित करे। पाण्डवोंके संतोषके लिये ब्राह्मणोंको अन्नदान करे॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरण्यकाख्यमाख्यानं शृणुयाद् यो नरोत्तमः।
स सर्वकाममाप्नोति पुनः स्वर्गतिमाप्नुयात् ॥ ७ ॥
मूलम्
आरण्यकाख्यमाख्यानं शृणुयाद् यो नरोत्तमः।
स सर्वकाममाप्नोति पुनः स्वर्गतिमाप्नुयात् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो नरश्रेष्ठ इस वनपर्वकी कथाको सुनता है, वह सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता है एवं शरीरका अन्त होनेपर स्वर्गलोकमें जाता है॥७॥
नमस्कारः
॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
भागसूचना
महाभारत-सार
विश्वास-प्रस्तुतिः
मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च ।
संसारेष्वनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे॥
मूलम्
मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च ।
संसारेष्वनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मनुष्य इस जगत्में हजारों माता-पिताओं तथा सैकड़ों स्त्री-पुत्रोंके संयोग-वियोगका अनुभव कर चुके हैं, करते हैं और करते रहेंगे।’
विश्वास-प्रस्तुतिः
हर्षस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च ।
दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्॥
मूलम्
हर्षस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च ।
दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अज्ञानी पुरुषको प्रतिदिन हर्षके हजारों और भयके सैकड़ों अवसर प्राप्त होते रहते हैं; किन्तु विद्वान् पुरुषके मनपर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।’
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे।
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते॥
मूलम्
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे।
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकारकर कह रहा हूँ, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्मसे मोक्ष तो सिद्ध होता ही है; अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं तो भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते!’
विश्वास-प्रस्तुतिः
न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्
मूलम्
न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्
Misc Detail
धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः ।
विश्वास-प्रस्तुतिः
नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये
मूलम्
नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये
Misc Detail
जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कामनासे, भयसे, लोभसे अथवा प्राण बचानेके लिये भी धर्मका त्याग न करे। धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु अनित्य।’
विश्वास-प्रस्तुतिः
इमां भारतसावित्रीं प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
स भारतफलं प्राप्य परं ब्रह्माधिगच्छति॥
मूलम्
इमां भारतसावित्रीं प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
स भारतफलं प्राप्य परं ब्रह्माधिगच्छति॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह महाभारतका सारभूत उपदेश ‘भारत-सावित्री’ के नामसे प्रसिद्ध है। जो प्रतिदिन सबेरे उठकर इसका पाठ करता है, वह सम्पूर्ण महाभारतके अध्ययनका फल पाकर परब्रह्म परमात्माको प्राप्त कर लेता है।’
Misc Detail
[[—महाभारत, स्वर्गारोहण० ५।६०—६४]]