भागसूचना
सप्ताशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथीका वध
मूलम् (वचनम्)
मार्कण्डेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो निर्याय स्वपुरात् कुम्भकर्णः सहानुगः।
अपश्यत् कपिसैन्यं तज्जितकाश्यग्रतः स्थितम् ॥ १ ॥
मूलम्
ततो निर्याय स्वपुरात् कुम्भकर्णः सहानुगः।
अपश्यत् कपिसैन्यं तज्जितकाश्यग्रतः स्थितम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मार्कण्डेयजी कहते हैं— युधिष्ठिर! सेवकों-सहित अपने नगरसे निकलकर कुम्भकर्णने अपने सामने खड़ी हुई वानरसेनाको देखा, जो विजयके उल्लाससे सुशोभित हो रही थी॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वीक्षमाणस्तत् सैन्यं रामदर्शनकाङ्क्षया।
अपश्यच्चापि सौमित्रिं धनुष्पाणिं व्यवस्थितम् ॥ २ ॥
मूलम्
स वीक्षमाणस्तत् सैन्यं रामदर्शनकाङ्क्षया।
अपश्यच्चापि सौमित्रिं धनुष्पाणिं व्यवस्थितम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर जब उसने भगवान् श्रीरामके दर्शनकी इच्छासे उस सेनामें इधर-उधर दृष्टि डाली, तब उसे हाथमें धनुष लिये सुमित्रानन्दन लक्ष्मण खड़े दिखायी दिये॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमभ्येत्याशु हरयः परिवव्रुः समन्ततः।
अभ्यघ्नंश्च महाकायैर्बहुभिर्जगतीरुहैः ॥ ३ ॥
मूलम्
तमभ्येत्याशु हरयः परिवव्रुः समन्ततः।
अभ्यघ्नंश्च महाकायैर्बहुभिर्जगतीरुहैः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इतनेमें ही वानरोंने चारों ओरसे आकर कुम्भकर्णको शीघ्रतापूर्वक घेर लिया और बहुत-से बड़े-बड़े पेड़ उखाड़कर उन्हींके द्वारा उसपर प्रहार करने लगे॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
करजैरतुदंश्चान्ये विहाय भयमुत्तमम् ।
बहुधा युध्यमानास्ते युद्धमार्गैः प्लवङ्गमाः ॥ ४ ॥
नानाप्रहरणैर्भीमै राक्षसेन्द्रमताडयन् ।
मूलम्
करजैरतुदंश्चान्ये विहाय भयमुत्तमम् ।
बहुधा युध्यमानास्ते युद्धमार्गैः प्लवङ्गमाः ॥ ४ ॥
नानाप्रहरणैर्भीमै राक्षसेन्द्रमताडयन् ।
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ वानरोंने कुम्भकर्णसे प्राप्त होनेवाले महान् भयकी परवा न करके उसको नखोंसे पीड़ा देनी प्रारम्भ की। युद्धकी विभिन्न प्रणालियोंद्वारा अनेक प्रकारसे युद्ध करते हुए वानरसैनिक भाँति-भाँतिके भयंकर आयुधोंद्वारा राक्षसराज कुम्भकर्णको चोट पहुँचाने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स ताड्यमानः प्रहसन् भक्षयामास वानरान् ॥ ५ ॥
बलं चण्डबलाख्यं च वज्रबाहुं च बानरम्।
मूलम्
स ताड्यमानः प्रहसन् भक्षयामास वानरान् ॥ ५ ॥
बलं चण्डबलाख्यं च वज्रबाहुं च बानरम्।
अनुवाद (हिन्दी)
वानरोंके प्रहार करनेपर वह जोर-जोरसे हँसने और उन्हें पकड़-पकड़कर खाने लगा। देखते-देखते बल, चण्डबल और वज्रबाहु नामक वानर उसके मुखके ग्रास बन गये॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् दृष्ट्वा व्यथनं कर्म कुम्भकर्णस्य रक्षसः ॥ ६ ॥
उदक्रोशन् परित्रस्तास्तारप्रभृतयस्तदा ।
मूलम्
तद् दृष्ट्वा व्यथनं कर्म कुम्भकर्णस्य रक्षसः ॥ ६ ॥
उदक्रोशन् परित्रस्तास्तारप्रभृतयस्तदा ।
अनुवाद (हिन्दी)
राक्षस कुम्भकर्णका यह दुःखदायी कर्म देखकर तार आदि वानर भयभीत हो जोर-जोरसे चीत्कार करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तानुच्चैः क्रोशतः सैन्याञ्छ्रुत्वा स हरियूथपान् ॥ ७ ॥
अभिदुद्राव सुग्रीवः कुम्भकर्णमपेतभीः ।
मूलम्
तानुच्चैः क्रोशतः सैन्याञ्छ्रुत्वा स हरियूथपान् ॥ ७ ॥
अभिदुद्राव सुग्रीवः कुम्भकर्णमपेतभीः ।
अनुवाद (हिन्दी)
अपने सैनिकों तथा वानरयूथपतियोंका वह उच्च स्वरसे किया जाता हुआ चीत्कार सुनकर सुग्रीव निर्भय हो कुम्भकर्णकी ओर दौड़े॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो निपत्य वेगेन कुम्भकर्णं महामनाः ॥ ८ ॥
शालेन जघ्निवान् मूर्घ्नि बलेन कपिकुञ्जरः।
मूलम्
ततो निपत्य वेगेन कुम्भकर्णं महामनाः ॥ ८ ॥
शालेन जघ्निवान् मूर्घ्नि बलेन कपिकुञ्जरः।
अनुवाद (हिन्दी)
महामना कपिश्रेष्ठ सुग्रीवने बड़े वेगसे उछलकर एक शालवृक्षके द्वारा कुम्भकर्णके मस्तकपर बलपूर्वक प्रहार किया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स महात्मा महावेगः कुम्भकर्णस्य मूर्धनि ॥ ९ ॥
बिभेद शालं सुग्रीवो न चैवाव्यथयत् कपिः।
मूलम्
स महात्मा महावेगः कुम्भकर्णस्य मूर्धनि ॥ ९ ॥
बिभेद शालं सुग्रीवो न चैवाव्यथयत् कपिः।
अनुवाद (हिन्दी)
कपिश्रेष्ठ सुग्रीवका हृदय महान् था। उनका वेग भी महान् था। उन्होंने कुम्भकर्णके मस्तकपर पटककर उस शालवृक्षको दो टूक कर डाला; तथापि वे उसे व्यथा न पहुँचा सके॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो विनद्य सहसा शालस्पर्शविबोधितः ॥ १० ॥
दोर्भ्यामादाय सुग्रीवं कुम्भकर्णोऽहरद् बलात्।
मूलम्
ततो विनद्य सहसा शालस्पर्शविबोधितः ॥ १० ॥
दोर्भ्यामादाय सुग्रीवं कुम्भकर्णोऽहरद् बलात्।
अनुवाद (हिन्दी)
शालके स्पर्शसे कुम्भकर्ण कुछ सावधान हो गया। उसने सहसा गर्जना करके सुग्रीवको दोनों हाथोंसे बलपूर्वक धर दबाया और अपने साथ ले लिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ह्रियमाणं तु सुग्रीवं कुम्भकर्णेन रक्षसा ॥ ११ ॥
अवेक्ष्याभ्यद्रवद् वीरः सौमित्रिर्मित्रनन्दनः ।
मूलम्
ह्रियमाणं तु सुग्रीवं कुम्भकर्णेन रक्षसा ॥ ११ ॥
अवेक्ष्याभ्यद्रवद् वीरः सौमित्रिर्मित्रनन्दनः ।
अनुवाद (हिन्दी)
राक्षस कुम्भकर्ण द्वारा सुग्रीवका अपहरण होता देख मित्रोंका आनन्द बढ़ानेवाले सुमित्राकुमार वीरवर लक्ष्मण उसकी ओर दौड़े॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽभिपत्य महावेगं रुक्मपुङ्खं महाशरम् ॥ १२ ॥
प्राहिणोत् कुम्भकर्णाय लक्ष्मणः परवीरहा।
मूलम्
सोऽभिपत्य महावेगं रुक्मपुङ्खं महाशरम् ॥ १२ ॥
प्राहिणोत् कुम्भकर्णाय लक्ष्मणः परवीरहा।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले लक्ष्मणने कुम्भकर्णके सामने जाकर उसको लक्ष्य करके सुवर्णमय पंखसे सुशोभित एक महावेगशाली महान् बाण चलाया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तस्य देहावरणं भित्त्वा देहं च सायकः ॥ १३ ॥
जगाम दारयन् भूमिं रुधिरेण समुक्षितः।
मूलम्
स तस्य देहावरणं भित्त्वा देहं च सायकः ॥ १३ ॥
जगाम दारयन् भूमिं रुधिरेण समुक्षितः।
अनुवाद (हिन्दी)
वह बाण उसके कवचको काटकर शरीरको छेदता हुआ रक्तरंजित हो धरतीको चीरकर उसमें समा गया’॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा स भिन्नहृदयः समुत्सृज्य कपीश्वरम् ॥ १४ ॥
(वेगेन महताऽऽविष्टस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत्।)
कुम्भकर्णो महेष्वासः प्रगृहीतशिलायुधः ।
अभिदुद्राव सौमित्रिमुद्यम्य महतीं शिलाम् ॥ १५ ॥
मूलम्
तथा स भिन्नहृदयः समुत्सृज्य कपीश्वरम् ॥ १४ ॥
(वेगेन महताऽऽविष्टस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत्।)
कुम्भकर्णो महेष्वासः प्रगृहीतशिलायुधः ।
अभिदुद्राव सौमित्रिमुद्यम्य महतीं शिलाम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार छाती छिद जानेके कारण महाधनुर्धर कुम्भकर्णने वानरराज सुग्रीवको तो छोड़ दिया और बड़े वेगसे लक्ष्मणकी ओर घूमकर कहा—‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’। तत्पश्चात् एक बहुत बड़ी शिला हाथमें लेकर वह सुमित्रानन्दन लक्ष्मणकी ओर दौड़ा॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याभिपततस्तूर्णं क्षुराभ्यामुच्छ्रितौ करौ ।
चिच्छेद निशिताग्राभ्यां स बभूव चतुर्भुजः ॥ १६ ॥
मूलम्
तस्याभिपततस्तूर्णं क्षुराभ्यामुच्छ्रितौ करौ ।
चिच्छेद निशिताग्राभ्यां स बभूव चतुर्भुजः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब लक्ष्मणने भी बड़ी शीघ्रताके साथ तीखी धारवाले दो क्षुर नामक बाण मारकर अपनी ओर आते हुए कुम्भकर्णकी ऊपर उठी हुई दोनों भुजाओंको काट डाला। उनके कटते ही वह चार भुजाओंसे युक्त हो गया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तानप्यस्य भुजान् सर्वान् प्रगृहीतशिलायुधान्।
क्षुरैश्चिच्छेद लघ्वस्त्रं सौमित्रिः प्रतिदर्शयन् ॥ १७ ॥
मूलम्
तानप्यस्य भुजान् सर्वान् प्रगृहीतशिलायुधान्।
क्षुरैश्चिच्छेद लघ्वस्त्रं सौमित्रिः प्रतिदर्शयन् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन चारों भुजाओंमें भी उसने आयुधके रूपमें बड़ी-बड़ी चट्टानें उठा लीं। यह देख सुमित्राकुमारने अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए फिरसे पूर्वोक्त बाण मारकर उसकी उन चारों भुजाओंको भी काट दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स बभूवातिकायश्च बहुपादशिरोभुजः ।
तं ब्रह्मास्त्रेण सौमित्रिर्ददाराद्रिचयोपमम् ॥ १८ ॥
मूलम्
स बभूवातिकायश्च बहुपादशिरोभुजः ।
तं ब्रह्मास्त्रेण सौमित्रिर्ददाराद्रिचयोपमम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अब उसने अपना शरीर बहुत बड़ा बना लिया। उसके अनेक पैर, अनेक सिर और अनेक भुजाएँ हो गयीं। यह देख लक्ष्मणने ब्रह्मास्त्रका प्रयोग करके पर्वत-समूहके समान विशाल शरीरवाले उस राक्षसको चीर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पपात महावीर्यो दिव्यास्त्राभिहतो रणे।
महाशनिविनिर्दग्धः पादपोऽङ्कुरवानिव ॥ १९ ॥
मूलम्
स पपात महावीर्यो दिव्यास्त्राभिहतो रणे।
महाशनिविनिर्दग्धः पादपोऽङ्कुरवानिव ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे महान् भयंकर बिजलीके आघातसे शाखाओं और पत्तोंसहित वृक्ष दग्ध हो जाता है, उसी प्रकार लक्ष्मणके दिव्यास्त्रसे आहत होकर महापराक्रमी कुम्भकर्ण रणभूमिमें गिर पड़ा॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा वृत्रसंकाशं कुम्भकर्णं तरस्विनम्।
गतासुं पतितं भूमौ राक्षसाः प्राद्रवन् भयात् ॥ २० ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा वृत्रसंकाशं कुम्भकर्णं तरस्विनम्।
गतासुं पतितं भूमौ राक्षसाः प्राद्रवन् भयात् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वृत्रासुरके समान वेगशाली कुम्भकर्णको प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर पड़ा देख सब राक्षस भयके मारे भाग चले॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तान् द्रवतो योधान् दृष्ट्वा तौ दूषणानुजौ।
अवस्थाप्याथ सौमित्रिं संक्रुद्धावभ्यधावताम् ॥ २१ ॥
मूलम्
तथा तान् द्रवतो योधान् दृष्ट्वा तौ दूषणानुजौ।
अवस्थाप्याथ सौमित्रिं संक्रुद्धावभ्यधावताम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने उन सैनिकोंको इस प्रकार भागते देख दूषणके दोनों भाई—वज्रवेग और प्रमाथीने किसी प्रकार उन्हें रोककर खड़ा किया और अत्यन्त कुपित हो सुमित्राकुमार लक्ष्मणपर धावा बोल दिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावाद्रवन्तौ संक्रुद्धौ वज्रवेगप्रमाथिनौ ।
अभिजग्राह सौमित्रिर्विनद्योभौ पतत्त्रिभिः ॥ २२ ॥
मूलम्
तावाद्रवन्तौ संक्रुद्धौ वज्रवेगप्रमाथिनौ ।
अभिजग्राह सौमित्रिर्विनद्योभौ पतत्त्रिभिः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए वज्रवेग और प्रमाथीको अपनी ओर आते देख लक्ष्मणने बड़े जोरसे सिंहनाद किया और उन दोनोंकी गतिको बाणोंद्वारा रोक दिया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सुतुमुलं युद्धमभवल्लोमहर्षणम् ।
दूषणानुजयोः पार्थ लक्ष्मणस्य च धीमतः ॥ २३ ॥
मूलम्
ततः सुतुमुलं युद्धमभवल्लोमहर्षणम् ।
दूषणानुजयोः पार्थ लक्ष्मणस्य च धीमतः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर! फिर तो दूषणके भाइयों तथा बुद्धिमान् लक्ष्मणमें ऐसा भयंकर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महता शरवर्षेण राक्षसौ सोऽभ्यवर्षत।
तौ चापि वीरौ संक्रुद्धावुभौ तं समवर्षताम् ॥ २४ ॥
मूलम्
महता शरवर्षेण राक्षसौ सोऽभ्यवर्षत।
तौ चापि वीरौ संक्रुद्धावुभौ तं समवर्षताम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
लक्ष्मण उन दोनों राक्षसोंपर बाणोंकी बड़ी भारी वर्षा कर रहे थे और वे दोनों वीर राक्षस भी अत्यन्त कुपित होकर लक्ष्मणपर बाणोंकी बौछार करते थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुहूर्तमेवमभवद् वज्रवेगप्रमाथिनोः ।
सौमित्रेश्च महाबाहोः सम्प्रहारः सुदारुणः ॥ २५ ॥
मूलम्
मुहूर्तमेवमभवद् वज्रवेगप्रमाथिनोः ।
सौमित्रेश्च महाबाहोः सम्प्रहारः सुदारुणः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार वज्रवेग, प्रमाथी और महाबाहु लक्ष्मणका वह भयंकर संग्राम दो घड़ीतक अबाधगतिसे चलता रहा॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथाद्रिशृङ्गमादाय हनुमान् मारुतात्मजः ।
अभिद्रुत्याददे प्राणान् वज्रवेगस्य रक्षसः ॥ २६ ॥
मूलम्
अथाद्रिशृङ्गमादाय हनुमान् मारुतात्मजः ।
अभिद्रुत्याददे प्राणान् वज्रवेगस्य रक्षसः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी बीचमें वायुनन्दन हनुमान्जीने पर्वतका शिखर हाथमें लेकर वज्रवेग नामक राक्षसके ऊपर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नीलश्च महता ग्राव्णा दूषणावरजं हरिः।
प्रमाथिनमभिद्रुत्य प्रममाथ महाबलः ॥ २७ ॥
मूलम्
नीलश्च महता ग्राव्णा दूषणावरजं हरिः।
प्रमाथिनमभिद्रुत्य प्रममाथ महाबलः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबली नील नामक वानरने एक विशाल चट्टान लेकर दूषणके छोटे भाई प्रमाथीपर हमला किया और उसका कचूमर निकाल दिया॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रावर्तत पुनः संग्रामः कटुकोदयः।
रामरावणसैन्यानामन्योन्यमभिधावताम् ॥ २८ ॥
मूलम्
ततः प्रावर्तत पुनः संग्रामः कटुकोदयः।
रामरावणसैन्यानामन्योन्यमभिधावताम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर श्रीराम और रावणकी सेनाओंमें परस्पर आक्रमणपूर्वक भीषण संग्राम आरम्भ हो गया जो कटु परिणामका जनक था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शतशो नैर्ऋतान् वन्या जघ्नुर्वन्यांश्च नैर्ऋताः।
नैर्ऋतास्तत्र वध्यन्ते प्रायेण न तु वानराः ॥ २९ ॥
मूलम्
शतशो नैर्ऋतान् वन्या जघ्नुर्वन्यांश्च नैर्ऋताः।
नैर्ऋतास्तत्र वध्यन्ते प्रायेण न तु वानराः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वनवासी वानरोंने सैकड़ों राक्षसोंको तथा राक्षसोंने वानरोंको घायल किया। उस युद्धमें अधिकांश राक्षस ही मारे जा रहे थे, वानर नहीं॥२९॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि कुम्भकर्णादिवधे सप्ताशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २८७ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्वमें कुम्भकर्ण आदिका वधविषयक दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२८७॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल २९ श्लोक हैं)