२८५ रामरावणद्वन्द्वयुद्धे

भागसूचना

पञ्चाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

श्रीराम और रावणकी सेनाओंका द्वन्द्वयुद्ध

मूलम् (वचनम्)

मार्कण्डेय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो निविशमानांस्तान् सैनिकान् रावणानुगाः।
अभिजग्मुर्गणानेके पिशाचक्षुद्ररक्षसाम् ॥ १ ॥
पर्वणः पतनो जम्भः खरः क्रोधवशो हरिः।
प्ररुजश्चारुजश्चैव प्रघसश्चैवमादयः ॥ २ ॥

मूलम्

ततो निविशमानांस्तान् सैनिकान् रावणानुगाः।
अभिजग्मुर्गणानेके पिशाचक्षुद्ररक्षसाम् ॥ १ ॥
पर्वणः पतनो जम्भः खरः क्रोधवशो हरिः।
प्ररुजश्चारुजश्चैव प्रघसश्चैवमादयः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मार्कण्डेयजी कहते हैं— युधिष्ठिर! जब वानर-सैनिक शिविरमें प्रवेश करने लगे, उस समय रावणकी सेनामें रहनेवाले पर्वण, पतन, जम्भ, खर, क्रोधवश, हरि, प्ररुज, अरुज और प्रघस आदि पिशाच तथा अधम राक्षसोंके अनेक दलोंने आकर उनपर धावा बोल दिया॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽभिपततां तेषामदृश्यानां दुरात्मनाम् ।
अन्तर्धानवधं तज्ज्ञश्चकार स विभीषणः ॥ ३ ॥

मूलम्

ततोऽभिपततां तेषामदृश्यानां दुरात्मनाम् ।
अन्तर्धानवधं तज्ज्ञश्चकार स विभीषणः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दुरात्मा निशाचर अन्तर्धानविद्यासे अदृश्य होकर आक्रमण कर रहे थे। विभीषण उस विद्याके जानकार थे, अतः उन्होंने उन राक्षसोंकी अन्तर्धानशक्तिको नष्ट कर दिया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते दृश्यमाना हरिभिर्बलिभिर्दूरपातिभिः ।
निहताः सर्वशो राजन् महीं जग्मुर्गतासवः ॥ ४ ॥

मूलम्

ते दृश्यमाना हरिभिर्बलिभिर्दूरपातिभिः ।
निहताः सर्वशो राजन् महीं जग्मुर्गतासवः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो वे सभी राक्षस वानरोंकी दृष्टिमें आ गये। राजन्! वानर बलवान् तो थे ही, वे दूरतक उछलकर जानेकी शक्ति रखते थे। वे सब ओरसे कूद-कूदकर उन्हें मारने लगे। उनकी मार खाकर वे सभी राक्षस प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर गिर पड़े॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अमृष्यमाणः सबलो रावणो निर्ययावथ।
राक्षसानां बलैर्घोरैः पिशाचानां च संवृतः ॥ ५ ॥

मूलम्

अमृष्यमाणः सबलो रावणो निर्ययावथ।
राक्षसानां बलैर्घोरैः पिशाचानां च संवृतः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रावणके लिये यह बात असह्य हो उठी। वह पिशाचों तथा राक्षसोंकी भयंकर सेनासे घिरा हुआ दल-बलके साथ लंकासे बाहर निकला॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युद्धशास्त्रविधानज्ञ उशना इव चापरः।
व्यूह्य चौशनसं व्यूहं हरीनभ्यवहारयत् ॥ ६ ॥

मूलम्

युद्धशास्त्रविधानज्ञ उशना इव चापरः।
व्यूह्य चौशनसं व्यूहं हरीनभ्यवहारयत् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह दूसरे शुक्राचार्यके समान युद्धशास्त्रके विधानका ज्ञाता था। उसने शुक्राचार्यके मतके अनुसार व्यूह-रचना करके सब वानरोंको घेर लिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राघवस्तु विनिर्यान्तं व्यूढानीकं दशाननम्।
बार्हस्पत्यं विधिं कृत्वा प्रत्यव्यूहन्निशाचरम् ॥ ७ ॥

मूलम्

राघवस्तु विनिर्यान्तं व्यूढानीकं दशाननम्।
बार्हस्पत्यं विधिं कृत्वा प्रत्यव्यूहन्निशाचरम् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीने जब देखा कि दशमुख रावण व्यूहाकार सेनाको साथ ले नगरसे बाहर निकल रहा है, तब उन्होंने भी उस निशाचरके विरुद्ध बृहस्पतिकी बतायी हुई रीतिसे अपनी सेनाका व्यूह बनाया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समेत्य युयुधे तत्र ततो रामेण रावणः।
युयुधे लक्ष्मणश्चापि तथैवेन्द्रजिता सह ॥ ८ ॥

मूलम्

समेत्य युयुधे तत्र ततो रामेण रावणः।
युयुधे लक्ष्मणश्चापि तथैवेन्द्रजिता सह ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर वहाँ पहुँचकर रावण श्रीरामचन्द्रजीके साथ युद्ध करने लगा। दूसरी ओर लक्ष्मणने भी इन्द्रजित्‌के साथ युद्ध करना प्रारम्भ किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरूपाक्षेण सुग्रीवस्तारेण च निखर्वटः।
तुण्डेन च नलस्तत्र पटुशः पनसेन च ॥ ९ ॥

मूलम्

विरूपाक्षेण सुग्रीवस्तारेण च निखर्वटः।
तुण्डेन च नलस्तत्र पटुशः पनसेन च ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुग्रीवने विरूपाक्षके साथ युद्ध किया। निखर्वट नामक राक्षस तार नामक वानरसे जा भिड़ा। नलने निशाचर तुण्डका सामना किया तथा पटुश नामक राक्षस पनस वानरके साथ युद्ध करने लगा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विषह्यं यं हि यो मेने स स तेन समेयिवान्।
युयुधे युद्धवेलायां स्वबाहुबलमाश्रितः ॥ १० ॥

मूलम्

विषह्यं यं हि यो मेने स स तेन समेयिवान्।
युयुधे युद्धवेलायां स्वबाहुबलमाश्रितः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जिसे अपने जोड़का समझता था, उसीके साथ उसकी भिड़न्त हुई। सबलोग युद्धके समय अपने बाहुबलका आश्रय ले शत्रुका सामना करते थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स सम्प्रहारो ववृधे भीरूणां भयवर्धनः।
लोमसंहर्षणो घोरः पुरा देवासुरे यथा ॥ ११ ॥

मूलम्

स सम्प्रहारो ववृधे भीरूणां भयवर्धनः।
लोमसंहर्षणो घोरः पुरा देवासुरे यथा ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पूर्वकालमें देवताओं और असुरोंमें जैसा भयंकर तथा रोमाञ्चकारी युद्ध हुआ था, उसी प्रकार वानरों और निशाचरोंका वह युद्ध भयानकरूपसे बढ़ता जा रहा था। वह संग्राम कायरोंके भयको बढ़ानेवाला था॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रावणो राममानर्छच्छक्तिशूलासिवृष्टिभिः ।
निशितैरायसैस्तीक्ष्णै रावणं चापि राघवः ॥ १२ ॥
तथैवेन्द्रजितं यत्तं लक्ष्मणो मर्मभेदिभिः।
इन्द्रजिच्चापि सौमित्रिं बिभेद बहुभिः शरैः ॥ १३ ॥

मूलम्

रावणो राममानर्छच्छक्तिशूलासिवृष्टिभिः ।
निशितैरायसैस्तीक्ष्णै रावणं चापि राघवः ॥ १२ ॥
तथैवेन्द्रजितं यत्तं लक्ष्मणो मर्मभेदिभिः।
इन्द्रजिच्चापि सौमित्रिं बिभेद बहुभिः शरैः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रावणने शक्ति, शूल और खड्‌गकी वर्षा करके श्रीरामचन्द्रजीको बहुत पीड़ा दी तथा श्रीरघुनाथजीने भी लोहेके बने हुए तीखे बाणोंद्वारा रावणको अत्यन्त पीड़ित किया। इसी प्रकार युद्धके लिये उद्यत रहनेवाले इन्द्रजित्‌को लक्ष्मणने मर्मभेदी बाणोंद्वारा घायल किया और इन्द्रजित्‌ने सुमित्रानन्दन लक्ष्मणको अनेक बाणोंद्वारा बींध डाला॥१२-१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विभीषणः प्रहस्तं च प्रहस्तश्च विभीषणम्।
खगपत्रैः शरैस्तीक्ष्णैरभ्यवर्षद् गतव्यथः ॥ १४ ॥

मूलम्

विभीषणः प्रहस्तं च प्रहस्तश्च विभीषणम्।
खगपत्रैः शरैस्तीक्ष्णैरभ्यवर्षद् गतव्यथः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधर विभीषण प्रहस्तपर और प्रहस्त विभीषणपर पंखयुक्त तीखे बाणोंकी वर्षा करने लगे। उन दोनोंमेंसे कोई भी व्यथाका अनुभव नहीं करता था॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां बलवतामासीन्महास्त्राणां समागमः ।
विव्यथुः सकला येन त्रयो लोकाश्चराचराः ॥ १५ ॥

मूलम्

तेषां बलवतामासीन्महास्त्राणां समागमः ।
विव्यथुः सकला येन त्रयो लोकाश्चराचराः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बड़े-बड़े अस्त्र धारण करनेवाले उन बलवान् वीरोंका वह संग्राम इतना भयंकर था कि उससे तीनों लोकोंके समस्त चराचर प्राणी व्यथित हो उठे॥१५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि रामरावणद्वन्द्वयुद्धे पञ्चाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २८५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्वमें राम-रावणद्वन्द्वयुद्धविषयक दो सौ पचासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२८५॥