भागसूचना
षट्सप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
देवताओंका ब्रह्माजीके पास जाकर रावणके अत्याचारसे बचानेके लिये प्रार्थना करना तथा ब्रह्माजीकी आज्ञासे देवताओंका रीछ और वानरयोनिमें संतान उत्पन्न करना एवं दुन्दुभी गन्धर्वीका मन्थरा बनकर आना
मूलम् (वचनम्)
मार्कण्डेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो ब्रह्मर्षयः सर्वे सिद्धा देवर्षयस्तथा।
हव्यवाहं पुरस्कृत्य ब्रह्माणं शरणं गताः ॥ १ ॥
मूलम्
ततो ब्रह्मर्षयः सर्वे सिद्धा देवर्षयस्तथा।
हव्यवाहं पुरस्कृत्य ब्रह्माणं शरणं गताः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मार्कण्डेयजी कहते हैं— राजन्! तत्पश्चात् रावणसे कष्ट पाये हुए ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा सिद्धगण अग्निदेवको आगे करके ब्रह्माजीकी शरणमें गये॥१॥
मूलम् (वचनम्)
अग्निरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
योऽसौ विश्रवसः पुत्रो दशग्रीवो महाबलः।
अवध्यो वरदानेन कृतो भगवता पुरा ॥ २ ॥
स बाधते प्रजाः सर्वा विप्रकारैर्महाबलः।
ततो नस्त्रातु भगवन् नान्यस्त्राता हि विद्यते ॥ ३ ॥
मूलम्
योऽसौ विश्रवसः पुत्रो दशग्रीवो महाबलः।
अवध्यो वरदानेन कृतो भगवता पुरा ॥ २ ॥
स बाधते प्रजाः सर्वा विप्रकारैर्महाबलः।
ततो नस्त्रातु भगवन् नान्यस्त्राता हि विद्यते ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अग्निदेव बोले— भगवन्! आपने पहले जो वरदान देकर विश्रवाके पुत्र महाबली रावणको अवध्य कर दिया है, वह महाबलवान् राक्षस अब संसारकी समस्त प्रजाको अनेक प्रकारसे सता रहा है; अतः आप ही उसके भयसे हमारी रक्षा कीजिये। आपके सिवा हमारा दूसरा कोई रक्षक नहीं है॥२-३॥
मूलम् (वचनम्)
ब्रह्मोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
न स देवासुरैः शक्यो युद्धे जेतुं विभावसो।
विहितं तत्र यत् कार्यमभितस्तस्य निग्रहः ॥ ४ ॥
मूलम्
न स देवासुरैः शक्यो युद्धे जेतुं विभावसो।
विहितं तत्र यत् कार्यमभितस्तस्य निग्रहः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्माजीने कहा— अग्ने! देवता या असुर उसे युद्धमें नहीं जीत सकते। उसके विनाशके लिये जो आवश्यक कार्य था, वह कर दिया गया। अब सब प्रकारसे उस दुष्टका दमन हो जायगा॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदर्थमवतीर्णोऽसौ मन्नियोगाच्चतुर्भुजः ।
विष्णुः प्रहरतां श्रेष्ठः स तत् कर्म करिष्यति ॥ ५ ॥
मूलम्
तदर्थमवतीर्णोऽसौ मन्नियोगाच्चतुर्भुजः ।
विष्णुः प्रहरतां श्रेष्ठः स तत् कर्म करिष्यति ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस राक्षसके निग्रहके लिये मैंने चतुर्भुज भगवान् विष्णुसे अनुरोध किया था। मेरी प्रार्थनासे वे भगवान् भूतलपर अवतार ले चुके हैं। वे योद्धाओंमें श्रेष्ठ हैं; अतः वे ही रावणके दमनका कार्य करेंगे॥५॥
मूलम् (वचनम्)
मार्कण्डेय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितामहस्ततस्तेषां संनिधौ शक्रमब्रवीत् ।
सर्वैर्देवगणैः सार्धं सम्भव त्वं महीतले ॥ ६ ॥
मूलम्
पितामहस्ततस्तेषां संनिधौ शक्रमब्रवीत् ।
सर्वैर्देवगणैः सार्धं सम्भव त्वं महीतले ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मार्कण्डेयजी कहते हैं— राजन्! तदनन्तर ब्रह्माजीने उन देवताओंके समीप ही इन्द्रसे कहा—‘तुम समस्त देवताओंके साथ भूतलपर जन्म ग्रहण करो॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विष्णोः सहायानृक्षीषु वानरीषु च सर्वशः।
जनयध्वं सुतान् वीरान् कामरूपबलान्वितान् ॥ ७ ॥
मूलम्
विष्णोः सहायानृक्षीषु वानरीषु च सर्वशः।
जनयध्वं सुतान् वीरान् कामरूपबलान्वितान् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘वहाँ रीछों और वानरोंकी स्त्रियोंसे ऐसे वीर पुत्रको उत्पन्न करो, जो इच्छानुसार रूप धारण करनेमें समर्थ, बलवान् तथा भूतलपर अवतीर्ण हुए भगवान् विष्णुके योग्य सहायक हों’॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भागानुभागेन देवगन्धर्वपन्नगाः ।
अवतर्तुं महीं सर्वे मन्त्रयामासुरञ्जसा ॥ ८ ॥
मूलम्
ततो भागानुभागेन देवगन्धर्वपन्नगाः ।
अवतर्तुं महीं सर्वे मन्त्रयामासुरञ्जसा ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर देवता, गन्धर्व और नाग अपने-अपने अंश एवं अंशांशसे इस पृथ्वीपर अवतीर्ण होनेके लिये परस्पर परामर्श करने लगे॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां समक्षं गन्धर्वीं दुन्दुभीं नाम नामतः।
शशास वरदो देवो गच्छ कार्यार्थसिद्धये ॥ ९ ॥
मूलम्
तेषां समक्षं गन्धर्वीं दुन्दुभीं नाम नामतः।
शशास वरदो देवो गच्छ कार्यार्थसिद्धये ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर वरदायक देवता ब्रह्माजीने उन सबके सामने ही दुन्दुभी नामवाली गन्धर्वीको आज्ञा दी कि ‘तुम भी देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये भूतलपर जाओ॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितामहवचः श्रुत्वा गन्धर्वी दुन्दुभी ततः।
मन्थरा मानुषे लोके कुब्जा समभवत् तदा ॥ १० ॥
मूलम्
पितामहवचः श्रुत्वा गन्धर्वी दुन्दुभी ततः।
मन्थरा मानुषे लोके कुब्जा समभवत् तदा ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पितामहकी बात सुनकर गन्धर्वी दुन्दुभी मनुष्यलोकमें आकर मन्थरा नामसे प्रसिद्ध कुबड़ी दासी हुई॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्रप्रभृतयश्चैव सर्वे ते सुरसत्तमाः।
वानरर्क्षवरस्त्रीषु जनयामासुरात्मजान् ॥ ११ ॥
तेऽन्ववर्तन् पितॄन् सर्वे यशसा च बलेन च।
भेत्तारो गिरिशृङ्गाणां शालतालशिलायुधाः ॥ १२ ॥
मूलम्
शक्रप्रभृतयश्चैव सर्वे ते सुरसत्तमाः।
वानरर्क्षवरस्त्रीषु जनयामासुरात्मजान् ॥ ११ ॥
तेऽन्ववर्तन् पितॄन् सर्वे यशसा च बलेन च।
भेत्तारो गिरिशृङ्गाणां शालतालशिलायुधाः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन्द्र आदि समस्त श्रेष्ठ देवता भी वानरों तथा रीछोंकी उत्तम स्त्रियोंसे संतान उत्पन्न करने लगे। वे सब वानर और रीछ यश तथा बलमें अपने पिता देवताओंके समान ही हुए। वे पर्वतोंके शिखर तोड़ डालनेकी शक्ति रखते थे एवं शाल (साखू) और ताल (ताड़)-के वृक्ष तथा पत्थरोंकी चट्टानें ही उनके आयुध थे॥११-१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वज्रसंहननाः सर्वे सर्वे चौघबलास्तथा।
कामवीर्यबलाश्चैव सर्वे युद्धविशारदाः ॥ १३ ॥
मूलम्
वज्रसंहननाः सर्वे सर्वे चौघबलास्तथा।
कामवीर्यबलाश्चैव सर्वे युद्धविशारदाः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनका शरीर वज्रके समान दुर्भेद्य और सुदृढ़ था। वे सभी राशि-राशि बलके आश्रय थे। उनका बल और पराक्रम इच्छाके अनुसार प्रकट होता था। वे सब-के-सब युद्ध करनेकी कलामें दक्ष थे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागायुतसमप्राणा वायुवेगसमा जवे ।
यत्रेच्छकनिवासाश्च केचिदत्र वनौकसः ॥ १४ ॥
मूलम्
नागायुतसमप्राणा वायुवेगसमा जवे ।
यत्रेच्छकनिवासाश्च केचिदत्र वनौकसः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके शरीरमें दस हजार हाथियोंके समान बल था। तेज चलनेमें वे वायुके वेगको लजा देते थे। उनका कोई घर-बार नहीं था; जहाँ इच्छा होती वहीं रह जाते थे। उनमेंसे कुछ लोग केवल वनोंमें ही रहते थे॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं विधाय तत् सर्वं भगवाल्ँलोकभावनः।
मन्थरां बोधयामास यद् यत् कार्यं यथा यथा ॥ १५ ॥
मूलम्
एवं विधाय तत् सर्वं भगवाल्ँलोकभावनः।
मन्थरां बोधयामास यद् यत् कार्यं यथा यथा ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार सारी व्यवस्था करके लोक स्रष्टा भगवान् ब्रह्माने मन्थरा बनी हुई दुन्दुभीको जो-जो काम जैसे-जैसे करना था, वह सब समझा दिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा तद्वचः समाज्ञाय तथा चक्रे मनोजवा।
इतश्चेतश्च गच्छन्ती वैरसन्धुक्षणे रता ॥ १६ ॥
मूलम्
सा तद्वचः समाज्ञाय तथा चक्रे मनोजवा।
इतश्चेतश्च गच्छन्ती वैरसन्धुक्षणे रता ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह मनके समान वेगसे चलनेवाली थी। उसने ब्रह्माजीकी बातको अच्छी तरह समझकर उसके अनुसार ही कार्य किया। वह इधर-उधर घूम-फिरकर वैरकी आग प्रज्वलित करनेमें लग गयी॥१६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि वानराद्युत्पत्तौ षट्सप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २७६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्वमें वानर आदिकी उत्पत्तिसे सम्बन्धित दो सौ छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२७६॥