भागसूचना
अष्टचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
दुर्योधनका कर्णको अपनी पराजयका समाचार बताना
मूलम् (वचनम्)
दुर्योधन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अजानतस्ते राधेय नाभ्यसूयाम्यहं वचः।
जानासि त्वं जिताञ्छत्रून् गन्धर्वांस्तेजसा मया ॥ १ ॥
मूलम्
अजानतस्ते राधेय नाभ्यसूयाम्यहं वचः।
जानासि त्वं जिताञ्छत्रून् गन्धर्वांस्तेजसा मया ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्योधन बोला— राधानन्दन! तुम सब बातें जानते नहीं हो, इसीसे मैं तुम्हारे इस कथनको बुरा नहीं मानता। तुम समझते हो कि मैंने अपने शत्रुभूत गन्धर्वोंको अपने ही पराक्रमसे हराया है; परंतु ऐसी बात नहीं है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आयोधितास्तु गन्धर्वाः सुचिरं सोदरैर्मम।
मया सह महाबाहो कृतश्चोभयतः क्षयः ॥ २ ॥
मूलम्
आयोधितास्तु गन्धर्वाः सुचिरं सोदरैर्मम।
मया सह महाबाहो कृतश्चोभयतः क्षयः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहो! मेरे भाइयोंने मेरे साथ रहकर गन्धर्वोंके साथ बहुत देरतक युद्ध किया और उसमें दोनों पक्षके बहुत-से सैनिक मारे गये॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मायाधिकास्त्वयुध्यन्त यदा शूरा वियद्गताः।
तदा नो न समं युद्धमभवत् खेचरैः सह ॥ ३ ॥
मूलम्
मायाधिकास्त्वयुध्यन्त यदा शूरा वियद्गताः।
तदा नो न समं युद्धमभवत् खेचरैः सह ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु जब मायाके कारण अधिक शक्तिशाली शूरवीर गन्धर्व आकाशमें खड़े होकर युद्ध करने लगे, तब उनके साथ हमलोगोंका युद्ध समान स्थितिमें नहीं रह सका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पराजयं च प्राप्ताः स्मो रणे बन्धनमेव च।
सभृत्यामात्यपुत्राश्च सदारबलवाहनाः ॥ ४ ॥
मूलम्
पराजयं च प्राप्ताः स्मो रणे बन्धनमेव च।
सभृत्यामात्यपुत्राश्च सदारबलवाहनाः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धमें हमारी पराजय हुई और हम सेवक, सचिव, पुत्र, स्त्री, सेना तथा सवारियोंसहित बंदी बना लिये गये॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उच्चैराकाशमार्गेण हृताःस्मस्तैः सुदुःखिताः ।
अथ नः सैनिकाः केचिदमात्याश्च महारथाः ॥ ५ ॥
उपगम्याब्रुवन् दीनाः पाण्डवाञ्छरणप्रदान् ।
मूलम्
उच्चैराकाशमार्गेण हृताःस्मस्तैः सुदुःखिताः ।
अथ नः सैनिकाः केचिदमात्याश्च महारथाः ॥ ५ ॥
उपगम्याब्रुवन् दीनाः पाण्डवाञ्छरणप्रदान् ।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर गन्धर्व हमें ऊँचे आकाशमार्गसे ले चले। उस समय हमलोग अत्यन्त दुःखी हो रहे थे। तदनन्तर हमारे कुछ सैनिकों और महारथी मन्त्रियोंने अत्यन्त दीन हो शरणदाता पाण्डवोंके पास जाकर कहा—॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष दुर्योधनो राजा धार्तराष्ट्रः सहानुजः ॥ ६ ॥
सामात्यदारो ह्रियते गन्धर्वैर्दिवमाश्रितैः ।
मूलम्
एष दुर्योधनो राजा धार्तराष्ट्रः सहानुजः ॥ ६ ॥
सामात्यदारो ह्रियते गन्धर्वैर्दिवमाश्रितैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘कुन्तीकुमारो! ये धृतराष्ट्रपुत्र राजा दुर्योधन अपने भाइयों, मन्त्रियों तथा स्त्रियोंके साथ यहाँ आये थे। इन्हें गन्धर्वगण आकाशमार्गसे हरकर लिये जाते हैं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं मोक्षयत भद्रं वः सहदारं नराधिपम् ॥ ७ ॥
पराभवो मा भविष्यत् कुरुदारेषु सर्वशः।
मूलम्
तं मोक्षयत भद्रं वः सहदारं नराधिपम् ॥ ७ ॥
पराभवो मा भविष्यत् कुरुदारेषु सर्वशः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘आपलोगोंका कल्याण हो। रानियोंसहित महाराजको छुड़ाइये। कहीं ऐसा न हो कि कुरुकुलकी स्त्रियोंका तिरस्कार हो जाय’॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्ते तु धर्मात्मा ज्येष्ठः पाण्डुसुतस्तदा ॥ ८ ॥
प्रसाद्य पाण्डवान् सर्वानाज्ञापयत मोक्षणे।
मूलम्
एवमुक्ते तु धर्मात्मा ज्येष्ठः पाण्डुसुतस्तदा ॥ ८ ॥
प्रसाद्य पाण्डवान् सर्वानाज्ञापयत मोक्षणे।
अनुवाद (हिन्दी)
उनके ऐसा कहनेपर ज्येष्ठ पाण्डुपुत्र धर्मात्मा युधिष्ठिरने अन्य सब पाण्डवोंको राजी करके हम सब लोगोंको छुड़ानेके लिये आज्ञा दी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथागम्य तमुद्देशं पाण्डवाः पुरुषर्षभाः ॥ ९ ॥
सान्त्वपूर्वमयाचन्त शक्ताः सन्तो महारथाः।
मूलम्
अथागम्य तमुद्देशं पाण्डवाः पुरुषर्षभाः ॥ ९ ॥
सान्त्वपूर्वमयाचन्त शक्ताः सन्तो महारथाः।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर पुरुषसिंह महारथी पाण्डव उस स्थानपर आकर समर्थ होते हुए भी गन्धर्वोंसे सान्त्वनापूर्ण शब्दोंमें (हमें छोड़ देनेके लिये) याचना करने लगे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदा चास्मान् न मुमुचुर्गन्धर्वाः सान्त्विता अपि ॥ १० ॥
(आकाशचारिणो वीरा नदन्तो जलदा इव)।
ततोऽर्जुनश्च भीमश्च यमजौ च बलोत्कटौ।
मुमुचुः शरवर्षाणि गन्धर्वान् प्रत्यनेकशः ॥ ११ ॥
मूलम्
यदा चास्मान् न मुमुचुर्गन्धर्वाः सान्त्विता अपि ॥ १० ॥
(आकाशचारिणो वीरा नदन्तो जलदा इव)।
ततोऽर्जुनश्च भीमश्च यमजौ च बलोत्कटौ।
मुमुचुः शरवर्षाणि गन्धर्वान् प्रत्यनेकशः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके समझाने-बुझानेपर भी जब आकाशचारी वीर गन्धर्व हमें न छोड़ सके और बादलोंकी भाँति गर्जने लगे तब अर्जुन, भीम तथा उत्कट बलशाली नकुल-सहदेवने उन असंख्य गन्धर्वोंकी ओर लक्ष्य करके बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥१०-११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ सर्वे रणं मुक्त्वा प्रयाताः खेचराः दिवम्।
अस्मानेवाभिकर्षन्तो दीनान् मुदितमानसाः ॥ १२ ॥
मूलम्
अथ सर्वे रणं मुक्त्वा प्रयाताः खेचराः दिवम्।
अस्मानेवाभिकर्षन्तो दीनान् मुदितमानसाः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो सारे गन्धर्व रणभूमि छोड़कर आकाशमें उड़ गये और मन-ही-मन आनन्दका अनुभव करते हुए हम दीन-दुखियोंको अपनी ओर घसीटने लगे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः समन्तात् पश्यामः शरजालेन वेष्टितम्।
अमानुषाणि चास्त्राणि प्रमुञ्चन्तं धनंजयम् ॥ १३ ॥
मूलम्
ततः समन्तात् पश्यामः शरजालेन वेष्टितम्।
अमानुषाणि चास्त्राणि प्रमुञ्चन्तं धनंजयम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय हमने देखा, चारों ओर बाणोंका जाल-सा बन गया है और उससे वेष्टित हो अर्जुन अलौकिक अस्त्रोंकी वर्षा कर रहे हैं॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समावृता दिशो दृष्ट्वा पाण्डवेन शितैः शरैः।
धनंजयसखाऽऽत्मानं दर्शयामास वै तदा ॥ १४ ॥
मूलम्
समावृता दिशो दृष्ट्वा पाण्डवेन शितैः शरैः।
धनंजयसखाऽऽत्मानं दर्शयामास वै तदा ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन अर्जुनने अपने तीखे बाणोंसे समस्त दिशाओंको आच्छादित कर दिया है, यह देखकर उनके सखा चित्रसेनने अपने-आपको उनके सामने प्रकट कर दिया॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रसेनः पाण्डवेन समाश्लिष्य परस्परम्।
कुशलं परिपप्रच्छ तैः पृष्टश्चाप्यनामयम् ॥ १५ ॥
मूलम्
चित्रसेनः पाण्डवेन समाश्लिष्य परस्परम्।
कुशलं परिपप्रच्छ तैः पृष्टश्चाप्यनामयम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो चित्रसेन और अर्जुन दोनों एक-दूसरेसे मिले और कुशल-मंगल तथा स्वास्थ्यका समाचार पूछने लगे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते समेत्य तथान्योन्यं सन्नाहान् विप्रमुच्य च।
एकीभूतास्ततो वीरा गन्धर्वाः सह पाण्डवैः।
अपूजयेतामन्योन्यं चित्रसेनधनंजयौ ॥ १६ ॥
मूलम्
ते समेत्य तथान्योन्यं सन्नाहान् विप्रमुच्य च।
एकीभूतास्ततो वीरा गन्धर्वाः सह पाण्डवैः।
अपूजयेतामन्योन्यं चित्रसेनधनंजयौ ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दोनोंने एक-दूसरेसे मिलकर अपना कवच उतार दिया। फिर समस्त वीर गन्धर्व पाण्डवोंके साथ मिलकर एक हो गये। तत्पश्चात् चित्रसेन और धनंजयने एक-दूसरेका आदर-सत्कार किया॥१६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि घोषयात्रापर्वणि दुर्योधनवाक्ये अष्टचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २४८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधनवाक्यविषयक दो सौ अड़तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२४८॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल १६ श्लोक हैं)