भागसूचना
अष्टसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
महाबली भीमसेनका हिंसक पशुओंको मारना और अजगरद्वारा पकड़ा जाना
मूलम् (वचनम्)
जनमेजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथं नागायुतप्राणो भीमो भीमपराक्रमः
भयमाहारयत् तीव्रं तस्मादजगरान्मुने ॥ १ ॥
मूलम्
कथं नागायुतप्राणो भीमो भीमपराक्रमः
भयमाहारयत् तीव्रं तस्मादजगरान्मुने ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजयने पूछा— मुने! भयानक पराक्रमी भीमसेनमें ते दस हजार हाथियोंका बल थ। फिर उन्हें उस अजगरसे इतना तीव्र भय कैसे प्राप्त हुअ?॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पौलस्त्यं धनदं युद्धे य आह्वयति दर्पितः
नलिन्यां कदनं कृत्वा निहन्ता यक्षरक्षसाम् ॥ २ ॥
तं शंससि भयाविष्टमापन्नमरिसूदनम्
एतदिच्छाम्यहं श्रीतुं परं कौतूहलं हि मे ॥ ३ ॥
मूलम्
पौलस्त्यं धनदं युद्धे य आह्वयति दर्पितः
नलिन्यां कदनं कृत्वा निहन्ता यक्षरक्षसाम् ॥ २ ॥
तं शंससि भयाविष्टमापन्नमरिसूदनम्
एतदिच्छाम्यहं श्रीतुं परं कौतूहलं हि मे ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो बलके घमंडमें आकर पुलस्त्यनन्दन कुबेरको भी युद्धके लिये ललकारते थे, जिन्होंने कुबेरकी पुष्करिणीके तटपर कितने ही यक्षों तथा राक्षसोंका संहार कर डाला था, उन्हीं शत्रुसूदन भीमसेनको आप भयभीत (और विपत्तिग्रस्त) बताते हैं। अतः मैं इस प्रसंगको विस्तारसे सुनना चाहता हूँ। इसके लिये मेरे मनमें बड़ा कौतूहल हो रहा है॥२-३॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
बह्वाश्चर्ये वने तेषां वसतामुग्रधन्विनाम्
प्राप्तानामाश्रमाद् राजन् राजर्षेर्वृषपर्वणः ॥ ४ ॥
मूलम्
बह्वाश्चर्ये वने तेषां वसतामुग्रधन्विनाम्
प्राप्तानामाश्रमाद् राजन् राजर्षेर्वृषपर्वणः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजीने कहा— राजन्! राजर्षि वृषपर्वाके आश्रमसे आकर उग्र धनुर्धर पाण्डव अनेक आश्चर्योंसे भरे हुए उस द्वैतवनमें निवास करते थे॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदृच्छया धनुष्पाणिर्बद्धखड्गो वृकोदरः
ददर्श तद् वनं रम्यं देवगन्धर्वसेवितम् ॥ ५ ॥
मूलम्
यदृच्छया धनुष्पाणिर्बद्धखड्गो वृकोदरः
ददर्श तद् वनं रम्यं देवगन्धर्वसेवितम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन तलवार बाँधकर हाथमें धनुष लिये अकस्मात् घूमने निकल जाते और देवताओं तथा गन्धर्वोंसे सेवित उस रमणीय वनकी शोभा निहारते थे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स ददर्श शुभान् देशान् गिरेर्हिमवतस्तदा
देवर्षिसिद्धचरितानप्सरोगणसेवितान् ॥ ६ ॥
मूलम्
स ददर्श शुभान् देशान् गिरेर्हिमवतस्तदा
देवर्षिसिद्धचरितानप्सरोगणसेवितान् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने हिमालय पर्वतके उन शुभ प्रदेशोंका अवलोकन किया जहाँ देवर्षि और सिद्ध पुरुष विचरण करते थे तथा अप्सराएँ जिनका सदा सेवन करती थीं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चकोरैरुपचक्रैश्च पक्षिभिर्जीवजीवकैः
कोकिलैर्भृङ्गराजैश्च तत्र तत्र निनादितान् ॥ ७ ॥
मूलम्
चकोरैरुपचक्रैश्च पक्षिभिर्जीवजीवकैः
कोकिलैर्भृङ्गराजैश्च तत्र तत्र निनादितान् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ भिन्न-भिन्न स्थानोंमें चकोर, उपचक्र, जीव-जीवक, कोकिल और भृंगराज आदि पक्षी कलरव करते थे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नित्यपुष्पफलैर्वृक्षैर्हिमसंस्पर्शकोमलैः
उपेतान् बहुलच्छायैर्मनोनयननन्दनैः ॥ ८ ॥
मूलम्
नित्यपुष्पफलैर्वृक्षैर्हिमसंस्पर्शकोमलैः
उपेतान् बहुलच्छायैर्मनोनयननन्दनैः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँके वृक्ष सदा फूल और फल देते थे। हिमके स्पर्शसे उनमें कोमलता आ गयी थी। उनकी छाया बहुत घनी थी और वे दर्शनमात्रसे मन एवं नेत्रोंको आनन्द प्रदान करते थे॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स सम्पश्यन् गिरिनदीर्वैदूर्यमणिसंनिभैः
सलिलैर्हिमसंकाशैर्हंसकारण्डवायुतैः ॥ ९ ॥
मूलम्
स सम्पश्यन् गिरिनदीर्वैदूर्यमणिसंनिभैः
सलिलैर्हिमसंकाशैर्हंसकारण्डवायुतैः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन वृक्षोंसे सुशोभित प्रदेशों तथा वैदूर्यमणिके समान रंगवाले, हिमसदृश स्वच्छ, शीतल सलिल-समूहसे संयुक्त पर्वतीय नदियोंकी शोभा निहारते हुए वे सब ओर घूमते थे। नदियोंकी उस जलराशिमें हंस और कारण्डव आदि सहस्रों पक्षी किलोलें करते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वनानि देवदारूणां मेघानामिव वागुराः
हरिचन्दनमिश्राणि तुङ्गकालीयकान्यपि ॥ १० ॥
मूलम्
वनानि देवदारूणां मेघानामिव वागुराः
हरिचन्दनमिश्राणि तुङ्गकालीयकान्यपि ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हरिचन्दन, तुंग और कालीयक आदि वृक्षोंसे युक्त ऊँचे-ऊँचे देवदारुके वन ऐसे जान पड़ते थे मानो बादलोंको फँसानेके लिये फंदे हों॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मृगयां परिधावन् स समेषु मरुधन्वसु
विध्यन् मृगान् शरैः शुद्धैश्चचार स महाबलः ॥ ११ ॥
मूलम्
मृगयां परिधावन् स समेषु मरुधन्वसु
विध्यन् मृगान् शरैः शुद्धैश्चचार स महाबलः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबली भीम सारे मरु प्रदेशमें शिकारके लिये दौड़ते और केवल बाणोंद्वारा हिंसक पशुओंको घायल करते हुए विचरा करते थे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु विख्यातो महान्तं दंष्ट्रिणं बलात्
निघ्नन् नागशतप्राणो वने तस्मिन् महाबलः ॥ १२ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु विख्यातो महान्तं दंष्ट्रिणं बलात्
निघ्नन् नागशतप्राणो वने तस्मिन् महाबलः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन अपने महान् बलके लिये विख्यात थे। उनमें सैकड़ों हाथियोंकी शक्ति थी। वे उस वनमें विकराल दाढ़ोंवाले बड़े-से-बड़े सिंहको भी पछाड़ देते थे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मृगाणां स वराहाणां महिषाणां महाभुजः
विनिघ्नंस्तत्र तत्रैव भीमो भीमपराक्रमः ॥ १३ ॥
मूलम्
मृगाणां स वराहाणां महिषाणां महाभुजः
विनिघ्नंस्तत्र तत्रैव भीमो भीमपराक्रमः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनका पराक्रम भी उनके नामके अनुसार ही भयानक था। उनकी भुजाएँ विशाल थीं। वे मृगयामें प्रवृत्त होकर जहाँ-तहाँ हिंसक पशुओं, वराहों और भैंसोंको भी मारा करते थे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स मातङ्गशतप्राणो मनुष्यशतवारणः
सिंहशार्दूलविक्रान्तो वने तस्मिन् महाबलः ॥ १४ ॥
वृक्षानुत्पाटयामास तरसा वै बभञ्ज च
पृथिव्याश्च प्रदेशान् वै नादयंस्तु वनानि च ॥ १५ ॥
मूलम्
स मातङ्गशतप्राणो मनुष्यशतवारणः
सिंहशार्दूलविक्रान्तो वने तस्मिन् महाबलः ॥ १४ ॥
वृक्षानुत्पाटयामास तरसा वै बभञ्ज च
पृथिव्याश्च प्रदेशान् वै नादयंस्तु वनानि च ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमें सैकड़ों मतवाले गजराजोंके समान बल था। वे एक साथ सौ-सौ मनुष्योंका वेग रोक सकते थे। उनका पराक्रम सिंह और शार्दूलके समान था महाबली भीम उस वनमें वृक्षोंको उखाड़ते और उन्हें वेगपूर्वक पुनः तोड़ डालते थे। वे अपनी गर्जनासे उस वन्य भूमिके प्रदेशों तथा समूचे वनको गुँजाते रहते थे॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पर्वताग्राणि वै मृद्नन् नादयानश्च विज्वरः
प्रक्षिपन् पादपांश्चापि नादेनापूरयन् महीम् ॥ १६ ॥
मूलम्
पर्वताग्राणि वै मृद्नन् नादयानश्च विज्वरः
प्रक्षिपन् पादपांश्चापि नादेनापूरयन् महीम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे पर्वतशिखरोंको रौंदते, वृक्षोंको तोड़कर इधर-उधर बिखेरते और निश्चिन्त होकर अपने सिंहनादसे भूमण्डलको प्रतिध्वनित किया करते थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेगेन न्यपतद् भीमो निर्भयश्च पुनः पुनः
आस्फोटयन् क्ष्वेडयंश्च तलतालांश्च वादयन् ॥ १७ ॥
मूलम्
वेगेन न्यपतद् भीमो निर्भयश्च पुनः पुनः
आस्फोटयन् क्ष्वेडयंश्च तलतालांश्च वादयन् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे निर्भय होकर बार-बार वेगपूर्वक कूदते-फाँदते, ताल ठोंकते, सिंहनाद करते और तालियाँ बजाते थे॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चिरसम्बद्धदर्पस्तु भीमसेनो वने तदा
गजेन्द्राश्च महासत्त्वा मृगेन्द्राश्च महाबलाः ॥ १८ ॥
भीमसेनस्य नादेन व्यमुञ्जन्त गुहा भयात्
मूलम्
चिरसम्बद्धदर्पस्तु भीमसेनो वने तदा
गजेन्द्राश्च महासत्त्वा मृगेन्द्राश्च महाबलाः ॥ १८ ॥
भीमसेनस्य नादेन व्यमुञ्जन्त गुहा भयात्
अनुवाद (हिन्दी)
वनमें घूमते हुए भीमसेनका बलाभिमान दीर्घकालसे बहुत बढ़ा हुआ था। उस समय उनकी सिंह-गर्जनासे महान् बलशाली गजराज और मृगराज भी भयसे अपना स्थान छोड़कर भाग गये॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्वचित् प्रधावंस्तिष्ठंश्च क्वचिच्चोपविशंस्तथा ॥ १९ ॥
मृगप्रेप्सुर्महारौद्रे वने चरति निर्भयः
स तत्र मनुजव्याघ्रो वने वनचरोपमः ॥ २० ॥
पद्भ्यामभिसमापेदे भीमसेनो महाबलः
स प्रविष्टो महारण्ये नादान् नदति चाद्भुतान् ॥ २१ ॥
त्रासयन् सर्वभूतानि महासत्त्वपराक्रमः
मूलम्
क्वचित् प्रधावंस्तिष्ठंश्च क्वचिच्चोपविशंस्तथा ॥ १९ ॥
मृगप्रेप्सुर्महारौद्रे वने चरति निर्भयः
स तत्र मनुजव्याघ्रो वने वनचरोपमः ॥ २० ॥
पद्भ्यामभिसमापेदे भीमसेनो महाबलः
स प्रविष्टो महारण्ये नादान् नदति चाद्भुतान् ॥ २१ ॥
त्रासयन् सर्वभूतानि महासत्त्वपराक्रमः
अनुवाद (हिन्दी)
वे कहीं दौड़ते, कहीं खड़े होते और कहीं बैठते हुए शिकार पानेकी अभिलाषासे उस महाभयंकर वनमें निर्भय विचरते रहते थे। वे नरश्रेष्ठ महाबली भीम उस वनमें वनचर भीलोंकी भाँति पैदल ही चलते थे, उनका साहस और पराक्रम महान् था। वे गहन वनमें प्रवेश करके समस्त प्राणियोंको डराते हुए अद्भुत गर्जना करते थे॥१९—२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमस्य शब्देन भीताः सर्पा गुहाशयाः ॥ २२ ॥
अतिक्रान्तास्तु वेगेन जगामानुसृतः शनैः
ततोऽमरवरप्रख्यो भीमसेनो महाबलः ॥ २३ ॥
स ददर्श महाकायं भुजङ्गं लोमहर्षणम्
गिरिदुर्गे समापन्नं कायेनावृत्य कन्दरम् ॥ २४ ॥
मूलम्
ततो भीमस्य शब्देन भीताः सर्पा गुहाशयाः ॥ २२ ॥
अतिक्रान्तास्तु वेगेन जगामानुसृतः शनैः
ततोऽमरवरप्रख्यो भीमसेनो महाबलः ॥ २३ ॥
स ददर्श महाकायं भुजङ्गं लोमहर्षणम्
गिरिदुर्गे समापन्नं कायेनावृत्य कन्दरम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर एक दिनकी बात है, भीमसेनके सिंहनादसे भयभीत हो गुफाओंमें रहनेवाले सारे सर्प बड़े वेगसे भागने लगे और भीमसेन धीरे-धीरे उन्हींका पीछा करने लगे। श्रेष्ठ देवताओंके समान कान्तिमान् महाबली भीमसेनने आगे जाकर एक विशालकाय अजगर देखा, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। वह अपने शरीरसे एक (विशाल) कन्दराको घेरकर पर्वतके एक दुर्गम स्थानमें रहता था॥२२—२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पर्वताभोगवर्ष्माणमतिकायं महाबलम्
चित्राङ्गमङ्गजैश्चित्रैर्हरिद्रासदृशच्छविम् ॥ २५ ॥
गुहाकारेण वक्त्रेण चतुर्दंष्ट्रेण राजता
दीप्ताक्षेणातिताम्रेण लिहानं सृक्किणी मुहुः ॥ २६ ॥
त्रासनं सर्वभूतानां कालान्तकयमोपमम्
निःश्वासक्ष्वेडनादेन भर्त्सयन्तमिव स्थितम् ॥ २७ ॥
मूलम्
पर्वताभोगवर्ष्माणमतिकायं महाबलम्
चित्राङ्गमङ्गजैश्चित्रैर्हरिद्रासदृशच्छविम् ॥ २५ ॥
गुहाकारेण वक्त्रेण चतुर्दंष्ट्रेण राजता
दीप्ताक्षेणातिताम्रेण लिहानं सृक्किणी मुहुः ॥ २६ ॥
त्रासनं सर्वभूतानां कालान्तकयमोपमम्
निःश्वासक्ष्वेडनादेन भर्त्सयन्तमिव स्थितम् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसका शरीर पर्वतके समान विशाल था। वह महाकाय होनेके साथ ही अत्यन्त बलवान् भी था। उसका प्रत्येक अंग शारीरिक विचित्र चिह्नोंसे चिह्नित होनेके कारण विचित्र दिखायी देता था। उसका रंग हल्दीके समान पीला था। प्रकाशमान चारों दाढ़ोंसे युक्त उसका मुख गुफा-सा जान पड़ता था। उसकी आँखें अत्यन्त लाल और आग उगलती-सी प्रतीत होती थीं। वह बार-बार अपने दोनों गलफरोंको चाट रहा था। कालान्तक तथा यमके समान समस्त प्राणियोंको भयभीत करनेवाला वह भयानक भुजंग अपने उच्छ्वास और सिंहनादसे दूसरोंकी भर्त्सना करता-सा प्रतीत होता था॥२५—२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स भीमं सहसाभ्येत्य पृदाकुः कुपितो भृशम्
जग्राहाजगरो ग्राहो भुजयोरुभयोर्बलात् ॥ २८ ॥
मूलम्
स भीमं सहसाभ्येत्य पृदाकुः कुपितो भृशम्
जग्राहाजगरो ग्राहो भुजयोरुभयोर्बलात् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह अजगर अत्यन्त क्रोधमें भरा हुआ था। (मनुष्योंको) जकड़नेवाले उस सर्पने सहसा भीमसेनके निकट पहुँचकर उनकी दोनों बाँहोंको बलपूर्वक जकड़ लिया॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन संस्पृष्टगात्रस्य भीमसेनस्य वै तदा
संज्ञा मुमोह सहसा वरदानेन तस्य हि ॥ २९ ॥
मूलम्
तेन संस्पृष्टगात्रस्य भीमसेनस्य वै तदा
संज्ञा मुमोह सहसा वरदानेन तस्य हि ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय भीमसेनके शरीरका उससे स्पर्श होते ही वे भीमसेन सहसा अचेत हो गये। ऐसा इसलिये हुआ कि उस सर्पको वैसा ही वरदान मिला था॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दशनागसहस्राणि धारयन्ति हि यद् बलम्
तद् बलं भीमसेनस्य भुजयोरसमं परैः ॥ ३० ॥
मूलम्
दशनागसहस्राणि धारयन्ति हि यद् बलम्
तद् बलं भीमसेनस्य भुजयोरसमं परैः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दस हजार गजराज जितना बल धारण करते हैं, उतना ही बल भीमसेनकी भुजाओंमें विद्यमान था। उनके बलकी और कहीं समता नहीं थी॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेजस्वी तथा तेन भुजगेन वशीकृतः
विस्फुरन् शनकैर्भीमो न शशाक विचेष्टितुम् ॥ ३१ ॥
मूलम्
स तेजस्वी तथा तेन भुजगेन वशीकृतः
विस्फुरन् शनकैर्भीमो न शशाक विचेष्टितुम् ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसे तेजस्वी भीम भी उस अजगरके वशमें पड़ गये। वे धीरे-धीरे छटपटाते रहे, परंतु छूटनेकी अधिक चेष्टा करनेमें सफल न हो सके॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागायुतसमप्राणः सिंहस्कन्धो महाभुजः
गृहीतो व्यजहात् सत्त्वं वरदानविमोहितः ॥ ३२ ॥
मूलम्
नागायुतसमप्राणः सिंहस्कन्धो महाभुजः
गृहीतो व्यजहात् सत्त्वं वरदानविमोहितः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी प्राणशक्ति दस सहस्र हाथियोंके समान थी। दोनों कंधे सिंहके कंधोंके समान थे और भुजाएँ बहुत बड़ी थीं। फिर भी सर्पको मिले हुए वरदानके प्रभावसे मोहित हो जानेके कारण सर्पकी पकड़में आकर वे अपना साहस खो बैठे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स हि प्रयत्नमकरोत् तीव्रमात्मविमोक्षणे
न चैनमशकद् वीरः कथंचित् प्रतिबाधितुम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
स हि प्रयत्नमकरोत् तीव्रमात्मविमोक्षणे
न चैनमशकद् वीरः कथंचित् प्रतिबाधितुम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अपनेको छुड़ानेके लिये घोर प्रयत्न किया, किंतु वीरवर भीमसेन किसी प्रकार भी उस सर्पको पराजित करनेमें सफलता नहीं प्राप्त कर सके॥३३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि आजगरपर्वणि अजगरग्रहणे अष्टसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत आजगरपर्वमें भीमसेनका अजगरद्वारा ग्रहणसम्बन्धी एक सौ अठहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७८॥