१५२ भीमसेनेन सौगन्धिकावनगमनम्

भागसूचना

द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेनका सौगन्धिक वनमें पहुँचना

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

गते तस्मिन् हरिवरे भीमोऽपि बलिनां वरः।
तेन मार्गेण विपुलं व्यचरद् गन्धमादनम् ॥ १ ॥

मूलम्

गते तस्मिन् हरिवरे भीमोऽपि बलिनां वरः।
तेन मार्गेण विपुलं व्यचरद् गन्धमादनम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! उन कपिप्रवर हनुमान्‌जीके चले जानेपर बलवानोंमें श्रेष्ठ भीमसेन भी उनके बताये हुए मार्गसे विशाल गन्धमादन पर्वतपर विचरने लगे॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुस्मरन् वपुस्तस्य श्रियं चाप्रतिमां भुवि।
माहात्म्यमनुभावं च स्मरन् दाशरथेर्ययौ ॥ २ ॥

मूलम्

अनुस्मरन् वपुस्तस्य श्रियं चाप्रतिमां भुवि।
माहात्म्यमनुभावं च स्मरन् दाशरथेर्ययौ ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मार्गमें वे हनुमान्‌जीके उस अद्भुत विशाल विग्रह और अनुपम शोभाका तथा दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजीके अलौकिक माहात्म्य एवं प्रभावका बारंबार स्मरण करते जाते थे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तानि रमणीयानि वनान्युपवनानि च।
विलोकयामास तदा सौगन्धिकवनेप्सया ॥ ३ ॥
फुल्लद्रुमविचित्राणि सरांसि सरितस्तथा ।
नानाकुसुमचित्राणि पुष्पितानि वनानि च ॥ ४ ॥

मूलम्

स तानि रमणीयानि वनान्युपवनानि च।
विलोकयामास तदा सौगन्धिकवनेप्सया ॥ ३ ॥
फुल्लद्रुमविचित्राणि सरांसि सरितस्तथा ।
नानाकुसुमचित्राणि पुष्पितानि वनानि च ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सौगन्धिक वनको प्राप्त करनेकी इच्छासे उन्होंने उस समय वहाँके सभी रमणीय वनों और उपवनोंका अवलोकन किया। विकसित वृक्षोंके कारण विचित्र शोभा धारण करनेवाले कितने ही सरोवर और सरिताओंपर दृष्टिपात किया तथा अनेक प्रकारके कुसुमोंसे अद्भुत प्रतीत होनेवाले खिले फूलोंसे युक्त काननोंका भी निरीक्षण किया॥३-४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मत्तवारणयूथानि पङ्कक्लिन्नानि भारत ।
वर्षतामिव मेघानां वृन्दानि ददृशे तदा ॥ ५ ॥

मूलम्

मत्तवारणयूथानि पङ्कक्लिन्नानि भारत ।
वर्षतामिव मेघानां वृन्दानि ददृशे तदा ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस समय बहते हुए मदके पंकसे भीगे मतवाले गजराजोंके अनेकानेक यूथ वर्षा करनेवाले मेघोंके समूहके समान दिखलायी देते थे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हरिणैश्चपलापाङ्गैर्हरिणीसहितैर्वनम् ।
सशष्पकवलैः श्रीमान् पथि दृष्ट्वा द्रुतं ययौ ॥ ६ ॥

मूलम्

हरिणैश्चपलापाङ्गैर्हरिणीसहितैर्वनम् ।
सशष्पकवलैः श्रीमान् पथि दृष्ट्वा द्रुतं ययौ ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शोभाशाली भीमसेन मुँहमें हरी घासका कौर लिये हुए चंचल नेत्रोंवाले हरिणों और हरिणियोंसे युक्त उस वनकी शोभा देखते हुए बड़े वेगसे चले जा रहे थे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महिषैश्च वराहैश्च शार्दूलैश्च निषेवितम्।
व्यपेतभीर्गिरिं शौर्याद् भीमसेनो व्यगाहत ॥ ७ ॥

मूलम्

महिषैश्च वराहैश्च शार्दूलैश्च निषेवितम्।
व्यपेतभीर्गिरिं शौर्याद् भीमसेनो व्यगाहत ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने अपनी अद्भुत शूरतासे निर्भय होकर भैंसों, वराहों और सिंहोंसे सेवित गहन वनमें प्रवेश किया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुसुमानन्तगन्धैश्च ताम्रपल्लवकोमलैः ।
याच्यमान इवारण्ये द्रुमैर्मारुतकम्पितैः ॥ ८ ॥

मूलम्

कुसुमानन्तगन्धैश्च ताम्रपल्लवकोमलैः ।
याच्यमान इवारण्ये द्रुमैर्मारुतकम्पितैः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फूलोंकी अनन्त सुगन्धसे वासित तथा लाल-लाल पल्लवोंके कारण कोमल प्रतीत होनेवाले वृक्ष हवाके वेगसे हिल-हिलकर मानो उस वनमें भीमसेनसे याचना कर रहे थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतपद्माञ्जलिपुटा मत्तषट्‌पदसेविताः ।
प्रियतीर्थवना मार्गे पद्मिनीः समतिक्रमन् ॥ ९ ॥

मूलम्

कृतपद्माञ्जलिपुटा मत्तषट्‌पदसेविताः ।
प्रियतीर्थवना मार्गे पद्मिनीः समतिक्रमन् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मार्गमें उन्हें अनेक ऐसी पुष्करिणियोंको लाँघना पड़ा, जिनके घाट और वन देखनेमें बहुत प्रिय लगते थे। मतवाले भ्रमर उनका सेवन करते थे तथा वे सम्पुटित कमलकोषोंसे अलंकृत हो ऐसी जान पड़ती थीं, मानो उन्होंने कमलोंकी अंजलि बाँध रखी थी॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मज्जमानमनोदृष्टिः फुल्लेषु गिरिसानुषु ।
द्रौपदीवाक्यपाथेयो भीमः शीघ्रतरं ययौ ॥ १० ॥

मूलम्

मज्जमानमनोदृष्टिः फुल्लेषु गिरिसानुषु ।
द्रौपदीवाक्यपाथेयो भीमः शीघ्रतरं ययौ ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनका मन और उनके नेत्र कुसुमोंसे अलंकृत पर्वतीय शिखरोंपर लगे थे। द्रौपदीका अनुरोधपूर्ण वचन ही उनके लिये पाथेय था और इस अवस्थामें वे अत्यन्त शीघ्रतापूर्वक चले जा रहे थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परिवृत्तेऽहनि ततः प्रकीर्णहरिणे वने।
काञ्चनैर्विमलैः पद्‌मैर्ददर्श विपुलां नदीम् ॥ ११ ॥

मूलम्

परिवृत्तेऽहनि ततः प्रकीर्णहरिणे वने।
काञ्चनैर्विमलैः पद्‌मैर्ददर्श विपुलां नदीम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दिन बीतते-बीतते भीमसेनने एक वनमें जहाँ चारों ओर बहुत-से हरिण विचर रहे थे, सुन्दर सुवर्णमय कमलोंसे सुशोभित विशाल नदी देखी॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हंसकारण्डवयुतां चक्रवाकोपशोभिताम् ।
रचितामिव तस्याद्रेर्मालां विमलपङ्कजाम् ॥ १२ ॥

मूलम्

हंसकारण्डवयुतां चक्रवाकोपशोभिताम् ।
रचितामिव तस्याद्रेर्मालां विमलपङ्कजाम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसमें हंस और कारण्डव आदि जलपक्षी निवास करते थे। चक्रवाक उसकी शोभा बढ़ाते थे। वह नदी क्या थी उस पर्वतके लिये स्वच्छ सुन्दर कमलोंकी माला-सी रची गयी थी॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यां नद्यां महासत्त्वः सौगन्धिकवनं महत्।
अपश्यत् प्रीतिजननं बालार्कसदृशद्युति ॥ १३ ॥

मूलम्

तस्यां नद्यां महासत्त्वः सौगन्धिकवनं महत्।
अपश्यत् प्रीतिजननं बालार्कसदृशद्युति ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महान् धैर्य और उत्साहसे सम्पन्न वीरवर भीमसेनने उसी नदीमें विशाल सौगन्धिक वन देखा, जो उनकी प्रसन्नताको बढ़ानेवाला था। उस वनमें प्रभातकालीन सूर्यकी भाँति प्रभा फैल रही थी॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् दृष्ट्वा लब्धकामः स मनसा पाण्डुनन्दनः।
वनवासपरिक्लिष्टां जगाम मनसा प्रियाम् ॥ १४ ॥

मूलम्

तद् दृष्ट्वा लब्धकामः स मनसा पाण्डुनन्दनः।
वनवासपरिक्लिष्टां जगाम मनसा प्रियाम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस वनको देखकर पाण्डुनन्दन भीमने मन-ही-मन यह अनुभव किया कि मेरा मनोरथ पूर्ण हो गया। फिर उन्हें वनवासके क्लेशोंसे पीड़ित अपनी प्रियतमा द्रौपदीकी याद आ गयी॥१४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि लोमशतीर्थयात्रायां सौगन्धिकाहरणे द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १५२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्वमें लोमशतीर्थयात्राके प्रसंगमें सौगन्धिक कमलको लानेसे सम्बन्ध रखनेवाला एक सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५२॥