०५५ नलस्य देवदौत्यम्

भागसूचना

पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

नलका दूत बनकर राजमहलमें जाना और दमयन्तीको देवताओंका संदेश सुनाना

मूलम् (वचनम्)

बृहदश्व उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेभ्यः प्रतिज्ञाय नलः करिष्य इति भारत।
अथैतान् परिपप्रच्छ कृताञ्जलिरुपस्थितः ॥ १ ॥
के वै भवन्तः कश्चासौ यस्याहं दूत ईप्सितः।
किं च तद् वो मया कार्यं कथयध्वं यथातथम्॥२॥

मूलम्

तेभ्यः प्रतिज्ञाय नलः करिष्य इति भारत।
अथैतान् परिपप्रच्छ कृताञ्जलिरुपस्थितः ॥ १ ॥
के वै भवन्तः कश्चासौ यस्याहं दूत ईप्सितः।
किं च तद् वो मया कार्यं कथयध्वं यथातथम्॥२॥

अनुवाद (हिन्दी)

बृहदश्व मुनि कहते हैं— भारत! देवताओंसे उनकी सहायता करनेकी प्रतिज्ञा करके राजा नलने हाथ जोड़ पास जाकर उनसे पूछा—‘आपलोग कौन हैं? और वह कौन व्यक्ति है, जिसके पास जानेके लिये आपने मुझे दूत बनानेकी इच्छा की है तथा आपलोगोंका वह कौन-सा कार्य है, जो मेरे द्वारा सम्पन्न होनेयोग्य है, यह ठीक-ठीक बताइये’॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तो नैषधेन मघवानभ्यभाषत ।
अमरान् वै निबोधास्मान् दमयन्त्यर्थमागतान् ॥ ३ ॥

मूलम्

एवमुक्तो नैषधेन मघवानभ्यभाषत ।
अमरान् वै निबोधास्मान् दमयन्त्यर्थमागतान् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

निषधराज नलके इस प्रकार पूछनेपर इन्द्रने कहा—‘भूपाल! तुम हमें देवता समझो, हम दमयन्तीको प्राप्त करनेके लिये यहाँ आये हैं’॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहमिन्द्रोऽयमग्निश्च तथैवायमपां पतिः ।
शरीरान्तकरो नॄणां यमोऽयमपि पार्थिव ॥ ४ ॥
त्वं वै समागतानस्मान् दमयन्त्यै निवेदय।
लोकपाला महेन्द्राद्याः समायान्ति दिदृक्षवः ॥ ५ ॥

मूलम्

अहमिन्द्रोऽयमग्निश्च तथैवायमपां पतिः ।
शरीरान्तकरो नॄणां यमोऽयमपि पार्थिव ॥ ४ ॥
त्वं वै समागतानस्मान् दमयन्त्यै निवेदय।
लोकपाला महेन्द्राद्याः समायान्ति दिदृक्षवः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं इन्द्र हूँ, ये अग्निदेव हैं, ये जलके स्वामी वरुण और ये प्राणियोंके शरीरका नाश करनेवाले साक्षात् यमराज हैं। आप दमयन्तीके पास जाकर उसे हमारे आगमनकी सूचना दे दीजिये और कहिये—महेन्द्र आदि लोकपाल तुम्हें देखनेके लिये आ रहे हैं॥४-५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राप्तुमिच्छन्ति देवास्त्वां शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः।
तेषामन्यतमं देवं पतित्वे वरयस्व ह ॥ ६ ॥

मूलम्

प्राप्तुमिच्छन्ति देवास्त्वां शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः।
तेषामन्यतमं देवं पतित्वे वरयस्व ह ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘इन्द्र, अग्नि, वरुण और यम—ये देवतालोग तुम्हें प्राप्त करना चाहते हैं। तुम उनमेंसे किसी एक देवताको पतिरूपमें चुन लो’॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तः स शक्रेण नलः प्राञ्जलिरब्रवीत्।
एकार्थं समुपेतं मां न प्रेषयितुमर्हथ ॥ ७ ॥

मूलम्

एवमुक्तः स शक्रेण नलः प्राञ्जलिरब्रवीत्।
एकार्थं समुपेतं मां न प्रेषयितुमर्हथ ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इन्द्रके ऐसा कहनेपर नल हाथ जोड़कर बोले—‘देवताओ! मेरा भी एकमात्र यही प्रयोजन है, जो आपलोगोंका है; अतः एक ही प्रयोजनके लिये आये हुए मुझे दूत बनाकर न भेजिये’॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं तु जातसंकल्पः स्त्रियमुत्सृजते पुमान्।
परार्थमीदृशं वक्तुं तत् क्षमन्तु महेश्वराः ॥ ८ ॥

मूलम्

कथं तु जातसंकल्पः स्त्रियमुत्सृजते पुमान्।
परार्थमीदृशं वक्तुं तत् क्षमन्तु महेश्वराः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देवेश्वरो! जिसके मनमें किसी स्त्रीको प्राप्त करनेका संकल्प हो गया है, वह पुरुष उसी स्त्रीको दूसरेके लिये कैसे छोड़ सकता है? अतः आपलोग ऐसी बात कहनेके लिये मुझे क्षमा करें’॥८॥

मूलम् (वचनम्)

देवा ऊचुः

विश्वास-प्रस्तुतिः

करिष्य इति संश्रुत्य पूर्वमस्मासु नैषध।
न करिष्यसि कस्मात् त्वं व्रज नैषध मा चिरम्॥९॥

मूलम्

करिष्य इति संश्रुत्य पूर्वमस्मासु नैषध।
न करिष्यसि कस्मात् त्वं व्रज नैषध मा चिरम्॥९॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंने कहा— निषधनरेश! तुम पहले हमलोगोंसे हमारा कार्य सिद्ध करनेके लिये प्रतिज्ञा कर चुके हो, फिर तुम उस प्रतिज्ञाका पालन कैसे नहीं करोगे? इसलिये निषधराज! तुम शीघ्र जाओ; देर न करो॥९॥

मूलम् (वचनम्)

बृहदश्व उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तः स देवैस्तैर्नैषधः पुनरब्रवीत्।
सुरक्षितानि वेश्मानि प्रवेष्टुं कथमुत्सहे ॥ १० ॥

मूलम्

एवमुक्तः स देवैस्तैर्नैषधः पुनरब्रवीत्।
सुरक्षितानि वेश्मानि प्रवेष्टुं कथमुत्सहे ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बृहदश्व मुनि कहते हैं— राजन्! उन देवताओंके ऐसा कहनेपर निषधनरेशने पुनः उनसे पूछा—‘विदर्भराजके सभी भवन (पहरेदारोंसे) सुरक्षित हैं। मैं उनमें कैसे प्रवेश कर सकता हूँ?’॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रवेक्ष्यसीति तं शक्रः पुनरेवाभ्यभाषत।
जगाम स तथेत्युक्त्वा दमयन्त्या निवेशनम् ॥ ११ ॥

मूलम्

प्रवेक्ष्यसीति तं शक्रः पुनरेवाभ्यभाषत।
जगाम स तथेत्युक्त्वा दमयन्त्या निवेशनम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब इन्द्रने पुनः उत्तर दिया—‘तुम वहाँ प्रवेश कर सकोगे।’ तत्पश्चात् राजा नल ‘तथास्तु’ कहकर दमयन्तीके महलमें गये॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ददर्श तत्र वैदर्भीं सखीगणसमावृताम्।
देदीप्यमानां वपुषा श्रिया च वरवर्णिनीम् ॥ १२ ॥

मूलम्

ददर्श तत्र वैदर्भीं सखीगणसमावृताम्।
देदीप्यमानां वपुषा श्रिया च वरवर्णिनीम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ उन्होंने देखा, सखियोंसे घिरी हुई परम सुन्दरी विदर्भराजकुमारी दमयन्ती अपने सुन्दर शरीर और दिव्य कान्तिसे अत्यन्त उद्भासित हो रही है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अतीवसुकुमाराङ्गीं तनुमध्यां सुलोचनाम् ।
आक्षिपन्तीमिव प्रभां शशिनः स्वेन तेजसा ॥ १३ ॥

मूलम्

अतीवसुकुमाराङ्गीं तनुमध्यां सुलोचनाम् ।
आक्षिपन्तीमिव प्रभां शशिनः स्वेन तेजसा ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके अंग परम सुकुमार हैं, कटिके ऊपरका भाग अत्यन्त पतला है और नेत्र बड़े सुन्दर हैं एवं वह अपने तेजसे चन्द्रमाकी प्रभाको भी तिरस्कृत-सी कर रही है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य दृष्ट्वैव ववृधे कामस्तां चारुहासिनीम्।
सत्यं चिकीर्षमाणस्तु धारयामास हृच्छयम् ॥ १४ ॥

मूलम्

तस्य दृष्ट्वैव ववृधे कामस्तां चारुहासिनीम्।
सत्यं चिकीर्षमाणस्तु धारयामास हृच्छयम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस मनोहर मुसकानवाली राजकुमारीको देखते ही नलके हृदयमें कामाग्नि प्रज्वलित हो उठी; तथापि अपनी प्रतिज्ञाको सत्य करनेकी इच्छासे उन्होंने उस कामवेदनाको मनमें ही रोक लिया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्ता नैषधं दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः परमाङ्गनाः।
आसनेभ्यः समुत्पेतुस्तेजसा तस्य धर्षिताः ॥ १५ ॥

मूलम्

ततस्ता नैषधं दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः परमाङ्गनाः।
आसनेभ्यः समुत्पेतुस्तेजसा तस्य धर्षिताः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

निषधराजको वहाँ आये देख अन्तःपुरकी सारी सुन्दरी स्त्रियाँ चकित हो गयीं और उनके तेजसे तिरस्कृत हो अपने आसनोंसे उठकर खड़ी हो गयीं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रशशंसुश्च सुप्रीता नलं ता विस्मयान्विताः।
न चैनमभ्यभाषन्त मनोभिस्त्वभ्यपूजयन् ॥ १६ ॥

मूलम्

प्रशशंसुश्च सुप्रीता नलं ता विस्मयान्विताः।
न चैनमभ्यभाषन्त मनोभिस्त्वभ्यपूजयन् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अत्यन्त प्रसन्न और आश्चर्यचकित होकर उन सबने राजा नलके सौन्दर्यकी प्रशंसा की। उन्होंने उनसे वार्तालाप नहीं किया; परंतु मन-ही-मन उनका बड़ा आदर किया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहो रूपमहो कान्तिरहो धैर्यं महात्मनः।
कोऽयं देवोऽथवा यक्षो गन्धर्वो वा भविष्यति ॥ १७ ॥

मूलम्

अहो रूपमहो कान्तिरहो धैर्यं महात्मनः।
कोऽयं देवोऽथवा यक्षो गन्धर्वो वा भविष्यति ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे सोचने लगीं—‘अहो! इनका रूप अद्भुत है, कान्ति बड़ी मनोहर है तथा इन महात्माका धैर्य भी अनूठा है। न जाने ये हैं कौन? सम्भव है, देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व हों’॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तास्तं शक्नुवन्ति स्म व्याहर्तुमपि किंचन।
तेजसा धर्षितास्तस्य लज्जावत्यो वराङ्गना ॥ १८ ॥

मूलम्

न तास्तं शक्नुवन्ति स्म व्याहर्तुमपि किंचन।
तेजसा धर्षितास्तस्य लज्जावत्यो वराङ्गना ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नलके तेजसे प्रतिहत हुई वे लजीली सुन्दरियाँ उनसे कुछ बोल भी न सकीं॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं स्मयमानं तु स्मितपूर्वाभिभाषिणी।
दमयन्ती नलं वीरमभ्यभाषत विस्मिता ॥ १९ ॥

मूलम्

अथैनं स्मयमानं तु स्मितपूर्वाभिभाषिणी।
दमयन्ती नलं वीरमभ्यभाषत विस्मिता ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब मुसकराकर बातचीत करनेवाली दमयन्तीने विस्मित होकर मुसकराते हुए वीर नलसे इस प्रकार पूछा—॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कस्त्वं सर्वानवद्याङ्ग मम हृच्छयवर्धन।
प्राप्तोऽस्यमरवद् वीर ज्ञातुमिच्छामि तेऽनघ ॥ २० ॥
कथमागमनं चेह कथं चासि न लक्षितः।
सुरक्षितं हि मे वेश्म राजा चैवोग्रशासनः ॥ २१ ॥
एवमुक्तस्तु वैदर्भ्या नलस्तां प्रत्युवाच ह।

मूलम्

कस्त्वं सर्वानवद्याङ्ग मम हृच्छयवर्धन।
प्राप्तोऽस्यमरवद् वीर ज्ञातुमिच्छामि तेऽनघ ॥ २० ॥
कथमागमनं चेह कथं चासि न लक्षितः।
सुरक्षितं हि मे वेश्म राजा चैवोग्रशासनः ॥ २१ ॥
एवमुक्तस्तु वैदर्भ्या नलस्तां प्रत्युवाच ह।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आप कौन हैं? आपके सम्पूर्ण अंग निर्दोष एवं परम सुन्दर हैं। आप मेरे हृदयकी कामाग्निको बढ़ा रहे हैं। निष्पाप वीर! आप देवताओंके समान यहाँ आ पहुँचे हैं। मैं आपका परिचय पाना चाहती हूँ। आपका इस रनिवासमें आना कैसे सम्भव हुआ? आपको किसीने देखा कैसे नहीं? मेरा यह महल अत्यन्त सुरक्षित है और यहाँके राजाका शासन बड़ा कठोर है—वे अपराधियोंको बड़ा कठोर दण्ड देते हैं।’ विदर्भराजकुमारीके ऐसा पूछनेपर नलने इस प्रकार उत्तर दिया॥२०-२१॥

मूलम् (वचनम्)

नल उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नलं मां विद्धि कल्याणि देवदूतमिहागतम् ॥ २२ ॥
देवास्त्वां प्राप्तुमिच्छन्ति शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः।
तेषामन्यतमं देवं पतिं वरय शोभने ॥ २३ ॥

मूलम्

नलं मां विद्धि कल्याणि देवदूतमिहागतम् ॥ २२ ॥
देवास्त्वां प्राप्तुमिच्छन्ति शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः।
तेषामन्यतमं देवं पतिं वरय शोभने ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नलने कहा— कल्याणि! तुम मुझे नल समझो। मैं देवताओंका दूत बनकर यहाँ आया हूँ। इन्द्र, अग्नि, वरुण और यम देवता तुम्हें प्राप्त करना चाहते हैं। शोभने! तुम उनमेंसे किसी एकको अपना पति चुन लो॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषामेव प्रभावेण प्रविष्टोऽहमलक्षितः ।
प्रविशन्तं न मां कश्चिदपश्यन्नाप्यवारयत् ॥ २४ ॥

मूलम्

तेषामेव प्रभावेण प्रविष्टोऽहमलक्षितः ।
प्रविशन्तं न मां कश्चिदपश्यन्नाप्यवारयत् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हीं देवताओंके प्रभावसे मैं इस महलके भीतर आया हूँ और मुझे कोई देख न सका है। भीतर प्रवेश करते समय न तो किसीने मुझे देखा है और न रोका ही है॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतदर्थमहं भद्रे प्रेषितः सुरसत्तमैः।
एतच्छ्रुत्वा शुभे बुद्धिं प्रकुरुष्व यथेच्छसि ॥ २५ ॥

मूलम्

एतदर्थमहं भद्रे प्रेषितः सुरसत्तमैः।
एतच्छ्रुत्वा शुभे बुद्धिं प्रकुरुष्व यथेच्छसि ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भद्रे! इसीलिये श्रेष्ठ देवताओंने मुझे यहाँ भेजा है। शुभे! इसे सुनकर तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वैसा निश्चय करो॥२५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि नलस्य देवदौत्ये पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्वमें नलके देवदूत बनकर दमयन्तीके पास जानेसे सम्बन्ध रखनेवाला पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५५॥