०१६ साम्बादियुद्धम्

श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना

षोडशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

शाल्वकी विशाल सेनाके आक्रमणका यादवसेनाद्वारा प्रतिरोध, साम्बद्वारा क्षेमवृद्धिकी पराजय, वेगवान्‌का वध तथा चारुदेष्णद्वारा विविन्ध्य दैत्यका वध एवं प्रद्युम्नद्वारा सेनाको आश्वासन

मूलम् (वचनम्)

वासुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तां तूपयातो राजेन्द्र शाल्वः सौभपतिस्तदा।
प्रभूतनरनागेन बलेनोपविवेश ह ॥ १ ॥

मूलम्

तां तूपयातो राजेन्द्र शाल्वः सौभपतिस्तदा।
प्रभूतनरनागेन बलेनोपविवेश ह ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं— राजेन्द्र! सौभ विमानका स्वामी राजा शाल्व अपनी बहुत बड़ी सेनाके साथ, जिसमें हाथीसवारों तथा पैदलोंकी संख्या अधिक थी, द्वारकापुरीपर चढ़ आया और उसके निकट आकर ठहरा॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समे निविष्टा सा सेना प्रभूतसलिलाशये।
चतुरङ्गबलोपेता शाल्वराजाभिपालिता ॥ २ ॥

मूलम्

समे निविष्टा सा सेना प्रभूतसलिलाशये।
चतुरङ्गबलोपेता शाल्वराजाभिपालिता ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ अधिक जलसे भरा हुआ जलाशय था, वहीं समतल भूमिमें उसकी सेनाने पड़ाव डाला। उसमें हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल चारों प्रकारके सैनिक थे। स्वयं राजा शाल्व उसका संरक्षक था॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वर्जयित्वा श्मशानानि देवताऽऽयतनानि च।
वल्मीकांश्चैत्यवृक्षांश्च तन्निविष्टमभूद् बलम् ॥ ३ ॥

मूलम्

वर्जयित्वा श्मशानानि देवताऽऽयतनानि च।
वल्मीकांश्चैत्यवृक्षांश्च तन्निविष्टमभूद् बलम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्मशानभूमि, देवमन्दिर, बाँबी और चैत्यवृक्षको छोड़कर सभी स्थानोंमें उसकी सेना फैलकर ठहरी हुई थी॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनीकानां विभागेन पन्थानः संवृताऽभवन्।
प्रवणाय च नैवासञ्छाल्वस्य शिविरे नृप ॥ ४ ॥

मूलम्

अनीकानां विभागेन पन्थानः संवृताऽभवन्।
प्रवणाय च नैवासञ्छाल्वस्य शिविरे नृप ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सेनाओंके विभागपूर्वक पड़ाव डालनेसे सारे रास्ते घिर गये थे। राजन्! शाल्वके शिविरमें प्रवेश करनेका कोई मार्ग नहीं रह गया था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वायुधसमोपेतं सर्वशस्त्रविशारदम् ।
रथनागाश्वकलिलं पदातिध्वजसंकुलम् ॥ ५ ॥
तुष्टपुष्टबलोपेतं वीरलक्षणलक्षितम् ।
विचित्रध्वजसन्नाहं विचित्ररथकार्मुकम् ॥ ६ ॥
संनिवेश्य च कौरव्य द्वारकायां नरर्षभ।
अभिसारयामास तदा वेगेन पतगेन्द्रवत् ॥ ७ ॥

मूलम्

सर्वायुधसमोपेतं सर्वशस्त्रविशारदम् ।
रथनागाश्वकलिलं पदातिध्वजसंकुलम् ॥ ५ ॥
तुष्टपुष्टबलोपेतं वीरलक्षणलक्षितम् ।
विचित्रध्वजसन्नाहं विचित्ररथकार्मुकम् ॥ ६ ॥
संनिवेश्य च कौरव्य द्वारकायां नरर्षभ।
अभिसारयामास तदा वेगेन पतगेन्द्रवत् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! राजा शाल्वकी वह सेना सब प्रकारके आयुधोंसे सम्पन्न, सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंके संचालनमें निपुण, रथ, हाथी और घोड़ोंसे भरी हुई तथा पैदल सिपाहियों और ध्वजा-पताकाओंसे व्याप्त थी। उसका प्रत्येक सैनिक हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान् था। सबमें वीरोचित लक्षण दिखायी देते थे। उस सेनाके सिपाही विचित्र ध्वजा तथा कवच धारण करते थे। उनके रथ और धनुष भी विचित्र थे। कुरुनन्दन! द्वारकाके समीप उस सेनाको ठहराकर राजा शाल्वने उसे वेगपूर्वक द्वारकाकी ओर बढ़ाया; मानो पक्षिराज गरुड़ अपने लक्ष्यकी ओर उड़े जा रहे हों॥५—७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदापतन्तं संदृश्य बलं शाल्वपतेस्तदा।
निर्याय योधयामासुः कुमारा वृष्णिनन्दनाः ॥ ८ ॥

मूलम्

तदापतन्तं संदृश्य बलं शाल्वपतेस्तदा।
निर्याय योधयामासुः कुमारा वृष्णिनन्दनाः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शाल्वराजकी उस सेनाको आती देख उस समय वृष्णिकुलको आनन्दित करनेवाले कुमार नगरसे बाहर निकलकर युद्ध करने लगे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असहन्तोऽभियानं तच्छाल्वराजस्य कौरव ।
चारुदेष्णश्च साम्बश्च प्रद्युम्नश्च महारथः ॥ ९ ॥
ते रथैर्दंशिताः सर्वे विचित्राभरणध्वजाः।
संसक्ताः शाल्वराजस्य बहुभिर्योधपुङ्गवैः ॥ १० ॥

मूलम्

असहन्तोऽभियानं तच्छाल्वराजस्य कौरव ।
चारुदेष्णश्च साम्बश्च प्रद्युम्नश्च महारथः ॥ ९ ॥
ते रथैर्दंशिताः सर्वे विचित्राभरणध्वजाः।
संसक्ताः शाल्वराजस्य बहुभिर्योधपुङ्गवैः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुनन्दन! शाल्वराजके उस आक्रमणको वे सहन न कर सके। चारुदेष्ण, साम्ब और महारथी प्रद्युम्न—ये सब कवच, विचित्र आभूषण तथा ध्वजा धारण करके रथोंपर बैठकर शाल्वराजके अनेक श्रेष्ठ योद्धाओंके साथ भिड़ गये॥९-१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गृहीत्वा कार्मुकं साम्बः शाल्वस्य सचिवं रणे।
योधयामास संहृष्टः क्षेमवृद्धिं चमूपतिम् ॥ ११ ॥

मूलम्

गृहीत्वा कार्मुकं साम्बः शाल्वस्य सचिवं रणे।
योधयामास संहृष्टः क्षेमवृद्धिं चमूपतिम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हर्षमें भरे हुए साम्बने धनुष धारण करके शाल्वके मन्त्री तथा सेनापति क्षेमवृद्धिके साथ युद्ध किया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य बाणमयं वर्षं जाम्बवत्याः सुतो महत्।
मुमोच भरतश्रेष्ठ यथा वर्षं सहस्रदृक् ॥ १२ ॥
तद् बाणवर्षं तुमुलं विषेहे स चमूपतिः।
क्षेमवृद्धिर्महाराज हिमवानिव निश्चलः ॥ १३ ॥

मूलम्

तस्य बाणमयं वर्षं जाम्बवत्याः सुतो महत्।
मुमोच भरतश्रेष्ठ यथा वर्षं सहस्रदृक् ॥ १२ ॥
तद् बाणवर्षं तुमुलं विषेहे स चमूपतिः।
क्षेमवृद्धिर्महाराज हिमवानिव निश्चलः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! जाम्बवतीकुमारने उसके ऊपर भारी बाणवर्षा की, मानो इन्द्र जलकी वर्षा कर रहे हों। महाराज! सेनापति क्षेमवृद्धिने साम्बकी उस भयंकर बाणवर्षाको हिमालयकी भाँति अविचल रहकर सहन किया॥१२-१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः साम्बाय राजेन्द्र क्षेमवृद्धिरपि स्वयम्।
मुमोच मायाविहितं शरजालं महत्तरम् ॥ १४ ॥

मूलम्

ततः साम्बाय राजेन्द्र क्षेमवृद्धिरपि स्वयम्।
मुमोच मायाविहितं शरजालं महत्तरम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! तदनन्तर क्षेमवृद्धिने स्वयं भी साम्बके ऊपर मायानिर्मित बाणोंकी भारी वर्षा प्रारम्भ की॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो मायामयं जालं माययैव विदीर्य सः।
साम्बः शरसहस्रेण रथमस्याभ्यवर्षत ॥ १५ ॥

मूलम्

ततो मायामयं जालं माययैव विदीर्य सः।
साम्बः शरसहस्रेण रथमस्याभ्यवर्षत ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

साम्बने उस मायामय बाणजालको मायासे ही छिन्न-भिन्न करके क्षेमवृद्धिके रथपर सहस्रों बाणोंकी झड़ी लगा दी॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः स विद्धः साम्बेन क्षेमवृद्धिश्चमूपतिः।
अपायाज्जवनैरश्वैः साम्बबाणप्रपीडितः ॥ १६ ॥

मूलम्

ततः स विद्धः साम्बेन क्षेमवृद्धिश्चमूपतिः।
अपायाज्जवनैरश्वैः साम्बबाणप्रपीडितः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

साम्बने सेनापति क्षेमवृद्धिको अपने बाणोंसे घायल कर दिया। वह साम्बकी बाणवर्षासे पीड़ित हो शीघ्रगामी अश्वोंकी सहायतासे (लड़ाईका मैदान छोड़कर) भाग गया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् विप्रद्रुते क्रूरे शाल्वस्याथ चमूपतौ।
वेगवान् नाम दैतेयः सुतं मेऽभ्यद्रवद् बली ॥ १७ ॥

मूलम्

तस्मिन् विप्रद्रुते क्रूरे शाल्वस्याथ चमूपतौ।
वेगवान् नाम दैतेयः सुतं मेऽभ्यद्रवद् बली ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शाल्वके क्रूर सेनापति क्षेमवृद्धिके भाग जाने-पर वेगवान् नामक बलवान् दैत्यने मेरे पुत्रपर आक्रमण किया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिपन्नस्तु राजेन्द्र साम्बो वृष्णिकुलोद्वहः।
वेगं वेगवतो राजंस्तस्थौ वीरो विधारयन् ॥ १८ ॥

मूलम्

अभिपन्नस्तु राजेन्द्र साम्बो वृष्णिकुलोद्वहः।
वेगं वेगवतो राजंस्तस्थौ वीरो विधारयन् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! वृष्णिवंशका भार वहन करनेवाला वीर साम्ब वेगवान्‌के वेगको सहन करते हुए धैर्यपूर्वक उसका सामना करने लगा॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स वेगवति कौन्तेय साम्बो वेगवतीं गदाम्।
चिक्षेप तरसा वीरो व्याविद्ध्य सत्यविक्रमः ॥ १९ ॥

मूलम्

स वेगवति कौन्तेय साम्बो वेगवतीं गदाम्।
चिक्षेप तरसा वीरो व्याविद्ध्य सत्यविक्रमः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुन्तीनन्दन! सत्यपराक्रमी वीर साम्बने अपनी वेगशालिनी गदाको बड़े वेगसे घुमाकर वेगवान् दैत्यके सिरपर दे मारा॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तया त्वभिहतो राजन् वेगवान् न्यपतद् भुवि।
वातरुग्ण इव क्षुण्णो जीर्णमूलो वनस्पतिः ॥ २० ॥

मूलम्

तया त्वभिहतो राजन् वेगवान् न्यपतद् भुवि।
वातरुग्ण इव क्षुण्णो जीर्णमूलो वनस्पतिः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस गदासे आहत होकर वेगवान् इस प्रकार पृथ्वीपर गिर पड़ा, मानो जीर्ण हुई जड़वाला पुराना वृक्ष हवाके वेगसे टूटकर धराशायी हो गया हो॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् विनिहते वीरे गदानुन्ने महासुरे।
प्रविश्य महतीं सेनां योधयामास मे सुतः ॥ २१ ॥

मूलम्

तस्मिन् विनिहते वीरे गदानुन्ने महासुरे।
प्रविश्य महतीं सेनां योधयामास मे सुतः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गदासे घायल हुए उस वीर महादैत्यके मारे जानेपर मेरा पुत्र साम्ब शाल्वकी विशाल सेनामें घुसकर युद्ध करने लगा॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चारुदेष्णेन संसक्तो विविन्ध्यो नाम दानवः।
महारथः समाज्ञातो महाराज महाधनुः ॥ २२ ॥

मूलम्

चारुदेष्णेन संसक्तो विविन्ध्यो नाम दानवः।
महारथः समाज्ञातो महाराज महाधनुः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! चारुदेष्णके साथ महारथी एवं महान् धनुर्धर विविन्ध्य नामक दानव शाल्वकी आज्ञासे युद्ध कर रहा था॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सुतुमुलं युद्धं चारुदेष्णविविन्ध्ययोः।
वृत्रवासवयो राजन् यथा पूर्वं तथाभवत् ॥ २३ ॥

मूलम्

ततः सुतुमुलं युद्धं चारुदेष्णविविन्ध्ययोः।
वृत्रवासवयो राजन् यथा पूर्वं तथाभवत् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर चारुदेष्ण और विविन्ध्यमें वैसा ही भयंकर युद्ध होने लगा, जैसा पहले इन्द्र और वृत्रासुरमें हुआ था॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्योन्यस्याभिसंक्रुद्धावन्योन्यं जघ्नतुः शरैः ।
विनदन्तौ महारावान् सिंहाविव महाबलौ ॥ २४ ॥

मूलम्

अन्योन्यस्याभिसंक्रुद्धावन्योन्यं जघ्नतुः शरैः ।
विनदन्तौ महारावान् सिंहाविव महाबलौ ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों एक-दूसरेपर कुपित हो बाणोंसे परस्पर आघात कर रहे थे और महाबली सिंहोंकी भाँति जोर-जोरसे गर्जना करते थे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रौक्मिणेयस्ततो बाणमग्न्यर्कोपमवर्चसम् ।
अभिमन्त्र्य महास्त्रेण संदधे शत्रुनाशनम् ॥ २५ ॥

मूलम्

रौक्मिणेयस्ततो बाणमग्न्यर्कोपमवर्चसम् ।
अभिमन्त्र्य महास्त्रेण संदधे शत्रुनाशनम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर रुक्मिणीनन्दन चारुदेष्णने अग्नि और सूर्यके समान तेजस्वी शत्रुनाशक बाणको महान् (दिव्य) अस्त्रसे अभिमन्त्रित करके अपने धनुषपर संधान किया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विविन्ध्याय सक्रोधः समाहूय महारथः।
चिक्षेप मे सुतो राजन् स गतासुरथापतत् ॥ २६ ॥

मूलम्

स विविन्ध्याय सक्रोधः समाहूय महारथः।
चिक्षेप मे सुतो राजन् स गतासुरथापतत् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तत्पश्चात् मेरे उस महारथी पुत्रने क्रोधमें भरकर विविन्ध्यपर वह बाण चलाया। उसके लगते ही विविन्ध्य प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विविन्ध्यं निहतं दृष्ट्वा तां च विक्षोभितां चमूम्।
कामगेन स सौभेन शाल्वः पुनरुपागमत् ॥ २७ ॥

मूलम्

विविन्ध्यं निहतं दृष्ट्वा तां च विक्षोभितां चमूम्।
कामगेन स सौभेन शाल्वः पुनरुपागमत् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विविन्ध्यको मारा गया और सेनाको तहस-नहस हुई देख शाल्व इच्छानुसार चलनेवाले सौभ विमानद्वारा फिर वहाँ आया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो व्याकुलितं सर्वं द्वारकावासि तद् बलम्।
दृष्ट्वा शाल्वं महाबाहो सौभस्थं नृपते तदा ॥ २८ ॥

मूलम्

ततो व्याकुलितं सर्वं द्वारकावासि तद् बलम्।
दृष्ट्वा शाल्वं महाबाहो सौभस्थं नृपते तदा ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहु नरेश्वर! उस समय सौभ विमानपर बैठे हुए शाल्वको देखकर द्वारकाकी सारी सेना भयसे व्याकुल हो उठी॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो निर्याय कौरव्य अवस्थाप्य च तद् बलम्।
आनर्तानां महाराज प्रद्युम्नो वाक्यमब्रवीत् ॥ २९ ॥

मूलम्

ततो निर्याय कौरव्य अवस्थाप्य च तद् बलम्।
आनर्तानां महाराज प्रद्युम्नो वाक्यमब्रवीत् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज कुरुनन्दन! तब प्रद्युम्नने निकलकर आनर्तवासियोंकी उस सेनाको धीरज बँधाया और इस प्रकार कहा—॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वे भवन्तस्तिष्ठन्तु सर्वे पश्यन्तु मां युधि।
निवारयन्तं संग्रामे बलात् सौभं सराजकम् ॥ ३० ॥

मूलम्

सर्वे भवन्तस्तिष्ठन्तु सर्वे पश्यन्तु मां युधि।
निवारयन्तं संग्रामे बलात् सौभं सराजकम् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘यादवो! आप सब लोग (चुपचाप) खड़े रहें और मेरे पराक्रमको देखें; मैं किस प्रकार युद्धमें राजा शाल्वके सहित सौभ विमानकी गतिको रोक देता हूँ॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहं सौभपतेः सेनामायसैर्भुजगैरिव ।
धनुर्भुजविनिर्मुक्तैर्नाशयाम्यद्य यादवाः ॥ ३१ ॥

मूलम्

अहं सौभपतेः सेनामायसैर्भुजगैरिव ।
धनुर्भुजविनिर्मुक्तैर्नाशयाम्यद्य यादवाः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘यदुवंशियो! मैं अपने धनुर्दण्डसे छूटे हुए लोहेके सर्पतुल्य बाणोंद्वारा सौभपति शाल्वकी सेनाको अभी नष्ट किये देता हूँ’॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आश्वसध्वं न भीः कार्या सौभराडद्य नश्यति।
मयाभिपन्नो दुष्टात्मा ससौभो विनशिष्यति ॥ ३२ ॥

मूलम्

आश्वसध्वं न भीः कार्या सौभराडद्य नश्यति।
मयाभिपन्नो दुष्टात्मा ससौभो विनशिष्यति ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आप धैर्य धारण करें, भयभीत न हों, सौभराज अभी नष्ट हो रहा है। दुष्टात्मा शाल्व मेरा सामना होते ही सौभ विमानसहित नष्ट हो जायगा’॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ब्रुवति संहृष्टे प्रद्युम्ने पाण्डुनन्दन।
विष्ठितं तद् बलं वीर युयुधे च यथासुखम् ॥ ३३ ॥

मूलम्

एवं ब्रुवति संहृष्टे प्रद्युम्ने पाण्डुनन्दन।
विष्ठितं तद् बलं वीर युयुधे च यथासुखम् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर पाण्डुनन्दन! हर्षमें भरे हुए प्रद्युम्नके ऐसा कहने पर वह सारी सेना स्थिर हो पूर्ववत् प्रसन्नता और उत्साहके साथ युद्ध करने लगी॥३३॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अर्जुनाभिगमनपर्वणि सौभवधोपाख्याने षोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्वमें सौभवधोपाख्यानविषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६॥