श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
पञ्चदशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
सौभनाशकी विस्तृत कथाके प्रसंगमें द्वारकामें युद्धसम्बन्धी रक्षात्मक तैयारियोंका वर्णन
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
वासुदेव महाबाहो विस्तरेण महामते।
सौभस्य वधमाचक्ष्व न हि तृप्यामि कथ्यतः ॥ १ ॥
मूलम्
वासुदेव महाबाहो विस्तरेण महामते।
सौभस्य वधमाचक्ष्व न हि तृप्यामि कथ्यतः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने कहा— महाबाहो! वसुदेवनन्दन! महामते! तुम सौभ-विमानके नष्ट होनेका समाचार विस्तारपूर्वक कहो। मैं तुम्हारे मुखसे इस प्रसंगको सुनते-सुनते तृप्त नहीं हो रहा हूँ॥१॥
मूलम् (वचनम्)
वासुदेव उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतं श्रुत्वा महाबाहो मया श्रौतश्रवं नृप।
उपायाद् भरतश्रेष्ठ शाल्वो द्वारवतीं पुरीम् ॥ २ ॥
मूलम्
हतं श्रुत्वा महाबाहो मया श्रौतश्रवं नृप।
उपायाद् भरतश्रेष्ठ शाल्वो द्वारवतीं पुरीम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् श्रीकृष्ण बोले— महाबाहो! नरेश्वर! भरतश्रेष्ठ! श्रुतश्रवा1 के पुत्र शिशुपालके मारे जानेका समाचार सुनकर शाल्वने द्वारकापुरीपर चढ़ाई की॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अरुन्धत्तां सुदुष्टात्मा सर्वतः पाण्डुनन्दन।
शाल्वो वैहायसं चापि तत् पुरं व्यूह्य विष्ठितः ॥ ३ ॥
मूलम्
अरुन्धत्तां सुदुष्टात्मा सर्वतः पाण्डुनन्दन।
शाल्वो वैहायसं चापि तत् पुरं व्यूह्य विष्ठितः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! उस दुष्टात्मा शाल्वने सेनाद्वारा द्वारकापुरीको सब ओरसे घेर लिया था। वह स्वयं आकाशचारी विमान सौभपर व्यूहरचनापूर्वक विराजमान हो रहा था॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्रस्थोऽथ महीपालो योधयामास तां पुरीम्।
अभिसारेण सर्वेण तत्र युद्धमवर्तत ॥ ४ ॥
मूलम्
तत्रस्थोऽथ महीपालो योधयामास तां पुरीम्।
अभिसारेण सर्वेण तत्र युद्धमवर्तत ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसीपर रहकर राजा शाल्व द्वारकापुरीके लोगोंसे युद्ध करता था। वहाँ भारी युद्ध छिड़ा हुआ था और उसमें सभी दिशाओंसे अस्त्र-शस्त्रोंके प्रहार हो रहे थे॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरी समन्ताद् विहिता सपताका सतोरणा।
सचक्रा सहुडा चैव सयन्त्रखनका तथा ॥ ५ ॥
मूलम्
पुरी समन्ताद् विहिता सपताका सतोरणा।
सचक्रा सहुडा चैव सयन्त्रखनका तथा ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्वारकापुरीमें सब ओर पताकाएँ फहरा रही थीं। ऊँचे-ऊँचे गोपुर वहाँ चारों दिशाओंमें सुशोभित थे। जगह-जगह सैनिकोंके समुदाय युद्धके लिये प्रस्तुत थे। सैनिकोंके आत्मरक्षापूर्वक युद्धकी सुविधाके लिये स्थान-स्थानपर बुर्ज बने हुए थे। युद्धोपयोगी यन्त्र वहाँ बैठाये गये थे; तथा सुरंगद्वारा नये-नये मार्ग निकालनेके काममें भी बहुत-से लोग जुटे हुए थे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोपशल्यप्रतोलीका साट्टाट्टालकगोपुरा ।
सचक्रग्रहणी चैव सोल्कालातावपोथिका ॥ ६ ॥
मूलम्
सोपशल्यप्रतोलीका साट्टाट्टालकगोपुरा ।
सचक्रग्रहणी चैव सोल्कालातावपोथिका ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सड़कोंपर लोहेके विषाक्त काँटे अदृश्यरूपसे बिछाये गये थे। अट्टालिकाओं और गोपुरोंमें पर्याप्त अन्नका संग्रह किया गया था। शत्रुपक्षके प्रहारोंको रोकनेके लिये जगह-जगह मोर्चेबन्दी की गयी थी। शत्रुओंके चलाये हुए जलते गोले और अलात (प्रज्वलित लौहमय अस्त्र)-को भी विफल करके नीचे गिरा देनेवाली शक्तियाँ सुसज्जित थीं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोष्ट्रिका भरतश्रेष्ठ सभेरीपणवानका ।
सतोमराङ्कुशा राजन् सशतघ्नीकलाङ्गला ॥ ७ ॥
सभुशुण्ड्यश्मगुडका सायुधा सपरश्वधा ।
लोहचर्मवती चापि साग्निः सगुडशृङ्गिका ॥ ८ ॥
मूलम्
सोष्ट्रिका भरतश्रेष्ठ सभेरीपणवानका ।
सतोमराङ्कुशा राजन् सशतघ्नीकलाङ्गला ॥ ७ ॥
सभुशुण्ड्यश्मगुडका सायुधा सपरश्वधा ।
लोहचर्मवती चापि साग्निः सगुडशृङ्गिका ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अस्त्रोंसे भरे हुए मिट्टी और चमड़ेके असंख्य पात्र रखे गये थे। भरतश्रेष्ठ! ढोल, नगारे और मृदंग आदि जुझाऊ बाजे भी बज रहे थे। राजन्! तोमर, अंकुश, शतघ्नी, लांगल, भुशुण्डी, पत्थरके गोले, अन्यान्य अस्त्र-शस्त्र, फरसे, बहुत-सी सुदृढ़ ढालें और गोला-बारूदसे भरी हुई तोपें यथास्थान तैयार रखी गयी थीं॥७-८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शास्त्रदृष्टेन विधिना सुयुक्ता भरतर्षभ।
रथैरनेकैर्विविधैर्गदसाम्बोद्धवादिभिः ॥ ९ ॥
पुरुषैः कुरुशार्दूल समर्थैः प्रतिवारणे।
अतिख्यातकुलैर्वीरैर्दृष्टवीर्यैश्च संयुगे ॥ १० ॥
मध्यमेन च गुल्मेन रक्षिभिः सा सुरक्षिता।
उत्क्षिप्तगुल्मैश्च तथा हयैश्च सपताकिभिः ॥ ११ ॥
आघोषितं च नगरे न पातव्या सुरेति वै।
प्रमादं परिरक्षद्भिरुग्रसेनोद्धवादिभिः ॥ १२ ॥
मूलम्
शास्त्रदृष्टेन विधिना सुयुक्ता भरतर्षभ।
रथैरनेकैर्विविधैर्गदसाम्बोद्धवादिभिः ॥ ९ ॥
पुरुषैः कुरुशार्दूल समर्थैः प्रतिवारणे।
अतिख्यातकुलैर्वीरैर्दृष्टवीर्यैश्च संयुगे ॥ १० ॥
मध्यमेन च गुल्मेन रक्षिभिः सा सुरक्षिता।
उत्क्षिप्तगुल्मैश्च तथा हयैश्च सपताकिभिः ॥ ११ ॥
आघोषितं च नगरे न पातव्या सुरेति वै।
प्रमादं परिरक्षद्भिरुग्रसेनोद्धवादिभिः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतकुलभूषण! शास्त्रोक्त विधिसे द्वारकापुरीको रक्षाके सभी उत्तम उपायोंसे सम्पन्न किया गया था। कुरुश्रेष्ठ! शत्रुओंका सामना करनेमें समर्थ गद, साम्ब और उद्धव आदि अनेक वीर पुरुष नाना प्रकारके बहुसंख्यक रथोंद्वारा पुरीकी रक्षामें दत्तचित थे। जो अत्यन्त विख्यात कुलोंमें उत्पन्न थे तथा युद्धके अवसरोंपर जिनके बल-वीर्यका परिचय मिल चुका था, ऐसे वीर रक्षक मध्यम गुल्म (नगरके मध्यवर्ती दुर्ग)-में स्थित हो पुरीकी पूर्णतः रक्षा कर रहे थे। सबको प्रमादसे बचानेवाले उग्रसेन और उद्धव आदिने शत्रुओंके गुल्मोंको नष्ट करनेकी शक्ति रखनेवाले घुड़सवारोंके हाथमें झंडे देकर समूचे नगरमें यह घोषणा करा दी थी कि किसीको भी मद्यपान नहीं करना चाहिये॥९—१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रमत्तेष्वभिघातं हि कुर्याच्छाल्वो नराधिपः।
इति कृत्वाप्रमत्तास्ते सर्वे वृष्ण्यन्धकाः स्थिताः ॥ १३ ॥
मूलम्
प्रमत्तेष्वभिघातं हि कुर्याच्छाल्वो नराधिपः।
इति कृत्वाप्रमत्तास्ते सर्वे वृष्ण्यन्धकाः स्थिताः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्योंकि मदिरासे उन्मत्त हुए लोगोंपर राजा शाल्व घातक प्रहार कर सकता है। यह सोचकर वृष्णि और अन्धकवंशके सभी योद्धा पूरी सावधानीके साथ युद्धमें डटे हुए थे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आनर्ताश्च तथा सर्वे नटा नर्तकगायनाः।
बहिर्निर्वासिताः क्षिप्रं रक्षद्भिर्वित्तसंचयम् ॥ १४ ॥
मूलम्
आनर्ताश्च तथा सर्वे नटा नर्तकगायनाः।
बहिर्निर्वासिताः क्षिप्रं रक्षद्भिर्वित्तसंचयम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धनसंग्रहकी रक्षा करनेवाले यादवोंने आनर्तदेशीय नटों, नर्तकों तथा गायकोंको शीघ्र ही नगरसे बाहर कर दिया था॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संक्रमा भेदिताः सर्वे नावश्च प्रतिषेधिताः।
परिखाश्चापि कौरव्य कालैः सुनिचिताः कृताः ॥ १५ ॥
मूलम्
संक्रमा भेदिताः सर्वे नावश्च प्रतिषेधिताः।
परिखाश्चापि कौरव्य कालैः सुनिचिताः कृताः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! द्वारकापुरीमें आनेके लिये जो पुल मार्गमें पड़ते थे वे सब तोड़ दिये गये। नौकाएँ रोक दी गयी थीं और खाइयोंमें काँटे बिछा दिये गये थे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उदपानाः कुरुश्रेष्ठ तथैवाप्यम्बरीषकाः ।
समन्तात् क्रोशमात्रं च कारिता विषमा च भूः ॥ १६ ॥
मूलम्
उदपानाः कुरुश्रेष्ठ तथैवाप्यम्बरीषकाः ।
समन्तात् क्रोशमात्रं च कारिता विषमा च भूः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ! द्वारकापुरीके चारों ओर एक कोसतकके चारों ओरके कुएँ इस प्रकार जलशून्य कर दिये गये थे मानो भाड़ हों और उतनी दूरकी भूमि भी लौहकण्टक आदिसे व्याप्त कर दी गयी थी॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रकृत्या विषमं दुर्गं प्रकृत्या च सुरक्षितम्।
प्रकृत्या चायुधोपेतं विशेषेण तदानघ ॥ १७ ॥
मूलम्
प्रकृत्या विषमं दुर्गं प्रकृत्या च सुरक्षितम्।
प्रकृत्या चायुधोपेतं विशेषेण तदानघ ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
निष्पाप नरेश! द्वारका एक तो स्वभावसे ही दुर्गम्य, सुरक्षित और अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न है, तथापि उस समय इसकी विशेष व्यवस्था कर दी गयी थी॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुरक्षितं सुगुप्तं च सर्वायुधसमन्वितम्।
तत् पुरं भरतश्रेष्ठ यथेन्द्रभवनं तथा ॥ १८ ॥
मूलम्
सुरक्षितं सुगुप्तं च सर्वायुधसमन्वितम्।
तत् पुरं भरतश्रेष्ठ यथेन्द्रभवनं तथा ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! द्वारकानगर इन्द्रभवनकी भाँति ही सुरक्षित, सुगुप्त और सम्पूर्ण आयुधोंसे भरा-पूरा है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न चामुद्रोऽभिनिर्याति न चामुद्रः प्रवेश्यते।
वृष्ण्यन्धकपुरे राजंस्तदा सौभसमागमे ॥ १९ ॥
मूलम्
न चामुद्रोऽभिनिर्याति न चामुद्रः प्रवेश्यते।
वृष्ण्यन्धकपुरे राजंस्तदा सौभसमागमे ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! सौभनिवासियोंके साथ युद्ध होते समय वृष्णि और अन्धकवंशी वीरोंके उस नगरमें कोई भी राजमुद्रा (पास)-के बिना न तो बाहर निकल सकता था और न बाहरसे नगरके भीतर ही आ सकता था॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनुरथ्यासु सर्वासु चत्वरेषु च कौरव।
बलं बभूव राजेन्द्र प्रभूतगजवाजिमत् ॥ २० ॥
मूलम्
अनुरथ्यासु सर्वासु चत्वरेषु च कौरव।
बलं बभूव राजेन्द्र प्रभूतगजवाजिमत् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन राजेन्द्र! वहाँ प्रत्येक सड़क और चौराहेपर बहुत-से हाथीसवार और घुड़सवारोंसे युक्त विशाल सेना उपस्थित रहती थी॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दत्तवेतनभक्तं च दत्तायुधपरिच्छदम् ।
कृतोपधानं च तदा बलमासीन्महाभुज ॥ २१ ॥
मूलम्
दत्तवेतनभक्तं च दत्तायुधपरिच्छदम् ।
कृतोपधानं च तदा बलमासीन्महाभुज ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहो! उस समय सेनाके प्रत्येक सैनिकको पूरा-पूरा वेतन और भत्ता चुका दिया गया था। सबको नये-नये हथियार और पोशाकें दी गयी थीं और उन्हें विशेष पुरस्कार आदि देकर उनका प्रेम और विश्वास प्राप्त कर लिया गया था॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न कुप्यवेतनी कश्चिन्न चातिक्रान्तवेतनी।
नानुग्रहभृतः कश्चिन्न चादृष्टपराक्रमः ॥ २२ ॥
मूलम्
न कुप्यवेतनी कश्चिन्न चातिक्रान्तवेतनी।
नानुग्रहभृतः कश्चिन्न चादृष्टपराक्रमः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई भी सैनिक ऐसा नहीं था जिसे सोने-चाँदीके सिवा ताँबा आदि वेतनके रूपमें दिया जाता हो अथवा जिसे समयपर वेतन न प्राप्त हुआ हो। किसी भी सैनिकको दयावश सेनामें भर्ती नहीं किया गया था तथा कोई भी ऐसा न था जिसका पराक्रम बहुत दिनोंसे देखा न गया हो॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं सुविहिता राजन् द्वारका भूरिदक्षिणा।
आहुकेन सुगुप्ता च राज्ञा राजीवलोचन ॥ २३ ॥
मूलम्
एवं सुविहिता राजन् द्वारका भूरिदक्षिणा।
आहुकेन सुगुप्ता च राज्ञा राजीवलोचन ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कमलनयन राजन्! जिसमें बहुत-से दक्ष मनुष्य निवास करते थे उस द्वारकानगरीकी रक्षाके लिये इस प्रकारकी व्यवस्था की गयी थी। वह राजा उग्रसेनके द्वारा भलीभाँति सुरक्षित थी॥२३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अर्जुनाभिगमनपर्वणि सौभवधोपाख्याने पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्वमें सौभवधविषयक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५॥
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श्रुतश्रवा शिशुपालकी माताका नाम है। यह वसुदेवजीकी बहिन थी। ↩︎