०७४ दुर्योधनानुरोधः

श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना

(अनुद्यूतपर्व)
चतुःसप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे अर्जुनकी वीरता बतलाकर पुनः द्यूतक्रीड़ाके लिये पाण्डवोंको बुलानेका अनुरोध और उनकी स्वीकृति

मूलम् (वचनम्)

जनमेजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुज्ञातांस्तान् विदित्वा सरत्नधनसंचयान् ।
पाण्डवान् धार्तराष्ट्राणां कथमासीन्मनस्तदा ॥ १ ॥

मूलम्

अनुज्ञातांस्तान् विदित्वा सरत्नधनसंचयान् ।
पाण्डवान् धार्तराष्ट्राणां कथमासीन्मनस्तदा ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनमेजयने पूछा— ब्रह्मन्! जब कौरवोंको यह मालूम हुआ कि पाण्डवोंको रथ और धनके संग्रहसहित खाण्डवप्रस्थ जानेकी आज्ञा मिल गयी, तब उनके मनकी अवस्था कैसी हुई?॥१॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुज्ञातांस्तान् विदित्वा धृतराष्ट्रेण धीमता।
राजन् दुःशासनः क्षिप्रं जगाम भ्रातरं प्रति ॥ २ ॥
दुर्योधनं समासाद्य सामात्यं भरतर्षभ।
दुःखार्तो भरतश्रेष्ठमिदं वचनमब्रवीत् ॥ ३ ॥

मूलम्

अनुज्ञातांस्तान् विदित्वा धृतराष्ट्रेण धीमता।
राजन् दुःशासनः क्षिप्रं जगाम भ्रातरं प्रति ॥ २ ॥
दुर्योधनं समासाद्य सामात्यं भरतर्षभ।
दुःखार्तो भरतश्रेष्ठमिदं वचनमब्रवीत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजीने कहा— भरतकुलभूषण जनमेजय! परम बुद्धिमान् राजा धृतराष्ट्रने पाण्डवोंको जानेकी आज्ञा दे दी, यह जानकर दुःशासन शीघ्र ही अपने भाई भरतश्रेष्ठ दुर्योधनके पास, जो अपने मन्त्रियों (कर्ण एवं शकुनि)-के साथ बैठा था, गया और दुःखसे पीड़ित होकर इस प्रकार बोला॥२-३॥

मूलम् (वचनम्)

दुःशासन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःखेनैतत् समानीतं स्थविरो नाशयत्यसौ।
शत्रुसाद् गमयद् द्रव्यं तद् बुध्यध्वं महारथाः ॥ ४ ॥

मूलम्

दुःखेनैतत् समानीतं स्थविरो नाशयत्यसौ।
शत्रुसाद् गमयद् द्रव्यं तद् बुध्यध्वं महारथाः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुःशासनने कहा— महारथियो! आपलोगोंको यह मालूम होना चाहिये कि हमने बड़े दुःखसे जिस धनराशिको प्राप्त किया था, उसे हमारा बूढ़ा बाप नष्ट कर रहा है। उसने सारा धन शत्रुओंके अधीन कर दिया॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ दुर्योधनः कर्णः शकुनिश्चापि सौबलः।
मिथः संगम्य सहिताः पाण्डवान् प्रति मानिनः ॥ ५ ॥
वैचित्रवीर्यं राजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्।
अभिगम्य त्वरायुक्ताः श्लक्ष्णं वचनमब्रुवन् ॥ ६ ॥

मूलम्

अथ दुर्योधनः कर्णः शकुनिश्चापि सौबलः।
मिथः संगम्य सहिताः पाण्डवान् प्रति मानिनः ॥ ५ ॥
वैचित्रवीर्यं राजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्।
अभिगम्य त्वरायुक्ताः श्लक्ष्णं वचनमब्रुवन् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह सुनकर दुर्योधन, कर्ण और सुबलपुत्र शकुनि, जो बड़े ही अभिमानी थे, पाण्डवोंसे बदला लेनेके लिये परस्पर मिलकर सलाह करने लगे। फिर उन सबने बड़ी उतावलीके साथ विचित्रवीर्यनन्दन मनीषी राजा धृतराष्ट्रके पास जाकर मधुर वाणीमें कहा॥५-६॥

मूलम् (वचनम्)

(दुर्योधन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनेन समो वीर्ये नास्ति लोके धनुर्धरः।
योऽर्जुनेनार्जुनस्तुल्यो द्विबाहुर्बहुबाहुना ॥

मूलम्

अर्जुनेन समो वीर्ये नास्ति लोके धनुर्धरः।
योऽर्जुनेनार्जुनस्तुल्यो द्विबाहुर्बहुबाहुना ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधन बोला— पिताजी! संसारमें अर्जुनके समान पराक्रमी धनुर्धर दूसरा कोई नहीं है। ये दो बाहुवाले अर्जुन सहस्र भुजाओंवाले कार्तवीर्य अर्जुनके समान शक्तिशाली हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु राजन् पुराचिन्त्यानर्जुनस्य च साहसान्।
अर्जुनो धन्विनां श्रेष्ठो दुष्कृतं कृतवान् पुरा॥
द्रुपदस्य पुरे राजन् द्रौपद्याश्च स्वयंवरे।

मूलम्

शृणु राजन् पुराचिन्त्यानर्जुनस्य च साहसान्।
अर्जुनो धन्विनां श्रेष्ठो दुष्कृतं कृतवान् पुरा॥
द्रुपदस्य पुरे राजन् द्रौपद्याश्च स्वयंवरे।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! अर्जुनने पहले जो-जो अचिन्त्य साहसपूर्ण कार्य किये हैं, उनका वर्णन करता हूँ, सुनिये। राजन्! पहले राजा द्रुपदके नगरमें द्रौपदीके स्वयंवरके समय धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ अर्जुनने वह पराक्रम कर दिखाया था, जो दूसरोंके लिये अत्यन्त कठिन है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स दृष्ट्वा पार्थिवान् सर्वान् क्रुद्धान् पार्थो महाबलः॥
वारयित्वा शरैस्तीक्ष्णैरजयत् तत्र स स्वयम्।
जित्वा तु तान् महीपालान् सर्वान् कर्णपुरोगमान्॥
लेभे कृष्णां शुभां पार्थो युद्ध्वा वीर्यबलात् तदा।
सर्वक्षत्रसमूहेषु अम्बां भीष्मो यथा पुरा॥

मूलम्

स दृष्ट्वा पार्थिवान् सर्वान् क्रुद्धान् पार्थो महाबलः॥
वारयित्वा शरैस्तीक्ष्णैरजयत् तत्र स स्वयम्।
जित्वा तु तान् महीपालान् सर्वान् कर्णपुरोगमान्॥
लेभे कृष्णां शुभां पार्थो युद्ध्वा वीर्यबलात् तदा।
सर्वक्षत्रसमूहेषु अम्बां भीष्मो यथा पुरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय महाबली अर्जुनने सब राजाओंको कुपित देख तीखे बाणोंके प्रहारसे उन्हें जहाँके तहाँ रोक दिया और स्वयं ही सबपर विजय पायी। कर्ण आदि सभी राजाओंको अपने बल और पराक्रमसे युद्धमें जीतकर कुन्तीकुमार अर्जुनने उस समय शुभलक्षणा द्रौपदीको प्राप्त किया; ठीक वैसे ही, जैसे पूर्वकालमें भीष्मजीने सम्पूर्ण क्षत्रियसमुदायमें अपने बल-पराक्रमसे काशिराजकी कन्या अम्बा आदिको प्राप्त किया था।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कदाचिद् बीभत्सुस्तीर्थयात्रां ययौ स्वयम्।
अथोलूपीं शुभां जातां नागराजसुतां तदा॥
नागेष्ववाप चाग्र्येषु प्रार्थितोऽथ यथातथम्।
ततो गोदावरीं वेण्णां कावेरीं चावगाहत।

मूलम्

ततः कदाचिद् बीभत्सुस्तीर्थयात्रां ययौ स्वयम्।
अथोलूपीं शुभां जातां नागराजसुतां तदा॥
नागेष्ववाप चाग्र्येषु प्रार्थितोऽथ यथातथम्।
ततो गोदावरीं वेण्णां कावेरीं चावगाहत।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर अर्जुन किसी समय स्वयं तीर्थयात्राके लिये गये। उस यात्रामें ही उन्होंने नागलोकमें पहुँचकर परम सुन्दरी नागराजकन्या उलूपीको उसके प्रार्थना करनेपर विधिपूर्वक पत्नीरूपमें ग्रहण किया। फिर क्रमशः अन्य तीर्थोंमें भ्रमण करते हुए दक्षिणदिशामें जाकर गोदावरी, वेण्णा तथा कावेरी आदि नदियोंमें स्नान किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स दक्षिणं समुद्रान्तं गत्वा चाप्सरसां च वै।
कुमारीतीर्थमासाद्य मोक्षयामास चार्जुनः ॥
ग्राहरूपान्विताः पञ्च अतिशौर्येण वै बलात्।

मूलम्

स दक्षिणं समुद्रान्तं गत्वा चाप्सरसां च वै।
कुमारीतीर्थमासाद्य मोक्षयामास चार्जुनः ॥
ग्राहरूपान्विताः पञ्च अतिशौर्येण वै बलात्।

अनुवाद (हिन्दी)

दक्षिणसमुद्रके तटपर कुमारीतीर्थमें पहुँचकर अर्जुनने अत्यन्त शौर्यका परिचय देते हुए ग्राहरूपधारिणी पाँच अप्सराओंका बलपूर्वक उद्धार किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

कन्यातीर्थं समभ्येत्य ततो द्वारवतीं ययौ॥
तत्र कृष्णनिदेशात् स सुभद्रां प्राप्य फाल्गुनः।
तामारोप्य रथोपस्थे प्रययौ स्वपुरीं प्रति॥

मूलम्

कन्यातीर्थं समभ्येत्य ततो द्वारवतीं ययौ॥
तत्र कृष्णनिदेशात् स सुभद्रां प्राप्य फाल्गुनः।
तामारोप्य रथोपस्थे प्रययौ स्वपुरीं प्रति॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् कन्याकुमारीतीर्थकी यात्रा करके वे दक्षिणसे लौट आये और अनेक तीर्थोंमें भ्रमण करते हुए द्वारकापुरी जा पहुँचे। वहाँ भगवान् श्रीकृष्णके आदेशसे अर्जुनने सुभद्राको लेकर रथपर बिठा लिया और अपनी नगरी इन्द्रप्रस्थकी ओर प्रस्थान किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूयः शृणु महाराज फाल्गुनस्य तु साहसम्।
ददौ च वह्नेर्बीभत्सुः प्रार्थितं खाण्डवं वनम्॥
लब्धमात्रे तु तेनाथ भगवान् हव्यवाहनः।
भक्षितुं खाण्डवं राजंस्ततः समुपचक्रमे॥

मूलम्

भूयः शृणु महाराज फाल्गुनस्य तु साहसम्।
ददौ च वह्नेर्बीभत्सुः प्रार्थितं खाण्डवं वनम्॥
लब्धमात्रे तु तेनाथ भगवान् हव्यवाहनः।
भक्षितुं खाण्डवं राजंस्ततः समुपचक्रमे॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! अर्जुनके साहसका और भी वर्णन सुनिये; उन्होंने अग्निदेवको उनके माँगनेपर खाण्डववन समर्पित किया था। राजन्! उनके द्वारा उपलब्ध होते ही भगवान् अग्निदेवने उस वनको अपना आहार बनाना आरम्भ किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तं भक्षयन्तं वै सव्यसाची विभावसुम्।
रथी धन्वी शरान् गृह्य स कलापयुतः प्रभुः॥
पालयामास राजेन्द्र स्ववीर्येण महाबलः॥

मूलम्

ततस्तं भक्षयन्तं वै सव्यसाची विभावसुम्।
रथी धन्वी शरान् गृह्य स कलापयुतः प्रभुः॥
पालयामास राजेन्द्र स्ववीर्येण महाबलः॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! जब अग्निदेव खाण्डववनको जलाने लगे, उस समय (अग्निदेवसे) रथ, धनुष, बाण और कवच आदि लेकर महान् बल तथा प्रभावसे युक्त सव्यसाची अर्जुन अपने पराक्रमसे उसकी रक्षा करने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः श्रुत्वा महेन्द्रस्तं मेघांस्तान् संदिदेश ह।
तेनोक्ता मेघसङ्घास्ते ववर्षुरतिवृष्टिभिः ॥

मूलम्

ततः श्रुत्वा महेन्द्रस्तं मेघांस्तान् संदिदेश ह।
तेनोक्ता मेघसङ्घास्ते ववर्षुरतिवृष्टिभिः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

खाण्डववनके दाहका समाचार सुनकर देवराज इन्द्रने मेघोंको आग बुझानेकी आज्ञा दी। उनकी प्रेरणासे मेघोंने बड़ी भारी वर्षा प्रारम्भ की।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो मेघगणान् पार्थः शरव्रातैः समन्ततः।
खगमैर्वारयामास तदाश्चर्यमिवाभवत् ॥

मूलम्

ततो मेघगणान् पार्थः शरव्रातैः समन्ततः।
खगमैर्वारयामास तदाश्चर्यमिवाभवत् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख अर्जुनने आकाशगामी बाणसमूहोंद्वारा सब ओरसे बादलोंको रोक दिया। वह एक अद्‌भुत-सी घटना हुई।

विश्वास-प्रस्तुतिः

वारितान् मेघसङ्घांश्च श्रुत्वा क्रुद्धः पुरंदरः।
पाण्डरं गजमास्थाय सर्वदेवगणैर्वृतः ॥
ययौ पार्थेन संयोद्धुं रक्षार्थं खाण्डवस्य च॥

मूलम्

वारितान् मेघसङ्घांश्च श्रुत्वा क्रुद्धः पुरंदरः।
पाण्डरं गजमास्थाय सर्वदेवगणैर्वृतः ॥
ययौ पार्थेन संयोद्धुं रक्षार्थं खाण्डवस्य च॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेघोंको रोका गया सुनकर इन्द्रदेव कुपित हो उठे। श्वेतवर्णवाले ऐरावत हाथीपर आरूढ हो वे समस्त देवताओंके साथ खाण्डववनकी रक्षाके निमित्त अर्जुनसे युद्ध करनेके लिये गये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुद्राश्च मरुतश्चैव वसवश्चाश्विनौ तदा।
आदित्याश्चैव साध्याश्च विश्वेदेवाश्च भारत॥
गन्धर्वाश्चैव सहिता अन्ये सुरगणाश्च ये।
ते सर्वे शस्त्रसम्पन्ना दीप्यमानाः स्वतेजसा।
धनंजयं जिघांसन्तः प्रपेतुर्विबुधाधिपाः ॥

मूलम्

रुद्राश्च मरुतश्चैव वसवश्चाश्विनौ तदा।
आदित्याश्चैव साध्याश्च विश्वेदेवाश्च भारत॥
गन्धर्वाश्चैव सहिता अन्ये सुरगणाश्च ये।
ते सर्वे शस्त्रसम्पन्ना दीप्यमानाः स्वतेजसा।
धनंजयं जिघांसन्तः प्रपेतुर्विबुधाधिपाः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस समय रुद्र, मरुद्‌गण, वसु, अश्विनीकुमार, आदित्य, साध्यगण, विश्वेदेव, गन्धर्व तथा अन्य देवगण अपने-अपने तेजसे देदीप्यमान एवं अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न हो युद्धके लिये गये। वे सभी देवेश्वर अर्जुनको मार डालनेकी इच्छासे उनपर टूट पड़े।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो देवगणाः सर्वे युद्ध्वा पार्थेन वै मुहुः।
रणे जेतुमशक्यं तं ज्ञात्वा ते भरतर्षभ॥
शान्तास्ते विबुधाः सर्वे पार्थबाणाभिपीडिताः।

मूलम्

ततो देवगणाः सर्वे युद्ध्वा पार्थेन वै मुहुः।
रणे जेतुमशक्यं तं ज्ञात्वा ते भरतर्षभ॥
शान्तास्ते विबुधाः सर्वे पार्थबाणाभिपीडिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! कुन्तीकुमार अर्जुनके साथ बारंबार युद्ध करके जब देवताओंने यह समझ लिया कि इन्हें समरांगणमें पराजित करना असम्भव है, तब वे अर्जुनके बाणोंसे अत्यन्त पीड़ित होनेके कारण युद्धसे विरत हो गये (भाग खड़े हुए)।

विश्वास-प्रस्तुतिः

युगान्ते यानि दृश्यन्ते निमित्तानि महान्त्यपि।
सर्वाणि तत्र दृश्यन्ते सुघोराणि महीपते॥

मूलम्

युगान्ते यानि दृश्यन्ते निमित्तानि महान्त्यपि।
सर्वाणि तत्र दृश्यन्ते सुघोराणि महीपते॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! प्रलयकालमें जो विनाशसूचक अत्यन्त भयंकर अपशकुन दिखायी देते हैं, वे सभी उस समय प्रत्यक्ष दीखने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो देवगणाः सर्वे पार्थं समभिदुद्रुवुः।
असम्भ्रान्तस्तु तान् दृष्ट्वा स तां देवमयीं चमूम्।
त्वरितः फाल्गुनो गृह्य तीक्ष्णांस्तानाशुगांस्तदा॥
शक्रं देवांश्च सम्प्रेक्ष्य तस्थौ काल इवात्यये॥

मूलम्

ततो देवगणाः सर्वे पार्थं समभिदुद्रुवुः।
असम्भ्रान्तस्तु तान् दृष्ट्वा स तां देवमयीं चमूम्।
त्वरितः फाल्गुनो गृह्य तीक्ष्णांस्तानाशुगांस्तदा॥
शक्रं देवांश्च सम्प्रेक्ष्य तस्थौ काल इवात्यये॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर सब देवताओंने एक साथ अर्जुनपर धावा किया; परंतु उस देवसेनाको देखकर अर्जुनके मनमें घबराहट नहीं हुई। वे तुरंत ही तीखे बाण हाथमें लेकर इन्द्र और देवताओंकी ओर देखते हुए प्रलयकालमें सर्वसंहारक कालकी भाँति अविचलभावसे खड़े हो गये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो देवगणाः सर्वे बीभत्सुं सपुरंदराः।
अवाकिरञ्छरव्रातैर्मानुषं तं महीपते ॥

मूलम्

ततो देवगणाः सर्वे बीभत्सुं सपुरंदराः।
अवाकिरञ्छरव्रातैर्मानुषं तं महीपते ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! अर्जुनको मानव समझकर इन्द्रसहित सब देवता उनपर बाणसमूहोंकी बौछार करने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पार्थो महातेजा गाण्डीवं गृह्य सत्वरः॥
वारयामास देवानां शरव्रातैः शरांस्तदा।

मूलम्

ततः पार्थो महातेजा गाण्डीवं गृह्य सत्वरः॥
वारयामास देवानां शरव्रातैः शरांस्तदा।

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु महातेजस्वी पार्थने शीघ्रतापूर्वक गाण्डीव धनुष लेकर अपने बाणसमूहोंकी वर्षासे देवताओंके बाणोंको रोक दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनः क्रुद्धाः सुराः सर्वे मर्त्यं संख्ये महाबलाः॥
नानाशस्त्रैर्ववर्षुस्तं सव्यसाचिं महीपते ॥

मूलम्

पुनः क्रुद्धाः सुराः सर्वे मर्त्यं संख्ये महाबलाः॥
नानाशस्त्रैर्ववर्षुस्तं सव्यसाचिं महीपते ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पिताजी! यह देख समस्त महाबली देवता पुनः कुपित हो गये और उस युद्धमें मरणधर्मा अर्जुनपर नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी बौछार करने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान्‌ पार्थः शस्त्रवर्षान्‌ वै विसृष्टान्‌ विबुधैस्तदा।
द्विधा त्रिधा च चिच्छेद ख एव निशितैः शरैः॥

मूलम्

तान्‌ पार्थः शस्त्रवर्षान्‌ वै विसृष्टान्‌ विबुधैस्तदा।
द्विधा त्रिधा च चिच्छेद ख एव निशितैः शरैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनने अपने तीखे बाणोंद्वारा देवताओंके छोड़े हुए उन अस्त्र-शस्त्रोंके आकाशमें ही दो-दो तीन-तीन टुकड़े कर दिये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनश्च पार्थः संक्रुद्धो मण्डलीकृतकार्मुकः।
देवसङ्घाञ्छरैस्तीक्ष्णैरार्पयद् वै समन्ततः ॥

मूलम्

पुनश्च पार्थः संक्रुद्धो मण्डलीकृतकार्मुकः।
देवसङ्घाञ्छरैस्तीक्ष्णैरार्पयद् वै समन्ततः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर अधिक क्रोधमें भरकर अर्जुनने अपने धनुषको इस प्रकार खींचा कि वह मण्डलाकार दिखायी देने लगा और उसके द्वारा सब ओर तीखे सायकोंकी वृष्टि करके सब देवताओंको घायल कर दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

विद्रुतान् देवसङ्घांस्तान् रणे दृष्ट्वा पुरंदरः।
ततः क्रुद्धो महातेजाः पार्थं बाणैरवाकिरत्॥

मूलम्

विद्रुतान् देवसङ्घांस्तान् रणे दृष्ट्वा पुरंदरः।
ततः क्रुद्धो महातेजाः पार्थं बाणैरवाकिरत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंको युद्धसे भागा हुआ देख महातेजस्वी इन्द्रने अत्यन्त कुपित हो पार्थपर बाणोंकी झड़ी लगा दी।

विश्वास-प्रस्तुतिः

पार्थोऽपि शक्रं विव्याध मानुषो विबुधाधिपम्॥
ततः सोऽश्ममयं वर्षं व्यसृजद् विबुधाधिपः।
तच्छरैरर्जुनो वर्षं प्रतिजघ्नेऽत्यमर्षणः ॥
अथ संवर्धयामास तद् वर्षं देवराडपि।
भूय एव तदा वीर्यं जिज्ञासुः सव्यसाचिनः॥

मूलम्

पार्थोऽपि शक्रं विव्याध मानुषो विबुधाधिपम्॥
ततः सोऽश्ममयं वर्षं व्यसृजद् विबुधाधिपः।
तच्छरैरर्जुनो वर्षं प्रतिजघ्नेऽत्यमर्षणः ॥
अथ संवर्धयामास तद् वर्षं देवराडपि।
भूय एव तदा वीर्यं जिज्ञासुः सव्यसाचिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पार्थने मनुष्य होकर भी देवताओंके स्वामी इन्द्रको अपने सायकोंसे बींध डाला। तब देवेश्वरने अर्जुनपर पत्थरोंकी वर्षा आरम्भ की। यह देख अर्जुन अत्यन्त अमर्षमें भर गये और अपने बाणोंद्वारा उन्होंने इन्द्रकी उस पाषाण-वर्षाका निवारण कर दिया। तदनन्तर देवराज इन्द्रने सव्यसाची अर्जुनके पराक्रमकी परीक्षा लेनेके लिये पुनः उस पाषाण-वर्षाको पहलेसे भी अधिक बढ़ा दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽश्मवर्षं महावेगमिषुभिः पाण्डवोऽपि च।
विलयं गमयामास हर्षयन् पाकशासनम्॥

मूलम्

सोऽश्मवर्षं महावेगमिषुभिः पाण्डवोऽपि च।
विलयं गमयामास हर्षयन् पाकशासनम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख पाण्डुनन्दन अर्जुनने इन्द्रका हर्ष बढ़ाते हुए उस अत्यन्त वेगशालिनी पाषाणवर्षाको अपने बाणोंसे विलीन कर दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपादाय तु पाणिभ्यामङ्गदं नाम पर्वतम्।
सद्रुमं व्यसृजच्छक्रो जिघांसुः श्वेतवाहनम्॥
ततोऽर्जुनो वेगवद्भिर्ज्वलमानैरजिह्मगैः ।
बाणैर्विध्वंसयामास गिरिराजं सहस्रशः ॥
शक्रं च वारयामास शरैः पार्थो बलाद् युधि।

मूलम्

उपादाय तु पाणिभ्यामङ्गदं नाम पर्वतम्।
सद्रुमं व्यसृजच्छक्रो जिघांसुः श्वेतवाहनम्॥
ततोऽर्जुनो वेगवद्भिर्ज्वलमानैरजिह्मगैः ।
बाणैर्विध्वंसयामास गिरिराजं सहस्रशः ॥
शक्रं च वारयामास शरैः पार्थो बलाद् युधि।

अनुवाद (हिन्दी)

तब इन्द्रने श्वेतवाहन अर्जुनको कुचल डालनेकी इच्छासे वृक्षोंसहित अंगद नामक पर्वत (जो मन्दराचलका एक शिखर है)-को दोनों हाथोंसे उठाकर उनके ऊपर छोड़ दिया। यह देख अर्जुनने अग्निके समान प्रज्वलित और सीधे लक्ष्यतक पहुँचनेवाले सहस्रों वेगशाली बाणोंद्वारा उस पर्वतराजको खण्ड-खण्ड कर दिया। साथ ही पार्थने उस युद्धमें बलपूर्वक बाण मारकर इन्द्रको स्तब्ध कर दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शक्रो महाराज रणे वीरं धनंजयम्॥
ज्ञात्वा जेतुमशक्यं तं तेजोबलसमन्वितम्॥
परां प्रीतिं ययौ तत्र पुत्रशौर्येण वासवः।

मूलम्

ततः शक्रो महाराज रणे वीरं धनंजयम्॥
ज्ञात्वा जेतुमशक्यं तं तेजोबलसमन्वितम्॥
परां प्रीतिं ययौ तत्र पुत्रशौर्येण वासवः।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर तेज और बलसे सम्पन्न वीर धनंजयको युद्धमें जीतना असम्भव जानकर इन्द्रको अपने पुत्रके पराक्रमसे वहाँ बड़ी प्रसन्नता प्राप्त हुई।

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदा तत्र न तस्यासीद् दिवि कश्चिन्महायशाः॥
समर्थो निर्जये राजन्नपि साक्षात् प्रजापतिः॥

मूलम्

तदा तत्र न तस्यासीद् दिवि कश्चिन्महायशाः॥
समर्थो निर्जये राजन्नपि साक्षात् प्रजापतिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय वहाँ स्वर्गका कोई भी महायशस्वी वीर, चाहे साक्षात् प्रजापति ही क्यों न हों, ऐसा नहीं था, जो अर्जुनको जीतनेमें समर्थ हो सके।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पार्थः शरैर्हत्वा यक्षराक्षसपन्नगान्।
दीप्ते चाग्नौ महातेजाः पातयामास संततम्॥
प्रतिप्रेक्षयितुं पार्थं न शेकुस्तत्र केचन।
दृष्ट्वा निवारितं शक्रं दिवि देवगणैः सह॥

मूलम्

ततः पार्थः शरैर्हत्वा यक्षराक्षसपन्नगान्।
दीप्ते चाग्नौ महातेजाः पातयामास संततम्॥
प्रतिप्रेक्षयितुं पार्थं न शेकुस्तत्र केचन।
दृष्ट्वा निवारितं शक्रं दिवि देवगणैः सह॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर महातेजस्वी अर्जुन अपने बाणोंसे यक्ष, राक्षस और नागोंको मारकर उन्हें लगातार प्रज्वलित अग्निमें गिराने लगे। स्वर्गवासी देवताओंसहित इन्द्रको अर्जुनने युद्धसे विरत कर दिया, यह देख उस समय कोई भी उनकी ओर दृष्टिपात नहीं कर पाते थे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा सुपर्णः सोमार्थं विबुधानजयत् पुरा।
तथा जित्वा सुरान् पार्थस्तर्पयामास पावकम्॥
ततोऽर्जुनः स्ववीर्येण तर्पयित्वा विभावसुम्।
रथं ध्वजं हयांश्चैव दिव्यास्त्राणि सभां च वै॥
गाण्डीवं च धनुःश्रेष्ठं तूणी चाक्षयसायकौ।
एतान्यवाप बीभत्सुर्लेभे कीर्तिं च भारत॥

मूलम्

यथा सुपर्णः सोमार्थं विबुधानजयत् पुरा।
तथा जित्वा सुरान् पार्थस्तर्पयामास पावकम्॥
ततोऽर्जुनः स्ववीर्येण तर्पयित्वा विभावसुम्।
रथं ध्वजं हयांश्चैव दिव्यास्त्राणि सभां च वै॥
गाण्डीवं च धनुःश्रेष्ठं तूणी चाक्षयसायकौ।
एतान्यवाप बीभत्सुर्लेभे कीर्तिं च भारत॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! जैसे पूर्वकालमें गरुड़ने अमृतके लिये देवताओंको जीत लिया था, उसी प्रकार कुन्तीपुत्र अर्जुनने भी देवताओंको जीतकर खाण्डववनके द्वारा अग्निदेवको तृप्त किया। इस प्रकार पार्थने अपने पराक्रमसे अग्निदेवको तृप्त करके उनसे रथ, ध्वजा, अश्व, दिव्यास्त्र, उत्तम धनुष गाण्डीव तथा अक्षय बाणोंसे भरे हुए दो तूणीर प्राप्त किये। इनके सिवा अनुपम यश और मयासुरसे एक सभाभवन भी उन्हें प्राप्त हुआ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूयोऽपि शृणु राजेन्द्र पार्थो गत्वोत्तरां दिशम्।
विजित्य नववर्षांश्च सपुरांश्च सपर्वतान्॥
जम्बूद्वीपं वशे कृत्वा सर्वं तद् भरतर्षभ।
बलाज्जित्वा नृपान् सर्वान् करे च विनिवेश्य च॥
रत्नान्यादाय सर्वाणि गत्वा चैव पुनः पुरीम्।
ततो ज्येष्ठं महात्मानं धर्मराजं युधिष्ठिरम्॥
राजसूयं क्रतुश्रेष्ठं कारयामास भारत॥

मूलम्

भूयोऽपि शृणु राजेन्द्र पार्थो गत्वोत्तरां दिशम्।
विजित्य नववर्षांश्च सपुरांश्च सपर्वतान्॥
जम्बूद्वीपं वशे कृत्वा सर्वं तद् भरतर्षभ।
बलाज्जित्वा नृपान् सर्वान् करे च विनिवेश्य च॥
रत्नान्यादाय सर्वाणि गत्वा चैव पुनः पुरीम्।
ततो ज्येष्ठं महात्मानं धर्मराजं युधिष्ठिरम्॥
राजसूयं क्रतुश्रेष्ठं कारयामास भारत॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! अर्जुनके पराक्रमकी कथा अभी और सुनिये। उन्होंने उत्तरदिशामें जाकर नगरों और पर्वतोंसहित जम्बूद्वीपके नौ वर्षोंपर विजय पायी। भरतश्रेष्ठ! उन्होंने समस्त जम्बूद्वीपको वशमें करके सब राजाओंको बलपूर्वक जीत लिया और सबपर कर लगाकर उनसे सब प्रकारके रत्नोंकी भेंट ले वे पुनः अपनी पुरीको लौट आये। भारत! तदनन्तर अर्जुनने अपने बड़े भाई महात्मा धर्मराज युधिष्ठिरसे क्रतुश्रेष्ठ राजसूयका अनुष्ठान करवाया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तान्यन्यानि कर्माणि कृतवानर्जुनः पुरा।
अर्जुनेन समो वीर्ये नास्ति लोके पुमान् क्वचित्॥

मूलम्

स तान्यन्यानि कर्माणि कृतवानर्जुनः पुरा।
अर्जुनेन समो वीर्ये नास्ति लोके पुमान् क्वचित्॥

अनुवाद (हिन्दी)

पिताजी! इस प्रकार अर्जुनने पूर्वकालमें ये तथा और भी बहुत-से पराक्रम कर दिखाये हैं। संसारमें कहीं कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो बल और पराक्रममें अर्जुनकी समानता कर सके।

विश्वास-प्रस्तुतिः

देवदानवयक्षाश्च पिशाचोरगराक्षसाः ।
भीष्मद्रोणादयः सर्वे कुरवश्च महारथाः॥
लोके सर्वनृपाश्चैव वीराश्चान्ये धनुर्धराः।
एते चान्ये च बहवः परिवार्य महीपते॥
एकं पार्थं रणे यत्ताः प्रतियोद्‌धुं न शक्नुयुः॥

मूलम्

देवदानवयक्षाश्च पिशाचोरगराक्षसाः ।
भीष्मद्रोणादयः सर्वे कुरवश्च महारथाः॥
लोके सर्वनृपाश्चैव वीराश्चान्ये धनुर्धराः।
एते चान्ये च बहवः परिवार्य महीपते॥
एकं पार्थं रणे यत्ताः प्रतियोद्‌धुं न शक्नुयुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता, दानव, यक्ष, पिशाच, नाग, राक्षस एवं भीष्म, द्रोण आदि समस्त कौरव महारथी, भूमण्डलके सम्पूर्ण नरेश तथा अन्य धनुर्धर वीर—ये तथा अन्य बहुत-से शूरवीर युद्धभूमिमें अकेले अर्जुनको चारों ओरसे घेरकर पूरी सावधानीके साथ खड़े हो जायँ तो भी उनका सामना नहीं कर सकते।

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहं हि नित्यं कौरव्य फाल्गुनं प्रति सत्तमम्।
अनिशं चिन्तयित्वा तं समुद्विग्नोऽस्मि तद्भयात्॥

मूलम्

अहं हि नित्यं कौरव्य फाल्गुनं प्रति सत्तमम्।
अनिशं चिन्तयित्वा तं समुद्विग्नोऽस्मि तद्भयात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुश्रेष्ठ! मैं साधुशिरोमणि अर्जुनके विषयमें नित्य-निरन्तर चिन्तन करते हुए उनके भयसे अत्यन्त उद्विग्न हो जाता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

गृहे गृहे च पश्यामि तात पार्थमहं सदा।
शरगाण्डीवसंयुक्तं पाशहस्तमिवान्तकम् ॥
अपि पार्थसहस्राणि भीतः पश्यामि भारत।
पार्थभूतमिदं सर्वं नगरं प्रतिभाति मे॥

मूलम्

गृहे गृहे च पश्यामि तात पार्थमहं सदा।
शरगाण्डीवसंयुक्तं पाशहस्तमिवान्तकम् ॥
अपि पार्थसहस्राणि भीतः पश्यामि भारत।
पार्थभूतमिदं सर्वं नगरं प्रतिभाति मे॥

अनुवाद (हिन्दी)

पिताजी! मुझे प्रत्येक घरमें सदा हाथमें पाश लिये यमराजकी भाँति गाण्डीव धनुषपर बाण चढ़ाये अर्जुन दिखायी देते हैं। भारत! मैं इतना डर गया हूँ कि मुझे सहस्रों अर्जुन दृष्टिगोचर होते हैं। यह सारा नगर मुझे अर्जुनरूप ही प्रतीत होता है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

पार्थमेव हि पश्यामि रहिते तात भारत।
दृष्ट्वा स्वप्नगतं पार्थमुद्‌भ्रमामि ह्यचेतनः॥

मूलम्

पार्थमेव हि पश्यामि रहिते तात भारत।
दृष्ट्वा स्वप्नगतं पार्थमुद्‌भ्रमामि ह्यचेतनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! मैं एकान्तमें अर्जुनको ही देखता हूँ। स्वप्नमें भी अर्जुनको देखकर मैं अचेत और उद्भ्रान्त हो उठता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

अकारादीनि नामानि अर्जुनत्रस्तचेतसः ।
अश्वाश्चार्था ह्यजाश्चैव त्रासं संजनयन्ति मे॥

मूलम्

अकारादीनि नामानि अर्जुनत्रस्तचेतसः ।
अश्वाश्चार्था ह्यजाश्चैव त्रासं संजनयन्ति मे॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरा हृदय अर्जुनसे इतना भयभीत हो गया है कि अश्व, अर्थ और अज आदि अकारादि नाम मेरे मनमें त्रास उत्पन्न कर देते हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नास्ति पार्थादृते तात परवीराद् भयं मम।
प्रह्लादं वा बलिं वापि हन्याद्धि विजयो रणे॥
तस्मात् तेन महाराज युद्धमस्मज्जनक्षयम्।
अहं तस्य प्रभावज्ञो नित्यं दुःखं वहामि च॥

मूलम्

नास्ति पार्थादृते तात परवीराद् भयं मम।
प्रह्लादं वा बलिं वापि हन्याद्धि विजयो रणे॥
तस्मात् तेन महाराज युद्धमस्मज्जनक्षयम्।
अहं तस्य प्रभावज्ञो नित्यं दुःखं वहामि च॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! अर्जुनके सिवा शत्रुपक्षके दूसरे किसी वीरसे मुझे डर नहीं लगता है। महाराज! मेरा विश्वास है कि अर्जुन युद्धमें प्रह्लाद अथवा बलिको भी मार सकते हैं; अतः उनके साथ किया हुआ युद्ध हमारे सैनिकोंके ही संहारका कारण होगा। मैं अर्जुनके प्रभावको जानता हूँ। इसीलिये सदा दुःखके भारसे दबा रहता हूँ।

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुरा हि दण्डकारण्ये मारीचस्य यथा भयम्।
भवेद् रामे महावीर्ये तथा पार्थे भयं मम॥

मूलम्

पुरा हि दण्डकारण्ये मारीचस्य यथा भयम्।
भवेद् रामे महावीर्ये तथा पार्थे भयं मम॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे पूर्वकालमें दण्डकारण्यवासी महापराक्रमी श्रीरामचन्द्रजीसे मारीचको भय हो गया था, उसी प्रकार अर्जुनसे मुझे भय हो रहा है।

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

जानाम्येव महद् वीर्यं जिष्णोरेतद् दुरासदम्।
तात वीरस्य पार्थस्य मा कार्षीस्त्वं तु विप्रियम्॥
द्यूतं वा शस्त्रयुद्धं वा दुर्वाक्यं वा कदाचन।
एतेष्वेवं कृते तस्य विग्रहश्चैव वो भवेत्॥
तस्मात् त्वं पुत्र पार्थेन नित्यं स्नेहेन वर्तय॥
यश्च पार्थेन सम्बन्धाद् वर्तते च नरो भुवि।
तस्य नास्ति भयं किंचित् त्रिषु लोकेषु भारत॥
तस्मात् त्वं जिष्णुना वत्स नित्यं स्नेहेन वर्तय॥

मूलम्

जानाम्येव महद् वीर्यं जिष्णोरेतद् दुरासदम्।
तात वीरस्य पार्थस्य मा कार्षीस्त्वं तु विप्रियम्॥
द्यूतं वा शस्त्रयुद्धं वा दुर्वाक्यं वा कदाचन।
एतेष्वेवं कृते तस्य विग्रहश्चैव वो भवेत्॥
तस्मात् त्वं पुत्र पार्थेन नित्यं स्नेहेन वर्तय॥
यश्च पार्थेन सम्बन्धाद् वर्तते च नरो भुवि।
तस्य नास्ति भयं किंचित् त्रिषु लोकेषु भारत॥
तस्मात् त्वं जिष्णुना वत्स नित्यं स्नेहेन वर्तय॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्र बोले— बेटा! अर्जुनके महान् पराक्रमको तो मैं जानता ही हूँ। उनके इस पराक्रमका सामना करना अत्यन्त कठिन है। अतः तुम वीर अर्जुनका कोई अपराध न करो। उनके साथ द्यूतक्रीड़ा, शस्त्रयुद्ध अथवा कटु वचनका प्रयोग कभी न करो; क्योंकि इन्हींके कारण उनका तुमलोगोंके साथ विवाद हो सकता है। अतः बेटा! तुम अर्जुनके साथ सदा स्नेहपूर्ण बर्ताव करो। भारत! जो मनुष्य इस पृथ्वीपर अर्जुनके साथ प्रेमपूर्ण सम्बन्ध रखते हुए उनसे सद्व्यवहार करता है, उसे तीनों लोकोंमें तनिक भी भय नहीं है; अतः वत्स! तुम अर्जुनके साथ सदा स्नेहपूर्ण बर्ताव करो।

मूलम् (वचनम्)

दुर्योधन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्यूते पार्थस्य कौरव्य मायया निकृतिः कृता।
तस्माद्धि तं जहि सदा त्वन्योपायेन नो भवेत्॥

मूलम्

द्यूते पार्थस्य कौरव्य मायया निकृतिः कृता।
तस्माद्धि तं जहि सदा त्वन्योपायेन नो भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधन बोला— कुरुश्रेष्ठ! जूएमें हमलोगोंने अर्जुनके प्रति छल-कपटका बर्ताव किया था, अतः आप किसी दूसरे उपायसे उन्हें मार डालें। इसीसे हमलोगोंका सदा भला होगा।

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपायश्च न कर्तव्यः पाण्डवान् प्रति भारत।
पार्थान् प्रति पुरा वत्स बहूपायाः कृतास्त्वया॥
तानुपायान् हि कौन्तेया बहुशो व्यतिचक्रमुः॥
तस्माद्धितं जीविताय नः कुलस्य जनस्य च।
त्वं चिकीर्षसि चेद् वत्स समित्रः सहबान्धवः।
सभ्रातृकस्त्वं पार्थेन नित्यं स्नेहेन वर्तय॥

मूलम्

उपायश्च न कर्तव्यः पाण्डवान् प्रति भारत।
पार्थान् प्रति पुरा वत्स बहूपायाः कृतास्त्वया॥
तानुपायान् हि कौन्तेया बहुशो व्यतिचक्रमुः॥
तस्माद्धितं जीविताय नः कुलस्य जनस्य च।
त्वं चिकीर्षसि चेद् वत्स समित्रः सहबान्धवः।
सभ्रातृकस्त्वं पार्थेन नित्यं स्नेहेन वर्तय॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने कहा— भारत! पाण्डवोंके प्रति किसी अनुचित उपायका प्रयोग नहीं करना चाहिये। बेटा! तुमने उन सबको मारनेके लिये पहले बहुत-से उपाय किये हैं। कुन्तीके पुत्र तुम्हारे उन सभी प्रयत्नोंका उल्लंघन करके बहुत बार आगे बढ़ गये हैं; अतः वत्स! यदि तुम अपने कुल और आत्मीयजनोंकी जीवनरक्षाके लिये किसी हितकर उपायका अवलम्बन करना चाहते हो तो मित्र, बन्धु-बान्धव तथा भाइयोंसहित तुम अर्जुनके साथ सदा स्नेहपूर्ण बर्ताव करो।

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृतराष्ट्रवचः श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्तदा।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं तु विधिना चोदितोऽब्रवीत्॥)

मूलम्

धृतराष्ट्रवचः श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्तदा।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं तु विधिना चोदितोऽब्रवीत्॥)

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— धृतराष्ट्रकी यह बात सुनकर राजा दुर्योधन दो घड़ीतक कुछ सोच-विचार करके विधातासे प्रेरित हो इस प्रकार बोला।

मूलम् (वचनम्)

दुर्योधन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

न त्वयेदं श्रुतं राजन् यज्जगाद बृहस्पतिः।
शक्रस्य नीतिं प्रवदन् विद्वान् देवपुरोहितः ॥ ७ ॥

मूलम्

न त्वयेदं श्रुतं राजन् यज्जगाद बृहस्पतिः।
शक्रस्य नीतिं प्रवदन् विद्वान् देवपुरोहितः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधन बोला— राजन्! देवगुरु विद्वान् बृहस्पतिजीने इन्द्रको नीतिका उपदेश करते हुए जो बात कही है, उसे शायद आपने नहीं सुना है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वोपायैर्निहन्तव्याः शत्रवः शत्रुसूदन ।
पुरा युद्धाद् बलाद् वापि प्रकुर्वन्ति तवाहितम् ॥ ८ ॥

मूलम्

सर्वोपायैर्निहन्तव्याः शत्रवः शत्रुसूदन ।
पुरा युद्धाद् बलाद् वापि प्रकुर्वन्ति तवाहितम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुसूदन! जो आपका अहित करते हैं, उन शत्रुओंको बिना युद्धके अथवा युद्ध करके—सभी उपायोंसे मार डालना चाहिये॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वयं पाण्डवधनैः सर्वान् सम्पूज्य पार्थिवान्।
यदि तान् योधयिष्यामः किं वै नः परिहास्यति ॥ ९ ॥

मूलम्

ते वयं पाण्डवधनैः सर्वान् सम्पूज्य पार्थिवान्।
यदि तान् योधयिष्यामः किं वै नः परिहास्यति ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! यदि हम पाण्डवोंके धनसे सब राजाओंका सत्कार करके उन्हें साथ ले पाण्डवोंसे युद्ध करें, तो हमारा क्या बिगड़ जायगा?॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहीनाशीविषान्‌ क्रुद्धान्‌ नाशाय समुपस्थितान्।
कृत्वा कण्ठे च पृष्ठे च कः समुत्स्रष्टुमर्हति ॥ १० ॥

मूलम्

अहीनाशीविषान्‌ क्रुद्धान्‌ नाशाय समुपस्थितान्।
कृत्वा कण्ठे च पृष्ठे च कः समुत्स्रष्टुमर्हति ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरकर काटनेके लिये उद्यत हुए विषधर सर्पोंको अपने गलेमें लटकाकर अथवा पीठपर चढ़ाकर कौन मनुष्य उन्हें उसी अवस्थामें छोड़ सकता है?॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आत्तशस्त्रा रथगताः कुपितास्तात पाण्डवाः।
निःशेषं वः करिष्यन्ति क्रुद्धा ह्याशीविषा इव ॥ ११ ॥

मूलम्

आत्तशस्त्रा रथगताः कुपितास्तात पाण्डवाः।
निःशेषं वः करिष्यन्ति क्रुद्धा ह्याशीविषा इव ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! अस्त्र-शस्त्रोंको लेकर रथमें बैठे हुए पाण्डव कुपित होकर क्रुद्ध विषधर सर्पोंकी भाँति आपके कुलका संहार कर डालेंगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संनद्धो ह्यर्जुनो याति विधृत्य परमेषुधी।
गाण्डीवं मुहुरादत्ते निःश्वसंश्च निरीक्षते ॥ १२ ॥
गदां गुर्वीं समुद्यम्य त्वरितश्च वृकोदरः।
स्वरथं योजयित्वाऽऽशु निर्यात इति नः श्रुतम् ॥ १३ ॥

मूलम्

संनद्धो ह्यर्जुनो याति विधृत्य परमेषुधी।
गाण्डीवं मुहुरादत्ते निःश्वसंश्च निरीक्षते ॥ १२ ॥
गदां गुर्वीं समुद्यम्य त्वरितश्च वृकोदरः।
स्वरथं योजयित्वाऽऽशु निर्यात इति नः श्रुतम् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमने सुना है, अर्जुन कवच धारण करके दो उत्तम तूणीर पीठपर लटकाये हुए जाते हैं। वे बार-बार गाण्डीव धनुष हाथमें लेते हैं और लम्बी साँसें खींचकर इधर-उधर देखते हैं। इसी प्रकार भीमसेन शीघ्र ही अपना रथ जोतकर भारी गदा उठाये बड़ी उतावलीके साथ यहाँसे निकलकर गये हैं॥१२-१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलः खड्‌गमादाय चर्म चाप्यर्धचन्द्रवत्।
सहदेवश्च राजा च चक्रुराकारमिङ्गितैः ॥ १४ ॥

मूलम्

नकुलः खड्‌गमादाय चर्म चाप्यर्धचन्द्रवत्।
सहदेवश्च राजा च चक्रुराकारमिङ्गितैः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नकुल अर्धचन्द्रविभूषित ढाल एवं तलवार लेकर जा रहे हैं। सहदेव तथा राजा युधिष्ठिरने भी विभिन्न चेष्टाओंद्वारा यह व्यक्त कर दिया है कि वे लोग क्या करना चाहते हैं?॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते त्वास्थाय रथान् सर्वे बहुशस्त्रपरिच्छदान्।
अभिघ्नन्तो रथव्रातान् सेनायोगाय निर्ययुः ॥ १५ ॥

मूलम्

ते त्वास्थाय रथान् सर्वे बहुशस्त्रपरिच्छदान्।
अभिघ्नन्तो रथव्रातान् सेनायोगाय निर्ययुः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे सब लोग अनेक शस्त्र आदि सामग्रियोंसे सम्पन्न रथोंपर बैठकर शत्रुपक्षके रथियोंका संहार करनेके उद्देश्यसे सेना एकत्र करनेके लिये गये हैं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न क्षंस्यन्ते तथास्माभिर्जातु विप्रकृता हि ते।
द्रौपद्याश्च परिक्लेशं कस्तेषां क्षन्तुमर्हति ॥ १६ ॥

मूलम्

न क्षंस्यन्ते तथास्माभिर्जातु विप्रकृता हि ते।
द्रौपद्याश्च परिक्लेशं कस्तेषां क्षन्तुमर्हति ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमने उनका तिरस्कार किया है, अतः वे इसके लिये हमें कभी क्षमा न करेंगे। द्रौपदीको जो कष्ट दिया गया है, उसे उनमेंसे कौन चुपचाप सह लेगा?॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनर्दीव्याम भद्रं ते वनवासाय पाण्डवैः।
एवमेतान् वशे कर्तुं शक्ष्यामः पुरुषर्षभ ॥ १७ ॥

मूलम्

पुनर्दीव्याम भद्रं ते वनवासाय पाण्डवैः।
एवमेतान् वशे कर्तुं शक्ष्यामः पुरुषर्षभ ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषश्रेष्ठ! आपका भला हो, हम चाहते हैं कि वनवासकी शर्त रखकर पाण्डवोंके साथ फिर एक बार जूआ खेलें। इस प्रकार इन्हें हम अपने वशमें कर सकेंगे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वा द्वादश वर्षाणि वयं वा द्यूतनिर्जिताः।
प्रविशेम महारण्यमजिनैः प्रतिवासिताः ॥ १८ ॥

मूलम्

ते वा द्वादश वर्षाणि वयं वा द्यूतनिर्जिताः।
प्रविशेम महारण्यमजिनैः प्रतिवासिताः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जूएमें हार जानेपर वे या हम मृगचर्म धारण करके महान् वनमें प्रवेश करें और बारह वर्षतक वनमें ही निवास करें॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रयोदशं च सजने अज्ञाताः परिवत्सरम्।
ज्ञाताश्च पुनरन्यानि वने वर्षाणि द्वादश ॥ १९ ॥
निवसेम वयं ते वा तथा द्यूतं प्रवर्तताम्।
अक्षानुप्त्वा पुनर्द्यूतमिदं कुर्वन्तु पाण्डवाः ॥ २० ॥

मूलम्

त्रयोदशं च सजने अज्ञाताः परिवत्सरम्।
ज्ञाताश्च पुनरन्यानि वने वर्षाणि द्वादश ॥ १९ ॥
निवसेम वयं ते वा तथा द्यूतं प्रवर्तताम्।
अक्षानुप्त्वा पुनर्द्यूतमिदं कुर्वन्तु पाण्डवाः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तेरहवें वर्षमें लोगोंकी जानकारीसे दूर किसी नगरमें रहें। यदि तेरहवें वर्ष किसीकी जानकारीमें आ जायँ तो फिर दुबारा बारह वर्षतक वनवास करें। हम हारें तो हम ऐसा करें और उनकी हार हो तो वे। इसी शर्तपर फिर जूएका खेल आरम्भ हो। पाण्डव पासे फेंककर जूआ खेलें॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतत् कृत्यतमं राजन्नस्माकं भरतर्षभ।
अयं हि शकुनिर्वेद सविद्यामक्षसम्पदम् ॥ २१ ॥

मूलम्

एतत् कृत्यतमं राजन्नस्माकं भरतर्षभ।
अयं हि शकुनिर्वेद सविद्यामक्षसम्पदम् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतकुलभूषण महाराज! यही हमारा सबसे महान् कार्य है। ये शकुनि मामा विद्यासहित पासे फेंकनेकी कलाको अच्छी तरह जानते हैं॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृढमूला वयं राज्ये मित्राणि परिगृह्य च।
सारवद् विपुलं सैन्यं सत्कृत्य च दुरासदम् ॥ २२ ॥

मूलम्

दृढमूला वयं राज्ये मित्राणि परिगृह्य च।
सारवद् विपुलं सैन्यं सत्कृत्य च दुरासदम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(हमारी विजय होनेपर) हमलोग बहुत-से मित्रोंका संग्रह करके बलशाली, दुर्धर्ष एवं विशाल सेनाका पुरस्कार आदिके द्वारा सत्कार करते हुए इस राज्यपर अपनी जड़ जमा लेंगे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते च त्रयोदशं वर्षं पारयिष्यन्ति चेद् व्रतम्।
जेष्यामस्तान् वयं राजन् रोचतां ते परंतप ॥ २३ ॥

मूलम्

ते च त्रयोदशं वर्षं पारयिष्यन्ति चेद् व्रतम्।
जेष्यामस्तान् वयं राजन् रोचतां ते परंतप ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि वे तेरहवें वर्षके अज्ञातवासकी प्रतिज्ञा पूर्ण कर लेंगे तो हम उन्हें युद्धमें परास्त कर देंगे। शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! आप हमारे इस प्रस्तावको पसंद करें॥२३॥

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तूर्णं प्रत्यानयस्वैतान् कामं व्यध्वगतानपि।
आगच्छन्तु पुनर्द्यूतमिदं कुर्वन्तु पाण्डवाः ॥ २४ ॥

मूलम्

तूर्णं प्रत्यानयस्वैतान् कामं व्यध्वगतानपि।
आगच्छन्तु पुनर्द्यूतमिदं कुर्वन्तु पाण्डवाः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने कहा— बेटा! पाण्डवलोग दूर चले गये हों, तो भी तुम्हारी इच्छा हो, तो उन्हें तुरंत बुला लो। समस्त पाण्डव यहाँ आयें और इस नये दाँवपर फिर जूआ खेलें॥२४॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो द्रोणः सोमदत्तो बाह्लीकश्चैव गौतमः।
विदुरो द्रोणपुत्रश्च वैश्यापुत्रश्च वीर्यवान् ॥ २५ ॥
भूरिश्रवाः शान्तनवो विकर्णश्च महारथः।
मा द्यूतमित्यभाषन्त शमोऽस्त्विति च सर्वशः ॥ २६ ॥

मूलम्

ततो द्रोणः सोमदत्तो बाह्लीकश्चैव गौतमः।
विदुरो द्रोणपुत्रश्च वैश्यापुत्रश्च वीर्यवान् ॥ २५ ॥
भूरिश्रवाः शान्तनवो विकर्णश्च महारथः।
मा द्यूतमित्यभाषन्त शमोऽस्त्विति च सर्वशः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! तब द्रोणाचार्य, सोमदत्त, बाह्लीक, कृपाचार्य, विदुर, अश्वत्थामा, पराक्रमी युयुत्सु, भूरिश्रवा, पितामह भीष्म तथा महारथी विकर्ण सबने एक स्वरसे इस निर्णयका विरोध करते हुए कहा—‘अब जूआ नहीं होना चाहिये, तभी सर्वत्र शान्ति बनी रह सकती है’॥२५-२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अकामानां च सर्वेषां सुहृदामर्थदर्शिनाम्।
अकरोत् पाण्डवाह्वानं धृतराष्ट्रः सुतप्रियः ॥ २७ ॥

मूलम्

अकामानां च सर्वेषां सुहृदामर्थदर्शिनाम्।
अकरोत् पाण्डवाह्वानं धृतराष्ट्रः सुतप्रियः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भावी अर्थको देखने और समझनेवाले सुहृद् अपनी अनिच्छा प्रकट करते ही रह गये; किंतु दुर्योधनादि पुत्रोंके प्रेममें आकर धृतराष्ट्रने पाण्डवोंको बुलानेका आदेश दे ही दिया॥२७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते सभापर्वणि अनुद्यूतपर्वणि युधिष्ठिरप्रत्यानयने चतुःसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्वके अन्तर्गत अनुद्यूतपर्वमें युधिष्ठिरप्रत्यानयनविषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७४॥

Misc Detail

[दाक्षिणात्य अधिक पाठके ६७ श्लोक मिलाकर कुल ९४ श्लोक हैं।]