श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
एकोनत्रिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनका पूर्व दिशाको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर विजय पाना
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नेव काले तु भीमसेनोऽपि वीर्यवान्।
धर्मराजमनुप्राप्य ययौ प्राचीं दिशं प्रति ॥ १ ॥
महता बलचक्रेण परराष्ट्रावमर्दिना ।
हस्त्यश्वरथपूर्णेन दंशितेन प्रतापवान् ॥ २ ॥
वृतो भरतशार्दूलो द्विषच्छोकविवर्द्धनः ।
मूलम्
एतस्मिन्नेव काले तु भीमसेनोऽपि वीर्यवान्।
धर्मराजमनुप्राप्य ययौ प्राचीं दिशं प्रति ॥ १ ॥
महता बलचक्रेण परराष्ट्रावमर्दिना ।
हस्त्यश्वरथपूर्णेन दंशितेन प्रतापवान् ॥ २ ॥
वृतो भरतशार्दूलो द्विषच्छोकविवर्द्धनः ।
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! इसी समय शत्रुओंका शोक बढ़ानेवाले भरतवंशशिरोमणि महाप्रतापी एवं पराक्रमी भीमसेन भी धर्मराजकी आज्ञा ले, शत्रुके राज्यको कुचल देनेवाली और हाथी, घोड़े एवं रथसे भरी हुई, कवच आदिसे सुसज्जित विशाल सेनाके साथ पूर्व दिशाको जीतनेके लिये चले॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स गत्वा नरशार्दूलः पञ्चालानां पुरं महत् ॥ ३ ॥
पञ्चालान् विविधोपायैः सान्त्वयामास पाण्डवः।
मूलम्
स गत्वा नरशार्दूलः पञ्चालानां पुरं महत् ॥ ३ ॥
पञ्चालान् विविधोपायैः सान्त्वयामास पाण्डवः।
अनुवाद (हिन्दी)
नरश्रेष्ठ भीमसेनने पहले पांचालोंकी महानगरी अहिच्छत्रामें जाकर भाँति-भाँतिके उपायोंसे पांचाल वीरोंको समझा-बुझाकर वशमें किया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स गण्डकाञ्छूरो विदेहान् भरतर्षभः ॥ ४ ॥
विजित्याल्पेन कालेन दशार्णानजयत् प्रभुः।
तत्र दाशार्णको राजा सुधर्मा लोमहर्षणम्।
कृतवान् भीमसेनेन महद् युद्धं निरायुधम् ॥ ५ ॥
मूलम्
ततः स गण्डकाञ्छूरो विदेहान् भरतर्षभः ॥ ४ ॥
विजित्याल्पेन कालेन दशार्णानजयत् प्रभुः।
तत्र दाशार्णको राजा सुधर्मा लोमहर्षणम्।
कृतवान् भीमसेनेन महद् युद्धं निरायुधम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँसे आगे जाकर उन भरतवंशशिरोमणि शूर-वीर भीमने गण्डक (गण्डकी नदीके तटवर्ती) और विदेह (मिथिला) देशोंको थोड़े ही समयमें जीतकर दशार्ण देशको भी अपने अधिकारमें कर लिया। वहाँ दशार्णनरेश सुधर्माने भीमसेनके साथ बिना अस्त्र-शस्त्रके ही महान् युद्ध किया। उन दोनोंका वह मल्लयुद्ध रोंगटे खड़े कर देनेवाला था॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु तद् दृष्ट्वा तस्य कर्म महात्मनः।
अधिसेनापतिं चक्रे सुधर्माणं महाबलम् ॥ ६ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु तद् दृष्ट्वा तस्य कर्म महात्मनः।
अधिसेनापतिं चक्रे सुधर्माणं महाबलम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनने उस महामना राजाका यह अद्भुत पराक्रम देखकर महाबली सुधर्माको अपना प्रधान सेनापति बना दिया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्राचीं दिशं भीमो ययौ भीमपराक्रमः।
सैन्येन महता राजन् कम्पयन्निव मेदिनीम् ॥ ७ ॥
मूलम्
ततः प्राचीं दिशं भीमो ययौ भीमपराक्रमः।
सैन्येन महता राजन् कम्पयन्निव मेदिनीम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसके बाद भयानक पराक्रमी भीमसेन पुनः विशाल सेनाके साथ पृथ्वीको कँपाते हुए पूर्व दिशाकी ओर बढ़े॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽश्वमेधेश्वरं राजन् रोचमानं सहानुगम्।
जिगाय समरे वीरो बलेन बलिनां वरः ॥ ८ ॥
मूलम्
सोऽश्वमेधेश्वरं राजन् रोचमानं सहानुगम्।
जिगाय समरे वीरो बलेन बलिनां वरः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजय! बलवानोंमें श्रेष्ठ वीरवर भीमने अश्वमेध-देशके राजा रोचमानको उनके सेवकोंसहित बलपूर्वक जीत लिया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तं निर्जित्य कौन्तेयो नातितीव्रेण कर्मणा।
पूर्वदेशं महावीर्यो विजिग्ये कुरुनन्दनः ॥ ९ ॥
मूलम्
स तं निर्जित्य कौन्तेयो नातितीव्रेण कर्मणा।
पूर्वदेशं महावीर्यो विजिग्ये कुरुनन्दनः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हें हराकर महापराक्रमी कुरुनन्दन कुन्तीकुमार भीमने कोमल बर्तावके द्वारा ही पूर्वदेशपर विजय प्राप्त कर ली॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दक्षिणमागम्य पुलिन्दनगरं महत्।
सुकुमारं वशे चक्रे सुमित्रं च नराधिपम् ॥ १० ॥
मूलम्
ततो दक्षिणमागम्य पुलिन्दनगरं महत्।
सुकुमारं वशे चक्रे सुमित्रं च नराधिपम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर दक्षिण आकर पुलिन्दोंके महान् नगर सुकुमार और वहाँके राजा सुमित्रको अपने अधीन कर लिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु धर्मराजस्य शासनाद् भरतर्षभः।
शिशुपालं महावीर्यमभ्यगाज्जनमेजय ॥ ११ ॥
मूलम्
ततस्तु धर्मराजस्य शासनाद् भरतर्षभः।
शिशुपालं महावीर्यमभ्यगाज्जनमेजय ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजय! तत्पश्चात् भरतश्रेष्ठ भीम धर्मराजकी आज्ञासे महापराक्रमी शिशुपालके यहाँ गये॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चेदिराजोऽपि तच्छ्रुत्वा पाण्डवस्य चिकीर्षितम्।
उपनिष्क्रम्य नगरात् प्रत्यगृह्णात् परंतप ॥ १२ ॥
मूलम्
चेदिराजोऽपि तच्छ्रुत्वा पाण्डवस्य चिकीर्षितम्।
उपनिष्क्रम्य नगरात् प्रत्यगृह्णात् परंतप ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतप! चेदिराज शिशुपालने भी पाण्डुकुमार भीमका अभिप्राय जानकर नगरसे बाहर आ स्वागत-सत्कारके साथ उन्हें अपनाया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ समेत्य महाराज कुरुचेदिवृषौ तदा।
उभयोरात्मकुलयोः कौशल्यं पर्यपृच्छताम् ॥ १३ ॥
मूलम्
तौ समेत्य महाराज कुरुचेदिवृषौ तदा।
उभयोरात्मकुलयोः कौशल्यं पर्यपृच्छताम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! कुरुकुल और चेदिकुलके वे श्रेष्ठ पुरुष परस्पर मिलकर दोनोंने दोनों कुलोंके कुशल-प्रश्न पूछे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो निवेद्य तद् राष्ट्रं चेदिराजो विशाम्पते।
उवाच भीमं प्रहसन् किमिदं कुरुषेऽनघ ॥ १४ ॥
मूलम्
ततो निवेद्य तद् राष्ट्रं चेदिराजो विशाम्पते।
उवाच भीमं प्रहसन् किमिदं कुरुषेऽनघ ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर चेदिराजने अपना राष्ट्र भीमसेनको सौंपकर हँसते हुए पूछा—‘अनघ! यह क्या करते हो?’॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य भीमस्तदाऽऽचख्यौ धर्मराजचिकीर्षितम् ।
स च तं प्रतिगृह्यैव तथा चक्रे नराधिपः ॥ १५ ॥
मूलम्
तस्य भीमस्तदाऽऽचख्यौ धर्मराजचिकीर्षितम् ।
स च तं प्रतिगृह्यैव तथा चक्रे नराधिपः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भीमने उससे धर्मराज जो कुछ करना चाहते थे, वह सब कह सुनाया। तदनन्तर राजा शिशुपालने उनकी बात मानकर कर देना स्वीकार कर लिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमस्तत्र राजन्नुषित्वा त्रिदश क्षपाः।
सत्कृतः शिशुपालेन ययौ सबलवाहनः ॥ १६ ॥
मूलम्
ततो भीमस्तत्र राजन्नुषित्वा त्रिदश क्षपाः।
सत्कृतः शिशुपालेन ययौ सबलवाहनः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उसके बाद शिशुपालसे सम्मानित हो भीमसेन अपनी सेना और सवारियोंके साथ तेरह दिन वहाँ रह गये। तत्पश्चात् वहाँसे विदा हुए॥१६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि भीमदिग्विजये एकोनत्रिंशोऽध्यायः ॥ २९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्वके अन्तर्गत दिग्विजयपर्वमें भीमदिग्विजयविषयक उन्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२९॥