श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
द्विषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनका भोजन-सामग्री लेकर बकासुरके पास जाना और स्वयं भोजन करना तथा युद्ध करके उसे मार गिराना
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
उपपन्नमिदं मातस्त्वया यद् बुद्धिपूर्वकम्।
आर्तस्य ब्राह्मणस्यैतदनुक्रोशादिदं कृतम् ॥ १ ॥
मूलम्
उपपन्नमिदं मातस्त्वया यद् बुद्धिपूर्वकम्।
आर्तस्य ब्राह्मणस्यैतदनुक्रोशादिदं कृतम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर बोले— माँ! आपने समझ-बूझकर जो कुछ निश्चय किया है, वह सब उचित है। आपने संकटमें पड़े हुए ब्राह्मणपर दया करके ही ऐसा विचार किया है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ध्रुवमेष्यति भीमोऽयं निहत्य पुरुषादकम्।
सर्वथा ब्राह्मणस्यार्थे यदनुक्रोशवत्यसि ॥ २ ॥
मूलम्
ध्रुवमेष्यति भीमोऽयं निहत्य पुरुषादकम्।
सर्वथा ब्राह्मणस्यार्थे यदनुक्रोशवत्यसि ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
निश्चय ही भीमसेन उस राक्षसको मारकर लौट आयेंगे; क्योंकि आप सर्वथा ब्राह्मणकी रक्षाके लिये ही उसपर इतनी दयालु हुई हैं॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा त्विदं न विन्देयुर्नरा नगरवासिनः।
तथायं ब्राह्मणो वाच्यः परिग्राह्यश्च यत्नतः ॥ ३ ॥
मूलम्
यथा त्विदं न विन्देयुर्नरा नगरवासिनः।
तथायं ब्राह्मणो वाच्यः परिग्राह्यश्च यत्नतः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपको यत्नपूर्वक ब्राह्मणपर अनुग्रह तो करना ही चाहिये; किंतु ब्राह्मणसे यह कह देना चाहिये कि वे इस प्रकार मौन रहें कि नगरनिवासियोंको यह बात मालूम न होने पाये॥३॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
(युधिष्ठिरेण सम्मन्त्र्य ब्राह्मणार्थमरिंदम ।
कुन्ती प्रविश्य तान् सर्वान् सान्त्वयामास भारत॥)
ततो रात्र्यां व्यतीतायामन्नमादाय पाण्डवः।
भीमसेनो ययौ तत्र यत्रासौ पुरुषादकः ॥ ४ ॥
आसाद्य तु वनं तस्य रक्षसः पाण्डवो बली।
आजुहाव ततो नाम्ना तदन्नमुपपादयन् ॥ ५ ॥
मूलम्
(युधिष्ठिरेण सम्मन्त्र्य ब्राह्मणार्थमरिंदम ।
कुन्ती प्रविश्य तान् सर्वान् सान्त्वयामास भारत॥)
ततो रात्र्यां व्यतीतायामन्नमादाय पाण्डवः।
भीमसेनो ययौ तत्र यत्रासौ पुरुषादकः ॥ ४ ॥
आसाद्य तु वनं तस्य रक्षसः पाण्डवो बली।
आजुहाव ततो नाम्ना तदन्नमुपपादयन् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! ब्राह्मण (की रक्षा)-के निमित्त युधिष्ठिरसे इस प्रकार सलाह करके कुन्तीदेवीने भीतर जाकर समस्त ब्राह्मण-परिवारको सान्त्वना दी। तदनन्तर रात बीतनेपर पाण्डुनन्दन भीमसेन भोजनसामग्री लेकर उस स्थानपर गये, जहाँ वह नरभक्षी राक्षस रहता था। बक राक्षसके वनमें पहुँचकर महाबली पाण्डुकुमार भीमसेन उसके लिये लाये हुए अन्नको स्वयं खाते हुए राक्षसका नाम ले-लेकर उसे पुकारने लगे॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स राक्षसः क्रुद्धो भीमस्य वचनात् तदा।
आजगाम सुसंक्रुद्धो यत्र भीमो व्यवस्थितः ॥ ६ ॥
मूलम्
ततः स राक्षसः क्रुद्धो भीमस्य वचनात् तदा।
आजगाम सुसंक्रुद्धो यत्र भीमो व्यवस्थितः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमके इस प्रकार पुकारनेसे वह राक्षस कुपित हो उठा और अत्यन्त क्रोधमें भरकर जहाँ भीमसेन बैठकर भोजन कर रहे थे, वहाँ आया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महाकायो महावेगो दारयन्निव मेदिनीम्।
लोहिताक्षः करालश्च लोहितश्मश्रुमूर्धजः ॥ ७ ॥
मूलम्
महाकायो महावेगो दारयन्निव मेदिनीम्।
लोहिताक्षः करालश्च लोहितश्मश्रुमूर्धजः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसका शरीर बहुत बड़ा था। वह इतने महान् वेगसे चलता था, मानो पृथ्वीको विदीर्ण कर देगा। उसकी आँखें रोषसे लाल हो रही थीं। आकृति बड़ी विकराल जान पड़ती थी। उसके दाढ़ी, मूँछ और सिरके बाल लाल रंगके थे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आकर्णाद् भिन्नवक्त्रश्च शङ्कुर्णो बिभीषणः।
त्रिशिखां भ्रुकुटिं कृत्वा संदश्य दशनच्छदम् ॥ ८ ॥
मूलम्
आकर्णाद् भिन्नवक्त्रश्च शङ्कुर्णो बिभीषणः।
त्रिशिखां भ्रुकुटिं कृत्वा संदश्य दशनच्छदम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मुँहका फैलाव कानोंके समीपतक था, कान भी शंकुके समान लंबे और नुकीले थे। बड़ा भयानक था वह राक्षस। उसने भौंहें ऐसी टेढ़ी कर रखी थीं कि वहाँ तीन रेखाएँ उभड़ आयी थीं और वह दाँतोंसे ओठ चबा रहा था॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भुञ्जानमन्नं तं दृष्ट्वा भीमसेनं स राक्षसः।
विवृत्य नयने क्रुद्ध इदं वचनमब्रवीत् ॥ ९ ॥
मूलम्
भुञ्जानमन्नं तं दृष्ट्वा भीमसेनं स राक्षसः।
विवृत्य नयने क्रुद्ध इदं वचनमब्रवीत् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनको वह अन्न खाते देख राक्षसका क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने आँखें तरेरकर कहा—॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोऽयमन्नमिदं भुङ्क्ते मदर्थमुपकल्पितम् ।
पश्यतो मम दुर्बुद्धिर्यियासुर्यमसादनम् ॥ १० ॥
मूलम्
कोऽयमन्नमिदं भुङ्क्ते मदर्थमुपकल्पितम् ।
पश्यतो मम दुर्बुद्धिर्यियासुर्यमसादनम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यमलोकमें जानेकी इच्छा रखनेवाला यह कौन दुर्बुद्धि मनुष्य है, जो मेरी आँखोंके सामने मेरे ही लिये तैयार करके लाये हुए इस अन्नको स्वयं खा रहा है?’॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्ततः श्रुत्वा प्रहसन्निव भारत।
राक्षसं तमनादृत्य भुङ्क्त एव पराङ्मुखः ॥ ११ ॥
मूलम्
भीमसेनस्ततः श्रुत्वा प्रहसन्निव भारत।
राक्षसं तमनादृत्य भुङ्क्त एव पराङ्मुखः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उसकी बात सुनकर भीमसेन मानो जोर-जोरसे हँसने लगे और उस राक्षसकी अवहेलना करते हुए मुँह फेरकर खाते ही रह गये॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रवं स भैरवं कृत्वा समुद्यम्य करावुभौ।
अभ्यद्रवद् भीमसेनं जिघांसुः पुरुषादकः ॥ १२ ॥
मूलम्
रवं स भैरवं कृत्वा समुद्यम्य करावुभौ।
अभ्यद्रवद् भीमसेनं जिघांसुः पुरुषादकः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अब तो वह नरभक्षी राक्षस भीमसेनको मार डालनेकी इच्छासे भयंकर गर्जना करता हुआ दोनों हाथ ऊपर उठाकर उनकी ओर दौड़ा॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथापि परिभूयैनं प्रेक्षमाणो वृकोदरः।
राक्षसं भुङ्क्त एवान्नं पाण्डवः परवीरहा ॥ १३ ॥
अमर्षेण तु सम्पूर्णः कुन्तीपुत्रं वृकोदरम्।
जघान पृष्ठे पाणिभ्यामुभाभ्यां पृष्ठतः स्थितः ॥ १४ ॥
मूलम्
तथापि परिभूयैनं प्रेक्षमाणो वृकोदरः।
राक्षसं भुङ्क्त एवान्नं पाण्डवः परवीरहा ॥ १३ ॥
अमर्षेण तु सम्पूर्णः कुन्तीपुत्रं वृकोदरम्।
जघान पृष्ठे पाणिभ्यामुभाभ्यां पृष्ठतः स्थितः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तो भी शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले पाण्डुनन्दन भीमसेन उस राक्षसकी ओर देखते हुए उसका तिरस्कार करके उस अन्नको खाते ही रहे। तब उसने अत्यन्त अमर्षमें भरकर कुन्तीनन्दन भीमसेनके पीछे खड़े हो अपने दोनों हाथोंसे उनकी पीठपर प्रहार किया॥१३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा बलवता भीमः पाणिभ्यां भृशमाहतः।
नैवावलोकयामास राक्षसं भुङ्क्त एव सः ॥ १५ ॥
मूलम्
तथा बलवता भीमः पाणिभ्यां भृशमाहतः।
नैवावलोकयामास राक्षसं भुङ्क्त एव सः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार बलवान् राक्षसके दोनों हाथोंसे भयानक चोट खाकर भी भीमसेनने उसकी ओर देखातक नहीं, वे भोजन करनेमें ही संलग्न रहे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स भूयः संक्रुद्धो वृक्षमादाय राक्षसः।
ताडयिष्यंस्तदा भीमं पुनरभ्यद्रवद् बली ॥ १६ ॥
मूलम्
ततः स भूयः संक्रुद्धो वृक्षमादाय राक्षसः।
ताडयिष्यंस्तदा भीमं पुनरभ्यद्रवद् बली ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब उस बलवान् राक्षसने पुनः अत्यन्त कुपित हो एक वृक्ष उखाड़कर भीमसेनको मारनेके लिये फिर उनपर धावा किया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमः शनैर्भुक्त्वा तदन्नं पुरुषर्षभः।
वार्युपस्पृश्य संहृष्टस्तस्थौ युधि महाबलः ॥ १७ ॥
मूलम्
ततो भीमः शनैर्भुक्त्वा तदन्नं पुरुषर्षभः।
वार्युपस्पृश्य संहृष्टस्तस्थौ युधि महाबलः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर नरश्रेष्ठ महाबली भीमसेनने धीरे-धीरे वह सब अन्न खाकर, आचमन करके मुँह-हाथ धो लिये, फिर वे अत्यन्त प्रसन्न हो युद्धके लिये डट गये॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षिप्तं क्रुद्धेन तं वृक्षं प्रतिजग्राह वीर्यवान्।
सव्येन पाणिना भीमः प्रहसन्निव भारत ॥ १८ ॥
मूलम्
क्षिप्तं क्रुद्धेन तं वृक्षं प्रतिजग्राह वीर्यवान्।
सव्येन पाणिना भीमः प्रहसन्निव भारत ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजय! कुपित राक्षसके द्वारा चलाये हुए उस वृक्षको पराक्रमी भीमसेनने बायें हाथसे हँसते हुए-से पकड़ लिया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स पुनरुद्यम्य वृक्षान् बहुविधान् बली।
प्राहिणोद् भीमसेनाय तस्मै भीमश्च पाण्डवः ॥ १९ ॥
मूलम्
ततः स पुनरुद्यम्य वृक्षान् बहुविधान् बली।
प्राहिणोद् भीमसेनाय तस्मै भीमश्च पाण्डवः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब उस बलवान् निशाचरने पुनः बहुत-से वृक्षोंको उखाड़ा और भीमसेनपर चला दिया। पाण्डुनन्दन भीमने भी उसपर अनेक वृक्षोंद्वारा प्रहार किया॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् वृक्षयुद्धमभवन्महीरुहविनाशनम् ।
घोररूपं महाराज नरराक्षसराजयोः ॥ २० ॥
मूलम्
तद् वृक्षयुद्धमभवन्महीरुहविनाशनम् ।
घोररूपं महाराज नरराक्षसराजयोः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! नरराज तथा राक्षसराजका वह भयंकर वृक्षयुद्ध उस वनके समस्त वृक्षोंके विनाशका कारण बन गया॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाम विश्राव्य तु बकः समभिद्रुत्य पाण्डवम्।
भुजाभ्यां परिजग्राह भीमसेनं महाबलम् ॥ २१ ॥
मूलम्
नाम विश्राव्य तु बकः समभिद्रुत्य पाण्डवम्।
भुजाभ्यां परिजग्राह भीमसेनं महाबलम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर बकासुरने अपना नाम सुनाकर महाबली पाण्डुनन्दन भीमसेनकी ओर दौड़कर दोनों बाँहोंसे उन्हें पकड़ लिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनोऽपि तद् रक्षः परिरभ्य महाभुजः।
विस्फुरन्तं महाबाहुं विचकर्ष बलाद् बली ॥ २२ ॥
मूलम्
भीमसेनोऽपि तद् रक्षः परिरभ्य महाभुजः।
विस्फुरन्तं महाबाहुं विचकर्ष बलाद् बली ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहु बलवान् भीमसेनने भी उस विशाल भुजाओंवाले राक्षसको दोनों भुजाओंसे कसकर छातीसे लगा लिया और बलपूर्वक उसे इधर-उधर खींचने लगे। उस समय बकासुर उनके बाहुपाशसे छूटनेके लिये छटपटा रहा था॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स कृष्यमाणो भीमेन कर्षमाणश्च पाण्डवम्।
समयुज्यत तीव्रेण क्लमेन पुरुषादकः ॥ २३ ॥
मूलम्
स कृष्यमाणो भीमेन कर्षमाणश्च पाण्डवम्।
समयुज्यत तीव्रेण क्लमेन पुरुषादकः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन उस राक्षसको खींचते थे तथा राक्षस भीमसेनको खींच रहा था। इस खींचा-खींचीमें वह नरभक्षी राक्षस बहुत थक गया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोर्वेगेन महता पृथिवी समकम्पत।
पादपांश्च महाकायांश्चूर्णयामासतुस्तदा ॥ २४ ॥
मूलम्
तयोर्वेगेन महता पृथिवी समकम्पत।
पादपांश्च महाकायांश्चूर्णयामासतुस्तदा ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंके महान् वेगसे धरती जोरसे काँपने लगी। उन दोनोंने उस समय बड़े-बड़े वृक्षोंके भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हीयमानं तु तद् रक्षः समीक्ष्य पुरुषादकम्।
निष्पिष्य भूमौ जानुभ्यां समाजघ्ने वृकोदरः ॥ २५ ॥
मूलम्
हीयमानं तु तद् रक्षः समीक्ष्य पुरुषादकम्।
निष्पिष्य भूमौ जानुभ्यां समाजघ्ने वृकोदरः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस नरभक्षी राक्षसको कमजोर पड़ते देख भीमसेन उसे पृथ्वीपर पटककर रगड़ने और दोनों घुटनोंसे मारने लगे॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽस्य जानुना पृष्ठमवपीड्य बलादिव।
बाहुना परिजग्राह दक्षिणेन शिरोधराम् ॥ २६ ॥
सव्येन च कटीदेशे गृह्य वाससि पाण्डवः।
तद् रक्षो द्विगुणं चक्रे रुवन्तं भैरवं रवम् ॥ २७ ॥
मूलम्
ततोऽस्य जानुना पृष्ठमवपीड्य बलादिव।
बाहुना परिजग्राह दक्षिणेन शिरोधराम् ॥ २६ ॥
सव्येन च कटीदेशे गृह्य वाससि पाण्डवः।
तद् रक्षो द्विगुणं चक्रे रुवन्तं भैरवं रवम् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर उन्होंने अपने एक घुटनेसे बल-पूर्वक राक्षसकी पीठ दबाकर दाहिने हाथसे उसकी गर्दन पकड़ ली और बायें हाथसे कमरका लँगोट पकड़कर उस राक्षसको दुहरा मोड़ दिया। उस समय वह बड़ी भयानक आवाजमें चीत्कार कर रहा था॥२६-२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽस्य रुधिरं वक्त्रात् प्रादुरासीद् विशाम्पते।
भज्यमानस्य भीमेन तस्य घोरस्य रक्षसः ॥ २८ ॥
मूलम्
ततोऽस्य रुधिरं वक्त्रात् प्रादुरासीद् विशाम्पते।
भज्यमानस्य भीमेन तस्य घोरस्य रक्षसः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! भीमसेनके द्वारा उस घोर राक्षसकी जब कमर तोड़ी जा रही थी, उस समय उसके मुखसे (बहुत-सा) खून गिरा॥२८॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि बकवधपर्वणि बकभीमसेनयुद्धे द्विषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १६२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत बकवधपर्वमें बकासुर और भीमसेनका युद्धविषयक एक सौ बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६२॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल २९ श्लोक हैं)