श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
एकषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनको राक्षसके पास भेजनेके विषयमें युधिष्ठिर और कुन्तीकी बातचीत
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
करिष्य इति भीमेन प्रतिज्ञातेऽथ भारत।
आजग्मुस्ते ततः सर्वे भैक्षमादाय पाण्डवाः ॥ १ ॥
मूलम्
करिष्य इति भीमेन प्रतिज्ञातेऽथ भारत।
आजग्मुस्ते ततः सर्वे भैक्षमादाय पाण्डवाः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! जब भीमसेनने यह प्रतिज्ञा कर ली कि ‘मैं इस कार्यको पूरा करूँगा’, उसी समय पूर्वोक्त सब पाण्डव भिक्षा लेकर वहाँ आये॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आकारेणैव तं ज्ञात्वा पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः।
रहः समुपविश्यैकस्ततः पप्रच्छ मातरम् ॥ २ ॥
मूलम्
आकारेणैव तं ज्ञात्वा पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः।
रहः समुपविश्यैकस्ततः पप्रच्छ मातरम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरने भीमसेनकी आकृतिसे ही समझ लिया कि आज ये कुछ करनेवाले हैं; फिर उन्होंने एकान्तमें अकेले बैठकर मातासे पूछा॥२॥
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं चिकीर्षत्ययं कर्म भीमो भीमपराक्रमः।
भवत्यनुमते कच्चित् स्वयं वा कर्तुमिच्छति ॥ ३ ॥
मूलम्
किं चिकीर्षत्ययं कर्म भीमो भीमपराक्रमः।
भवत्यनुमते कच्चित् स्वयं वा कर्तुमिच्छति ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर बोले— माँ! ये भयंकर पराक्रमी भीमसेन कौन-सा कार्य करना चाहते हैं? वे आपकी रायसे अथवा स्वयं ही कुछ करनेको उतारू हो रहे हैं?॥३॥
मूलम् (वचनम्)
कुन्त्युवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ममैव वचनादेष करिष्यति परंतपः।
ब्राह्मणार्थे महत् कृत्यं मोक्षाय नगरस्य च ॥ ४ ॥
मूलम्
ममैव वचनादेष करिष्यति परंतपः।
ब्राह्मणार्थे महत् कृत्यं मोक्षाय नगरस्य च ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुन्तीने कहा— बेटा! शत्रुओंको संतप्त करनेवाला भीमसेन मेरी ही आज्ञासे ब्राह्मणके हितके लिये तथा सम्पूर्ण नगरको संकटसे छुड़ानेके लिये आज एक महान् कार्य करेगा॥४॥
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमिदं साहसं तीक्ष्णं भवत्या दुष्करं कृतम्।
परित्यागं हि पुत्रस्य न प्रशंसन्ति साधवः ॥ ५ ॥
मूलम्
किमिदं साहसं तीक्ष्णं भवत्या दुष्करं कृतम्।
परित्यागं हि पुत्रस्य न प्रशंसन्ति साधवः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने कहा— माँ! आपने यह असह्य और दुष्कर साहस क्यों किया? साधु पुरुष अपने पुत्रके परित्यागको अच्छा नहीं बताते॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथं परसुतस्यार्थे स्वसुतं त्यक्तुमिच्छसि।
लोकवेदविरुद्धं हि पुत्रत्यागात् कृतं त्वया ॥ ६ ॥
मूलम्
कथं परसुतस्यार्थे स्वसुतं त्यक्तुमिच्छसि।
लोकवेदविरुद्धं हि पुत्रत्यागात् कृतं त्वया ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरेके बेटेके लिये आप अपने पुत्रको क्यों त्याग देना चाहती हैं? पुत्रका त्याग करके आपने लोक और वेद दोनोंके विरुद्ध कार्य किया है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य बाहू समाश्रित्य सुखं सर्वे शयामहे।
राज्यं चापहृतं क्षुद्रैराजिहीर्षामहे पुनः ॥ ७ ॥
मूलम्
यस्य बाहू समाश्रित्य सुखं सर्वे शयामहे।
राज्यं चापहृतं क्षुद्रैराजिहीर्षामहे पुनः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसके बाहुबलका भरोसा करके हम सब लोग सुखसे सोते हैं और नीच शत्रुओंने जिस राज्यको हड़प लिया है, उसको पुनः वापस लेना चाहते हैं,॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य दुर्योधनो वीर्यं चिन्तयन्नमितौजसः।
न शेते रजनीः सर्वा दुःखाच्छकुनिना सह ॥ ८ ॥
मूलम्
यस्य दुर्योधनो वीर्यं चिन्तयन्नमितौजसः।
न शेते रजनीः सर्वा दुःखाच्छकुनिना सह ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस अमिततेजस्वी वीरके पराक्रमका चिन्तन करके शकुनिसहित दुर्योधनको दुःखके मारे सारी रात नींद नहीं आती थी,॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य वीरस्य वीर्येण मुक्ता जतुगृहाद् वयम्।
अन्येभ्यश्चैव पापेभ्यो निहतश्च पुरोचनः ॥ ९ ॥
मूलम्
यस्य वीरस्य वीर्येण मुक्ता जतुगृहाद् वयम्।
अन्येभ्यश्चैव पापेभ्यो निहतश्च पुरोचनः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस वीरके बलसे हमलोग लाक्षागृह तथा दूसरे-दूसरे पापपूर्ण अत्याचारोंसे बच पाये और दुष्ट पुरोचन भी मारा गया,॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य वीर्यं समाश्रित्य वसुपूर्णां वसुन्धराम्।
इमां मन्यामहे प्राप्तां निहत्य धृतराष्ट्रजान् ॥ १० ॥
तस्य व्यवसितस्त्यागो बुद्धिमास्थाय कां त्वया।
कच्चिन्नु दुःखैर्बुद्धिस्ते विलुप्ता गतचेतसः ॥ ११ ॥
मूलम्
यस्य वीर्यं समाश्रित्य वसुपूर्णां वसुन्धराम्।
इमां मन्यामहे प्राप्तां निहत्य धृतराष्ट्रजान् ॥ १० ॥
तस्य व्यवसितस्त्यागो बुद्धिमास्थाय कां त्वया।
कच्चिन्नु दुःखैर्बुद्धिस्ते विलुप्ता गतचेतसः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसके बल-पराक्रमका आश्रय लेकर हमलोग धृतराष्ट्रपुत्रोंको मारकर धन-धान्यसे सम्पन्न इस (सम्पूर्ण) पृथ्वीको अपने अधिकारमें आयी हुई ही मानते हैं, उस बलवान् पुत्रके त्यागका निश्चय आपने किस बुद्धिसे किया है? क्या आप अनेक दुःखोंके कारण अपनी चेतना खो बैठी हैं? आपकी बुद्धि लुप्त हो गयी है॥१०-११॥
मूलम् (वचनम्)
कुन्त्युवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिर न संतापस्त्वया कार्यो वृकोदरे।
न चायं बुद्धिदौर्बल्याद् व्यवसायः कृतो मया ॥ १२ ॥
मूलम्
युधिष्ठिर न संतापस्त्वया कार्यो वृकोदरे।
न चायं बुद्धिदौर्बल्याद् व्यवसायः कृतो मया ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुन्तीने कहा— युधिष्ठिर! तुम्हें भीमसेनके लिये चिन्ता नहीं करनी चाहिये। मैंने जो यह निश्चय किया है, वह बुद्धिकी दुर्बलतासे नहीं किया है॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इह विप्रस्य भवने वयं पुत्र सुखोषिताः।
अज्ञाता धार्तराष्ट्राणां सत्कृता वीतमन्यवः ॥ १३ ॥
तस्य प्रतिक्रिया पार्थ मयेयं प्रसमीक्षिता।
एतावानेव पुरुषः कृतं यस्मिन् न नश्यति ॥ १४ ॥
मूलम्
इह विप्रस्य भवने वयं पुत्र सुखोषिताः।
अज्ञाता धार्तराष्ट्राणां सत्कृता वीतमन्यवः ॥ १३ ॥
तस्य प्रतिक्रिया पार्थ मयेयं प्रसमीक्षिता।
एतावानेव पुरुषः कृतं यस्मिन् न नश्यति ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बेटा! हमलोग यहाँ इस ब्राह्मणके घरमें बड़े सुखसे रहे हैं। धृतराष्ट्रके पुत्रोंको हमारी कानों-कान खबर नहीं होने पायी है। इस घरमें हमारा इतना सत्कार हुआ है कि हमने अपने पिछले दुःख और क्रोधको भुला दिया है। पार्थ! ब्राह्मणके इस उपकारसे उऋण होनेका यही एक उपाय मुझे दिखायी दिया। मनुष्य वही है, जिसके प्रति किया हुआ उपकार नष्ट न हो (जो उपकारको भुला न दे)॥१३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावच्च कुर्यादन्योऽस्य कुर्याद् बहुगुणं ततः।
दृष्ट्वा भीमस्य विक्रान्तं तदा जतुगृहे महत्।
हिडिम्बस्य वधाच्चैवं विश्वासो मे वृकोदरे ॥ १५ ॥
मूलम्
यावच्च कुर्यादन्योऽस्य कुर्याद् बहुगुणं ततः।
दृष्ट्वा भीमस्य विक्रान्तं तदा जतुगृहे महत्।
हिडिम्बस्य वधाच्चैवं विश्वासो मे वृकोदरे ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरा मनुष्य उसके लिये जितना उपकार करे, उससे कई गुना अधिक प्रत्युपकार स्वयं उसके प्रति करना चाहिये। मैंने उस दिन लाक्षागृहमें भीमसेनका महान् पराक्रम देखा तथा हिडिम्बवधकी घटना भी मेरी आँखोंके सामने हुई। इससे भीमसेनपर मेरा पूरा विश्वास हो गया है॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाह्वोर्बलं हि भीमस्य नागायुतसमं महत्।
येन यूयं गजप्रख्या निर्व्यूढा वारणावतात् ॥ १६ ॥
मूलम्
बाह्वोर्बलं हि भीमस्य नागायुतसमं महत्।
येन यूयं गजप्रख्या निर्व्यूढा वारणावतात् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमका महान् बाहुबल दस हजार हाथियोंके समान है, जिससे वह हाथीके समान बलशाली तुम सब भाइयोंको वारणावत नगरसे ढोकर लाया है॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृकोदरेण सदृशो बलेनान्यो न विद्यते।
योऽभ्युदीयाद् युधि श्रेष्ठमपि वज्रधरं स्वयम् ॥ १७ ॥
मूलम्
वृकोदरेण सदृशो बलेनान्यो न विद्यते।
योऽभ्युदीयाद् युधि श्रेष्ठमपि वज्रधरं स्वयम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनके समान बलवान् दूसरा कोई नहीं है। वह युद्धमें सर्वश्रेष्ठ वज्रपाणि इन्द्रका भी सामना कर सकता है॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जातमात्रः पुरा चैव ममाङ्कात् पतितो गिरौ।
शरीरगौरवादस्य शिला गात्रैर्विचूर्णिता ॥ १८ ॥
मूलम्
जातमात्रः पुरा चैव ममाङ्कात् पतितो गिरौ।
शरीरगौरवादस्य शिला गात्रैर्विचूर्णिता ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पहलेकी बात है, जब वह नवजात शिशुके रूपमें था, उसी समय मेरी गोदसे छूटकर पर्वतके शिखरपर गिर पड़ा था। जिस चट्टानपर यह गिरा, वह इसके शरीरकी गुरुताके कारण चूर-चूर हो गयी थी॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं प्रज्ञया ज्ञात्वा बलं भीमस्य पाण्डव।
प्रतिकार्ये च विप्रस्य ततः कृतवती मतिम् ॥ १९ ॥
मूलम्
तदहं प्रज्ञया ज्ञात्वा बलं भीमस्य पाण्डव।
प्रतिकार्ये च विप्रस्य ततः कृतवती मतिम् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अतः पाण्डुनन्दन! मैंने भीमसेनके बलको अपनी बुद्धिसे भलीभाँति समझकर तब ब्राह्मणके शत्रुरूपी राक्षससे बदला लेनेका निश्चय किया है॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेदं लोभान्न चाज्ञानान्न च मोहाद् विनिश्चितम्।
बुद्धिपूर्वं तु धर्मस्य व्यवसायः कृतो मया ॥ २० ॥
मूलम्
नेदं लोभान्न चाज्ञानान्न च मोहाद् विनिश्चितम्।
बुद्धिपूर्वं तु धर्मस्य व्यवसायः कृतो मया ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैंने न लोभसे, न अज्ञानसे और न मोहसे ऐसा विचार किया है, अपितु बुद्धिके द्वारा खूब सोच-समझकर विशुद्ध धर्मानुकूल निश्चय किया है॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्थौ द्वावपि निष्पन्नौ युधिष्ठिर भविष्यतः।
प्रतीकारश्च वासस्य धर्मश्च चरितो महान् ॥ २१ ॥
मूलम्
अर्थौ द्वावपि निष्पन्नौ युधिष्ठिर भविष्यतः।
प्रतीकारश्च वासस्य धर्मश्च चरितो महान् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर! मेरे इस निश्चयसे दोनों प्रयोजन सिद्ध हो जायँगे। एक तो ब्राह्मणके यहाँ निवास करनेका ऋण चुक जायगा और दूसरा लाभ यह है कि ब्राह्मण और पुरवासियोंकी रक्षा होनेके कारण महान् धर्मका पालन हो जायगा॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यो ब्राह्मणस्य साहाय्यं कुर्यादर्थेषु कर्हिचित्।
क्षत्रियः स शुभाल्ँलोकानाप्नुयादिति मे मतिः ॥ २२ ॥
मूलम्
यो ब्राह्मणस्य साहाय्यं कुर्यादर्थेषु कर्हिचित्।
क्षत्रियः स शुभाल्ँलोकानाप्नुयादिति मे मतिः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो क्षत्रिय कभी ब्राह्मणके कार्योंमें सहायता करता है, वह उत्तम लोकोंको प्राप्त होता है—यह मेरा विश्वास है॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षत्रियस्यैव कुर्वाणः क्षत्रियो वधमोक्षणम्।
विपुलां कीर्तिमाप्नोति लोकेऽस्मिंश्च परत्र च ॥ २३ ॥
मूलम्
क्षत्रियस्यैव कुर्वाणः क्षत्रियो वधमोक्षणम्।
विपुलां कीर्तिमाप्नोति लोकेऽस्मिंश्च परत्र च ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि क्षत्रिय किसी क्षत्रियको ही प्राणसंकटसे मुक्त कर दे तो वह इस लोक और परलोकमें भी महान् यशका भागी होता है॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वैश्यस्यार्थे च साहाय्यं कुर्वाणः क्षत्रियो भुवि।
स सर्वेष्वपि लोकेषु प्रजा रञ्जयते ध्रुवम् ॥ २४ ॥
मूलम्
वैश्यस्यार्थे च साहाय्यं कुर्वाणः क्षत्रियो भुवि।
स सर्वेष्वपि लोकेषु प्रजा रञ्जयते ध्रुवम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो क्षत्रिय इस भूतलपर वैश्यके कार्यमें सहायता पहुँचाता है, वह निश्चय ही सम्पूर्ण लोकोंमें प्रजाको प्रसन्न करनेवाला राजा होता है॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शूद्रं तु मोचयेद् राजा शरणार्थिनमागतम्।
प्राप्नोतीह कुले जन्म सद्द्रव्ये राजपूजिते ॥ २५ ॥
मूलम्
शूद्रं तु मोचयेद् राजा शरणार्थिनमागतम्।
प्राप्नोतीह कुले जन्म सद्द्रव्ये राजपूजिते ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार जो राजा अपनी शरणमें आये हुए शूद्रको प्राणसंकटसे बचाता है, वह इस संसारमें उत्तम धन-धान्यसे सम्पन्न एवं राजाओंद्वारा सम्मानित श्रेष्ठ कुलमें जन्म लेता है॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं मां भगवान् व्यासः पुरा पौरवनन्दन।
प्रोवाचासुकरप्रज्ञस्तस्मादेवं चिकीर्षितम् ॥ २६ ॥
मूलम्
एवं मां भगवान् व्यासः पुरा पौरवनन्दन।
प्रोवाचासुकरप्रज्ञस्तस्मादेवं चिकीर्षितम् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पौरववंशको आनन्दित करनेवाले युधिष्ठिर! इस प्रकार पूर्वकालमें दुर्लभ विवेक-विज्ञानसे सम्पन्न भगवान् व्यासने मुझसे कहा था; इसीलिये मैंने ऐसी चेष्टा की है॥२६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि बकवधपर्वणि कुन्तीयुधिष्ठिरसंवादे एकषष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १६१ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत बकवधपर्वमें कुन्ती-युधिष्ठिर-संवादविषयक एक सौ इकसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६१॥