श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
हिडिम्बाका कुन्ती आदिसे अपना मनोभाव प्रकट करना तथा भीमसेनके द्वारा हिडिम्बासुरका वध
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रबुद्धास्ते हिडिम्बाया रूपं दृष्ट्वातिमानुषम्।
विस्मिताः पुरुषव्याघ्रा बभूवुः पृथया सह ॥ १ ॥
मूलम्
प्रबुद्धास्ते हिडिम्बाया रूपं दृष्ट्वातिमानुषम्।
विस्मिताः पुरुषव्याघ्रा बभूवुः पृथया सह ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! जागनेपर हिडिम्बाका अलौकिक रूप देख वे पुरुषसिंह पाण्डव माता कुन्तीके साथ बड़े विस्मयमें पड़े॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कुन्ती समीक्ष्यैनां विस्मिता रूपसम्पदा।
उवाच मधुरं वाक्यं सान्त्वपूर्वमिदं शनैः ॥ २ ॥
कस्य त्वं सुरगर्भाभे का वासि वरवर्णिनी।
केन कार्येण सम्प्राप्ता कुतश्चागमनं तव ॥ ३ ॥
मूलम्
ततः कुन्ती समीक्ष्यैनां विस्मिता रूपसम्पदा।
उवाच मधुरं वाक्यं सान्त्वपूर्वमिदं शनैः ॥ २ ॥
कस्य त्वं सुरगर्भाभे का वासि वरवर्णिनी।
केन कार्येण सम्प्राप्ता कुतश्चागमनं तव ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर कुन्तीने उसकी रूप-सम्पत्तिसे चकित हो उसकी ओर देखकर उसे सान्त्वना देते हुए मधुर वाणीमें इस प्रकार धीरे-धीरे पूछा—‘देवकन्याओंकी-सी कान्तिवाली सुन्दरी! तुम कौन हो और किसकी कन्या हो? तुम किस कामसे यहाँ आयी हो और कहाँसे तुम्हारा शुभागमन हुआ है?॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदि वास्य वनस्य त्वं देवता यदि वाप्सराः।
आचक्ष्व मम तत् सर्वं किमर्थं चेह तिष्ठसि ॥ ४ ॥
मूलम्
यदि वास्य वनस्य त्वं देवता यदि वाप्सराः।
आचक्ष्व मम तत् सर्वं किमर्थं चेह तिष्ठसि ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यदि तुम इस वनकी देवी अथवा अप्सरा हो तो वह सब मुझे ठीक-ठीक बता दो; साथ ही यह भी कहो कि किस कामके लिये यहाँ खड़ी हो?’॥४॥
मूलम् (वचनम्)
हिडिम्बोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदेतत् पश्यसि वनं नीलमेघनिभं महत्।
निवासो राक्षसस्यैष हिडिम्बस्य ममैव च ॥ ५ ॥
मूलम्
यदेतत् पश्यसि वनं नीलमेघनिभं महत्।
निवासो राक्षसस्यैष हिडिम्बस्य ममैव च ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हिडिम्बा बोली— देवि! यह जो नील मेघके समान विशाल वन आप देख रही हैं, यह राक्षस हिडिम्बका और मेरा निवासस्थान है॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य मां राक्षसेन्द्रस्य भगिनीं विद्धि भाविनि।
भ्रात्रा सम्प्रेषितामार्ये त्वां सपुत्रां जिघांसता ॥ ६ ॥
मूलम्
तस्य मां राक्षसेन्द्रस्य भगिनीं विद्धि भाविनि।
भ्रात्रा सम्प्रेषितामार्ये त्वां सपुत्रां जिघांसता ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाभागे! आप मुझे उस राक्षसराज हिडिम्बकी बहिन समझें। आर्ये! मेरे भाईने मुझे आपकी और आपके पुत्रोंकी हत्या करनेकी इच्छासे भेजा था॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्रूरबुद्धेरहं तस्य वचनादागता त्विह।
अद्राक्षं नवहेमाभं तव पुत्रं महाबलम् ॥ ७ ॥
मूलम्
क्रूरबुद्धेरहं तस्य वचनादागता त्विह।
अद्राक्षं नवहेमाभं तव पुत्रं महाबलम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसकी बुद्धि बड़ी क्रूरतापूर्ण है। उसके कहनेसे मैं यहाँ आयी और नूतन सुवर्णकी-सी आभावाले आपके महाबली पुत्रपर मेरी दृष्टि पड़ी॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽहं सर्वभूतानां भावे विचरता शुभे।
चोदिता तव पुत्रस्य मन्मथेन वशानुगा ॥ ८ ॥
मूलम्
ततोऽहं सर्वभूतानां भावे विचरता शुभे।
चोदिता तव पुत्रस्य मन्मथेन वशानुगा ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शुभे! उन्हें देखते ही समस्त प्राणियोंके अन्तःकरणमें विचरनेवाले कामदेवसे प्रेरित होकर मैं आपके पुत्रकी वशवर्तिनी हो गयी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो वृतो मया भर्ता तव पुत्रो महाबलः।
अपनेतुं च यतितो न चैव शकितो मया ॥ ९ ॥
मूलम्
ततो वृतो मया भर्ता तव पुत्रो महाबलः।
अपनेतुं च यतितो न चैव शकितो मया ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर मैंने आपके महाबली पुत्रको पतिरूपमें वरण कर लिया और इस बातके लिये प्रयत्न किया कि उन्हें (तथा आप सब लोगोंको) लेकर यहाँसे अन्यत्र भाग चलूँ, परंतु आपके पुत्रकी स्वीकृति न मिलनेसे मैं इस कार्यमें सफल न हो सकी॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चिरायमाणां मां ज्ञात्वा ततः स पुरुषादकः।
स्वयमेवागतो हन्तुमिमान् सर्वांस्तवात्मजान् ॥ १० ॥
मूलम्
चिरायमाणां मां ज्ञात्वा ततः स पुरुषादकः।
स्वयमेवागतो हन्तुमिमान् सर्वांस्तवात्मजान् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे लौटनेमें देर होती जान वह मनुष्यभक्षी राक्षस स्वयं ही आपके इन सब पुत्रोंको मार डालनेके लिये आया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेन मम कान्तेन तव पुत्रेण धीमता।
बलादितो विनिष्पिष्य व्यपनीतो महात्मना ॥ ११ ॥
मूलम्
स तेन मम कान्तेन तव पुत्रेण धीमता।
बलादितो विनिष्पिष्य व्यपनीतो महात्मना ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु मेरे प्राणवल्लभ तथा आपके बुद्धिमान् पुत्र महात्मा भीम उसे बलपूर्वक यहाँसे रगड़ते हुए दूर हटा ले गये हैं॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विकर्षन्तौ महावेगौ गर्जमानौ परस्परम्।
पश्यैवं युधि विक्रान्तावेतौ च नरराक्षसौ ॥ १२ ॥
मूलम्
विकर्षन्तौ महावेगौ गर्जमानौ परस्परम्।
पश्यैवं युधि विक्रान्तावेतौ च नरराक्षसौ ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
देखिये, युद्धमें पराक्रम दिखानेवाले वे दोनों मनुष्य और राक्षस जोर-जोरसे गर्ज रहे हैं और बड़े वेगसे गुत्थम-गुत्थ होकर एक-दूसरेको अपनी ओर खींच रहे हैं॥१२॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याः श्रुत्वैव वचनमुत्पपात युधिष्ठिरः।
अर्जुनो नकुलश्चैव सहदेवश्च वीर्यवान् ॥ १३ ॥
मूलम्
तस्याः श्रुत्वैव वचनमुत्पपात युधिष्ठिरः।
अर्जुनो नकुलश्चैव सहदेवश्च वीर्यवान् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! हिडिम्बाकी यह बात सुनते ही युधिष्ठिर उछलकर खड़े हो गये। अर्जुन, नकुल और पराक्रमी सहदेवने भी ऐसा ही किया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ ते ददृशुरासक्तौ विकर्षन्तौ परस्परम्।
काङ्क्षमाणौ जयं चैव सिंहाविव बलोत्कटौ ॥ १४ ॥
मूलम्
तौ ते ददृशुरासक्तौ विकर्षन्तौ परस्परम्।
काङ्क्षमाणौ जयं चैव सिंहाविव बलोत्कटौ ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर उन्होंने देखा कि वे दोनों प्रचण्ड बलशाली सिंहोंकी भाँति आपसमें गुथ गये हैं और अपनी-अपनी विजय चाहते हुए एक-दूसरेको घसीट रहे हैं॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्योन्यं समाश्लिष्य विकर्षन्तौ पुनः पुनः।
दावाग्निधूमसदृशं चक्रतुः पार्थिवं रजः ॥ १५ ॥
मूलम्
अथान्योन्यं समाश्लिष्य विकर्षन्तौ पुनः पुनः।
दावाग्निधूमसदृशं चक्रतुः पार्थिवं रजः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक-दूसरेको भुजाओंमें भरकर बार-बार खींचते हुए उन दोनों योद्धाओंने धरतीकी धूलको दावानलके धूएँके समान बना दिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वसुधारेणुसंवीतौ वसुधाधरसंनिभौ ।
बभ्राजतुर्यथा शैलौ नीहारेणाभिसंवृतौ ॥ १६ ॥
मूलम्
वसुधारेणुसंवीतौ वसुधाधरसंनिभौ ।
बभ्राजतुर्यथा शैलौ नीहारेणाभिसंवृतौ ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दोनोंका शरीर पृथ्वीकी धूलमें सना हुआ था। दोनों ही पर्वतोंके समान विशालकाय थे। उस समय वे दोनों कुहरेसे ढँके हुए दो पहाड़ोंके समान सुशोभित हो रहे थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राक्षसेन तदा भीमं क्लिश्यमानं निरीक्ष्य च।
उवाचेदं वचः पार्थः प्रहसञ्छनकैरिव ॥ १७ ॥
मूलम्
राक्षसेन तदा भीमं क्लिश्यमानं निरीक्ष्य च।
उवाचेदं वचः पार्थः प्रहसञ्छनकैरिव ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनको राक्षसद्वारा पीड़ित देख अर्जुन धीरे-धीरे हँसते हुए-से बोले—॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीम मा भैर्महाबाहो न त्वां बुध्यामहे वयम्।
समेतं भीमरूपेण रक्षसा श्रमकर्शितम् ॥ १८ ॥
मूलम्
भीम मा भैर्महाबाहो न त्वां बुध्यामहे वयम्।
समेतं भीमरूपेण रक्षसा श्रमकर्शितम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महाबाहु भैया भीमसेन! डरना मत; अबतक हमलोग नहीं जानते थे कि तुम भयंकर राक्षससे भिड़कर अत्यन्त परिश्रमके कारण कष्ट पा रहे हो॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
साहाय्येऽस्मि स्थितः पार्थ पातयिष्यामि राक्षसम्।
नकुलः सहदेवश्च मातरं गोपयिष्यतः ॥ १९ ॥
मूलम्
साहाय्येऽस्मि स्थितः पार्थ पातयिष्यामि राक्षसम्।
नकुलः सहदेवश्च मातरं गोपयिष्यतः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कुन्तीनन्दन! अब मैं तुम्हारी सहायताके लिये उपस्थित हूँ। इस राक्षसको अवश्य मार गिराऊँगा। नकुल और सहदेव माताजीकी रक्षा करेंगे’॥१९॥
मूलम् (वचनम्)
भीम उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
उदासीनो निरीक्षस्व न कार्यः सम्भ्रमस्त्वया।
न जात्वयं पुनर्जीवेन्मद्बाह्वन्तरमागतः ॥ २० ॥
मूलम्
उदासीनो निरीक्षस्व न कार्यः सम्भ्रमस्त्वया।
न जात्वयं पुनर्जीवेन्मद्बाह्वन्तरमागतः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनने कहा— अर्जुन! तटस्थ होकर चुपचाप देखते रहो। तुम्हें घबरानेकी आवश्यकता नहीं। मेरी दोनों भुजाओंके बीचमें आकर अब यह राक्षस कदापि जीवित नहीं रह सकता॥२०॥
मूलम् (वचनम्)
अर्जुन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमनेन चिरं भीम जीवता पापरक्षसा।
गन्तव्ये न चिरं स्थातुमिह शक्यमरिंदम ॥ २१ ॥
मूलम्
किमनेन चिरं भीम जीवता पापरक्षसा।
गन्तव्ये न चिरं स्थातुमिह शक्यमरिंदम ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनने कहा— शत्रुओंका दमन करनेवाले भीम! इस पापी राक्षसको देरतक जीवित रखनेसे क्या लाभ? हमलोगोंको आगे चलना है, अतः यहाँ अधिक समयतक ठहरना सम्भव नहीं है॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरा संरज्यते प्राची पुरा संध्या प्रवर्तते।
रौद्रे मुहूर्ते रक्षांसि प्रबलानि भवन्त्युत ॥ २२ ॥
मूलम्
पुरा संरज्यते प्राची पुरा संध्या प्रवर्तते।
रौद्रे मुहूर्ते रक्षांसि प्रबलानि भवन्त्युत ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उधर सामने पूर्वदिशामें अरुणोदयकी लालिमा फैल रही है। प्रातःसंध्याका समय होनेवाला है। इस रौद्र मुहूर्तमें राक्षस प्रबल हो जाते हैं॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वरस्व भीम मा क्रीड जहि रक्षो बिभीषणम्।
पुरा विकुरुते मायां भुजयोः सारमर्पय ॥ २३ ॥
मूलम्
त्वरस्व भीम मा क्रीड जहि रक्षो बिभीषणम्।
पुरा विकुरुते मायां भुजयोः सारमर्पय ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अतः भीमसेन! जल्दी करो। इसके साथ खिलवाड़ न करो। इस भयानक राक्षसको मार डालो। यह अपनी माया फैलाये, इसके पहले ही इसपर अपनी भुजाओंकी शक्तिका प्रयोग करो॥२३॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु भीमो रोषाज्ज्वलन्निव ।
बलमाहारयामास यद् वायोर्जगतः क्षये ॥ २४ ॥
मूलम्
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु भीमो रोषाज्ज्वलन्निव ।
बलमाहारयामास यद् वायोर्जगतः क्षये ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— अर्जुनके यों कहनेपर भीम रोषसे जल उठे और प्रलयकालमें वायुका जो बल प्रकट होता है, उसे उन्होंने अपने भीतर धारण कर लिया॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तस्याम्बुदाभस्य भीमो रोषात् तु रक्षसः।
उत्क्षिप्याभ्रामयद् देहं तूर्णं शतगुणं तदा ॥ २५ ॥
मूलम्
ततस्तस्याम्बुदाभस्य भीमो रोषात् तु रक्षसः।
उत्क्षिप्याभ्रामयद् देहं तूर्णं शतगुणं तदा ॥ २५ ॥
सूचना (हिन्दी)
हिडिम्ब-वध
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् काले मेघके समान उस राक्षसके शरीरको भीमने क्रोधपूर्वक तुरंत ऊपर उठा लिया और उसे सौ बार घुमाया॥२५॥
मूलम् (वचनम्)
भीम उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृथामांसैर्वृथापुष्टो वृथावृद्धो वृथामतिः ।
वृथामरणमर्हस्त्वं वृथाद्य न भविष्यसि ॥ २६ ॥
मूलम्
वृथामांसैर्वृथापुष्टो वृथावृद्धो वृथामतिः ।
वृथामरणमर्हस्त्वं वृथाद्य न भविष्यसि ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद भीम उस राक्षससे बोले— अरे निशाचर! तू व्यर्थ मांससे व्यर्थ ही पुष्ट होकर व्यर्थ ही बड़ा हुआ है। तेरी बुद्धि भी व्यर्थ है। इसीसे तू व्यर्थ मृत्युके योग्य है। इसलिये आज तू व्यर्थ ही अपनी इहलीला समाप्त करेगा (बाहुयुद्धमें मृत्यु होनेके कारण तू स्वर्ग और कीर्तिसे वंचित हो जायगा)॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षेममद्य करिष्यामि यथा वनमकण्टकम्।
न पुनर्मानुषान् हत्वा भक्षयिष्यसि राक्षस ॥ २७ ॥
मूलम्
क्षेममद्य करिष्यामि यथा वनमकण्टकम्।
न पुनर्मानुषान् हत्वा भक्षयिष्यसि राक्षस ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राक्षस! आज तुझे मारकर मैं इस वनको निष्कण्टक एवं मंगलमय बना दूँगा, जिससे फिर तू मनुष्योंको मारकर नहीं खा सकेगा॥२७॥
मूलम् (वचनम्)
अर्जुन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदि वा मन्यसे भारं त्वमिमं राक्षसं युधि।
करोमि तव साहाय्यं शीघ्रमेष निपात्यताम् ॥ २८ ॥
मूलम्
यदि वा मन्यसे भारं त्वमिमं राक्षसं युधि।
करोमि तव साहाय्यं शीघ्रमेष निपात्यताम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुन बोले— भैया! यदि तुम युद्धमें इस राक्षसको अपने लिये भार समझ रहे हो तो मैं तुम्हारी सहायता करता हूँ। तुम इसे शीघ्र मार गिराओ॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथवाप्यहमेवैनं हनिष्यामि वृकोदर ।
कृतकर्मा परिश्रान्तः साधु तावदुपारम ॥ २९ ॥
मूलम्
अथवाप्यहमेवैनं हनिष्यामि वृकोदर ।
कृतकर्मा परिश्रान्तः साधु तावदुपारम ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वृकोदर! अथवा मैं ही इसे मार डालूँगा। तुम अधिक युद्ध करके थक गये हो। अतः कुछ देर अच्छी तरह विश्राम कर लो॥२९॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षणः।
निष्पिष्यैनं बलाद् भूमौ पशुमारममारयत् ॥ ३० ॥
मूलम्
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षणः।
निष्पिष्यैनं बलाद् भूमौ पशुमारममारयत् ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! अर्जुनकी यह बात सुनकर भीमसेन अत्यन्त क्रोधमें भर गये। उन्होंने बलपूर्वक राक्षसको पृथ्वीपर दे मारा और उसे रगड़ते हुए पशुकी तरह मारना आरम्भ किया॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स मार्यमाणो भीमेन ननाद विपुलं स्वनम्।
पूरयंस्तद् वनं सर्वं जलार्द्र इव दुन्दुभिः ॥ ३१ ॥
मूलम्
स मार्यमाणो भीमेन ननाद विपुलं स्वनम्।
पूरयंस्तद् वनं सर्वं जलार्द्र इव दुन्दुभिः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार भीमसेनकी मार पड़नेपर वह राक्षस जलसे भीगे हुए नगारेकी-सी ध्वनिसे सम्पूर्ण वनको गुँजाता हुआ जोर-जोरसे चीखने लगा॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाहुभ्यां योक्त्रयित्वा तं बलवान् पाण्डुनन्दनः।
मध्ये भङ्क्त्वा महाबाहुर्हर्षयामास पाण्डवान् ॥ ३२ ॥
मूलम्
बाहुभ्यां योक्त्रयित्वा तं बलवान् पाण्डुनन्दनः।
मध्ये भङ्क्त्वा महाबाहुर्हर्षयामास पाण्डवान् ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाबाहु बलवान् पाण्डुनन्दन भीमसेनने उसे दोनों भुजाओंसे बाँधकर उलटा मोड़ दिया और उसकी कमर तोड़कर पाण्डवोंका हर्ष बढ़ाया॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हिडिम्बं निहतं दृष्ट्वा संहृष्टास्ते तरस्विनः।
अपूजयन् नरव्याघ्रं भीमसेनमरिंदमम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
हिडिम्बं निहतं दृष्ट्वा संहृष्टास्ते तरस्विनः।
अपूजयन् नरव्याघ्रं भीमसेनमरिंदमम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हिडिम्बको मारा गया देख वे महान् वेगशाली पाण्डव अत्यन्त हर्षसे उल्लसित हो उठे और उन्होंने शत्रुओंका दमन करनेवाले नरश्रेष्ठ भीमसेनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिपूज्य महात्मानं भीमं भीमपराक्रमम्।
पुनरेवार्जुनो वाक्यमुवाचेदं वृकोदरम् ॥ ३४ ॥
मूलम्
अभिपूज्य महात्मानं भीमं भीमपराक्रमम्।
पुनरेवार्जुनो वाक्यमुवाचेदं वृकोदरम् ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार भयंकर पराक्रमी महात्मा भीमकी प्रशंसा करके अर्जुनने पुनः उनसे यह बात कही—॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न दूरं नगरं मन्ये वनादस्मादहं विभो।
शीघ्रं गच्छाम भद्रं ते न नो विद्यात् सुयोधनः॥३५॥
मूलम्
न दूरं नगरं मन्ये वनादस्मादहं विभो।
शीघ्रं गच्छाम भद्रं ते न नो विद्यात् सुयोधनः॥३५॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘प्रभो! मैं समझता हूँ, इस वनसे नगर अब दूर नहीं है। तुम्हारा कल्याण हो। अब हमलोग शीघ्र चलें, जिससे दुर्योधनको हमारा पता न लग सके’॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सर्वे तथेत्युक्त्वा सह मात्रा महारथाः।
प्रययुः पुरुषव्याघ्रा हिडिम्बा चैव राक्षसी ॥ ३६ ॥
मूलम्
ततः सर्वे तथेत्युक्त्वा सह मात्रा महारथाः।
प्रययुः पुरुषव्याघ्रा हिडिम्बा चैव राक्षसी ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब सभी पुरुषसिंह महारथी पाण्डव ‘(ठीक है,) ऐसा ही करें’ यों कहकर माताके साथ वहाँसे चल दिये। हिडिम्बा राक्षसी भी उनके साथ हो ली॥३६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि हिडिम्बवधपर्वणि हिडिम्बवधे त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १५३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत हिडिम्बवधपर्वमें हिडिम्बासुरके वधसे सम्बन्ध रखनेवाला एक सौ तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५३॥