श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
हिडिम्बका आना, हिडिम्बाका उससे भयभीत होना और भीम तथा हिडिम्बासुरका युद्ध
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां विदित्वा चिरगतां हिडिम्बो राक्षसेश्वरः।
अवतीर्य द्रुमात् तस्मादाजगामाशु पाण्डवान् ॥ १ ॥
मूलम्
तां विदित्वा चिरगतां हिडिम्बो राक्षसेश्वरः।
अवतीर्य द्रुमात् तस्मादाजगामाशु पाण्डवान् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! तब यह सोचकर कि मेरी बहिनको गये बहुत देर हो गयी, राक्षसराज हिडिम्ब उस वृक्षसे उतरा और शीघ्र ही पाण्डवोंके पास आ गया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लोहिताक्षो महाबाहुरूर्ध्वकेशो महाननः ।
मेघसंघातवर्ष्मा च तीक्ष्णदंष्ट्रो भयानकः ॥ २ ॥
मूलम्
लोहिताक्षो महाबाहुरूर्ध्वकेशो महाननः ।
मेघसंघातवर्ष्मा च तीक्ष्णदंष्ट्रो भयानकः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसकी आँखें क्रोधसे लाल हो रही थीं, भुजाएँ बड़ी-बड़ी थीं, केश ऊपरको उठे हुए थे और विशाल मुख था। उसके शरीरका रंग ऐसा काला था, मानो मेघोंकी काली घटा छा रही हो। तीखे दाढ़ोंवाला वह राक्षस बड़ा भयंकर जान पड़ता था॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं दृष्ट्वैव तथा विकृतदर्शनम्।
हिडिम्बोवाच वित्रस्ता भीमसेनमिदं वचः ॥ ३ ॥
मूलम्
तमापतन्तं दृष्ट्वैव तथा विकृतदर्शनम्।
हिडिम्बोवाच वित्रस्ता भीमसेनमिदं वचः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
देखनेमें विकराल उस राक्षस हिडिम्बको आते देखकर ही हिडिम्बा भयसे थर्रा उठी और भीमसेनसे इस प्रकार बोली—॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आपतत्येष दुष्टात्मा संक्रुद्धः पुरुषादकः।
साहं त्वां भ्रातृभिः सार्धं यद् ब्रवीमि तथा कुरु॥४॥
मूलम्
आपतत्येष दुष्टात्मा संक्रुद्धः पुरुषादकः।
साहं त्वां भ्रातृभिः सार्धं यद् ब्रवीमि तथा कुरु॥४॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘(देखिये,) यह दुष्टात्मा नरभक्षी राक्षस क्रोधमें भरा हुआ इधर ही आ रहा है, अतः मैं भाइयोंसहित आपसे जो कहती हूँ, वैसा कीजिये॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहं कामगमा वीर रक्षोबलसमन्विता।
आरुहेमां मम श्रोणिं नेष्यामि त्वां विहायसा ॥ ५ ॥
मूलम्
अहं कामगमा वीर रक्षोबलसमन्विता।
आरुहेमां मम श्रोणिं नेष्यामि त्वां विहायसा ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘वीर! मैं इच्छानुसार चल सकती हूँ, मुझमें राक्षसोंका सम्पूर्ण बल है। आप मेरे इस कटिप्रदेश या पीठपर बैठ जाइये। मैं आपको आकाशमार्गसे ले चलूँगी॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रबोधयैतान् संसुप्तान् मातरं च परंतप।
सर्वानेव गमिष्यामि गृहीत्वा वो विहायसा ॥ ६ ॥
मूलम्
प्रबोधयैतान् संसुप्तान् मातरं च परंतप।
सर्वानेव गमिष्यामि गृहीत्वा वो विहायसा ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘परंतप! आप इन सोये हुए भाइयों और माताजीको भी जगा दीजिये। मैं आप सब लोगोंको लेकर आकाशमार्गसे उड़ चलूँगी’॥६॥
मूलम् (वचनम्)
भीम उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मा भैस्त्वं पृथुसुश्रोणि नैष कश्चिन्मयि स्थिते।
अहमेनं हनिष्यामि प्रेक्षन्त्यास्ते सुमध्यमे ॥ ७ ॥
मूलम्
मा भैस्त्वं पृथुसुश्रोणि नैष कश्चिन्मयि स्थिते।
अहमेनं हनिष्यामि प्रेक्षन्त्यास्ते सुमध्यमे ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन बोले— सुन्दरी! तुम डरो मत, मेरे सामने यह राक्षस कुछ भी नहीं है। सुमध्यमे! मैं तुम्हारे देखते-देखते इसे मार डालूँगा॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नायं प्रतिबलो भीरु राक्षसापसदो मम।
सोढुं युधि परिस्पन्दमथवा सर्वराक्षसाः ॥ ८ ॥
मूलम्
नायं प्रतिबलो भीरु राक्षसापसदो मम।
सोढुं युधि परिस्पन्दमथवा सर्वराक्षसाः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीरु! यह नीच राक्षस युद्धमें मेरे आक्रमणका वेग सह सके, ऐसा बलवान् नहीं है। ये अथवा सम्पूर्ण राक्षस भी मेरा सामना नहीं कर सकते॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पश्य बाहू सुवृत्तौ मे हस्तिहस्तनिभाविमौ।
ऊरू परिघसंकाशौ संहतं चाप्युरो महत् ॥ ९ ॥
मूलम्
पश्य बाहू सुवृत्तौ मे हस्तिहस्तनिभाविमौ।
ऊरू परिघसंकाशौ संहतं चाप्युरो महत् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथीकी सूँड़-जैसी मोटी और सुन्दर गोलाकार मेरी इन दोनों भुजाओंकी ओर देखो। मेरी ये जाँघें परिघके समान हैं और मेरा विशाल वक्षःस्थल भी सुदृढ़ एवं सुगठित है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विक्रमं मे यथेन्द्रस्य साद्य द्रक्ष्यसि शोभने।
मावमंस्थाः पृथुश्रोणि मत्वा मामिह मानुषम् ॥ १० ॥
मूलम्
विक्रमं मे यथेन्द्रस्य साद्य द्रक्ष्यसि शोभने।
मावमंस्थाः पृथुश्रोणि मत्वा मामिह मानुषम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शोभने! मेरा पराक्रम (भी) इन्द्रके समान है, जिसे तुम अभी देखोगी। विशाल नितम्बोंवाली राक्षसी! तुम मुझे मनुष्य समझकर यहाँ मेरा तिरस्कार न करो॥१०॥
मूलम् (वचनम्)
हिडिम्बोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नावमन्ये नरव्याघ्र त्वामहं देवरूपिणम्।
दृष्टप्रभावस्तु मया मानुषेष्वेव राक्षसः ॥ ११ ॥
मूलम्
नावमन्ये नरव्याघ्र त्वामहं देवरूपिणम्।
दृष्टप्रभावस्तु मया मानुषेष्वेव राक्षसः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हिडिम्बाने कहा— नरश्रेष्ठ! आपका स्वरूप तो देवताओंके समान है ही। मैं आपका तिरस्कार नहीं करती। मैं तो इसलिये कहती थी कि मनुष्योंपर ही इस राक्षसका प्रभाव मैं (कई बार) देख चुकी हूँ॥११॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा संजल्पतस्तस्य भीमसेनस्य भारत।
वाचः शुश्राव ताः क्रुद्धो राक्षसः पुरुषादकः ॥ १२ ॥
मूलम्
तथा संजल्पतस्तस्य भीमसेनस्य भारत।
वाचः शुश्राव ताः क्रुद्धो राक्षसः पुरुषादकः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! उस नरभक्षी राक्षस हिडिम्बने क्रोधमें भरकर भीमसेनकी कही हुई उपर्युक्त बातें सुनीं॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवेक्षमाणस्तस्याश्च हिडिम्बो मानुषं वपुः।
स्रग्दामपूरितशिखं समग्रेन्दुनिभाननम् ॥ १३ ॥
सुभ्रूनासाक्षिकेशान्तं सुकुमारनखत्वचम् ।
सर्वाभरणसंयुक्तं सुसूक्ष्माम्बरवाससम् ॥ १४ ॥
मूलम्
अवेक्षमाणस्तस्याश्च हिडिम्बो मानुषं वपुः।
स्रग्दामपूरितशिखं समग्रेन्दुनिभाननम् ॥ १३ ॥
सुभ्रूनासाक्षिकेशान्तं सुकुमारनखत्वचम् ।
सर्वाभरणसंयुक्तं सुसूक्ष्माम्बरवाससम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(तत्पश्चात्) उसने अपनी बहिनके मनुष्योचित रूपकी ओर दृष्टिपात किया। उसने अपनी चोटीमें फूलोंके गजरे लगा रखे थे। उसका मुख पूर्ण चन्द्रमाके समान मनोहर जान पड़ता था। उसकी भौंहें, नासिका, नेत्र और केशान्तभाग—सभी सुन्दर थे। नख और त्वचा बहुत ही सुकुमार थी। उसने अपने अंगोंको समस्त आभूषणोंसे विभूषित कर रखा था तथा शरीरपर अत्यन्त सुन्दर महीन साड़ी शोभा पा रही थी॥१३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां तथा मानुषं रूपं बिभ्रतीं सुमनोहरम्।
पुंस्कामां शङ्कमानश्च चुक्रोध पुरुषादकः ॥ १५ ॥
मूलम्
तां तथा मानुषं रूपं बिभ्रतीं सुमनोहरम्।
पुंस्कामां शङ्कमानश्च चुक्रोध पुरुषादकः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसे इस प्रकार सुन्दर एवं मनोहर मानव-रूप धारण किये देख राक्षसके मनमें यह संदेह हुआ कि हो-न-हो यह पतिरूपमें किसी पुरुषका वरण करना चाहती है। यह विचार मनमें आते ही वह कुपित हो उठा॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संक्रुद्धो राक्षसस्तस्या भगिन्याः कुरुसत्तम।
उत्फाल्य विपुले नेत्रे ततस्तामिदमब्रवीत् ॥ १६ ॥
मूलम्
संक्रुद्धो राक्षसस्तस्या भगिन्याः कुरुसत्तम।
उत्फाल्य विपुले नेत्रे ततस्तामिदमब्रवीत् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ! अपनी बहिनपर उस राक्षसका क्रोध बहुत बढ़ गया था। फिर तो उसने बड़ी-बड़ी आँखें फाड़-फाड़कर उसकी ओर देखते हुए कहा—॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
को हि मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।
न बिभेषि हिडिम्बे किं मत्कोपाद् विप्रमोहिता ॥ १७ ॥
मूलम्
को हि मे भोक्तुकामस्य विघ्नं चरति दुर्मतिः।
न बिभेषि हिडिम्बे किं मत्कोपाद् विप्रमोहिता ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘हिडिम्बे! मैं (भूखा हूँ और) भोजन चाहता हूँ। कौन दुर्बुद्धि मानव मेरे इस अभीष्टकी सिद्धिमें विघ्न डाल रहा है। तू अत्यन्त मोहके वशीभूत होकर क्या मेरे क्रोधसे नहीं डरती है?॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धिक् त्वामसति पुंस्कामे मम विप्रियकारिणि।
पूर्वेषां राक्षसेन्द्राणां सर्वेषामयशस्करि ॥ १८ ॥
मूलम्
धिक् त्वामसति पुंस्कामे मम विप्रियकारिणि।
पूर्वेषां राक्षसेन्द्राणां सर्वेषामयशस्करि ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मनुष्यको पति बनानेकी इच्छा रखकर मेरा अप्रिय करनेवाली दुराचारिणी! तुझे धिक्कार है। तू पूर्ववर्ती सम्पूर्ण राक्षसराजोंके कुलमें कलंक लगानेवाली है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यानिमानाश्रिताकार्षीर्विप्रियं सुमहन्मम ।
एष तानद्य वै सर्वान् हनिष्यामि त्वया सह ॥ १९ ॥
मूलम्
यानिमानाश्रिताकार्षीर्विप्रियं सुमहन्मम ।
एष तानद्य वै सर्वान् हनिष्यामि त्वया सह ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिन लोगोंका आश्रय लेकर तूने मेरा महान् अप्रिय कार्य किया है, यह देख, मैं उन सबको आज तेरे साथ ही मार डालता हूँ’॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा हिडिम्बां स हिडिम्बो लोहितेक्षणः।
वधायाभिपपातैनान् दन्तैर्दन्तानुपस्पृशन् ॥ २० ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा हिडिम्बां स हिडिम्बो लोहितेक्षणः।
वधायाभिपपातैनान् दन्तैर्दन्तानुपस्पृशन् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हिडिम्बासे यों कहकर लाल-लाल आँखें किये हिडिम्ब दाँतों-से-दाँत पीसता हुआ हिडिम्बा और पाण्डवोंका वध करनेकी इच्छासे उनकी ओर झपटा॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य भीमः प्रहरतां वरः।
भर्त्सयामास तेजस्वी तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २१ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य भीमः प्रहरतां वरः।
भर्त्सयामास तेजस्वी तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
योद्धाओंमें श्रेष्ठ तेजस्वी भीम उसे इस प्रकार हिडिम्बापर टूटते देख उसकी भर्त्सना करते हुए बोले—‘अरे खड़ा रह, खड़ा रह’॥२१॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु तं दृष्ट्वा राक्षसं प्रहसन्निव।
भगिनीं प्रति संक्रुद्धमिदं वचनमब्रवीत् ॥ २२ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु तं दृष्ट्वा राक्षसं प्रहसन्निव।
भगिनीं प्रति संक्रुद्धमिदं वचनमब्रवीत् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! अपनी बहिनपर अत्यन्त क्रुद्ध हुए उस राक्षसकी ओर देखकर भीमसेन हँसते हुए-से इस प्रकार बोले—॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं ते हिडिम्ब एतैर्वा सुखसुप्तैः प्रबोधितैः।
मामासादय दुर्बुद्धे तरसा त्वं नराशन ॥ २३ ॥
मूलम्
किं ते हिडिम्ब एतैर्वा सुखसुप्तैः प्रबोधितैः।
मामासादय दुर्बुद्धे तरसा त्वं नराशन ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘हिडिम्ब! सुखपूर्वक सोये हुए मेरे इन भाइयोंको जगानेसे तेरा क्या प्रयोजन सिद्ध होगा। खोटी बुद्धिवाले नरभक्षी राक्षस! तू पूरे वेगसे आकर मुझसे भिड़॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मय्येव प्रहरेहि त्वं न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।
विशेषतोऽनपकृते परेणापकृते सति ॥ २४ ॥
मूलम्
मय्येव प्रहरेहि त्वं न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।
विशेषतोऽनपकृते परेणापकृते सति ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आ, मुझपर ही प्रहार कर। हिडिम्बा स्त्री है, इसे मारना उचित नहीं है—विशेषतः इस दशामें, जबकि इसने कोई अपराध नहीं किया है। तेरा अपराध तो दूसरेके द्वारा हुआ है॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न हीयं स्ववशा बाला कामयत्यद्य मामिह।
चोदितैषा ह्यनङ्गेन शरीरान्तरचारिणा ॥ २५ ॥
मूलम्
न हीयं स्ववशा बाला कामयत्यद्य मामिह।
चोदितैषा ह्यनङ्गेन शरीरान्तरचारिणा ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह भोली-भाली स्त्री अपने वशमें नहीं है। शरीरके भीतर विचरनेवाले कामदेवसे प्रेरित होकर आज यह मुझे अपना पति बनाना चाहती है॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगिनी तव दुर्वृत्त रक्षसां वै यशोहर।
त्वन्नियोगेन चैवेयं रूपं मम समीक्ष्य च ॥ २६ ॥
कामयत्यद्य मां भीरुस्तव नैषापराध्यति।
अनङ्गेन कृते दोषे नेमां गर्हितुमर्हसि ॥ २७ ॥
मूलम्
भगिनी तव दुर्वृत्त रक्षसां वै यशोहर।
त्वन्नियोगेन चैवेयं रूपं मम समीक्ष्य च ॥ २६ ॥
कामयत्यद्य मां भीरुस्तव नैषापराध्यति।
अनङ्गेन कृते दोषे नेमां गर्हितुमर्हसि ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राक्षसोंकी कीर्तिको नष्ट करनेवाले दुराचारी हिडिम्ब! तेरी यह बहिन तेरी आज्ञासे ही यहाँ आयी है; परंतु मेरा रूप देखकर यह बेचारी अब मुझे चाहने लगी है, अतः तेरा कोई अपराध नहीं कर रही है। कामदेवके द्वारा किये हुए अपराधके कारण तुझे इसकी निन्दा नहीं करनी चाहिये॥ २६-२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मयि तिष्ठति दुष्टात्मन् न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।
संगच्छस्व मया सार्धमेकेनैको नराशन ॥ २८ ॥
मूलम्
मयि तिष्ठति दुष्टात्मन् न स्त्रियं हन्तुमर्हसि।
संगच्छस्व मया सार्धमेकेनैको नराशन ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘दुष्टात्मन्! तू मेरे रहते इस स्त्रीको नहीं मार सकता। नरभक्षी राक्षस! तू मुझ अकेलेके साथ अकेला ही भिड़ जा॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहमेको नयिष्यामि त्वामद्य यमसादनम्।
अद्य मद्बलनिष्पिष्टं शिरो राक्षस दीर्यताम्।
कुञ्जरस्येव पादेन विनिष्पिष्टं बलीयसः ॥ २९ ॥
मूलम्
अहमेको नयिष्यामि त्वामद्य यमसादनम्।
अद्य मद्बलनिष्पिष्टं शिरो राक्षस दीर्यताम्।
कुञ्जरस्येव पादेन विनिष्पिष्टं बलीयसः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज मैं अकेला ही तुझे यमलोक भेज दूँगा। निशाचर! जैसे अत्यन्त बलवान् हाथीके पैरसे दबकर किसीका भी मस्तक पिस जाता है, उसी प्रकार मेरे बलपूर्वक आघातसे कुचला जाकर तेरा सिर फट जायगा॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्य गात्राणि ते कङ्काः श्येना गोमायवस्तथा।
कर्षन्तु भुवि संहृष्टा निहतस्य मया मृधे ॥ ३० ॥
मूलम्
अद्य गात्राणि ते कङ्काः श्येना गोमायवस्तथा।
कर्षन्तु भुवि संहृष्टा निहतस्य मया मृधे ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज मेरे द्वारा युद्धमें तेरा वध हो जानेपर हर्षमें भरे हुए गीध, बाज और गीदड़ धरतीपर पड़े हुए तेरे अंगोंको इधर-उधर घसीटेंगे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षणेनाद्य करिष्येऽहमिदं वनमराक्षसम् ।
पुरा यद् दूषितं नित्यं त्वया भक्षयता नरान् ॥ ३१ ॥
मूलम्
क्षणेनाद्य करिष्येऽहमिदं वनमराक्षसम् ।
पुरा यद् दूषितं नित्यं त्वया भक्षयता नरान् ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आजसे पहले सदा मनुष्योंको खा-खाकर तूने जिसे अपवित्र कर दिया है, उसी वनको आज मैं क्षणभरमें राक्षसोंसे सूना कर दूँगा॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्य त्वां भगिनी रक्षः कृष्यमाणं मयासकृत्।
द्रक्ष्यत्यद्रिप्रतीकाशं सिंहेनेव महाद्विपम् ॥ ३२ ॥
मूलम्
अद्य त्वां भगिनी रक्षः कृष्यमाणं मयासकृत्।
द्रक्ष्यत्यद्रिप्रतीकाशं सिंहेनेव महाद्विपम् ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राक्षस! जैसे सिंह पर्वताकार महान् गजराजको घसीट ले जाता है, उसी प्रकार आज मेरे द्वारा बार-बार घसीटे जानेवाले तुझको तेरी बहिन अपनी आँखों देखेगी॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निराबाधास्त्वयि हते मया राक्षसपांसन।
वनमेतच्चरिष्यन्ति पुरुषा वनचारिणः ॥ ३३ ॥
मूलम्
निराबाधास्त्वयि हते मया राक्षसपांसन।
वनमेतच्चरिष्यन्ति पुरुषा वनचारिणः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राक्षसकुलांगार! मेरे द्वारा तेरे मारे जानेपर वनवासी मनुष्य बिना किसी विघ्न-बाधाके इस वनमें विचरण करेंगे’॥३३॥
मूलम् (वचनम्)
हिडिम्ब उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
गर्जितेन वृथा किं ते कत्थितेन च मानुष।
कृत्वैतत् कर्मणा सर्वं कत्थेथा मा चिरं कृथाः ॥ ३४ ॥
मूलम्
गर्जितेन वृथा किं ते कत्थितेन च मानुष।
कृत्वैतत् कर्मणा सर्वं कत्थेथा मा चिरं कृथाः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हिडिम्ब बोला— अरे ओ मनुष्य! व्यर्थ गर्जने तथा बढ़-बढ़कर बातें बनानेसे क्या लाभ? यह सब कुछ पहले करके दिखा, फिर डींग हाँकना; अब देर न कर॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बलिनं मन्यसे यच्चाप्यात्मानं सपराक्रमम्।
ज्ञास्यस्यद्य समागम्य मयाऽऽत्मानं बलाधिकम् ॥ ३५ ॥
न तावदेतान् हिंसिष्ये स्वपन्त्वेते यथासुखम्।
एष त्वामेव दुर्बुद्धे निहन्म्यद्याप्रियंवदम् ॥ ३६ ॥
पीत्वा तवासृग् गात्रेभ्यस्ततः पश्चादिमानपि।
हनिष्यामि ततः पश्चादिमां विप्रियकारिणीम् ॥ ३७ ॥
मूलम्
बलिनं मन्यसे यच्चाप्यात्मानं सपराक्रमम्।
ज्ञास्यस्यद्य समागम्य मयाऽऽत्मानं बलाधिकम् ॥ ३५ ॥
न तावदेतान् हिंसिष्ये स्वपन्त्वेते यथासुखम्।
एष त्वामेव दुर्बुद्धे निहन्म्यद्याप्रियंवदम् ॥ ३६ ॥
पीत्वा तवासृग् गात्रेभ्यस्ततः पश्चादिमानपि।
हनिष्यामि ततः पश्चादिमां विप्रियकारिणीम् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तू अपने-आपको जो बड़ा बलवान् और पराक्रमी समझ रहा है, उसकी सच्चाईका पता तो तब लगेगा, जब आज मेरे साथ भिड़ेगा। तभी तू जान सकेगा कि मुझसे तुझमें कितना अधिक बल है। दुर्बुद्धे! मैं पहले इन सबकी हिंसा नहीं करूँगा। ये थोड़ी देरतक सुखपूर्वक सो लें। तू मुझे बड़ी कड़वी बातें सुना रहा है, अतः सबसे पहले तुझे ही अभी मारे देता हूँ। पहले तेरे अंगोंका ताजा खून पीकर उसके बाद तेरे इन भाइयोंका भी वध करूँगा। तदनन्तर अपना अप्रिय करनेवाली इस हिडिम्बाको भी मार डालूँगा॥३५—३७॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा ततो बाहुं प्रगृह्य पुरुषादकः।
अभ्यद्रवत संक्रुद्धो भीमसेनमरिंदमम् ॥ ३८ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा ततो बाहुं प्रगृह्य पुरुषादकः।
अभ्यद्रवत संक्रुद्धो भीमसेनमरिंदमम् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! यों कहकर क्रोधमें भरा हुआ वह नरभक्षी राक्षस अपनी एक बाँह ऊपर उठाये शत्रुदमन भीमसेनपर टूट पड़ा॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याभिद्रवतस्तूर्णं भीमो भीमपराक्रमः ।
वेगेन प्रहितं बाहुं निजग्राह हसन्निव ॥ ३९ ॥
मूलम्
तस्याभिद्रवतस्तूर्णं भीमो भीमपराक्रमः ।
वेगेन प्रहितं बाहुं निजग्राह हसन्निव ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
झपटते ही बड़े वेगसे उसने भीमसेनपर हाथ चलाया। तब तो भयंकर पराक्रमी भीमसेनने तुरंत ही उसके हाथको हँसते हुए-से पकड़ लिया॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निगृह्य तं बलाद् भीमो विस्फुरन्तं चकर्ष ह।
तस्माद् देशाद् धनूंष्यष्टौ सिंहः क्षुद्रमृगं यथा ॥ ४० ॥
मूलम्
निगृह्य तं बलाद् भीमो विस्फुरन्तं चकर्ष ह।
तस्माद् देशाद् धनूंष्यष्टौ सिंहः क्षुद्रमृगं यथा ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह राक्षस उनके हाथसे छूटनेके लिये छटपटाने और उछल-कूद मचाने लगा; परंतु भीमसेन उसे पकड़े हुए ही बलपूर्वक उस स्थानसे आठ धनुष (बत्तीस हाथ) दूर घसीट ले गये—उसी प्रकार जैसे सिंह किसी छोटे मृगको घसीटकर ले जाय॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स राक्षसः क्रुद्धः पाण्डवेन बलार्दितः।
भीमसेनं समालिङ्ग्य व्यनदद् भैरवं रवम् ॥ ४१ ॥
मूलम्
ततः स राक्षसः क्रुद्धः पाण्डवेन बलार्दितः।
भीमसेनं समालिङ्ग्य व्यनदद् भैरवं रवम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन भीमके द्वारा बलपूर्वक पीड़ित होनेपर वह राक्षस क्रोधमें भर गया और भीमसेनको भुजाओंसे कसकर भयंकर गर्जना करने लगा॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनर्भीमो बलादेनं विचकर्ष महाबलः।
मा शब्दः सुखसुप्तानां भ्रातॄणां मे भवेदिति ॥ ४२ ॥
मूलम्
पुनर्भीमो बलादेनं विचकर्ष महाबलः।
मा शब्दः सुखसुप्तानां भ्रातॄणां मे भवेदिति ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाबली भीमसेन यह सोचकर पुनः उसे बलपूर्वक कुछ दूर खींच ले गये कि सुखपूर्वक सोये हुए भाइयोंके कानोंमें शब्द न पहुँचे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्योन्यं तौ समासाद्य विचकर्षतुरोजसा।
हिडिम्बो भीमसेनश्च विक्रमं चक्रनुः परम् ॥ ४३ ॥
मूलम्
अन्योन्यं तौ समासाद्य विचकर्षतुरोजसा।
हिडिम्बो भीमसेनश्च विक्रमं चक्रनुः परम् ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो दोनों एक-दूसरेसे गुथ गये और बलपूर्वक अपनी-अपनी ओर खींचने लगे। हिडिम्ब और भीमसेन दोनोंने बड़ा भारी पराक्रम प्रकट किया॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बभञ्जतुस्तदा वृक्षाल्ँलताश्चाकर्षतुस्तदा ।
मत्ताविव च संरब्धौ वारणौ षष्टिहायनौ ॥ ४४ ॥
मूलम्
बभञ्जतुस्तदा वृक्षाल्ँलताश्चाकर्षतुस्तदा ।
मत्ताविव च संरब्धौ वारणौ षष्टिहायनौ ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे साठ वर्षकी अवस्थावाले दो मतवाले गजराज कुपित हो परस्पर युद्ध करते हों, उसी प्रकार वे दोनों एक-दूसरेसे भिड़कर वृक्षोंको तोड़ने और लताओंको खींच-खींचकर उजाड़ने लगे॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(पादपानुद्वहन्तौ ताबुरुवेगेन वेगितौ ।
स्फोटयन्तौ लताजालान्यूरुभ्यां प्राप्य सर्वतः॥
वित्रासयन्तौ शब्देन सर्वतो मृगपक्षिणः।
बलेन बलिनौ मत्तावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ ॥
भीमराक्षसयोर्युद्धं तदावर्तत दारुणम् ॥
ऊरुबाहुपरिक्लेशात् कर्षन्तावितरेतरम् ।
ततः शब्देन महता गर्जन्तौ तौ परस्परम्॥
पाषाणसंघट्टनिभैः प्रहारैरभिजघ्नतुः ।
अन्योन्यं तौ समालिङ्ग्य विकर्षन्तौ परस्परम्॥)
मूलम्
(पादपानुद्वहन्तौ ताबुरुवेगेन वेगितौ ।
स्फोटयन्तौ लताजालान्यूरुभ्यां प्राप्य सर्वतः॥
वित्रासयन्तौ शब्देन सर्वतो मृगपक्षिणः।
बलेन बलिनौ मत्तावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ ॥
भीमराक्षसयोर्युद्धं तदावर्तत दारुणम् ॥
ऊरुबाहुपरिक्लेशात् कर्षन्तावितरेतरम् ।
ततः शब्देन महता गर्जन्तौ तौ परस्परम्॥
पाषाणसंघट्टनिभैः प्रहारैरभिजघ्नतुः ।
अन्योन्यं तौ समालिङ्ग्य विकर्षन्तौ परस्परम्॥)
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों वृक्ष उठाये बड़े वेगसे एक-दूसरेकी ओर दौड़ते थे, अपनी जाँघोंकी टक्करसे चारों ओरकी लताओंको छिन्न-भिन्न किये देते थे तथा गर्जन-तर्जनके द्वारा सब ओर पशु-पक्षियोंको आतंकित कर देते थे। बलसे उन्मत्त हुए वे दोनों महाबली योद्धा एक-दूसरेको मार डालना चाहते थे। उस समय भीमसेन और हिडिम्बासुरमें बड़ा भयंकर युद्ध चल रहा था। वे दोनों एक-दूसरेकी भुजाओंको मरोड़ते और जाँघोंको घुटनोंसे दबाते हुए दोनों एक-दूसरेको अपनी ओर खींचते थे। तदनन्तर वे बड़े जोरसे गर्जते हुए परस्पर इस प्रकार प्रहार करने लगे, मानो दो चट्टानें आपसमें टकरा रही हों। तत्पश्चात् वे एक-दूसरेसे गुथ गये और दोनों दोनोंको भुजाओंमें कसकर इधर-उधर खींच ले जानेकी चेष्टा करने लगे।
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोः शब्देन महता विबुद्धास्ते नरर्षभाः।
सह मात्रा च ददृशुर्हिडिम्बामग्रतः स्थिताम् ॥ ४५ ॥
मूलम्
तयोः शब्देन महता विबुद्धास्ते नरर्षभाः।
सह मात्रा च ददृशुर्हिडिम्बामग्रतः स्थिताम् ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंकी भारी गर्जनासे वे नरश्रेष्ठ पाण्डव मातासहित जाग उठे और उन्होंने अपने सामने खड़ी हुई हिडिम्बाको देखा॥४५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि हिडिम्बवधपर्वणि हिडिम्बयुद्धे द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १५२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत हिडिम्बवधपर्वमें हिडिम्ब-युद्धविषयक एक सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५२॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ५ श्लोक मिलाकर कुल ५० श्लोक हैं)