श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
षोडशाधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंकी नामावली
मूलम् (वचनम्)
जनमेजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्येष्ठानुज्येष्ठतां तेषां नामानि च पृथक् पृथक्।
धृतराष्ट्रस्य पुत्राणामानुपूर्व्यात् प्रकीर्तय ॥ १ ॥
मूलम्
ज्येष्ठानुज्येष्ठतां तेषां नामानि च पृथक् पृथक्।
धृतराष्ट्रस्य पुत्राणामानुपूर्व्यात् प्रकीर्तय ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजयने पूछा— ब्रह्मन्! धृतराष्ट्रके पुत्रोंमें सबसे ज्येष्ठ कौन था? फिर उससे छोटा और उससे भी छोटा कौन था? उन सबके अलग-अलग नाम क्या थे? इन सब बातोंका क्रमशः वर्णन कीजिये॥१॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनो युयुत्सुश्च राजन् दुःशासनस्तथा।
दुःसहो दुःशलश्चैव जलसंधः समः सहः ॥ २ ॥
विन्दानुविन्दौ दुर्धर्षः सुबाहुर्दुष्प्रधर्षणः ।
दुर्मर्षणो दुर्मुखश्च दुष्कर्णः कर्ण एव च ॥ ३ ॥
विविंशतिर्विकर्णश्च शलः सत्त्वः सुलोचनः।
चित्रोपचित्रौ चित्राक्षश्चारुचित्रशरासनः ॥ ४ ॥
दुर्मदो दुर्विगाहश्च विवित्सुर्विकटाननः ।
ऊर्णनाभः सुनाभश्च तथा नन्दोपनन्दकौ ॥ ५ ॥
चित्रबाणश्चित्रवर्मा सुवर्मा दुर्विरोचनः ।
अयोबाहुर्महाबाहुश्चित्राङ्गश्चित्रकुण्डलः ॥
भीमवेगो भीमबलो बलाकी बलवर्धनः।
उग्रायुधः सुषेणश्च कुण्डोदरमहोदरौ ॥ ७ ॥
चित्रायुधो निषङ्गी च पाशी वृन्दारकस्तथा।
दृढवर्मा दृढक्षत्रः सोमकीर्तिरनूदरः ॥
दृढसन्धो जरासन्धः सत्यसन्धः सदःसुवाक्।
उग्रश्रवा उग्रसेनः सेनानीर्दुष्पराजयः ॥
अपराजितः पण्डितको विशालाक्षो दुराधरः।
दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ ॥ १० ॥
आदित्यकेतुर्बह्वाशी नागदत्तोऽग्रयाय्यपि ।
कवची क्रथनः दण्डी दण्डधारो धनुर्ग्रहः ॥ ११ ॥
उग्रभीमरथौ वीरौ वीरबाहुरलोलुपः ।
अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथाश्रयः ॥ १२ ॥
अनाधृष्यः कुण्डभेदी विरावी चित्रकुण्डलः।
प्रमथश्च प्रमाथी च दीर्घरोमश्च वीर्यवान् ॥ १३ ॥
दीर्घबाहुर्महाबाहुर्व्यूढोरुः कनकध्वजः ।
कुण्डाशी विरजाश्चैव दुःशला च शताधिका ॥ १४ ॥
मूलम्
दुर्योधनो युयुत्सुश्च राजन् दुःशासनस्तथा।
दुःसहो दुःशलश्चैव जलसंधः समः सहः ॥ २ ॥
विन्दानुविन्दौ दुर्धर्षः सुबाहुर्दुष्प्रधर्षणः ।
दुर्मर्षणो दुर्मुखश्च दुष्कर्णः कर्ण एव च ॥ ३ ॥
विविंशतिर्विकर्णश्च शलः सत्त्वः सुलोचनः।
चित्रोपचित्रौ चित्राक्षश्चारुचित्रशरासनः ॥ ४ ॥
दुर्मदो दुर्विगाहश्च विवित्सुर्विकटाननः ।
ऊर्णनाभः सुनाभश्च तथा नन्दोपनन्दकौ ॥ ५ ॥
चित्रबाणश्चित्रवर्मा सुवर्मा दुर्विरोचनः ।
अयोबाहुर्महाबाहुश्चित्राङ्गश्चित्रकुण्डलः ॥
भीमवेगो भीमबलो बलाकी बलवर्धनः।
उग्रायुधः सुषेणश्च कुण्डोदरमहोदरौ ॥ ७ ॥
चित्रायुधो निषङ्गी च पाशी वृन्दारकस्तथा।
दृढवर्मा दृढक्षत्रः सोमकीर्तिरनूदरः ॥
दृढसन्धो जरासन्धः सत्यसन्धः सदःसुवाक्।
उग्रश्रवा उग्रसेनः सेनानीर्दुष्पराजयः ॥
अपराजितः पण्डितको विशालाक्षो दुराधरः।
दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ ॥ १० ॥
आदित्यकेतुर्बह्वाशी नागदत्तोऽग्रयाय्यपि ।
कवची क्रथनः दण्डी दण्डधारो धनुर्ग्रहः ॥ ११ ॥
उग्रभीमरथौ वीरौ वीरबाहुरलोलुपः ।
अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथाश्रयः ॥ १२ ॥
अनाधृष्यः कुण्डभेदी विरावी चित्रकुण्डलः।
प्रमथश्च प्रमाथी च दीर्घरोमश्च वीर्यवान् ॥ १३ ॥
दीर्घबाहुर्महाबाहुर्व्यूढोरुः कनकध्वजः ।
कुण्डाशी विरजाश्चैव दुःशला च शताधिका ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजीने कहा— (जनमेजय! धृतराष्ट्रके पुत्रोंके नाम क्रमशः ये हैं—) १. दुर्योधन, २. युयुत्सु, ३. दुश्शासन, ४. दुस्सह, ५. दुश्शल, ६. जलसंध, ७. सम, ८. सह, ९. विन्द, १०. अनुविन्द, ११. दुर्धर्ष, १२. सुबाहु, १३. दुष्प्रधर्षण, १४. दुर्मर्षण, १५. दुर्मुख, १६. दुष्कर्ण, १७. कर्ण, १८. विविंशति, १९. विकर्ण, २०. शल, २१. सत्त्व, २२. सुलोचन, २३. चित्र, २४. उपचित्र, २५. चित्राक्ष, २६. चारुचित्रशरासन (चित्र-चाप), २७. दुर्मद, २८. दुर्विगाह, २९. विवित्सु, ३०. विकटानन (विकट), ३१. ऊर्णनाभ, ३२. सुनाभ (पद्मनाभ), ३३. नन्द, ३४. उपनन्द, ३५. चित्रबाण (चित्रबाहु), ३६. चित्रवर्मा, ३७. सुवर्मा, ३८. दुर्विरोचन, ३९. अयोबाहु, ४०. महाबाहु चित्रांग (चित्रांगद), ४१. चित्रकुण्डल (सुकुण्डल), ४२. भीमवेग, ४३. भीमबल, ४४. बलाकी, ४५. बलवर्धन (विक्रम), ४६. उग्रायुध, ४७. सुषेण, ४८. कुण्डोदर, ४९. महोदर, ५०. चित्रायुध (दृढ़ायुध), ५१. निषंगी, ५२. पाशी, ५३. वृन्दारक, ५४. दृढ़वर्मा, ५५. दृढ़क्षत्र, ५६. सोमकीर्ति, ५७. अनूदर, ५८. दृढ़सन्ध, ५९. जरासन्ध, ६०. सत्यसन्ध, ६१. सदःसुवाक् (सहस्रवाक्), ६२. उग्रश्रवा, ६३. उग्रसेन, ६४. सेनानी (सेनापति), ६५. दुष्पराजय, ६६. अपराजित, ६७. पण्डितक, ६८. विशालाक्ष, ६९. दुराधर (दुराधन), ७०. दृढ़हस्त, ७१. सुहस्त, ७२. वातवेग, ७३. सुवर्चा, ७४. आदित्यकेतु, ७५. बह्वाशी, ७६. नागदत्त, ७७. अग्रयायी (अनुयायी), ७८. कवची, ७९. क्रथन, ८०. दण्डी, ८१. दण्डधार, ८२. धनुर्ग्रह, ८३. उग्र, ८४. भीमरथ, ८५. वीरबाहु, ८६. अलोलुप, ८७. अभय, ८८. रौद्रकर्मा, ८९. दृढ़रथाश्रय (दृढ़रथ), ९०. अनाधृष्य, ९१. कुण्डभेदी, ९२. विरावी, ९३. विचित्र कुण्डलोंसे सुशोभित प्रमथ, ९४. प्रमाथी, ९५. वीर्यवान् दीर्घरोमा (दीर्घलोचन), ९६. दीर्घबाहु, ९७. महाबाहु व्यूढोरु, ९८. कनकध्वज (कनकांगद), ९९. कुण्डाशी (कुण्डज) तथा १००. विरजा—धृतराष्ट्रके ये सौ पुत्र थे। इनके सिवा दुःशला नामक एक कन्या थी, जो सौसे अधिक थी1॥२—१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति पुत्रशतं राजन् कन्या चैव शताधिका।
नामधेयानुपूर्व्येण विद्धि जन्मक्रमं नृप ॥ १५ ॥
मूलम्
इति पुत्रशतं राजन् कन्या चैव शताधिका।
नामधेयानुपूर्व्येण विद्धि जन्मक्रमं नृप ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इस प्रकार धृतराष्ट्रके सौ पुत्र और उन सौके अतिरिक्त एक कन्या बतायी गयी। राजन्! जिस क्रमसे इनके नाम लिये गये हैं, उसी क्रमसे इनका जन्म हुआ समझो॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वे त्वतिरथाः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः।
सर्वे वेदविदश्चैव सर्वे सर्वास्त्रकोविदाः ॥ १६ ॥
मूलम्
सर्वे त्वतिरथाः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः।
सर्वे वेदविदश्चैव सर्वे सर्वास्त्रकोविदाः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये सभी अतिरथी शूरवीर थे। सबने युद्धविद्यामें निपुणता प्राप्त कर ली थी। सब-के-सब वेदोंके विद्वान् तथा सम्पूर्ण अस्त्रविद्याके मर्मज्ञ थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वेषामनुरूपाश्च कृता दारा महीपते।
धृतराष्ट्रेण समये परीक्ष्य विधिवन्नृप ॥ १७ ॥
दुःशलां चापि समये धृतराष्ट्रो नराधिपः।
जयद्रथाय प्रददौ विधिना भरतर्षभ ॥ १८ ॥
मूलम्
सर्वेषामनुरूपाश्च कृता दारा महीपते।
धृतराष्ट्रेण समये परीक्ष्य विधिवन्नृप ॥ १७ ॥
दुःशलां चापि समये धृतराष्ट्रो नराधिपः।
जयद्रथाय प्रददौ विधिना भरतर्षभ ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजय! राजा धृतराष्ट्रने समयपर भलीभाँति जाँच-पड़ताल करके अपने सभी पुत्रोंका उनके योग्य स्त्रियोंके साथ विवाह कर दिया। भरतश्रेष्ठ! महाराज धृतराष्ट्रने विवाहके योग्य समय आनेपर अपनी पुत्री दुःशलाका राजा जयद्रथके साथ विधिपूर्वक विवाह किया॥१७-१८॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि सम्भवपर्वणि धृतराष्ट्रपुत्रनामकथने षोडशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत सम्भवपर्वमें धृतराष्ट्रपुत्रनामवर्णनविषयक एक सौ सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११६॥
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आदिपर्वके सरसठवें अध्यायमें भी धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंके नाम आये हैं। वहाँ जो नाम दिये गये हैं, उनमेंसे अधिकांश नाम इस अध्यायमें भी ज्यों-के-त्यों हैं। कुछ नामोंमें साधारण अन्तर है, जिन्हें यहाँ कोष्ठकमें दे दिया गया है। इस प्रकार यहाँ और वहाँके नामोंकी एकता की गयी है। थोड़े-से नाम ऐसे भी हैं, जिनका मेल नहीं मिलता। नामोंके क्रममें भी दोनों स्थलोंमें अन्तर है। सम्भव है, उनके दो-दो नाम रहे हों और दोनों स्थलोंमें भिन्न-भिन्न नामोंका उल्लेख हो। ↩︎