०२३ गरुडोत्पत्तिः

श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना

त्रयोविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

पराजित विनताका कद्रूकी दासी होना, गरुडकी उत्पत्ति तथा देवताओंद्वारा उनकी स्तुति

मूलम् (वचनम्)

सौतिरुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं समुद्रमतिक्रम्य कद्रूर्विनतया सह।
न्यपतत् तुरगाभ्याशे नचिरादिव शीघ्रगा ॥ १ ॥
ततस्ते तं हयश्रेष्ठं ददृशाते महाजवम्।
शशाङ्ककिरणप्रख्यं कालवालमुभे तदा ॥ २ ॥

मूलम्

तं समुद्रमतिक्रम्य कद्रूर्विनतया सह।
न्यपतत् तुरगाभ्याशे नचिरादिव शीघ्रगा ॥ १ ॥
ततस्ते तं हयश्रेष्ठं ददृशाते महाजवम्।
शशाङ्ककिरणप्रख्यं कालवालमुभे तदा ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उग्रश्रवाजी कहते हैं— शौनक! तदनन्तर शीघ्रगामिनी कद्रू विनताके साथ उस समुद्रको लाँघकर तुरंत ही उच्चैःश्रवा घोड़ेके पास पहुँच गयीं। उस समय चन्द्रमाकी किरणोंके समान श्वेत वर्णवाले उस महान् वेगशाली श्रेष्ठ अश्वको उन दोनोंने काली पूँछवाला देखा॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निशम्य च बहून् बालान् कृष्णान् पुच्छसमाश्रितान्।
विषण्णरूपां विनतां कद्रूर्दास्ये न्ययोजयत् ॥ ३ ॥

मूलम्

निशम्य च बहून् बालान् कृष्णान् पुच्छसमाश्रितान्।
विषण्णरूपां विनतां कद्रूर्दास्ये न्ययोजयत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पूँछके घनीभूत बालोंको काले रंगका देखकर विनता विषादकी मूर्ति बन गयी और कद्रूने उसे अपनी दासीके काममें लगा दिया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सा विनता तस्मिन् पणितेन पराजिता।
अभवद् दुःखसंतप्ता दासीभावं समास्थिता ॥ ४ ॥

मूलम्

ततः सा विनता तस्मिन् पणितेन पराजिता।
अभवद् दुःखसंतप्ता दासीभावं समास्थिता ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पहलेकी लगायी हुई बाजी हारकर विनता उस स्थानपर दुःखसे संतप्त हो उठी और उसने दासीभाव स्वीकार कर लिया॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्मिन्नन्तरे चापि गरुडः काल आगते।
विना मात्रा महातेजा विदार्याण्डमजायत ॥ ५ ॥

मूलम्

एतस्मिन्नन्तरे चापि गरुडः काल आगते।
विना मात्रा महातेजा विदार्याण्डमजायत ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी बीचमें समय पूरा होनेपर महातेजस्वी गरुड माताकी सहायताके बिना ही अण्डा फोड़कर बाहर निकल आये॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महासत्त्वबलोपेतः सर्वा विद्योतयन् दिशः।
कामरूपः कामगमः कामवीर्यो विहंगमः ॥ ६ ॥

मूलम्

महासत्त्वबलोपेतः सर्वा विद्योतयन् दिशः।
कामरूपः कामगमः कामवीर्यो विहंगमः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे महान् साहस और पराक्रमसे सम्पन्न थे। अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित कर रहे थे। उनमें इच्छानुसार रूप धारण करनेकी शक्ति थी। वे जहाँ जितनी जल्दी जाना चाहें जा सकते थे और अपनी रुचिके अनुसार पराक्रम दिखला सकते थे। उनका प्राकट्य आकाशचारी पक्षीके रूपमें हुआ था॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्निराशिरिवोद्‌भासन् समिद्धोऽतिभयंकरः ।
विद्युद्विस्पष्टपिङ्गाक्षो युगान्ताग्निसमप्रभः ॥ ७ ॥

मूलम्

अग्निराशिरिवोद्‌भासन् समिद्धोऽतिभयंकरः ।
विद्युद्विस्पष्टपिङ्गाक्षो युगान्ताग्निसमप्रभः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे प्रज्वलित अग्नि-पुंजके समान उद्भासित होकर अत्यन्त भयंकर जान पड़ते थे। उनकी आँखें बिजलीके समान चमकनेवाली और पिंगलवर्णकी थीं। वे प्रलयकालकी अग्निके समान प्रज्वलित एवं प्रकाशित हो रहे थे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रवृद्धः सहसा पक्षी महाकायो नभोगतः।
घोरो घोरस्वनो रौद्रो वह्निरौर्व इवापरः ॥ ८ ॥

मूलम्

प्रवृद्धः सहसा पक्षी महाकायो नभोगतः।
घोरो घोरस्वनो रौद्रो वह्निरौर्व इवापरः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनका शरीर थोड़ी ही देरमें बढ़कर विशाल हो गया। पक्षी गरुड आकाशमें उड़ चले। वे स्वयं तो भयंकर थे ही, उनकी आवाज भी बड़ी भयानक थी। वे दूसरे बड़वानलकी भाँति बड़े भीषण जान पड़ते थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं दृष्ट्वा शरणं जग्मुर्देवाः सर्वे विभावसुम्।
प्रणिपत्याब्रुवंश्चैनमासीनं विश्वरूपिणम् ॥ ९ ॥

मूलम्

तं दृष्ट्वा शरणं जग्मुर्देवाः सर्वे विभावसुम्।
प्रणिपत्याब्रुवंश्चैनमासीनं विश्वरूपिणम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हें देखकर सब देवता विश्वरूपधारी अग्निदेवकी शरणमें गये और उन्हें प्रणाम करके बैठे हुए उन अग्निदेवसे इस प्रकार बोले—॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्ने मा त्वं प्रवर्धिष्ठाः कच्चिन्नो न दिधक्षसि।
असौ हि राशिः सुमहान् समिद्धस्तव सर्पति ॥ १० ॥

मूलम्

अग्ने मा त्वं प्रवर्धिष्ठाः कच्चिन्नो न दिधक्षसि।
असौ हि राशिः सुमहान् समिद्धस्तव सर्पति ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अग्ने! आप इस प्रकार न बढ़ें। आप हमलोगोंको जलाकर भस्म तो नहीं कर डालना चाहते हैं? देखिये, वह आपका महान्, प्रज्वलित तेजःपुंज इधर ही फैलता आ रहा है’॥१०॥

मूलम् (वचनम्)

अग्निरुवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैतदेवं यथा यूयं मन्यध्वमसुरार्दनाः।
गरुडो बलवानेष मम तुल्यश्च तेजसा ॥ ११ ॥

मूलम्

नैतदेवं यथा यूयं मन्यध्वमसुरार्दनाः।
गरुडो बलवानेष मम तुल्यश्च तेजसा ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अग्निदेवने कहा— असुरविनाशक देवताओ! तुम जैसा समझ रहे हो, वैसी बात नहीं है। ये महाबली गरुड हैं, जो तेजमें मेरे ही तुल्य हैं॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जातः परमतेजस्वी विनतानन्दवर्धनः।
तेजोराशिमिमं दृष्ट्वा युष्मान् मोहः समाविशत् ॥ १२ ॥

मूलम्

जातः परमतेजस्वी विनतानन्दवर्धनः।
तेजोराशिमिमं दृष्ट्वा युष्मान् मोहः समाविशत् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विनताका आनन्द बढ़ानेवाले ये परम तेजस्वी गरुड इसी रूपमें उत्पन्न हुए हैं। तेजके पुंजरूप इन गरुडको देखकर ही तुमलोगोंपर मोह छा गया है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नागक्षयकरश्चैव काश्यपेयो महाबलः ।
देवानां च हिते युक्तस्त्वहितो दैत्यरक्षसाम् ॥ १३ ॥

मूलम्

नागक्षयकरश्चैव काश्यपेयो महाबलः ।
देवानां च हिते युक्तस्त्वहितो दैत्यरक्षसाम् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कश्यपनन्दन महाबली गरुड नागोंके विनाशक, देवताओंके हितैषी और दैत्यों तथा राक्षसोंके शत्रु हैं॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न भीः कार्या कथं चात्र पश्यध्वं सहिता मम।
एवमुक्तास्तदा गत्वा गरुडं वाग्भिरस्तुवन् ॥ १४ ॥
ते दूसदभ्युपेत्यैनं देवाः सर्षिगणास्तदा।

मूलम्

न भीः कार्या कथं चात्र पश्यध्वं सहिता मम।
एवमुक्तास्तदा गत्वा गरुडं वाग्भिरस्तुवन् ॥ १४ ॥
ते दूसदभ्युपेत्यैनं देवाः सर्षिगणास्तदा।

अनुवाद (हिन्दी)

इनसे किसी प्रकारका भय नहीं करना चाहिये। तुम मेरे साथ चलकर इनका दर्शन करो। अग्निदेवके ऐसा कहनेपर उस समय देवताओं तथा ऋषियोंने गरुडके पास जाकर अपनी वाणीद्वारा उनका इस प्रकार स्तवन किया (यहाँ परमात्माके रूपमें गरुडकी स्तुति की गयी है)॥१४॥

मूलम् (वचनम्)

देवा ऊचुः

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वमृषिस्त्वं महाभागस्त्वं देवः पतगेश्वरः ॥ १५ ॥

मूलम्

त्वमृषिस्त्वं महाभागस्त्वं देवः पतगेश्वरः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता बोले— प्रभो! आप मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं; आप ही महाभाग देवता तथा आप ही पतगेश्वर (पक्षियों तथा जीवोंके स्वामी) हैं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वं प्रभुस्तपनः सूर्यः परमेष्ठी प्रजापतिः।
त्वमिन्द्रस्त्वं हयमुखस्त्वं शर्वस्त्वं जगत्पतिः ॥ १६ ॥

मूलम्

त्वं प्रभुस्तपनः सूर्यः परमेष्ठी प्रजापतिः।
त्वमिन्द्रस्त्वं हयमुखस्त्वं शर्वस्त्वं जगत्पतिः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप ही प्रभु, तपन, सूर्य, परमेष्ठी तथा प्रजापति हैं। आप ही इन्द्र हैं, आप ही हयग्रीव हैं, आप ही शिव हैं तथा आप ही जगत्‌के स्वामी हैं॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वं मुखं पद्मजो विप्रस्त्वमग्निः पवनस्तथा।
त्वं हि धाता विधाता च त्वं विष्णुः सुरसत्तमः॥१७॥

मूलम्

त्वं मुखं पद्मजो विप्रस्त्वमग्निः पवनस्तथा।
त्वं हि धाता विधाता च त्वं विष्णुः सुरसत्तमः॥१७॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप ही भगवान्‌के मुखस्वरूप ब्राह्मण, पद्मयोनि ब्रह्मा और विज्ञानवान् विप्र हैं, आप ही अग्नि तथा वायु हैं, आप ही धाता, विधाता और देवश्रेष्ठ विष्णु हैं॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वं महानभिभूः शश्वदमृतं त्वं महद् यशः।
त्वं प्रभास्त्वमभिप्रेतं त्वं नस्त्राणमनुत्तमम् ॥ १८ ॥

मूलम्

त्वं महानभिभूः शश्वदमृतं त्वं महद् यशः।
त्वं प्रभास्त्वमभिप्रेतं त्वं नस्त्राणमनुत्तमम् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप ही महत्तत्त्व और अहंकार हैं। आप ही सनातन, अमृत और महान् यश हैं। आप ही प्रभा और आप ही अभीष्ट पदार्थ हैं। आप ही हमलोगोंके सर्वोत्तम रक्षक हैं॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बलोर्मिमान् साधुरदीनसत्त्वः
समृद्धिमान् दुर्विषहस्त्वमेव ।
त्वत्तः सृतं सर्वमहीनकीर्ते
ह्यनागतं चोपगतं च सर्वम् ॥ १९ ॥

मूलम्

बलोर्मिमान् साधुरदीनसत्त्वः
समृद्धिमान् दुर्विषहस्त्वमेव ।
त्वत्तः सृतं सर्वमहीनकीर्ते
ह्यनागतं चोपगतं च सर्वम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप बलके सागर और साधु पुरुष हैं। आपमें उदार सत्त्वगुण विराजमान है। आप महान् ऐश्वर्यशाली हैं। युद्धमें आपके वेगको सह लेना सभीके लिये सर्वथा कठिन है। पुण्यश्लोक! यह सम्पूर्ण जगत् आपसे ही प्रकट हुआ है। भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ आप ही हैं॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वमुत्तमः सर्वमिदं चराचरं
गभस्तिभिर्भानुरिवावभाससे ।
समाक्षिपन् भानुमतः प्रभां मुहु-
स्त्वमन्तकः सर्वमिदं ध्रुवाध्रुवम् ॥ २० ॥

मूलम्

त्वमुत्तमः सर्वमिदं चराचरं
गभस्तिभिर्भानुरिवावभाससे ।
समाक्षिपन् भानुमतः प्रभां मुहु-
स्त्वमन्तकः सर्वमिदं ध्रुवाध्रुवम् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप उत्तम हैं। जैसे सूर्य अपनी किरणोंसे सबको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आप इस सम्पूर्ण जगत्‌को प्रकाशित करते हैं। आप ही सबका अन्त करनेवाले काल हैं और बारम्बार सूर्यकी प्रभाका उपसंहार करते हुए इस समस्त क्षर और अक्षररूप जगत्‌का संहार करते हैं॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिवाकरः परिकुपितो यथा दहेत्
प्रजास्तथा दहसि हुताशनप्रभ ।
भयंकरः प्रलय इवाग्निरुत्थितो
विनाशयन् युगपरिवर्तनान्तकृत् ॥ २१ ॥

मूलम्

दिवाकरः परिकुपितो यथा दहेत्
प्रजास्तथा दहसि हुताशनप्रभ ।
भयंकरः प्रलय इवाग्निरुत्थितो
विनाशयन् युगपरिवर्तनान्तकृत् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अग्निके समान प्रकाशित होनेवाले देव! जैसे सूर्य क्रुद्ध होनेपर सबको जला सकते हैं, उसी प्रकार आप भी कुपित होनेपर सम्पूर्ण प्रजाको दग्ध कर डालते हैं। आप युगान्तकारी कालके भी काल हैं और प्रलयकालमें सबका विनाश करनेके लिये भयंकर संवर्तकाग्निके रूपमें प्रकट होते हैं॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

खगेश्वरं शरणमुपागता वयं
महौजसं ज्वलनसमानवर्चसम् ।
तडित्प्रभं वितिमिरमभ्रगोचरं
महाबलं गरुडमुपेत्य खेचरम् ॥ २२ ॥

मूलम्

खगेश्वरं शरणमुपागता वयं
महौजसं ज्वलनसमानवर्चसम् ।
तडित्प्रभं वितिमिरमभ्रगोचरं
महाबलं गरुडमुपेत्य खेचरम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप सम्पूर्ण पक्षियों एवं जीवोंके अधीश्वर हैं। आपका ओज महान् है। आप अग्निके समान तेजस्वी हैं। आप बिजलीके समान प्रकाशित होते हैं। आपके द्वारा अज्ञानपुंजका निवारण होता है। आप आकाशमें मेघोंकी भाँति विचरनेवाले महापराक्रमी गरुड हैं। हम यहाँ आकर आपके शरणागत हो रहे हैं॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परावरं वरदमजय्यविक्रमं
तवौजसा सर्वमिदं प्रतापितम् ।
जगत्प्रभो तप्तसुवर्णवर्चसा
त्वं पाहि सर्वांश्च सुरान् महात्मनः ॥ २३ ॥

मूलम्

परावरं वरदमजय्यविक्रमं
तवौजसा सर्वमिदं प्रतापितम् ।
जगत्प्रभो तप्तसुवर्णवर्चसा
त्वं पाहि सर्वांश्च सुरान् महात्मनः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप ही कार्य और कारणरूप हैं। आपसे ही सबको वर मिलता है। आपका पराक्रम अजेय है। आपके तेजसे यह सम्पूर्ण जगत् संतप्त हो उठा है। जगदीश्वर! आप तपाये हुए सुवर्णके समान अपने दिव्य तेजसे सम्पूर्ण देवताओं और महात्मा पुरुषोंकी रक्षा करें॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भयान्विता नभसि विमानगामिनो
विमानिता विपथगतिं प्रयान्ति ते।
ऋषेः सुतस्त्वमसि दयावतः प्रभो
महात्मनः खगवर कश्यपस्य ह ॥ २४ ॥

मूलम्

भयान्विता नभसि विमानगामिनो
विमानिता विपथगतिं प्रयान्ति ते।
ऋषेः सुतस्त्वमसि दयावतः प्रभो
महात्मनः खगवर कश्यपस्य ह ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पक्षिराज! प्रभो! विमानपर चलनेवाले देवता आपके तेजसे तिरस्कृत एवं भयभीत हो आकाशमें पथभ्रष्ट हो जाते हैं। आप दयालु महात्मा महर्षि कश्यपके पुत्र हैं॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स मा क्रुधः कुरु जगतो दयां परां
त्वमीश्वरः प्रशममुपैहि पाहि नः।
महाशनिस्फुरितसमस्वनेन ते
दिशोऽम्बरं त्रिदिवमियं च मेदिनी ॥ २५ ॥
चलन्ति नः खग हृदयानि चानिशं
निगृह्यतां वपुरिदमग्निसंनिभम् ।
तव द्युतिं कुपितकृतान्तसंनिभां
निशम्य नश्चलति मनोऽव्यवस्थितम् ।
प्रसीद नः पतगपते प्रयाचतां
शिवश्च नो भव भगवन् सुखावहः ॥ २६ ॥

मूलम्

स मा क्रुधः कुरु जगतो दयां परां
त्वमीश्वरः प्रशममुपैहि पाहि नः।
महाशनिस्फुरितसमस्वनेन ते
दिशोऽम्बरं त्रिदिवमियं च मेदिनी ॥ २५ ॥
चलन्ति नः खग हृदयानि चानिशं
निगृह्यतां वपुरिदमग्निसंनिभम् ।
तव द्युतिं कुपितकृतान्तसंनिभां
निशम्य नश्चलति मनोऽव्यवस्थितम् ।
प्रसीद नः पतगपते प्रयाचतां
शिवश्च नो भव भगवन् सुखावहः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! आप कुपित न हों, सम्पूर्ण जगत्‌पर उत्तम दयाका विस्तार करें। आप ईश्वर हैं, अतः शान्ति धारण करें और हम सबकी रक्षा करें। महान् वज्रकी गड़गड़ाहटके समान आपकी गर्जनासे सम्पूर्ण दिशाएँ, आकाश, स्वर्ग तथा यह पृथ्वी सब-के-सब विचलित हो उठे हैं और हमारा हृदय भी निरन्तर काँपता रहता है। अतः खगश्रेष्ठ! आप अग्निके समान तेजस्वी अपने इस भयंकर रूपको शान्त कीजिये। क्रोधमें भरे हुए यमराजके समान आपकी उग्र कान्ति देखकर हमारा मन अस्थिर एवं चंचल हो जाता है। आप हम याचकोंपर प्रसन्न होइये। भगवन्! आप हमारे लिये कल्याणस्वरूप और सुखदायक हो जाइये॥२५-२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं स्तुतः सुपर्णस्तु देवैः सर्षिगणैस्तदा।
तेजसः प्रतिसंहारमात्मनः स चकार ह ॥ २७ ॥

मूलम्

एवं स्तुतः सुपर्णस्तु देवैः सर्षिगणैस्तदा।
तेजसः प्रतिसंहारमात्मनः स चकार ह ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऋषियोंसहित देवताओंके इस प्रकार स्तुति करनेपर उत्तम पंखोंवाले गरुडने उस समय अपने तेजको समेट लिया॥२७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे त्रयोविंशोऽध्यायः ॥ २३ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत आस्तीकपर्वमें गरुडचरित्रविषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२३॥