श्रावणम् (द्युगङ्गा)
भागसूचना
षष्ठोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
महर्षि च्यवनका जन्म, उनके तेजसे पुलोमा राक्षसका भस्म होना तथा भृगुका अग्निदेवको शाप देना
मूलम् (वचनम्)
सौतिरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अग्नेरथ वचः श्रुत्वा तद् रक्षः प्रजहार ताम्।
ब्रह्मन् वराहरूपेण मनोमारुतरंहसा ॥ १ ॥
मूलम्
अग्नेरथ वचः श्रुत्वा तद् रक्षः प्रजहार ताम्।
ब्रह्मन् वराहरूपेण मनोमारुतरंहसा ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उग्रश्रवाजी कहते हैं— ब्रह्मन्! अग्निका यह वचन सुनकर उस राक्षसने वराहका रूप धारण करके मन और वायुके समान वेगसे उसका अपहरण किया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स गर्भो निवसन् कुक्षौ भृगुकुलोद्वह।
रोषान्मातुश्च्युतः कुक्षेश्च्यवनस्तेन सोऽभवत् ॥ २ ॥
मूलम्
ततः स गर्भो निवसन् कुक्षौ भृगुकुलोद्वह।
रोषान्मातुश्च्युतः कुक्षेश्च्यवनस्तेन सोऽभवत् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भृगुवंशशिरोमणे! उस समय वह गर्भ जो अपनी माताकी कुक्षिमें निवास कर रहा था, अत्यन्त रोषके कारण योगबलसे माताके उदरसे च्युत होकर बाहर निकल आया। च्युत होनेके कारण ही उसका नाम च्यवन हुआ॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा मातुरुदराच्च्युतमादित्यवर्चसम् ।
तद् रक्षो भस्मसाद्भूतं पपात परिमुच्य ताम् ॥ ३ ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा मातुरुदराच्च्युतमादित्यवर्चसम् ।
तद् रक्षो भस्मसाद्भूतं पपात परिमुच्य ताम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माताके उदरसे च्युत होकर गिरे हुए उस सूर्यके समान तेजस्वी गर्भको देखते ही वह राक्षस पुलोमाको छोड़कर गिर पड़ा और तत्काल जलकर भस्म हो गया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा तमादाय सुश्रोणी ससार भृगुनन्दनम्।
च्यवनं भार्गवं पुत्रं पुलोमा दुःखमूर्च्छिता ॥ ४ ॥
मूलम्
सा तमादाय सुश्रोणी ससार भृगुनन्दनम्।
च्यवनं भार्गवं पुत्रं पुलोमा दुःखमूर्च्छिता ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुन्दर कटिप्रदेशवाली पुलोमा दुःखसे मूर्च्छित हो गयी और किसी तरह सँभलकर भृगुकुलको आनन्दित करनेवाले अपने पुत्र भार्गव च्यवनको गोदमें लेकर ब्रह्माजीके पास चली॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां ददर्श स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः।
रुदतीं बाष्पपूर्णाक्षीं भृगोर्भार्यामनिन्दिताम् ॥ ५ ॥
सान्त्वयामास भगवान् वधूं ब्रह्मा पितामहः।
अश्रुबिन्दूद्भवा तस्याः प्रावर्तत महानदी ॥ ६ ॥
मूलम्
तां ददर्श स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः।
रुदतीं बाष्पपूर्णाक्षीं भृगोर्भार्यामनिन्दिताम् ॥ ५ ॥
सान्त्वयामास भगवान् वधूं ब्रह्मा पितामहः।
अश्रुबिन्दूद्भवा तस्याः प्रावर्तत महानदी ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सम्पूर्ण लोकोंके पितामह ब्रह्माजीने स्वयं भृगुकी उस पतिव्रता पत्नीको रोती और नेत्रोंसे आँसू बहाती देखा। तब पितामह भगवान् ब्रह्माने अपनी पुत्रवधूको सान्त्वना दी—उसे धीरज बँधाया। उसके आँसुओंकी बूँदोंसे एक बहुत बड़ी नदी प्रकट हो गयी॥५-६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आवर्तन्ती सृतिं तस्या भृगोः पन्त्यास्तपस्विनः।
तस्या मार्गं सृतवतीं दृष्ट्वा तु सरितं तदा ॥ ७ ॥
नाम तस्यास्तदा नद्याश्चक्रे लोकपितामहः।
वधूसरेति भगवांश्च्यवनस्याश्रमं प्रति ॥ ८ ॥
मूलम्
आवर्तन्ती सृतिं तस्या भृगोः पन्त्यास्तपस्विनः।
तस्या मार्गं सृतवतीं दृष्ट्वा तु सरितं तदा ॥ ७ ॥
नाम तस्यास्तदा नद्याश्चक्रे लोकपितामहः।
वधूसरेति भगवांश्च्यवनस्याश्रमं प्रति ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह नदी तपस्वी भृगुकी उस पत्नीके मार्गको आप्लावित किये हुए थी। उस समय लोकपितामह भगवान् ब्रह्माने पुलोमाके मार्गका अनुसरण करनेवाली उस नदीको देखकर उसका नाम वधूसरा रख दिया, जो च्यवनके आश्रमके पास प्रवाहित होती है॥७-८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स एव च्यवनो जज्ञे भृगोः पुत्रः प्रतापवान्।
तं ददर्श पिता तत्र च्यवनं तां च भामिनीम्।
स पुलोमां ततो भार्यां पप्रच्छ कुपितो भृगुः ॥ ९ ॥
मूलम्
स एव च्यवनो जज्ञे भृगोः पुत्रः प्रतापवान्।
तं ददर्श पिता तत्र च्यवनं तां च भामिनीम्।
स पुलोमां ततो भार्यां पप्रच्छ कुपितो भृगुः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार भृगुपुत्र प्रतापी च्यवनका जन्म हुआ। तदनन्तर पिता भृगुने वहाँ अपने पुत्र च्यवन तथा पत्नी पुलोमाको देखा और सब बातें जानकर उन्होंने अपनी भार्या पुलोमासे कुपित होकर पूछा—॥९॥
मूलम् (वचनम्)
भृगुरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
केनासि रक्षसे तस्मै कथिता त्वं जिहीर्षते।
न हि त्वां वेद तद् रक्षो मद्भार्यां चारुहासिनीम्॥१०॥
मूलम्
केनासि रक्षसे तस्मै कथिता त्वं जिहीर्षते।
न हि त्वां वेद तद् रक्षो मद्भार्यां चारुहासिनीम्॥१०॥
अनुवाद (हिन्दी)
भृगु बोले— कल्याणी! तुम्हें हर लेनेकी इच्छासे आये हुए उस राक्षसको किसने तुम्हारा परिचय दे दिया? मनोहर मुसकानवाली मेरी पत्नी तुझ पुलोमाको वह राक्षस नहीं जानता था॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्त्वमाख्याहि तं ह्यद्य शप्तुमिच्छाम्यहं रुषा।
बिभेति को न शापान्मे कस्य चायं व्यतिक्रमः ॥ ११ ॥
मूलम्
तत्त्वमाख्याहि तं ह्यद्य शप्तुमिच्छाम्यहं रुषा।
बिभेति को न शापान्मे कस्य चायं व्यतिक्रमः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रिये! ठीक-ठीक बताओ। आज मैं कुपित होकर अपने उस अपराधीको शाप देना चाहता हूँ। कौन मेरे शापसे नहीं डरता है? किसके द्वारा यह अपराध हुआ है?॥११॥
मूलम् (वचनम्)
पुलोमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अग्निना भगवंस्तस्मै रक्षसेऽहं निवेदिता।
ततो मामनयद् रक्षः क्रोशन्तीं कुररीमिव ॥ १२ ॥
मूलम्
अग्निना भगवंस्तस्मै रक्षसेऽहं निवेदिता।
ततो मामनयद् रक्षः क्रोशन्तीं कुररीमिव ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुलोमा बोली— भगवन्! अग्निदेवने उस राक्षसको मेरा परिचय दे दिया। इससे कुररीकी भाँति विलाप करती हुई मुझ अबलाको वह राक्षस उठा ले गया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
साहं तव सुतस्यास्य तेजसा परिमोक्षिता।
भस्मीभूतं च तद् रक्षो मामुत्सृज्य पपात वै ॥ १३ ॥
मूलम्
साहं तव सुतस्यास्य तेजसा परिमोक्षिता।
भस्मीभूतं च तद् रक्षो मामुत्सृज्य पपात वै ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपके इस पुत्रके तेजसे मैं उस राक्षसके चंगुलसे छूट सकी हूँ। राक्षस मुझे छोड़कर गिरा और जलकर भस्म हो गया॥१३॥
मूलम् (वचनम्)
सौतिरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति श्रुत्वा पुलोमाया भृगुः परममन्युमान्।
शशापाग्निमतिक्रुद्धः सर्वभक्षो भविष्यसि ॥ १४ ॥
मूलम्
इति श्रुत्वा पुलोमाया भृगुः परममन्युमान्।
शशापाग्निमतिक्रुद्धः सर्वभक्षो भविष्यसि ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उग्रश्रवाजी कहते हैं— पुलोमाका यह वचन सुनकर परम क्रोधी महर्षि भृगुका क्रोध और भी बढ़ गया। उन्होंने अग्निदेवको शाप दिया—‘तुम सर्वभक्षी हो जाओगे’॥१४॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि अग्निशापे षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत पौलोमपर्वमें अग्निशापविषयक छठा अध्याय पूरा हुआ॥६॥