अनिमेषोक्त-भूत-शुद्धिः

स्रोतः- नागरो ऽनिमेषः।

विस्तृतविधिः

ॐ अस्यश्रीभूतशुद्धिन्यासस्य सदाशिव ऋषिः। जगती च्छन्दः। श्रीगुह्यकाली देवता । सर्वपापक्षयार्थे न्यासे विनियोगः॥

करन्यासः

ॐ अँ आँ इँ ईँ कँ खँ गँ घँ ङँ धारणिकायै पृथिव्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः॥
ॐ उँ ऊँ ऋँ ॠँ चँ छँ जँ झँ ञँ पिण्डीकरणाभ्यो ऽद्भ्यस् तर्जनीभ्यां नमः॥
ॐ ऌँ ॡँ टँ ठँ डँ ढँ णँ अवकाश-प्रदानात्मने आकाशाय मध्यमाभ्यां नमः॥
ॐ एँ ऐँ तँ थँ दँ धँ नँ व्यूहन-चलनात्मने वायवे अनामिकाभ्यां नमः ॥
ॐ ओँ औँ पँ फँ बँ भँ मँ यँ रँ लँ वँ शँ दाह-प्रकाशात्मने तेजसे कनिष्ठकाभ्यां नमः॥
ॐ अँ अः षँ सँ हँ लँ क्षँ पृथिव्य्-अप्-तेजो-वाय्व्य्-आकाशेभ्यः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः॥

अङ्गन्यासः

ॐ अँ आँ इँ ईँ कँ खँ गँ घँ ङँ धारणिकायै पृथिव्यै हृदयाय नमः॥
ॐ उँ ऊँ ऋँ ॠँ चँ छँ जँ झँ ञँ पिण्डीकरणाभ्यो ऽद्भ्यः शिरसे स्वाहा ॥
ॐ ऌँ ॡँ टँ ठँ डँ ढँ णँ अवकाश-प्रदानात्मने आकाशाय शिखायै वषट् ॥
ॐ एँ ऐँ तँ थँ दँ धँ नँ व्यूहन-चलनात्मने वायवे कवचाय हुम् ॥
ॐ ओँ औँ पँ फँ बँ भँ मँ यँ रँ लँ वँ शँ दाहप्रकाशात्मने तेजसे नेत्रत्रयाय वौषट् ॥
ॐ अँ अःषँ सँ हँ लँ क्षँ पृथिव्य्-अप्-तेजो-वाय्व्य्-आकाशेभ्यो ऽस्त्राय फट् ॥

ॐ मूल-शृङ्गाटाच् छिरः-सुषुम्ना-पथेन जीव-शिवं परम-शिव-पदे योजयामि स्वाहा॥
(से मूलाधारस्थ कुलकुण्डलिनी का हृदयस्थ जीव तथा देविकोट्ट मे परमशिव से मेलन करें ।)

ॐ यँ लिङ्गशरीरं शोषय शोषय स्वाहा ॥ (मंत्र से पापमय लिङ्गशरीर का शोषण करें।)
ॐ रँ सङ्कोच-शरीरं दह दह पच पच स्वाहा ॥ (मंत्र से पापमय सङ्कोचशरीर का दाहन करें ।) ॐ वँ परम-शिवामृतं वर्षय वर्षय स्वाहा ॥ (मंत्र से शिवामृत से वर्षण करें ।)
ॐ लँ शाम्भव-शरीरं उत्पादयोत्पादय स्वाहा ॥ (मंत्र से शाम्भवशरीर का उत्पादन करें ।)
ॐ हँसःसोऽहँ अवतरावतर परम-शिव-पदाज् जीवं सुषुम्ना-पथेन प्रविश - मूल-शृङ्गाटकम् उल्लसोल्लस ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हँसः सोऽहँ स्वाहा॥
(मंत्र से हृदय में पुनः जीवात्मा को स्थापित कर कुलकुण्डलिनी को पुनः मूलाधार में लावे ।)

(इस प्रकार भूतशुद्धि में असमर्थ साधक ‘ह्रौँ’ इस ज्योतिबीज का १०८ जप करें ।)

संक्षिप्तभूतशुद्धिः

स्रोतः - श्रीकालसंकर्षिणीपूजापद्धतिः

मँ इमां तनुं शोषयामि नमः॥ (मंत्र से देह का शोषण करें।)
रँ तनुं दाहयामि नमः॥ (दाहिने पैर के अंगुष्ठ से निकलती हुए कालाग्नि की ज्वालाओं में शरीर भस्म हो गया है ऐसी भावना करें ।)
फँ तनो उत्प्लवनं करोमि नमः॥ (वायु द्वारा भस्म को दशो दिशाओं में उड़ा दिया गया है ऐसी ऐसी भावना करें ।)
एँ तनुम् आप्लावयामि नमः॥ (द्वादशान्त से पतित होते शाक्तामृत जल से उस स्थान के क्षालित होने की भावना करें।)
खँ महाशून्यानन्दाय नमः॥ (इस प्रकार महाशून्यात्मक आनन्द में लय का ध्यान करें।)
ख्फ्रेँ दिव्यान्तनुं सञ्जीवयामि नमः॥ (निजशिवता के बोध पूर्वक शिवात्मक दिव्यदेह की भावना करें।)

(इस प्रकार भूतशुद्धि कर स्वयं का देवी के रूप में चिंतन करें।)