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न नक्तं गृहीतेनोदकेन देवपितृकर्म कुर्यात् ॥ ६६.१ ॥

चदनमृगमददारुकर्पूरकुङ्कुमजातीफलवर्जमनुलेपनं न दद्यात् ॥ ६६.२ ॥

न वासो नीलीरक्तम् ॥ ६६.३ ॥

न मणिसुवर्णयोः प्रतिरूपमलंकरणम् ॥ ६६.४ ॥

नोग्रघन्धि ॥ ६६.५ ॥

नागन्धि ॥ ६६.६ ॥

न कण्टकिजम् ॥ ६६.७ ॥

कण्टकिजमपि शुक्लं सुगन्धिकं तु दद्यात् ॥ ६६.८ ॥

रक्तमपि कुङ्कुमं जलजं च दद्यात् ॥ ६६.९ ॥

न धूपार्थे जीवजातम् ॥ ६६.१० ॥

न घृततैलं विना किंचन दीपार्थे ॥ ६६.११ ॥

नाभक्ष्यं नैवेद्यार्थे ॥ ६६.१२ ॥

न भक्ष्ये अप्यजामहिषीक्षीरे ॥ ६६.१३ ॥

पञ्चनखमत्स्यवराहमांसानि च ॥ ६६.१४ ॥

प्रयतश्च शुचिर्भूत्वा सर्वमेव निवेदयेत् ।
तन्मनाः सुमना भूत्वा त्वराक्रोधविवर्जितः ॥ ६६.१६ ॥