अधिग्रन्थम्

गुरुमण्डलप्रन्थमालाया नवमपुष्पकम्

स्मृति - सन्दर्भः

श्रीमन्महर्षि मार्कण्डेयलौगाक्षिप्रणीतो धखसंग्रहो मार्कण्डेय लौगाक्षिस्मृतिद्वयात्म -:

षष्ठोभागः

श्रीनाथादिगुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयम्भैरवम् ।

सिद्धौघं वटुकत्रयम्पदयुगं दूतीक्रमं मण्डलम् ( शाम्भवम् ) । वीरान्द्रचष्टचतुष्कषष्टिनवकं वीरावलीपश्चकम् । श्रीमन्मालिनिमन्त्रराजसहितं वन्दे गुरोड 11

५, क्लाइव रो

कलकत्ता- १

उमाब्दः

  • ०१३

प्रथमं संस्करणम्

[[५०००]]

[[१६५७]]

मुद्रक-

रुलियाराम गुप्त दि बङ्गाल प्रिंटिंग वर्क्स,

१, सिनागाग स्ट्रीट

कलकत्ता- १

GURUMANDAL SERIES No IX

THE

SMRITI SANDARBHA

Collection of Two Major

Dharmashastric Texts Called

Markandaiya & Laugakshi Smritis by the

Maharshis Markandaiya & Laugakshi

Volume VI

5, CLIVE ROW.

CALCATTA-1

Vikram Era

First Edition

A. D.

[[5000]]

11 : 11

अभ्यर्थना

श्री भूतभावन विश्वनाथ एवं माता अन्नपूर्णा की कृपा से स्मृतिसन्दर्भ ( गुरुमण्डलप्रन्थमाला नवमपुष्प ) का षष्ठ भाग धर्मशास्त्र प्रेमी महानुभावों के करकमलों में प्रस्तुत करते हुए हृदय आनन्द अनुभव करता है ।

भारतीय संस्कृति द्वारा जो सुसंस्कार भारत देश के सुपूतों में दृढ़ होगये हैं. उनका सारा मूल इन स्मृति ग्रन्थों में आमूलचूड़ निबद्ध है । शनैः शनैः भारतीय जातन्त्र्य सूर्य की रश्मियों के प्रकाश से सुदृढ़ सुसंस्कार इन धर्मशास्त्रों के ज्ञान प्रसार तथा सृष्टि के प्राण पुराण ग्रन्थों की सहायता से मानव को देवता तथा उससे भी ऊपर नर से नारायण बनाने एवं सृष्टि के प्राणीमात्र के कल्याण में मानव को प्रवृत्त करने में दिव्यचक्षुः प्रदान करेंगे तो मैं अपना यह प्रयत्न

सफल समभूंगा ।

इस भाग में आये हुए स्मृतिग्रन्थ मार्कण्डेयस्मृति एवं लौगाक्षिस्मृति की मुस्तलिखित प्रतियां थियोसोफिकल सोसाइटी, अड्यार, मद्रास के द्वारा सभ्चालित अड्यार लायब्रेरी ( पुस्तकालय ) से प्राप्त हुई वहीं से इनके प्रतिलिपीकरण ( Transoription ) का काम हुआ तदर्थ वहां के डायरेकर एवं पुस्तकालयाध्यक्ष महोदय का मैं साभार धन्यवाद करता हूं और आशा करता हूं कि वे सदैव इसी प्रकार कृपा करते रहेंगे । प्रन्थों की मूल प्रति सर्वथैव जीर्ण शीर्ण एवं कीटानुविद्ध जेने से बार-बार तत्रत्य अधिकारी वृन्द का सानुरोध कम्पीज किये

फर्मों को भेजते रहने पर भी त्रुटितस्थानों की पूर्ति करना शक्य नहीं हुआ । यह भाग पहले ही सेवा में प्रस्तुत होगया होता परन्तु विभिन्न हस्तलिखित संग्रहालयों से पत्र व्यवहार होते रहने से यही आशा थी कि कुछ और अप्रकाशित स्मृतियां मिलेंगी जिनका प्रकाशित होना आवश्यक था, खेद है, इतने प्रयास करते रहने पर भी मुझे इष्ट स्मृति ग्रन्थों को प्राप्त करने में असफलता हुई। कुछ के नाम ये हैं-

हुए

( १ ) कोकिलस्मृति

( ख )

(२) पश्चम भाग में उल्लिखित साठ स्मृतियां ( हां, अगस्त्यसंहिता अयोध्या से

छपी मिली है, सुरक्षित है ) ।

(३) गरुडस्मृति ।

( ४ ) पुष्करस्मृति ।

(५) शिवस्मृति ।

( ६ ) कूर्मस्मृति ।

(७) और्वस्मृति । ।

( ८ )

सूतस्मृति ।

(६) नृहरिस्मृति ।

इस कार्य में काशी के पं० दुर्गादत्तजी त्रिपाठी शास्त्री रामघाट; गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर के पं० उदयनारायणजी शास्त्री; दिल्ली के श्री आदित्याचार्य शास्त्री एवं पूना के भाण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट ( भाण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान ) के क्यूरेटर ( अधीक्षक) श्री डाक्टर परशुरामकृष्ण गोड़े एम० ए० डी० लिट्० का अमूल्य सहयोग मिला जिससे कुछ अप्रकाशित ग्रन्थों का पता लगा परन्तु कुछेक को छोड़कर उन्हें प्राप्त करने में मुझे पूर्णतया सफलता नहीं मिली । आप विद्वद्वृन्द का पूर्ण सहयोग मिला व कृपादृष्टि बनी रही तो सप्तमभाग में आवश्यक सामग्री उपलब्ध होने से अवशिष्ट मेरे पास सुरक्षित स्मृतियों का प्रकाशन करने का अवसर आसकता है । इस भाग की अपेक्षित त्रुटियों के लिये मेरे पण्डितमण्डल का सहयोग मिलने पर भी सफलता न मिल सकी तदर्थ क्षमा प्रार्थी हूं ।

“कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्त्तिनाशनम् ।”

मार्गशीर्ष शु० ११ गीताजयन्ती विक्रम सम्बत् २०१३

कृपाभिलाषी :-

मनसुखराय मोर

५, क्लाइव रो, कलकत्ता- १

  • श्रीकृष्णः शरणम

सम्पादकीयन्निवेदनम्

श्रीमतां तत्रभवतां दिग्रेसराणां करकमलेषु म्मृति सन्दर्भग्रन्थस्यगुरुमण्डलग्रन्थमालाप्रकाशितस्य नवमधुष्पस्य पष्ठः पटलः समुपस्थाप्यते । पूर्वभागपञ्चकसम्वलित चतुःपञ्चाशत्स्मृतिभिः सङ्कलनेनान्रत्य सम्पादितस्मृतिद्वयस्य बृहत्संग्रहस्य पञ्चोन षट्सहस्र संख्या कश्लोकाञ्चितस्य मार्कण्डेयलौगाक्षिनामकस्य योगेन षट्पभ्वाशत्संख्या भविष्यति । नात्र वयं किञ्चिद्वैशिष्ट्य मन्यामहे यतो भवत्कृपालवलेशात्सर्वमेत्कार्यजातं नानाविधसंस्कृत हस्त लिखितग्रन्थसंग्रहगृहेभ्यः

समागत पुस्तक प्रतिलिपीकरणेन सिद्धिङ्गतम् ।

अत्रत्यं स्मृतिद्वयं मद्रासनगरान्तर्वर्त्ति “थियोसोफिकल सोसाइटी " इतिनाम्ना प्रथितायाः संस्थायास्तत्त्वावधाने सञ्चालिताद् अड्यार पुस्तकालयात्सम्प्राप्तम् । तत्र प्रयत्नसापेक्षे कार्येण शुद्धिशोधनाय प्रवृत्तेऽपि पण्डितमण्डलेऽन्यत्रप्रन्थान्तरप्राप्त्यभावान्न तत्साधु सम्पन्नमिति त्रुटितग्रन्थप्रकटनेऽपि गौरवमद्भिरस्माभिर्भवत्सेवायामिदं खण्ड प्रस्तूयते । अत्राक्षरविकलाङ्गता,

ग्रन्थापरिष्कृतिरशुद्धि-

बाहुल्यञ्च पदे पदे दृग्गोचरीभविष्यति तदर्थ सारासारविचारकुशला नानाशास्त्रविचक्षणा धीधनाः सुष्ठु शोधनार्थम्प्रार्थ्यन्ते यतोऽग्रे “कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी” इति प्राचीनकविश्रीमन्मुरारिनिगदितवचनेन मन्यामहे यद्भूयसीर शुद्धीर्यथासमयं विद्वांसो ग्रन्थान्तरपरिशीलनेन शोधयिष्यन्ति । भगवतीकृपयाऽग्रे सप्तमभागप्रकाशनाय प्रयत्नः प्रचाल्यते । आशास्महे तत्पूर्तिर्भविता ।

श्रीमतां सहृदयधुरीणानां पुनः पुनः साभ्यर्थनं धन्यवादं प्रतिपादयन्तोऽपूर्णताकृते क्षमाप्रार्थिनो वयं विरमामः ।

शुभमिति कार्त्तिक शुक्ल ११ हरिप्रबोधिनी

२०१३ विक्रमाer:

श्रीमतां चरणसेवकाः

गुरुमण्डलग्रन्थमालासम्पादका : राजस्थानप्रान्तस्थ जयपुर प्रदेशान्तर्वर्त्तिलक्ष्मणगढ़ा-

भिजन ब्रह्मदत्त त्रिवेदि नवलगढ़ाभिजन रामनाथदाधीच कजोड़ीलालमिश्रा :- श्री मोर प्राच्यशोध संस्थानम्

व रो, कलकत्ता- १

॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

ईशा वास्यमिदथं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥

ईश्वर का आदेश है कि सृष्टि के सारे प्राणी मेरी ही आत्मा हैं। ज्ञान के द्वारा प्राणीमात्र की पूर्णरूपेण रक्षा का ध्यान रखते हुए अपना भोग - जोकि प्रकृति द्वारा निर्दिष्ट किया हुआ है – मोगो । (किसी की भी हिंसा मत करो। सभी प्राणी सृष्टि की परिचर्या में पूर्णरूपेण सहायक हैं ) किसी भी प्राणी की शक्ति (दूध ) हरण करने की मन में भावना भी न आले दो । यही कल्याण का मार्ग है ।

वेदवचैवाभ्यसेन्नित्यं शुचौ देशे समाहितः । धर्मशास्त्रं तथा पाठ्य ब्राह्मणैः शुद्धमानसैः ॥ स्मृतिहीनाय विप्राय श्रुतिहीने तथैव च । दानं भोजनमन्यश्च दत्तं कुलविनाशनम् ॥ तस्मात् सर्वप्रत्नेन धर्मशास्त्रं पठेद् द्विजः । श्रुतिस्मृती च विप्राणां चक्षुषी देवनिर्मिते ॥

( लघुहारित स्मृ० )

टच्च भावों से धर्मशास्त्रों का

समाहित मन से शुद्ध देश में वेद का अभ्यास करे । पठन-पाठन करे । स्मृति एवं श्रुतिहीन जो मनुष्य हैं उनका भोजन

तथा कुल के लिये हानिकारक है । अतः यत्नपूर्वक धर्मशास्त्र को पढ़े।

वेद, स्मृति एवं पुराणादि धर्मशास्त्र मानव मात्र के नेत्र ( प्रकाश ) हैं ।

नित्यकर्म व्यवहार अपने

महर्षियों द्वारा रचित

मानवमात्र से मेरी करवद्ध प्रार्थना है कि संस्कृत भाषा पढ़ें। महर्षिप्रणीत श्रुति स्म आदि का उच्च आदर्श रखते हुए प्राणीहित की भावना से मनन कर सच्चे ज्ञान की प्राप्ति करें । इसी में अपना कल्याण है ।

५, क्लाइव रो,

कलकत्ता ।

“कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्त्तिनाशनम् "

आपका सेवकमनसुखराय मोर

श्रीगणेशाय नमः

सूचीपत्रम्

स्मृतिसन्दर्भस्य षष्ठभागस्य सूचीपत्रम्

मार्कण्डेयस्मृतेः प्रधानविषयाः

तत्रादौ - वर्णाश्रमधर्मवर्णनम्

ब्रह्मचारिधमवर्णनम्

पृष्टाङ्काः

[[१]]

प्रायश्चित्तप्रकरणम्

अवकीर्णिब्रह्मचारिप्रायश्चित्तवर्णनम्

एकविंशतियज्ञवर्णनम्

गृहस्थप्रशंसावर्णनम्

ε

[[११]]

[[१३]]

द्विमुखोदकपात्र प्रशंसावर्णनम्

[[१५]]

वेदप्रशंसावर्णनम्

[[१७]]

संस्कृतभाषामौन विधिवर्णनम्

[[१६]]

वेदातिरिक्तमुक्तिसाधननिन्दावर्णनम्

वेदाध्ययनवर्जितस्य पुनर्वेदाधिकारवर्णनम्

संस्काराणां वर्णनम्

स्वकार्यानुकूलपक्षिगमन सम्पादनवर्णनम्

गमने निषिद्धानामागमे यात्रानिषेधवर्णनम्

मृत्तिकाग्रहणमन्त्रवर्णनम्

वेदाध्ययने नियमोल्लङ्घनप्रायश्चित्तवर्णनम्

देवर्षिपितृतर्पण विधिवर्णनम्

गौण मुख्य स्नानभेदवर्णनम्

होमपद निर्वचनवर्णनम् गायत्रीमन्त्रवर्णनम्

[[२१]]

[[२३]]

[[२५]]

[[२७]]

[[२६]]

[[३१]]

[[३३]]

[[३५]]

[[३७]]

४१प्राणायामविधिवर्णनम

सन्ध्यादि नित्यकर्मस्वर्थज्ञानमेवप्रशस्तमितिवर्णनम् महोत्सवेषु समग्रधनधान्यदानप्रशंसावर्णनम् परिषदि श्रोत्रियस्यैवाधिकारवर्णनम्

सर्वपापोत्तारणे ब्राह्मणानामेववचनप्रामाण्यवर्णनम

२ )

[[४३]]

[[४५]]

[[४७]]

[[४६]]

[[५१]]

[[५३]]

[[५५]]

[[५७]]

[[५६]]

[[६१]]

[[६३]]

[[६५]]

[[६७]]

शूद्रान्नप्रतिग्रहीतृप्रायश्चित्तवर्णनम् स्वर्णकाररथकारादिपौरोहित्य निषेधवर्णनम्

प्रेतान्नभोक्तुर्निन्दावर्णनम्

वैश्वदेवसमये समागतानामनिराकरणवर्णनम्

वेदत्यागनिन्दावर्णनम्

सर्वधर्मशास्त्रप्रणार्थनकर्तृणामेकवाक्यता लक्ष्यवर्णनम

वेदानां बहुमार्गत्ववर्णनम्

नानासूत्रप्रन्थस्मृतीनामवतरणम्

भारद्वाजसूत्रनानावेदशाखानांवर्णनम

नानासूत्राणां शाखाभेदवर्णनम्

आहिताग्निविषयवर्णनम्

नानासंस्काराणां वर्णनम्

उपनयनकालकृतानां पृथत्रक्षुरकर्माभाववर्णनम्

बालानांसद्व्यवहारवर्णनम्

बालवाड़ननिपेधवर्णनम्

[[६६]]

[[७१]]

[[७३]]

[[७५]]

[[७७]]

[[७६]]

[[८१]]

[[८३]]

गायत्रीस्वरूपवर्णनम्

मध्याह्नकालकर्मवर्णनम्

ब्राह्मण महत्त्ववर्णनम्

प्रायश्चित्तवर्णनम्

[[८५]]

[[८७]]

[[८६]]

दानप्रशंसावर्णनम्

दानस्यापात्राणि

( ३ )

सेटपूर्ववर्णने दानक्रियाद्यधिकारवर्णनम्

[[६१]]

[[६५]]

[[६७]]

दानफलवर्णनम्

Σε

दानेदेयद्रव्यवर्णनम् फलञ्च

[[१०१]]

स्वर्गसुखाधिकारिणां जनानां लक्षणवर्णनम

[[१०३]]

गयाश्राद्धवर्णनम्

[[१०५]]

प्रायश्चित्तप्रतिनिधिवर्णनम

[[१८७]]

महादानानां वर्णनम्

[[१०६]]

शिखरदानवर्णनम्

गोवृषभादिदानफलवर्णनम्

भूमिदानप्रशंसावर्णनम्

[[१११]]

[[११३]]

[[११५]]

कन्यादानफलवर्णनम्

[[११७]]

सुवर्णादिनानादानाम्फलवर्णनम्

[[१२१]]

विशेषदानवर्णनम्

[[१२३]]

सम्पूर्णदानेषु कन्यादानस्य प्राशस्त्यवर्णनम्

[[१२५]]

तिथिक्रमेणदानफलं देवतापूजन फलभ्व

नानावस्त्रादिदानप्रकरणम्

[[१२७]]

[[१२६]]

नानादानफलानि

कन्या पितृधर्मवर्णनम्

[[१३१]]

[[१३५]]

इष्टापूर्त वर्णनम्

नानामहोत्सववर्णनम्

[[१३७]]

[[१३६]]

पात्रापात्रनिरूपणम् दानपात्रविशेषवर्णनम्

[[१४१]]

[[१४३]]

( ४ )

षड् बिधब्राह्मणवर्णनम् मधुपर्क योग्यानाम्वर्णनम्

[[१४५]]

[[१४७]]

नान्दीश्राद्धादिषु मर्यादावर्णनम्

[[१४६]]

आपोशनजलप्रदातारः

[[१५१]]

विवाहे पाककर्तृणायोग्यतावर्णनम्

[[१५३]]

एकपतिदूपितानां वर्णनम्

[[१५५]]

पतितस्य पुत्रेणकर्तव्यश्राद्ध विधिवर्णनम्

[[१५७]]

श्राद्ध विधानवर्णनम्

[[१६१]]

पुत्रत्वयोग्यतावर्णनम्

[[१६३]]

महालय श्राद्धप्रशंसावर्णनम्

सकृन्महालयश्राद्धकालनिर्णयवर्णनम् एकाष्टका विधिवर्णनम्

[[१६५]]

[[१६७]]

[[१६६]]

नान्दीश्राद्धमहत्त्ववर्णनम्

[[१७१]]

पुण्याहवाचन विधिवर्णनम्

[[१७३]]

मन्त्रवेदिने दानप्रशंसावर्णनम्

[[१८१]]

अभोकरणवर्णनम्

मातापितृश्राद्धव्यवस्थावर्णनम्

श्रद्धभोजने कृत्यवर्णनम

श्राद्धविधिवर्णनम्

पितृगामर्घ्यदानवर्णनम्

पुरोहितप्रशंसावर्णनम्

श्राद्धे भोजनाचमनकालवर्णनम्

[[१८३]]

[[१८५]]

[[१८७]]

[[१८६]]

[[१६१]]

[[१६३]]

[[१६५]]

स्नुषापाकवर्णनम्

पितृनिमित्तस्य पकान्नस्य प्रशंसावर्णनम्

[[१६७]]

[[१६६]]

श्राद्धकार्याङ्गक्रमवर्णनम

विकिरान्नदानवर्णनम्

( &)

भोजनमनुनिमन्त्रित ब्राह्मणानां पूजनं तेभ्यश्चाशीर्वादवर्णनम् ब्राह्मणभोजनोत्तरं स्वकुटुम्बसहित श्राद्धसामग्रींगृह्णीयादितिवर्णनम्

परे हि तर्पणवर्णनम्

ब्राह्मणमहिमा ब्राह्मणानांसमागमने शूद्रस्य स्थितौदण्डश्च

[[२०१]]

[[२०३]]

[[२०५]]

[[२०७]]

[[२०६]]

[[२११]]

ब्राह्मणस्यैव भूदानम

[[२१३]]

पतिसयोगविकलाया विधवाया वृत्तिष्वनधिकारवर्णनम्

[[२१५]]

रन्ध्रप्रविष्ट क्रियाप्रविष्टयोर्भेदवर्णनम्

[[२१७]]

उत्तमर्णाधमर्णदण्डवर्णनम

[[२१६]]

श्राद्धप्रकरणवर्णनम्

[[२२१]]

लौगाक्षिस्मृतेः प्रधानविषयाः

लौगाक्षिविपयकधर्मशास्त्रप्रबन्धावतारः

[[२२३]]

जातकर्मविधिव्यवस्थावर्णनम्

[[२२५]]

नामकरण विधिवर्णनम्

[[२२७]]

वेदप्रतिपाद्यविधेः कर्तव्य फलज्ञापनत्ववर्णनम्

[[२२६]]

सर्वद्विजातीनां वेदविहितोपनयनकालावधिनिरूपणम्

[[२३१]]

उपनयनसमये कृत्य विधिवर्णनम्

[[२३३]]

ब्रह्मचारिभिक्षाप्रकरणम्

[[२३५]]

उपनयनावधिसमुहङ्घितस्य फलानईत्ववर्णनम

[[२३७]]

उत्सर्गोपाकर्मविधिवर्णनम्

[[२३६]]

दशानुवाकानाम्वर्णनम्

नानानुवाकानामृषिवर्णनम्, तैत्तरीयकेचतुश्चत्वारिंशत्काण्डवर्णनम् २४३

[[२४१]]

( ६ )

अनाश्रमीनैव तिष्ठेदितिवर्णनम्

वंशाभिवृद्ध्यर्थं वरणीयकन्यालक्षणवर्णनम्

कन्यादानवर्णनम्

[[२४५]]

[[२४७]]

[[२४६]]

साप्तपदीनवर्णनम्

[[२५५]]

क्रूरतरदोषनिवृत्तये प्रतिकारवर्णनम्

गङ्गासागरसङ्गमादितीर्थफलकथनम्

स्त्रीपुरुष कृतमहापापप्रायश्चित्तवर्णनम्

[[२५७]]

[[२५६]]

[[२६१]]

उत्तमब्राह्मणकर्मणां सद्यः फलप्राप्तिवर्णनम्

[[२६३]]

अन्वारम्भणे ब्रह्मणे दक्षिणा दानवर्णनम्

[[२६५]]

औपासनारम्भः

[[२६७]]

यज्ञप्रशंसावर्णनम्

[[२६६]]

निरित्योपासन विधिवर्णनम्

[[२७१]]

नैमित्तिकस्य नित्य कर्मणोवैशिष्ट्यकथनम्

[[२७३]]

नानाशास्त्राणां वर्णनम्

[[२७५]]

कलेयुगधर्मानुसारं धर्माणांविधिनिषेधवर्णनम्

[[२७७]]

बाह्यान्तरशौचयोर्निरूपणम्

[[२७६]]

दन्तधावनविधानवर्णनम्

[[२८१]]

स्नानविधिवर्णनम्

[[२८३]]

सन्ध्याविधवर्णनम्

सन्ध्यादिप्रकरणेऽर्ध्यादिवर्णनम्

[[२८५]]

[[૨૮૭]]

गायत्रीप्रशस्तिवर्णनम्

गायत्रीजपारम्भकाले चतुर्विंशतिमुद्रावर्णनम्

गायत्र्या आवाहनावर्णनम्

त्रिकालसन्ध्यावर्णनम्

[[२८६]]

[[२६१]]

[[२६३]]

[[२६५]]

ब्रह्मयज्ञप्रशंसावर्णनम्

[[२६६]]

देवपितॄणां तर्पणविधानवर्णनम्

[[३०१]]

भीष्मतर्पणवर्णनम

[[३०३]]

ॐ नमोनारायणमन्त्र महत्त्ववर्णनम्

[[३०५]]

पीठपूजाविधानवर्णनम्

[[३०७]]

विष्णुपूजनकर्मणि नानाविधानवर्णनम्

[[३०६]]

दीपदानात्परं नैवेद्य निवेदनवर्णनम्

[[३११]]

आदित्यादिपञ्चदेव पूजन विधानवर्णनम

[[३१३]]

शिवपूजाविधौ श्रेष्ठकालवर्णनम्

[[३१५]]

सूर्यपूजायां भूतशुद्धिमन्त्रशुद्ध योर्वर्णनम्

[[३१७]]

सविधिपूजाविधानवर्णनम्

[[३१६]]

विष्णोर्निवेदितंप्राह्यमित्यत्रमीमांसा

[[३२१]]

नानादेवेभ्य इष्टप्राप्तिवर्णनम्

[[३२३]]

दीपप्रशंसा वर्णनम्

[[३२५]]

नाना विधिनैवेद्यवर्णनम्

ब्रह्मचारिधर्मवर्णनम्

[[३२७]]

[[३२६]]

पञ्चयज्ञवर्णनम्

[[३३३]]

अतिथि महत्त्ववर्णनम्

[[३३५]]

मृण्मयादिपात्रेषु भोजननिषेधवर्णनम्

[[३३७]]

अभक्ष्यवर्णनम्

[[३४१]]

पक्तिपावनानावर्णनम्

[[३४३]]

सदाचारवर्णनम्

[[३४५]]

भोजनविधिवर्णनम्

[[३४६]]

पाकस्य मायामायवर्णनम्

[[३५३]]

( ८ )

स्त्रीधर्मवर्णनम्

[[३५५]]

श्राद्धे गोदानविधिवर्णनम्

[[३५७]]

अग्राह्यन्नभोजने दोषवर्णनम्

[[३५६]]

श्राद्धे निमन्त्रणक्रमवर्णनम्

[[३६१]]

ब्राह्मणभोजने योग्यायोग्यवर्णनम्

[[३६३]]

बालानां कृते श्राद्धविधानम्

[[३६५]]

नित्यानित्यश्राद्धयोग्यवर्णनम्

[[३६७]]

श्राद्धकर्मणि नानाविधानवर्णनम

[[३६६]]

नानागुरुणाम्वर्णनम्,

[[३७१]]

श्राद्धाङ्गतर्पणवर्णनम्

[[३७३]]

मुहूर्त्तादिकालनामवर्णनम

[[३७५]]

श्राद्धानांविवरणम्

[[३७७]]

मुख्यपत्न्याः श्राद्धे विधानवर्णनम्

[[३८१]]

श्राद्धे पाककर्त्तारः

[[३८३]]

भाषान्तरप्रवचननिषेधः

[[३८५]]

अभक्ष्यभक्षणाञ्चाण्डालत्वप्राप्तिः

श्राद्धवर्णनम्

[[३८६]]

[[३६३]]

शूद्रस्य महादानकरणाद्विसाम्यत्ववर्णनम्

[[४०३]]

वैदिकप्रकरणम्

पितृश्राद्धादिषु ज्येष्ठपुत्रस्यैवाधिकारिता

सर्वकृत्यानामीश्वरार्पणबुद्धयवफलदायकत्वम्

॥ समाप्तमिदं सूत्रीपत्रम् । शमस्तु ॥

[[४०५]]

[[૪૨]]

[[४११]]

॥ श्रीगणेशायनमः ॥

॥ अथ ॥