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श्री गोकुलदास संस्कृत ग्रन्थमाला ५० नारीसन्ध्या-विधिः चौखम्भा ओरियन्टालिया, वाराणसी
नारीसन्ध्या-विधि:
याज्ञिकसम्राट्
पं० श्रीवेणीरामशर्मा गौड बेदाचार्य
दो शब्द
सन्ध्याका वास्तविक अर्थ है - ‘ईश्वरकी उपासना’ । ईश्वरकी उपासनाका अधिकार जिस प्रकार पुरुषों को है; उसी प्रकार स्त्रियोंको भी है । जिस प्रकार ईश्वरकी उपासनाद्वारा पुरुषोंका कल्याण होता है, उसी प्रकार ईश्वरकी उपासना से खियों का भी कल्याण सुनिश्चित है । स्त्री और पुरुषकी उपासना में अधिकार-भेद से नियम में यत्र-तत्र कुछ मित्रता अवश्य है, जिसको मानते पुरुषों की तरह नारी समाज भी ईश्वरकी उपासना ( सन्ध्या ) कर सकती हैं। इस विषय में किसीको भी विरोध नहीं हो सकता । सन्ध्योपासन मानव-जीवनको नियमबद्ध करनेकी तथा परमार्थकी ओर अग्रसर होने की शिक्षा देता है । यदि पवित्र भावनासं सन्ध्योपासन किया जाय, तो बहुत शीघ्र मनुष्यकी परमात्मामें स्थिति हो सकती है । सन्ध्यो- पासन में जिन महत्त्वपूर्ण क्रियाओं का उल्लेख है, उनके करने से मानव-शरीरके अङ्ग-प्रत्यङ्गों में देवताओं की स्थिति हो जाती है, जिस कारण मनुष्य देवमय बन जाता है। देवमय बन जानेके अनन्तर ही मनुष्य वस्तुतः देवपूजनादिका अधिकारी बनता है- ‘देवो भूत्वा देवं यजेत्’ । अद्यावधि ब्राह्मण सन्ध्या, क्षत्रिय सन्ध्या और वैश्य सन्ध्या प्रकाशित हुई, किन्तु स्त्री और शूद्रके लिये कोई भी सन्ध्या प्रकाशित नहीं हुई है । अतः स्त्री और शूद्रके लिये ‘सन्ध्या’की आवश्यकता जानकर मैंने पौराणिक “नारी सन्ध्या’ नामकी लघु - पुस्तिका तैयार की है, जोकि नारी और शूद्र इन दोनों वर्गके लिये विशेष उपयुक्त होगी । रामनवमी सं० २०४० वेणीराम गौड
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नारीसन्ध्या-विधि:
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त ( जब चार घड़ी रात्रि बाकी रहे) में उठकर सर्वप्रथम मङ्गलमय भगवान्का स्मरण करे, फिर शौच, स्नान करनेके बाद शुद्ध वस्त्र धारण कर पवित्र एकान्त स्थानमें अथवा ‘तुलसीवृक्ष के समीपमें कॅम्बल के आसन पर बैठे । पश्चात् नीचे लिखे श्लोकको पढ़तो हुई अपनी चोटी ( शिखा ) को बाँधे –
ब्रह्मवाक्यसहस्रेण
शिववाक्यशतेन च ।
विष्णोर्नामसहस्रेण
शिखाग्रन्थि करोम्यहम् ॥
फिर गङ्गा आदि नदीका अथवा कूपका पवित्र जल किसी पात्रमें रखे और उस जलको पवित्र दूर्वा अथवा पुष्पसे अपने शरीरपर छिड़कते हुए निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़े-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
पुण्डरीकाक्षः पुनातु ३ ।
१. श्राद्धं दानं जपो होमः
सन्ध्योपासनपूजने ।
पुराणपठनं चापि
तुलसीसन्निधौ चरेत् ॥
२. सौभाग्यवती स्त्रीके लिये कुशाका आसन निषिद्ध है और विधवा स्त्रीके लिये कुशाका आसन विहित है ।
फिर नीचे लिखे मन्त्र से आसनपर दूर्वा अथवा पुष्पसे जल छिड़ककर आसनका स्पर्श करे–
पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
पश्चात् अपने मस्तक में सौभाग्यसूचक ‘तिलक करे । ( सौभाग्यवती रोली-कुङ्कुमका तिलक करे और विधवा चन्दनका तिलक करे ) ।
१. तिलकं च महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदं हरते नित्यं लक्ष्मीर्वसति सर्वदा ॥
अनन्तर नीचे लिखे तीन मन्त्रोंको पढ़कर प्रत्येकसे एक- एक बार ( कुल तीन बार ) पवित्र जलद्वारा ब्रह्मतीर्थसे आचमन करे-
श्रीकेशवाय नमः | श्रीनारायणाय नमः । श्रीमाधवाय नमः ।
आचमन करनेके बाद ‘श्रीगोविन्दाय नमः’ इस मन्त्रसे अपना दायाँ हाथ धोकर ‘श्रीनमो भगवते वासुदेवाय’ इस मन्त्रसे अपने ऊपर ( प्रदक्षिणक्रमसे ) जल छोड़े ।
इसके बाद अपने दाहिने हाथ में जल लेकर नीचे लिखे सङ्कल्पको पढ़कर जलको पृथ्वीमें गिरा देवे-
३
“विष्णवे नमः ३ तत्सद् एतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे (अमुकक्षेत्रे) अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुक- वासरे अमुकगोत्रा अमुकी देवी अहं ममोपात्तदुरितक्षय- पूर्वकं श्रीपमेश्वरप्रीत्यर्थ प्रातःसन्ध्योपासनं ( सायं सन्ध्योपासनं ) करिष्ये ।
(१. ‘अमुक’ शब्दके स्थान में संवत्सरे, मास, पक्ष आदिका नाम जोड़ देना चाहिये । )
अनन्तर अपनी रक्षा के लिये अपने दाहिने हाथ में जल ले । पश्चात् उसको बाएँ हाथसे ढककर ‘श्री नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मन्त्रसे जलको अभिमन्त्रित कर, उस जलको अपने दाहिने तरफके मस्तकके चारों ओर घुमाकर पृथ्वी पर गेर दे । (त्रियोंके बाल बँधे रहें अर्थात् बिखरे न रहें ) । पश्चात् निम्नलिखित प्रकारसे विष्णु, ब्रह्मा और शिवजी का ध्यान करे-
विष्णुके ध्यानकी विधि - अपनी नासिकाके दाहिने छिद्रको अंगूठेसे दबाकर बाएँ छिद्रसे श्वासको खींचती हुई नील कमलके सदृश श्यामवर्णवाले चतुर्भुज भगवान् विष्णुका ( अपनी नाभि में) ध्यान करे । (इसको ‘पूरक’ प्राणायाम कहते हैं) । ब्रह्माके ध्यानकी विधि - अपनी नासिकाके दाहिने छिद्रको दवाती हुई ( विष्णुके ध्यानकी तरह पूर्वनत् दबाती हुई ) नासिका के बाएँ छिद्रको भी कनिष्ठा और अनामिकासे दबाकर अथवा चारों अंगुलीसे दबाकर श्वासको रोकती हुई कमलके आसन पर बैठी हुई रक्त वर्णवाले चतुर्मुख ब्रह्माका ( अपने हृदयमें ) ध्यान करे । ( इसको ‘कुम्भक’ प्राणायाम कहते हैं ) ।
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शिवके ध्यानकी विधि - अपनी नासिकाके दाहिने छिद्रको खोलकर धीरे-धीरे श्वासको छोड़ती हुई श्वेत वर्ण- वाले त्रिनेत्र शिवजीका ( अपने ललाट में ) ध्यान करे । ( इसको ‘रेचक’ प्राणायाम कहते हैं ) ।
नीचे लिखे हुए श्लोकसे ३ बार अथवा १ बार विष्णु भगवान् का ध्यान करे-
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु ं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
नीचे लिखे हुए श्लोकसे ब्रह्माका ३ बार अथवा १ बार घ्यान करे-
विद्याधाराय वेदाय ज्ञानगम्याय सूरये । कमण्डल्व्-अक्षमाला-स्रुक्-स्रुव-हस्ताय ते नमः ॥
नीचे लिखे हुए श्लोकसे शिवजीका ३ बार अथवा १ बार ध्यान करे—
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् । सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥
पश्चात् नीचे लिखे अनुसार षडङ्गन्यास करे-
श्रीगोविन्दाय हृदयाय नमः । विद्महे शिरसे स्वाहा । वासुदेवाय शिखायै वषट् । धीमहि कवचाय हुम् । तन्नः कृष्णः नेत्राभ्यां वौषट् । प्रचोदयात् अस्त्राय फट् ।
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अथवा करे-
‘श्री नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मन्त्रसे अङ्गन्यास
श्री हृदयाय नमः । ( दाहिने हाथ की हथेली अपनी छातीसे लगावे ) ।
नमो शिरसे नमः ।
( दाहिने हाथ की अंगुलियोंसे अपने शिरका स्पर्श करे ) ।
भगवते शिखायै नमः । ( दाहिने हाथ के अंगूठेसे चोटीके स्थानका स्पर्श करे ) ।
वासुदेवाय कवचाय नमः । ( बाएँ हाथ की अंगुलियोंसे दाहिने कन्धेको और दाहिने हाथ की अंगुलियों से बाएँ कन्धेको एक साथ स्पर्श करे ) ।
श्री नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट् | ( दाहिने हाथ के अंगूठेसे अनामिका और कनिष्ठिकाको दबाकर बाएँ हाथ की हथेली पर दाहिने हाथकी तर्जनी और मध्यमासे ताड़न करे अर्थात् बजावे )
पश्चात् नीचे लिखे श्लोकको पढ़कर आचमन करे –
आपस्त्वमसि देवेश
ज्योतिषां पतिरेव च ।
पापं नाशय मे देव
वाङ्मनः-कायकर्मजम् ॥
अनन्तर निम्नलिखित श्लोकको पढकर मार्जन करे –
वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथा शिवः ।
ब्रह्मणा सहिताः सर्वे दिक्पालाः पान्तु मां सदा ॥
फिर निम्नाङ्कित श्लोक कहकर अघमर्षण (नाक में जलको लगाकर फिर उसको अपने बायीं ओर फेंक दे ) करे –
अघानि यान्यतीतानि
यानि चागन्तुकानि वै ।
वर्त्तमानानि धूयन्ताम्
अघमर्षणकर्मणा ॥
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१. आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने । जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते ॥
पश्चात् अपने दोनों हाथोंमें जल, अक्षत, लाल चन्दन और पुष्प आदि लेकर
तथा खड़ी होकर
तर्जनीसे हाथोंके अंगूठों को अलग कर नीचे लिखे हुए मन्त्रको तीन वार कहे
और थोड़ा झुककर सूर्य भगवान्को ओर उछालते हुए तीन बोर अर्घ्य देवे –
एहि सूर्य सहस्रांशो
तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां भक्त्या
गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥
सूर्यदेवको अर्घ्य प्रदान करनेके बाद
सूर्यदेवकी तरफ देखती हुई
कुछ समय तक प्रातःकाल पूर्वाभिमुख और
सायं- काल पश्चिमाभिमुख होकर निम्नाङ्कित श्लोकद्वारा सूर्य भगवान्का घ्यान करे–
ध्येयः सदा सवितृमण्डल मध्यवर्त्ती
नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः ।
केयूरवान् कनककुण्डलवान् किरीटी
हारी हिरण्मयवपुर्धृतशङ्खचक्रः ॥ १ ॥
रक्ताम्बुजासनम् अशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि ।
पद्मद्वयाभयवरं दधतं कराब्जैर्
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम् ॥ २ ॥
पद्मासनः पद्मकरो द्विबाहुः
पद्मद्युतिः सप्ततुरङ्गवाहनः ।
दिवाकरो लोकगुरुः किरीटी
मयि प्रसादं विदधातु देव ॥ ३ ॥
अनन्तर निम्नलिखित बारह सूर्योको बैठी हुई नमस्कार करे–
श्री मित्राय नमः ॥ १ ॥ रवये नमः ॥ २ ॥ सूर्याय नमः ॥ ३ ॥ भानवे नमः ॥ ४ ॥ खगाय नमः ॥ ५ ॥ पूष्णे नमः ॥ ६ ॥ हिरण्यगर्भाय नमः ॥ ७ ॥ मरीचये नमः ॥ ८ ॥ आदित्याय नमः ॥ ९ ॥ सवित्रे नमः ॥१०॥ अर्काय नमः ॥ ११ ॥ भास्कराय नमः ॥ १२ ॥
फिर खड़ी होकर नीचे लिखे मन्त्रसे सूर्य भगवान्की एक बार प्रदक्षिणा करे-
यानि कानि च पापानि
जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्ति
प्रदक्षिणपदे पदे ॥
पश्चात् –
“श्रीगोविन्दाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि । तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
इस मन्त्रका अथवा ‘श्री नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मन्त्रका १००८ बार अथवा १०८ बार अथवा २८ बार अथवा १० बार जप करे ।
( सौभाग्यवती स्त्री स्फटिक, धातु, प्रवाल तथा मणि आदिकी माला पर जप करे और विधवा स्त्री तुलसोकी माला पर जप करे ) ।
पतिदेव के पूजनकी विधि इस प्रकार है-
जपके बाद अपने पतिदेवका श्रद्धा-भक्तिसे पूजन करे
और उनका चरणोदक पान करे ।
( यदि पति परदेश गये हों तो,
उनके चित्रका पूजन करे ।
विधवा स्त्रीको भी पतिके चित्रका पूजन करना चाहिये । )
पतिदेवाय नमः ध्यायामि । पतिदेवाय नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि । पतिदेवाय नमः चन्दनं समर्पयामि । पतिदेवाय नमः अक्षतान् समर्पयामि । पतिदेवाय नमः पुष्पमालां समर्पयामि । पतिदेवाय नमः धूपमाघ्रापयामि । पतिदेवाय नमः दीपं दर्शयामि (हस्तप्रक्षालनम् ), पतिदेवाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि | पतिदेवाय नमः फलं समर्पयामि । पतिदेवाय नमः एलालवङ्गपूगीफलादिसहितं ताम्बूलं समर्पयामि । पतिदेवाय नमः आरार्तिक्यं दर्शयामि । पतिदेवाय नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
(१. ब्रह्मा, विष्णु और महेशस्वरूप अपने पतिदेवकी एक बार अथवा चार बार प्रदक्षिणा करनी चाहिये । )
पतिदेवाय नमः नमस्करोमि ।
पतिदेवको प्रणाम करते समय
निम्नांकित श्लोकोंको पढ़े-
नमः कान्ताय भर्त्रे च
शिवचन्द्रस्वरूपिणे ।
नमः शान्ताय दान्ताय
सर्वदेवाश्रयाय च ॥ १ ॥
नमो ब्रह्मस्वरूपाय सतीप्राणपराय च ।
नमस्याय च पूज्याय हृदाधाराय ते नमः ॥ २ ॥
पञ्चप्राणाधिदेवायु चक्षुषस्तारकाय च ।
ज्ञानाधाराय पत्नीना परमानन्ददायिने ॥ ३ ॥
पतिर्ब्रह्मा पतिर्विष्णुः पतिरेव महेश्वरः ।
पतिश्च निर्गुणाधारब्रह्मरूप नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥
क्षमस्व भगवन् दोषं ज्ञानाज्ञानकृतं च यत् ।
पत्नीबन्धो दयासिन्धो दासीदोष क्षमस्व च ॥ ५ ॥
हे हे पते धर्मविवर्द्धनाय
जातोऽवतारो धरणीतलेऽस्मिन् ।
भवादृशो धर्म-धुरं-धराय
देवांशभाजो निरुपाधिकस्य ॥ ६ ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ ७ ॥
पतिपूजनके बाद जिस नारीने गुरुसे दीक्षा ली हो, उसे अपने गुरुके चित्रका ध्यान और पूजन करना चाहिये और ‘गुरुमन्त्र’ का १००८ बार अथवा १०८ बार अथवा २८ बार अथवा १० बार जप करना चाहिये ।
गुरुभक्त नारी गुरुदेवका ध्यान इस प्रकार करे-
आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम् ।
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योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैद्यं
श्रीमद्गुरुं नित्यमहं नमामि ॥
फिर निम्नलिखित श्लोकोंको पढ़कर
गुरुको नमस्कार करे -
गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १ ॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ २॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३ ॥
संसारवृक्षमारुढं पतितं नरकार्णवम् ।
येन तु ध्वरितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ४ ॥
पश्चात् गुरुकी इस प्रकार प्रार्थना करे-
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम् ।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ॥ १ ॥
त्वमेव शरणं देव नान्यथा शरणं मम ।
अतः कारुण्यभावेन रक्ष मां शरणागतम् ॥ २ ॥
गुरुपूजनके बाद इन्द्र आदि दस दिग्देवताओं (दिक्पालों) की इस प्रकार नमस्कार करे-
पूर्व में- इन्द्राय नमः ।
आग्नेय कोण में- अग्नये नमः ।
दक्षिण में- यमाय नमः ।
नैऋत्य कोण में– निर्ऋतये नमः ।
पश्चिम में– वरुणाय नमः ।
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वायव्य कोण में– वायवे नमः ।
उत्तर में– सोमाय नमः ।
ईशान कोण में– ईशानाय नमः ।
ऊपर ( आकाश ) में – ब्रह्मणे नमः ।
नीचे ( पृथिवी ) में– अनन्ताय नमः ।
पश्चात् सूर्य, चन्द्र आदि देवताओंको इस प्रकार अभिवादन करे -
भो सूर्य- त्वामभिवादयामि |
भो चन्द्र त्वामभिवादयामि ।
भो वैश्वानर त्वामभिवादयामि ।
भो परमेश्वर त्वामभिवादयामि ।
भो गुरुदेव त्वामभिवादयामि ।
भो पतिदेव त्वामभिवादयामि
पश्चात् निम्नाङ्कित वाक्य पढकर सन्ध्योपासनकर्म भगवान्को समर्पित करे-
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् । करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयेत्तत् ॥
अनेन सन्ध्योपासनाख्येन कर्मणा श्रीभगवान् परमेश्वरः प्रीयतां न मम ।
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फिर भगवान्का इस प्रकार स्मरण करे–
प्रमादात्कुर्वतां कर्म
प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णोः
सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥ १ ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति
सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥ २ ॥
विष्णवे नमः । विष्णवे नमः । विष्णवे नमः ।
॥ इति नारीसन्ध्याविधिः ॥