[[सनातनधर्मप्रदीपः Source: EB]]
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सनातनधर्मप्रदीपे
<MISSING_FIG href="../books_images/U-IMG-1704798810सनातनधर्मप्रदीपे.jpg"/>
शुद्धिप्रकाशविवाहप्रकाशौ
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श्री सन्तोजिमहाराजादिचाल्यमान-सनातनधर्मोज्जीविनी-सभाङ्ग-ग्रन्थनिर्माण-समित्या
समालोचनार्थं सर्वेषां पण्डितानां
सविध उपहृियमाणौ।
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कलिकाता नगरस्थ वर्णिक प्रेसद्वारा
मुद्राप्य प्रकाशितौ।
———
समालोचनार्थं
मासत्रितयमवसरः।
[TABLE]
श्रीः
शुद्धिप्रकाशः
शुद्धिप्रकाशविषयानुक्रमणिका
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| अस्पृश्यानां देवालयप्रवेशविचारः |
| देवालयेऽन्त्यजप्रवेशे वैखानसादिनिर्णयाः |
| अस्पृश्यास्पर्श्यतायां चकाराद्याशयः |
| अस्पृश्यानां ग्रामादिप्रवेशे शिल्पशास्त्रम् |
| कलौ स्पर्शदोषास्तित्वविचारः, तत्र पराशरमाधवीयादिसमालोचनं च |
| चण्डालादीनां कियद्दूरं व्यवधानाववश्यकतायाः पराशरवचनाद्यनुसारेण परीक्षणम् |
| अन्त्यजस्पर्शे आचमनमात्रयोगविचारः |
| स्पर्शदोषाभावपराणां वचनानां परीक्षणम् |
| अन्त्यजस्पर्शदोषतायां याज्ञवल्क्यमन्वङ्गिरो वचनानि |
| उक्तार्थे यमात्रिसंवर्त शातातपगौतमादि वचनानि |
| अन्त्यजस्पर्शदोषताप्रमाणपरीक्षणम् |
| अन्त्यजस्पर्शे स्मृतिचन्द्रिकानिर्णयः |
| उक्तार्थे मिताक्षरानिर्णयः |
| कृते संभाषणादेवेत्यत्र वीरमित्रोदयकारव्यवस्था | तत्समालोचनं च |
| पतितसंसर्गेण पतिततुल्यत्वमेवेति विद्वन्मनोहरमतं तत्समालोचनं च |
| उक्तार्थे माधवीयसमालोचनम् |
| कृतप्रायश्चित्तानां व्यवहार्यतापक्षपरीक्षणम् |
| प्रायश्चित्तनैमित्तिकत्वविचारः |
| प्रायश्चित्ताकरणे प्रायश्चित्तान्तराभावः |
| प्रायश्चित्ताधिकारिविवेचनम् |
| स्त्रीशूद्रबालकानां प्रायश्चित्ताधिकारविचारः |
| प्रायश्चित्तकतृत्वादिविचारः |
| कामाकामकृतप्रायश्चित्तव्यवस्था तन्त्रप्रसङ्गापत्तिविचारः |
| कृतप्रायश्चित्ताव्यवहार्यत्वे शांकर |
| भाष्यादिसमालोचनम् |
| उक्तार्थे प्रायश्चित्तमयूखः |
| प्रायश्चित्ततन्त्रप्रसङ्गयोर्मयूखमिताक्षरयोर्मते |
| कृतप्रायश्चित्तव्यवहार्यतायां मदनपारिजातोपष्टम्भः |
| कामकृते प्रायश्चित्ताधिकारविचारः |
| सहाशनादीनां पातित्यानापादकत्व विचारः |
| तत्र मदनरत्नप्रदीपमिताक्षरे |
| अष्टाचत्वारिंशद्वारभोजनस्य पातित्यापादकत्वे निमित्तपरीक्षणम् |
| अभ्यासेऽहर्गुणा वृद्धिरित्यस्य वेश्याविषयत्वव्यवस्था |
| चण्डालस्त्रीगमने प्रायश्चित्तव्यवस्था |
| चण्डालम्लेच्छयोर्विशेषपरीक्षणम् |
| पतितापत्यव्यवहार्यताविचारः |
| निर्णयसिन्धुगतकलिवर्ज्य प्रकरणम् |
| कलिवर्ज्यप्रकरणपरीक्षणम् |
| पतितपरावर्तनविचारः |
| उक्तार्थे देवलस्मृतिसमालोचनम् |
| देवलसम्मतशुद्धिव्यवस्था |
| मुद्रितदेवलस्मृतिप्रामाण्यव्यवस्था |
| तत्तन्निबन्धोद्धृतदेवलवचनानि |
| पतितकन्यापरावर्तनयोग्यत्वविचारः |
| परम्परात्रयातिक्रम एव व्रात्यसंस्कारः |
| पतितपरावर्तने कुर्तुकोटिशंकराचार्याणां व्यवस्था तत्समालोचनं च |
| पतितपरावर्तने उडुपिसंस्कृतकला |
| शालाध्यक्षाणामाशयः |
| उक्तार्थे शम्भुभट्टव्यवस्था, तत्समालोचनं च |
| पतितपरावर्तने निष्कर्षः |
| उक्तार्थे पण्डितशिवदत्तव्यवस्था, तत्समालोचनं च |
| आपस्तम्बीयव्रात्यप्रायश्चित्तविधिपरीक्षणम् |
| व्रात्यसंस्कारमीमांसापरीक्षणम् |
| व्रात्यसंस्कारे वीरमित्रोदयादिमतम् |
| परम्पराचतुष्टयमेवानुपनीतत्वे |
| व्रात्यसंस्कार इति मतपरीक्षणम् उक्तार्थेऽपरार्ककातीयभाष्यादिपरीक्षणम् |
| स्त्रीवृद्धादीनां व्रात्यसंस्कारविचारः |
| नागोजिभट्टकृतवात्यसंस्कारव्यवस्था |
| उक्तार्थे जयसिंहसंपादितशुद्धिसंग्रहपरीक्षणम् |
| कलौ क्षत्रियादिसत्वे नागोभट्टमतम् |
| उक्तमतसमालोचनम् |
| उक्तार्थे व्रात्यसंस्कारमीमांसा |
| उक्तार्थे व्रात्यशुद्धिसंग्रहः |
| शिवदत्तपण्डितशुद्धिव्यवस्थासमालोचनम् |
| कामतो व्यवहार्यस्तु इत्यस्य वाचस्पत्यसम्मतं विवरणं तत्समालोचनं च |
| उक्तार्थे प्रायश्चित्तमुक्तावली |
| मलकानाशुद्धिपरीक्षणम् |
| कृतप्रायश्चिसमुद्रयायिव्यवहार्यताविचारः |
| कृतप्रायश्चित्तसमुद्रयायिकर्तृकश्राद्ध निमन्त्रणीयविचारः |
| उक्तार्थे दुर्वृत्तधिक्कृतिः |
| कृतप्रायश्चित्तसमुद्रयायिनो लघुव्यवहारयोग्यता |
[TABLE]
शुद्धिप्रकाश शुद्धाशुद्धिपत्रिका
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| शु | अशु | पंक्ति |
| क | कि | १८ |
| नश्च | नांच | ८ |
| हदा | हा | १२ |
| ट्ट | दृ | ३ |
| ता | दा | १२ |
१३ शे पृष्ठे सर्वथा तु इति पंक्ति र्नापेक्षिता
| शु | अशु | पंक्ति |
| गस्य | र्गेण | ५ |
| स्थ्यये | स्थेय | ६ |
| ध्य1 | ध्द्य | २२ |
| अन | अ | १४ |
| न | नस्य | १८ |
| र्ण | ण | ९ |
| द् धा | द्धा | २३ |
| ति | तिन | ९ |
| म्य | भ्य | १० |
| य | वाय | १४ |
| ये | र्त | १२ |
| त्याऽ | त्या | १३ |
| स | ग | ५ |
| भ्म | म्म | १६ |
| मे | भे | ११ |
| द्धा | व्दा | २२ |
| च्छ्र | च्छु | ९ |
| म | न | १५ |
| णान् न दुष्टम् | णान् | १६ |
| न | म | १ |
| तएव | तो | ३ |
| भाष्ये | भाष्यं | ३ |
| द्वय | व्द्य | १३ |
| र्था | र्थ | २० |
| ना | ता | २४ |
| स्रौ | स्त्रौ | २० |
| ल्वा | त्वा | २१ |
| रि | दिरि | १३ |
| च्छु | छ | १५ |
| र्गे | र्से | २२ |
| व | य | २२ |
| ह्रा | हा | ८ |
| ण्य | न्य | २० |
| वा | मा | ८ |
| ण | णू | २ |
| ध्य | घ्य | १४ |
| ह्रा | हा | १४ |
| वः | व | १८ |
| त्य | त | १९ |
| कृ | क | २४ |
| शू | श | २३ |
| परतः | पः | ४ |
| शु | अ |
| ता | ति |
| र्थ | थ |
| य | दय |
| नि | ति |
| नान | ना |
| नु | न |
| ञ्चे | च |
| शा | श |
| व्या | व्य |
| त्रो | त्तो |
| धात् | धा |
| मात्र | मस्त्र |
| हु | ह |
| र्य | य |
| त्ये | त्य |
| गाह्य | बाह्य |
| श्चा | ञ्चा |
| या | य |
| वं | व |
| बा | व |
| पा | प |
| हृ | ह |
| न्त्रा | न्नाः |
| सि | मि |
| र्या | र्य |
| प्यव | प्य |
| र्थपर | र्थ |
| त्या | त्य |
| र्वा | र्वा |
| ङ्ग्र | ङ्ग |
| त्व | त्वि |
| त | न |
| रि | री |
| लाः | लः |
| ति | नि |
| नु | मु |
| प्ये | ष्ये |
| म्पा | म्षा |
| यि | लि |
| नी | नी |
| उत | मुन |
| र्य | ये |
| मि | मिवे |
| ति | त्ति |
| ना | नां |
| वं | व |
| क्ष्य | स्य |
| मै | म |
| न्या | न्य |
| कु | कृ |
| तच्छा | च्छा |
| र्य | र्प |
| व्य | व्व |
| ववा | व |
| एक | यदि एक |
| गु | वा |
| क | क |
| र्भ | भ |
| शु | अशु |
| प्साऽ | प्सा |
| स्त्री | स्वस्त्री |
| द्व्य | ब्द्य |
| नि | |
| लासु | लात्स्व |
| ख्य | रव्य |
| ह्वी | व्ही |
| वद | क्द |
| खा | ला |
| प्पा | प्प |
| आशौ | अशौ |
| र्वं | र्व |
| र्शनं | र्शं |
| र्शनं | र्शं |
| न्ते | ते |
| शु | अशु |
| यिषि | यि |
| पद्य | प |
| णात् | णा |
| र्म | म |
| ढा | ढा |
| त्तृ | तृ |
| र्वि | वि |
| च्छलो | च्छी |
| प | प्र |
| र्य | य |
| ना | न |
| च्च | ञ्च |
| विवा | व्वि |
| ष्टान्ता | ष्टा |
| याः | या |
| द | ढ |
| याः | या |
| स्य | स्यस्य |
| पपप | पप |
| क | का |
| र्व्य | व्य |
| म्य | म्प |
| न्या | या |
| भ्यु | यु |
| यो | या |
| ह्ण | ह्र |
| न्त्र | न्त |
| मे | मं |
| दे | द |
| मे | म |
| ते | त |
| वाः | वाकदाचित् |
| दवे | देव |
| द्भिः | द्भ |
| या | त्यात् |
| र्धा | धा |
| न् | त् |
| न्त्र | न्त्रा |
| ता | त |
| शु | अशु |
| र्वि | वि |
| हतै | हिप्रे |
| या | त्या |
| दृ | दु |
| त | न |
| त्त्यु | च्यु |
| द्ये | द्य |
| र्षः | षः |
| वाहस्य | बास्य |
| र्वः | वः |
| र्ष | ष |
| दी | दि |
| तै | नै |
| दृ | दु |
| नोपरुन्ध्या इति | द्रजस्वलामिति |
| त्येव | त्यव |
| ब | र्ब |
| ति | त |
| न्त्रातिसमावे मन्त्रान्त | शनान्त |
| म | स |
| क्ती | क्ति |
| र्मा | मा |
| नासं | नसं |
| ह | हा |
| मो | मे |
| व्रि | वी |
| र्थ | थ |
| बा | वा |
| नं | तं |
| र | रं |
| त्ता | त्त |
| भ्रू | भ्र |
| न्ध | न्द |
| प | ए |
| कत्रं | त्क्र |
| यां | या |
| र्य | य |
| नपरि | सस |
| हित | हि |
| स्तू | स्त्वा |
| नकथ | कथ |
| ष्प्र | ष्प |
| स्या | स्य |
| वि | नि |
| नेवोक्त | नोक्त |
| ना | न |
| ङ्गा | ङा |
| र्वि | वि |
| न्ध्र | ध्र |
| का | कां |
| त्तु | त्व |
| त्तु | त्रु |
| स्त्रा | त्रा |
| र्त | त |
| र्ण | णं |
| दोऽ | दोऽअ |
| गृह्य | गृह |
| हि | हि |
<MISSING_FIG href="../books_images/U-IMG-1696586006Untitled.jpg"/>
॥ श्रीः ॥
॥ श्रीमहागणपतये नमः ॥
॥ श्रीविट्ठलेशाय नमः ॥
॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥
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सनातनधर्मप्रदीपः
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“ध्य स्थाने ध्द्य इति बहुषु स्थलेषु संशोधकानां नूतनेन परिचयेन संजातम् इत्यत्यत्र संसृज्यते, एवं चोक्तशुद्धिरुपरितनेषु स्थलेषु विद्यमानान संग्रहीष्यते ।” ↩︎