विवेकानन्द-वन्दनम्

विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)

This Stotra is dedicated to Swami Vivekananda. It is written in the style of the 14th century Kashmiri poet Jagaddhara Bhatta (Stutikusumāñjali, Stotra 2). According to Kshemendra, the beauty of a short meter is enhanced through compounds and that of a long meter through the absence of compounds.

“समासैर् लघुवृत्तानाम्
असमासैर् महीयसाम्।
शोभा भवति भव्यानाम्
उपयोग-वशेन वा॥”

This is the standard that I am striving for in the स्वामिविवेकानन्दवन्दनम्.

नमस्कारात्मकं स्वामि-विवेकानन्द-वन्दनम्
(काश्मीरक-महा-कवि-जगद्-धर-भट्ट-शैलीम् अनुसृत्य)
कुशाग्रविरचितम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमस् तत्-पद-वाच्याय
त्वम्-पदोदाहृतात्मने।
असि-क्रिया-पदाख्यात-
सत्ता-मात्र-परत्विषे॥१

कुशाग्रः - हिन्दी

उन “तत्” पद के द्वारा वाच्य, “त्वम्” पद के द्वारा अभिप्रेत स्वरूप वाले, और “असि” क्रिया-पद के द्वारा आख्यात सत्ता-मात्र और परम ज्योति को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

माया-भुजङ्ग-पाश-स्थ-
जगद्-व्यापार-साक्षिणे।
चिदाकाशाद् अधोयात-
वैनतेयाय वै नमः॥२

कुशाग्रः - हिन्दी

माया रूपी सर्प के पाश में स्थित जगत् के व्यापार को देखने वाले और चित्-स्वरूप आकाश से नीचे उतर कर आए हुए उन गरुड-रूपी देव को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

संसार-सैकताप्लाव-
चिद्-आनन्दाब्धि-वीचये।
नमस् तुङ्गातिवेगाय
गम्भीर-स्वन-घोषिणे॥३

कुशाग्रः - हिन्दी

संसार-रूपी बालु-राशि से परिपूर्ण तट को आप्लावित करने वाले चिदानन्द-रूपी समुद्र के उत्तुङ्ग, वेगवान् और गम्भीर स्वर में उद्घोष करने वाले तरङ्ग को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमो ऽहम्-पद-रूपाय
ब्रह्म-शब्दोदितार्चिषे।
अस्मि-नाद-समाख्यात-
महा-वाक्याय योगिने॥४

कुशाग्रः - हिन्दी

“अहम्”-पद के स्वरूप, “ब्रह्म”-शब्द से उदित होने वाली ज्योति वाले, और “अस्मि” के नाद से समाख्यात उन महावाक्य (महद् वाक्यं यस्य सः) योगी को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमो नैराश्य-नैरस्य-
नैःसत्त्व्याधि-विनाशिने।
नैःश्रेयस-प्रतिष्ठान-
नागराय महात्मने॥५

कुशाग्रः - हिन्दी

निराशा, नीरसता, और निर्जीवता जैसे रोगों का उन्मूलन करने वाले, और “नैःश्रेयस” अर्थात् मोक्ष-रूपी नगर के निवासी उन महात्मा को नमस्कार है।

ध्यातव्यम् – “रसो वै सः”।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमः सख्ये सु-पर्णाय
समान-तरु-वासिने।
फल-भोक्तृत्व-हीनाय
साक्षि-भाव-स्थ-पक्षिणे॥६

कुशाग्रः - हिन्दी

उस साक्षी-भाव में स्थित पक्षी को नमस्कार है, जो मेरा सखा है, जिसके सुन्दर पंख हैं, जो मेरे साथ समान वृक्ष पर रहता है, और जो फल के भोक्तृत्व से मुक्त है।

प्रेरणा – “द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया…” (मुण्डकोपनिषद्)

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्र-पञ्च-पादपोच्छेद-
प्रवीण-पर-पर्शवे।
अप्रमेय-प्रहाराय
प्रज्ञा-धाराय वै नमः॥७

कुशाग्रः - हिन्दी

अप्रमेय प्रहार और प्रज्ञा-रूपी धार वाले, प्रपञ्च-रूपी वृक्ष के उच्छेद में प्रवीण उस सर्वोच्च परशु को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वर्ण-तन्त्री-कराघर्ष-
परिश्रान्ता सरस्वती।
वक्त्र-तन्त्रीम् अगृह्णीत
यस्य तस्मै नमो नमः॥८

कुशाग्रः - हिन्दी

स्वर्ण-निर्मित वीणा के तारों को हाथ से घिसने के कारण परिश्रान्त हुई सरस्वती ने जिनकी मुख-रूपी वीणा के तार को पकड़ लिया, उनको बार-बार नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

लोकोऽयं याचको भूत्वा
यस्य दानम् अवाप्तवान्।
तस्मै निरीह-वेषाय
नमो निःस्वाय भिक्षवे॥९

कुशाग्रः - हिन्दी

यह संसार भी याचक बन कर जिनके अवदान को ग्रहण कर सका, उन निरीह वेष वाले, निःस्वार्थ भिक्षुक को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

आ-सृष्टि-कल्प-पर्यन्त-
निखिल-श्रुति-सेतवे।
नमो राष्ट्र-समुद्धार-
हेतवे धर्मकेतवे॥१०

कुशाग्रः - हिन्दी

सृष्टि के आदि से प्रलय पर्यन्त सभी श्रुतियों के सेतु के रूप में विद्यमान, राष्ट्र के पुनरुद्धार के कारण और धर्म के ध्वज धारी को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

योऽभिजानाति न ब्रूते
यो ब्रूते नावबोधति।
इति द्वैध-निषेधाय
नमः प्रत्यक्ष-देशिने॥११

कुशाग्रः - हिन्दी

“जो (इस आत्म-तत्त्व को) जानता है, वह बोलता नहीं और जो बोलता है, वह जानता नहीं। ” – इस द्वैध का निषेध करने वाले और प्रत्यक्ष उपदेश करने वाले को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

न पाद-पतनं भक्तिर्
देवस्याप्य् अपरीक्षणात्।
इति न्यायानुसन्धात्रे
नमो भक्ताधिमौलये॥१२

कुशाग्रः - हिन्दी

“किसी देवता के भी चरणों में बिना परीक्षण किए गिर जाने का नाम भक्ति नहीं है” – इस न्याय का अनुसन्धान करने वाले भक्त-श्रेष्ठ को नमस्कार है।

प्रेरणा – शैवदर्शनम्।

विश्वास-प्रस्तुतिः

आङ्ग्ल-बाङ्ग्ला-मयी वाणी
संस्कृत-प्राकृतान्विता।
गद्य-पद्य-मयी यस्य
तस्मै मेधाविने नमः॥१३

कुशाग्रः - हिन्दी

जिनकी वाणी आङ्ग्ल और बाङ्ग्ला, संस्कृत व प्राकृत, तथा गद्य और पद्य से परिपूर्ण थी, उन मेधावी पुरुष को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

आत्मानं कन्दुकी-कृत्य
क्रीडकी-कृत्य चापरान्।
भ्रमन्तः संश्रिता येन
तस्मै श्री-गुरवे नमः॥१४

कुशाग्रः - हिन्दी

अपने आप को गेंद और अन्य लोगों को खिलाड़ी बनाकर भटकने वालों को जिन्होंने आश्रय दे दिया, उन गुरु को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमो निर्वाण-मार्गेण
जगत्-कल्याण-कारिणे।
दर्शन-ज्ञान-संयुक्त-
कर्म-योगोपदेशिने॥१५

कुशाग्रः - हिन्दी

निर्वाण के मार्ग के द्वारा जगत् का कल्याण करने वाले और दर्शन व ज्ञान से संयुक्त कर्म-योग का उपदेश देने वाले को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

विश्वातप-घ्न-पीयूष-
शीत-शीकर-भानवे।
आत्म-दीप-प्रभा-दीप्त-
निर्-वात-शिखिने नमः॥१६

कुशाग्रः - हिन्दी

संसार के आतप को हरने वाले अमृत के शीतल जल-कणों के समान किरणों वाले और आत्म-दीप की प्रभा से दीपित वायु-शून्य (निष्कम्प) शिखा (लौ) वाले को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमो वाङ्-मनसा ऽऽतीत-
परात्म-पद-दर्शिने।
समस्त-विषयातीत-
विविक्त-पथ-गामिने॥१७

कुशाग्रः - हिन्दी

वाणी और मन से परे परमात्म-तत्त्व को देखने वाले और समस्त विषयों से परे निर्जन पथ के यात्री को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

“इदं ब्रह्मे"त्य् अभिज्ञान-
निर्दिष्टाखिल-बोधिने।
नमः सर्व-पदाभेद-
रूपिणे भवरूपिणे॥१८

कुशाग्रः - हिन्दी

“यह ब्रह्म है” इसी अभिज्ञान द्वारा निर्दिष्ट सम्पूर्ण जगत् को पहचानने वाले, “सर्व” पद के द्वारा अभिप्रेत अभेद-स्वरूप वाले तथा स्वयं जगत्-स्वरूप योगी को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

नमो राष्ट्र-शरीर-स्थ-
शूल-शोधन-कर्मणे।
अन्तः-स्थ-चेतना-शल्य-
चिकित्सा-विधि-वेदिने॥१९

कुशाग्रः - हिन्दी

राष्ट्र के शरीर में छिपे शूल को निकालने का काम करने वाले और आन्तरिक चेतना की शल्य चिकित्सा की विधि को जानने वाले को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

मोह-स्वप्नान्त-कालोत्थ-
प्रबोध-स्वस्थ-चेतसे।
नमो निगम-वीथि-स्थ-
नैगमाय यशस्विने॥२०

कुशाग्रः - हिन्दी

मोह-रूपी स्वप्न के अन्त के समय उदित हुई प्रबोध-रूपी स्वस्थ बुद्धि वाले तथा निगम (वेद/नगर) के मार्ग पर स्थित यशस्वी नैगम (वैदिक मतावलम्बी/नागरिक) को नमस्कार है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

जगन्-नाटक-पात्रत्वम्
अनुष्ठाय स्वलीलया।
नेपथ्यम् आगतो मञ्चाद्
यस् तस्मै स्वामिने नमः॥२१

कुशाग्रः - हिन्दी

जिन स्वामी ने अपनी लीला से संसार-रूपी नाटक में पात्र का निर्वाह कर मंच से नेपथ्य को प्रस्थान किया, उनको नमस्कार है।