विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
To a Tamil Nadu INC MP, who said, “I’m from Tamil Nadu, I don’t know Rama. You ask anybody in Tamil Nadu. We don’t see any Rama Temple.”
न जानामि रामं न जानामि सीतां
न वा लक्ष्मणं वायुपुत्रं कदाचित्।
न वाल्मीकिमेनं न कम्बं कवीशं
परं रावणं द्राविडेशं भजामि॥ १ (5)
विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
मैं न राम को जानती हूँ, न सीता को। मैं न लक्ष्मण को जानती हूँ, न वायुपुत्र हनुमान को। न इन वाल्मीकि को और न कविराज कम्बन को जानती हूँ । किन्तु मैं द्रविडों के राजा रावण को प्रणाम करती हूँ।
भवेद् भाग्यहीनो भवेन् नामहीनो
गुणैर् वा विहीनो दरिद्रातिदीनः।
समारभ्य गर्भात् समासाद्य मृत्युं
भवेद् भारते नो जनो रामहीनः॥२
विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
चाहे कोई भाग्यहीन हो या नाम-हीन हो, अथवा गुण-हीन, दरिद्र और दीन हो किन्तु गर्भ से आरम्भ कर मृत्यु-पर्यन्त भारत में कोई भी मनुष्य राम से हीन नहीं है।
स रामेश्वरोऽस्ति स्थितः सेतुबन्धे
स साकेतदेशो विदेहस्तथैव।
वनं दण्डकं राजते चारु पम्पा
निमील्याक्षियुग्मं न कुत्रापि किञ्चित्॥३ (4)
विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
सेतु-बन्ध पर स्थित रामेश्वर, अयोध्या, विदेह, दण्डकारण्य और सुन्दर पम्पा-नगरी - आँख मूँद लेने पर तो कहीं भी इनमें से कुछ भी नहीं है।
प्रमाणं न किञ्चिच् चरित्रस्य येषाम्
उपस्थापितं यैः प्रजातन्त्र-मध्ये।
प्रमाणे हि सीतापतेर् याचिते तैर्
भवेद् अन्तिमः श्वास-वायुः प्रमाणम्॥४
विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
जिन्होंने लोक-तन्त्र में अपने चरित्र का कुछ भी प्रमाण नहीं दिया, उनके द्वारा सीतापति राम का प्रमाण माँगने पर उनकी अन्तिम साँस ही प्रमाण बन जाए।
इमं दारुणं पातकस्यैव भारं
वहन्तोऽप्य् असन्तो हरेर् वैर-भावात्।
जपन्तो दिवारात्रम् आनन्दधाम
प्रियं रामनाम प्रयायुः शिवत्वम्॥५
विस्तारः (द्रष्टुं नोद्यम्)
इस दारुण पाप का भार ढोने वाले दुर्जन लोग श्रीहरि से वैर भाव के कारण दिन-रात उनके आनन्द-दायी प्रिय राम-नाम को जपते हुए कल्याण को प्राप्त करें।