सूर्यनारायण सूरावधानी
आन्ध्रप्रदेश (१६-२० वीं शती) वेलिमिकन्यापुर के निवासी व्यासशिक्षा पर ‘वेदतैजस’ व्याख्या आचार्य पट्टाभिराम शास्त्री द्वारा सम्पादित और वेदमीमांसा अनुसन्धान केन्द्र के प्रथम पुण्य के रूप में वाराणसी से १६७६ में प्रकाशित। व्यासशिक्षा कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा से सम्बद्ध है। उसकी मुख्य और ६ उपशिक्षाएँ हैं, जिनमें ‘व्यासशिक्षा’ का मुख्य शिक्षाओं में प्रमुख स्थान है। १८वीं शती में पाश्चात्त्य विद्वान ल्यूडर्स ने इसका पहले पहल सम्पादन किया था। फिर यह सूरावधानी की वेदतैजस व्याख्या और राजा घनपाठी की ‘सर्वलक्षणमञ्जरीसंग्रह’ के साथ १६०८ ई. में दक्षिण भारत से आन्धलिपि में प्रकाशित हुई। अब इस ग्रन्थ की महती उपयोगिता को देखते हुए इसे देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया।
राजा घनपाठी
आन्ध्रप्रदेश (१६-२० वीं शती) व्यासशिक्षा पर सर्वलक्षणमञ्जरी ‘नामक संग्रहग्रन्थ’ मूल ग्रन्थ और वेदतैजस व्याख्या के साथ वेदमीमांसा अनुसन्धान केन्द्र, वाराणसी से १६७६ में प्रकाशित। श्री राजा घनपाठी मध्याजेन क्षेत्रीय शेरपटिटग्राम के निवासी श्री रामशेष शास्त्री के दौहित्र थे। उन्होंने ‘वेदतैजस’ नाम की व्याख्या का भलीप्रकार अवगाहन कर सम्प्रदाय-सिद्ध पदार्थों को बड़ी स्पष्टतापूर्वक सिद्ध किया है।
शिवराम आचार्य
कौण्डिनन्यायशिक्षा १६६२ ई. में स्वाध्यायशाला लाजिम्पाट, काठमाण्डू से प्रकाशित।
मगिपूडि वेङ्कटशास्त्री
व्यासशिक्षाविमर्शः १६E२ ई. में वेङ्कटशास्त्री द्वारा ब्राह्मण वीथी विजयवाडा से तिरुमल तिरुपति देवस्थान की सहायता से प्रकाशित।
गोपालचन्द्र मिश्र
(सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में वेद विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त) सम्प्रदायप्रबोधिनी शिक्षा-यह शिक्षाग्रन्थ संस्कृत टीका सहित प्रकाशित है।