‘शुकसप्तति’ नामक कथाग्रन्थ में अपनी स्वामिनी को कुमार्ग पर चलने से विमुख करने के उद्देश्य से उसके पालतू सुग्गे द्वारा कही गई सत्तर मनोरञ्जक कहानियाँ प्राप्त होती हैं। यह दो वाचनाओं में उपलब्ध है, जिनमें प्रथम संक्षिप्त एवं अपरिष्कृत तथा द्वितीय विस्तृत एवं परिष्कृत है। इसकी दोनों ही वाचनाओं को डॉ. स्मिथ ने जर्मन भाषान्तर के साथ क्रमशः १८६३ तथा १८६६ ई. में जर्मनी के लाइपजिग नगर से प्रकाशित किया था। इसकी विस्तृत एवं परिष्कृत वाचना चिन्तामणि भट्ट की कृति के रूप में प्रसिद्ध है। डॉ. कीथ के अनुसार ऐसा सम्भाव्य है कि इसका मूलरूप सरल गद्य में निबद्ध किया गया हो, जिसके मध्य में सूक्तिपरक श्लोक रहे होंगे तथा प्रत्येक कथा के आदि और अन्त में कथावस्तु के सूचक श्लोक रहे होंगे। __ इस कथाग्रन्थ के प्रारम्भ में हरदत्त नामक वणिक् के युवा पुत्र मदनसेन से हम परिचित होते हैं जो निरा मूर्ख है और अपनी युवती पत्नी के साथ अहर्निश प्रेमालाप में निमग्न रहा करता है। अपने पुत्र की इस दिनचर्या से उसका पिता हरदत्त निरन्तर चिन्तित रहा करता है। एक दिन वह अपने किसी हितैषी के परामर्श पर अपने पुत्र को एक बुद्धिमान् तोता तथा एक चतुर कौआ उपहार के रूप में दे देता है। वास्तव में ये गन्धर्व थे जो किसी कारणवश पक्षी के रूप में परिणत हो गये थे। उन दोनों पक्षियों के बुद्धिमत्तापूर्ण वार्तालाप को सुनते-सुनते वणिकपुत्र मदनसेन सन्मार्ग का अवलम्बन कर लेता है जिससे उसके पिता को परम सन्तोष होता है। एक बार मदनसेन कार्यवश प्रवास पर जाने को उद्यत होता है। वह अपनी अनुपस्थिति में अपनी युवती पत्नी के संरक्षण का भार उन दोनों पक्षियों पर सौंप देता है। पति की अनुपस्थिति में विरह की विषम व्यथा से विचलित होकर मदनसेन की पत्नी यौवनसुख का उपभोग करने के लिए परपुरुष का साहचर्य प्राप्त करने को उद्यत हो जाती है। यह देखकर कौआ उसे शीलभग न करने की शिक्षा देता है, परन्तु वह उसे ग्रीवाभङ्ग का भय दिखलाती है जिससे वह चुप हो जाता है। कौए की अपेक्षा तोता बुद्धिमत्ता से काम लेता है। वह मदनसेन की कामात पत्नी के विचार का अनुमोदन करता है, परन्तु साथ ही साथ यह भी कहता है कि गुणशालिनी नामक एक चातुर्यसम्पन्न युवती की भाँति उसे भी चातुर्यसम्पन्न होना चाहिये जिससे किसी विषम परिस्थिति में उलझ जाने पर वह उससे मुक्ति का मार्ग सरलता से पा सके। यह सुनकर मदनसेन की पत्नी को गुणशालिनी के , चातुर्य एवं व्यवहार-कौशल के प्रति सहज ही जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है; और, तब वह मनोरञ्जक कथाएँ २५७ तोता उसे कहानियाँ सुनाने लगता है और उस क्रम में यह भी पूछता जाता है कि वैसी असमञ्जस स्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिये। कहानियों का यह सिलसिला तबतक चलता रहता है, जबतक उसका पति प्रवास से लौटकर नहीं आ जाता; और, इसी प्रकार तोता अपनी स्वामिनी के शील को खण्डित होने से बचा लेता है। हा प्ररोचना-पूर्ण होने के कारण इन कहानियों में श्रृङ्गार-भावना का आवेग सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। अर्धाधिक कहानियों में स्वैराचरण के कारण दाम्पत्यप्रेम की पावनता सुरक्षित नहीं रह पायी है। धार्मिक पर्व, यज्ञ-समारोह, मन्दिरोत्सव तथा उद्यानयात्राओं के अवसरों में प्रेमी-प्रेमिका के प्रच्छन्न-समागम की सुलभता के उल्लेख के साथ गणिकाओं के प्रवञ्चनापूर्ण व्यवहार एवं दूतीचातुर्य के अनल्प उदाहरण इन कहानियों में मिलते हैं। कौतूहलमूलक रोचकता इसकी विशेषता है।