संस्कृत महाकाव्यों की सुदीर्घ और महनीय परम्परा परवर्ती युग में क्षीण तो नहीं हुई, परन्तु उन्हें वह ख्याति नहीं मिली जो पूर्ववर्ती पंच महाकाव्यों सहित विभिन्न महाकाव्यों को मिली। इसीलिए तेरहवीं सदी के बाद के कवि और उनके काव्यों से संस्कृतज्ञ भी बहुत कम परिचित हैं। उनकी प्रसिद्धि भी है तो अपने-अपने क्षेत्र में या फिर उन्हें वे जानते हैं जो खोज-खोज कर उन पर शोध करना चाहते हैं। अवश्य ही उनमें से कुछ ‘जुगनू’ भी होंगे जो जब-तब जहाँ-तहाँ वर्षा के अन्धकार में चमकते रहते हैं। यह उल्लेखनीय है, कि चौदहवीं से अठारहवीं सदी तक के काव्य बहुधा या तो दक्षिण भारत में रचे गये या काश्मीर आदि पर्वतीय प्रदेशों में। बार-बार के बाहरी आक्रमणों की चोट से आहत भारत का उत्तरी मैदानी क्षेत्र संस्कृत नवसृजन की दृष्टि से प्रायः मरुस्थल ही रहा। स15