१० कृष्णविलास

मलाबार के सुकुमार कवि (१४५० ई.) ने कृष्ण के पराक्रम के सम्बन्ध में “कृष्णविलास’ काव्य लिखा। इसकी शैली की सरलता और मनोरमता से इसे मलाबार के सर्वप्रसिद्ध कवियों में स्थान प्राप्त हुआ है। इस कवि का दूसरा नाम प्रभाकर मिलता है। वे नम्बूतिरि ब्राह्मण थे। सोलहवीं सदी के नारायण भट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘प्रक्रियासर्वस्व’ में उनका उल्लेख किया है। कृष्णविलास कालिदास के काव्यों से प्रभावित लगता है। उसका मेरुवर्णन कुमारसम्भव के हिमालयवर्णन से और रघुवंश में अयोध्या का रमणीरूप में वर्णन से कृष्णविलास के यमुना का स्त्री-रूप-वर्णन प्रभावित बताया जाता है। इसकी रामपाणिवाद सहित कई विद्वानों ने १६वीं सदी तक टीकाएँ की हैं। इसकी शैली रमणीय है। एक उदाहरण प्रस्तुत है - कलारगन्धः कविता मनोज्ञा कवेरशैलप्रभवं च वारि। इदं त्रयं मोहनमिन्द्रियाणामेष्वेव शातोदरि नापरेषु।।