अगस्त्य कवि वारंगल के राजा प्रतापरुद्रदेव (१२६४-१३२५ ई.) के आश्रित थे। वे परम्परा के अनुसार ७४ काव्य रचे थे, जिनमें से कुछ प्राप्त हैं। आश्रयदाता प्रतापरुद्रदेव ने उन्हें विद्यानाथ की उपाधि से विभूषित किया था। उन्होंने पाण्डवों के जीवन पर २० सर्गों में ‘बालभारत’ काव्य लिखा है। वैदर्भी रीति की रमणीयता इस पूरे काव्य में व्याप्त है। राजचूडामणि दीक्षित ने अगस्त्य की प्रशस्ति की है - म जडाशयानां हृदयं जगत्यां यस्योदयाद्यातितमा प्रसादम्।हीका स एष सारस्वतमर्मवेदो विभाति मौला विदुषामगस्त्यः।। ग्राम (रुक्मिणीकल्याण, ११८) हि अगस्त्य के ‘नलकीर्तिकौमुदी’ नामक महाकाव्य के केवल दो सर्ग मिलते हैं। बालभारत वास्तव में महाभारत का संक्षेप है। २० सों में महाभारत जैसी विशाल कथा प्रस्तुत करते हुए काव्यत्व प्रदर्शन के लिए विशेष अवकाश नहीं रहता। तथापि उसमें कवित्व पुनः पुनः स्फुरित होता ही रहता है। कुन्ती के विषय में कवि कहता है - कीमत परिवार सकद्वयस्यास्तनपत्रवल्लरीविलेखनैनापि नितान्तखेदिनी। स यद्यदाज्ञापयति स्म दुष्करं क्षणेन तत्तन्निरवर्तयत्पृथा। २।३६ काव्य-खण्ड (सखियों के द्वारा वक्ष पर पत्ररचना करने से भी जो सुकुमार कुमारी पृथा थक जाती थी, वही दुर्वासा ऋषि दुष्कर भी कार्य बताते तो सब करती)