३३ अन्य कवि

सुभाषितसंग्रहों तथा अन्य ग्रंथों में उद्धृत ऐसे कवियों की संख्या सहस तक पहुँच सकती है, जिनकी रचनाएं पृथक् रूप से प्राप्य नहीं हैं! ऐसी स्थिति में सब कवियों का यहाँ विवरण देना असंभव है। कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाकारों का उल्लेखमात्र प्रस्तुत है। बाण ने कादम्बरी के प्रास्ताविक पद्यों में अपने गुरु भर्तु का उल्लेख किया है। भर्नु (नश्च) नाम के कवि के पद्य भी सक्तिकर्णामृत आदि में संकलित हैं। यही स्थिति बाण के द्वारा उल्लिखित मातंगदिवाकर कवि की है। अत्यंत प्राचीन कवियों में पाणिनि, कात्यायन, वररुचि आदि के बहुसंख्य पद्य संकलनकार उघृत करते आयें है। इसके साथ ही सुभाषितसंग्रहों से काव्यशास्त्र के महनीय आचार्यों का कवित्वपक्ष, जो प्रायः अनजाना रहा है, हमारे सामने आता है। ऊपर विवृत उद्भट, आनन्दवर्धन, अभिनव आदि के स्फुट पद्यों के अतिरिक्त विद्याकार, श्रीधर, वल्लभदेव तथा शाङ्गधर के संकलनों में वामन (आठवीं शताव्दी, काव्यालंकारसूत्र के प्रणेता), भट्टनायक, आदि के पद्य मिलते हैं। आश्चर्य का विषय है कि दर्शन के मूर्धन्य आचार्यों और महान् चिंतकों में सांख्यकारिकाकार ईश्वरकृष्ण, कुमारिलभट्ट, प्रभाकर, उत्पलराज (अभिनवगुप्त के गुरु) आदि के उत्तम और रमणीय काव्य सुभाषितसंग्रहों में ही छिटपुट सुरक्षित हैं। इन संग्रहों के अवलोकन से विदित होता५५४ गतान काव्य-खण्डमा है कि प्रवरसेन तथा वाक्पतिराज जैसे प्राकृत भाषा के महाकवियों ने संस्कृत में भी रचनाएं की थीं। शास्त्रकारों में वराहमिहिर, गादाधरी के कर्ता गदाधर, कोशकारों में अमरसिंह तथा हलायुध आदि की भी काव्यात्मक पद्यरचनाएं सुभाषितसंग्रहों में मिल जाती हैं। कुछ कवियों के तो इतने अधिक पद्य इन संकलनों से मिल कर एकत्र किये जा सकते हैं कि उनके कवित्व का सर्वांगीण आकलन केवल उन्हीं से हम कर सके। उदाहरण के लिये ऊपर विवृत योगेश्वर के अतिरिक्त जयदेव के समकालिक कवि उमापतिधर (सदुक्तिकर्णामृत में ८५ पद्य उद्धृत) तथा शरण (उसी में २० पद्य उद्धृत) तथा भोज के समकालिक कवि छित्तिप (उसी में ३६ पद्य) आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं। इसके साथ ही संस्कृत के सुप्रसिद्ध महाकवियों या नाटककारों के भी कतिपय स्फुट पद्य सुभाषितसंग्रहों में हैं, जो उनकी प्राप्त रचनाओं में नहीं हैं। भवभूति के अतिरिक्त राजशेखर, माघ, विशाखदत्त, मुरारि आदि ऐसे कवियों में उल्लेख्य हैं। व का विकास का शिलान् मिस न जाता का काम तमाम मामी नावाद शामिका निमशान में आलाँकि माया पिछविमाया । पंचदश अध्याय