सुभाषितप्रबन्ध की हस्तलिखित प्रति भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध-संस्थान (क्र. २५८) में उपलब्ध है। इसमें २५५ श्लोक संकलित हैं। पुष्पिका में कहा गया है- ‘इति भोजप्रबन्धीयः श्लोकसङ्ग्रहः सारश्लोकसङ्ग्रहः सम्पूर्णः । इस सुभाषितप्रबन्ध के कर्ता राजा भोज प्रतीत होते हैं। आफ्रेट, विश्वनाथ रेऊ, क.मा. मुंशी, श्रीनिवास आयंगर, इ. डी. कुलकर्णी आदि विद्वानों ने इसे भोज की ही रचना माना है। संकलित सुभाषितों के साथ १६४ वें श्लोक को छोड़ कर कहीं भी रचनाकार का नाम नहीं दिया गया है। १E४ वें श्लोक के आगे ‘बालभारतस्य’ यह अंकित है। तथापि इसमें संकलित पद्य अनेक पूर्ववर्ती तथा परवर्ती कवियों के हैं। इस संकलन के ७वें से १वें तक के १३ पद्यों में भोज के ही प्रताप और कीर्ति का वर्णन है। इन १३ पद्यों में से भी ७ भोजप्रबन्ध में मिलते हैं। अवशिष्ट संकलन निम्नलिखित शीर्षकों में विभाजित है- प्रातः, सन्ध्या, चन्द्रोत्प्रेक्षा, कटाक्ष, शृङ्गार, वायु, पर्जन्य, दरिद्रोक्ति, अन्योक्ति, राजवर्णन, पण्डितवर्णन, समस्या, वैराग्य, मनुष्य, ब्राह्मण, कुपण्डित, मूर्ख, कूट तथा चन्द्र। मक क वस्तुतः इस सुभाषित-संकलन का कर्तृत्व भोज से जोड़ा जाना सर्वथा सन्देहास्पद है, क्योंकि इसमें बिल्हण (१२वीं शताब्दी वि. का पूर्वार्ध), कृष्ण मिश्र (समय-वही) प्रसन्नराघवकार । जयदेव (१२वीं शताब्दी), शार्गधर (विक्रम की १४वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), भानुपण्डित या सूक्तिमुक्तावली के संकलनकार जल्हण (१३वीं शताब्दी) तथा पण्डितराज जगनाथ (१७वीं शताब्दी) तक के कवियों के द्वारा रचित पद्य संकलित हैं। अतएव किसी परवर्ती संग्रहकार - ने इस संकलन का निर्माण किया है। भ्रमवश भानुपण्डित का एक ही पद्य दो बार (१०२ तथा २५१ क्रमांक पर) संकलित कर लिया गया है। पं. बलदेव उपाध्याय का अनुमान है कि १८वीं शताब्दी में शृंगवेरपुर के राजा राम या ऐसे ही अन्य किसी राजा के आश्रम में रहने वाले किसी पण्डित ने इस संकलन का निर्माण किया होगा, क्योंकि इस संग्रह में १०६ ।। वें पद्य में राजा राम अथवा रामचन्द्र राजा की रक्षाप्रार्थना तथा राजवर्णन है।