उपर्युक्त सुभाषितसंग्रहों के अतिरिक्त अनेक सुभाषितसंग्रहों का उल्लेख और विवरण भी स्टर्नबाख ने प्रस्तुत किया है, जो पांडुलिपियों में प्राप्य हैं, अथवा अप्राप्य हैं। इनमें ‘बहुदर्शन’ नामक सुभाषितसंग्रह की प्रति का उपयोग ओ. बोतलिंक ने अपने कोशनिर्माण में किया है। ‘दम्पतिशिक्षा’ बंगाली तथा संस्कृत में मिश्रित सुभाषितसंग्रह है। गौरमोहन द्वारा संकलित ‘कवितामृतकूप’ में १०६ पद्य हैं। खण्डप्रशस्ति अथवा दशावतारखण्ड के संग्रहकार हनुमान् कहे गये हैं, इनमें २८३ पद्य हैं। ‘लौकिक न्यायश्लोक’ में सर्वथा अछूते पद्य प्राप्त होते हैं। इसमें लौकिक न्यायों की व्याख्या करने वाले १०७ पद्य हैं, जो पहले के संग्रहों में नहीं मिलते। नरामरण में ३०१ नीतिपरक सुभाषित हैं, जिनमें से अधिकांश पूर्वप्रचलित उक्त सुभाषितसंग्रहों का निदर्शन मात्र स्थालीपुलाकन्याय से ही किया गया है। संस्कृत साहित्य के विशल भांडागार में ऐसे छोटे-बड़े प्रायः सहस्राधिक सुभाषितसंग्रह तैयार किये गये हैं। ५२०