१६ हरिहरसुभाषितम्

‘हरिहरसुभाषित’ के प्रणेता हरिहर के देशकाल के विषय में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। यह पूरा सुभाषितसंग्रह हरिहर का स्वयं ही बनाया हुआ है। इसमें १२ प्रकरण हैं - मंगल, बालविनय, सुहृदुपदेश, प्रवास, राजप्रशस्ति, राजोपासन, राजनीति, समयवर्णन, शृङ्गारवर्णन, नायक-नायिकाभेद, प्रकीर्णक तथा परमार्थ। माया __इस संग्रह के बारह प्रकरणों में कुल ६२७ पद्य हैं, जिनमें अनुष्टप्, शिखरिणी, आर्या, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित, मन्दाक्रान्ता, उपजाति आदि विभिन्न छन्दों का प्रयोग हुआ है। काव्य-खण्ड ors हरिहर के काव्य की विविधता और विदग्धता उल्लेखनीय है। कवि ने वैदर्भी रीति का सर्वत्र सफलतापूर्वक निर्वाह किया है। अनुभूत सत्य की प्रामाणिकता को दृष्टांतों के द्वारा हृदयंगम बनाने में भी हरिहर सिद्धहस्त हैं। जैसे - TFOR मित पुर्णीमानाकामा शिशौ प्रविशतः प्रायः प्रतिवेशिगुणागुणी। नी जान की प्रति गन्धोऽन्यसन्निधेरेव सङ्कामति समीरणे।। २५|| श 18T(बच्चे में पड़ोसियों की अच्छाइयाँ और बुराइयाँ घर कर लेती हैं, हवा में समीपस्थ स्थान की गंध ही संक्रांत होती है।) कल हालही यावन्न यौवनप्राप्तः शिष्यते तावदात्मजः।। कोश पर 25 साइकिनि व्यतीतकाले केदारे कर्षणैः किं करिष्यते।। २।५४० किलोक (पुत्र को तभी तक सीख दी जा सकती है, जबतक कि वह तरुण न हो जाय। समय बीत जाने पर क्यारी जोतने से क्या ?) अनेक स्थलों पर श्लेष का कुशल प्रयोग हरिहर ने किया है, उत्प्रेक्षाओं के विन्यास में भी वे प्रवीण हैं। नवम समयवर्णन प्रकरण में वर्षाविषयक पद्य में वारिरूपी धनदान देने को परस्पर स्पर्धा करते झगड़ते बादलों का चित्र द्रष्टव्य है - हृष्यन्तश्चिरदुर्गता इव घने दातयुपर्युद्यते दातुं वारिवसून्यसूनिव पुरः प्राप्ते परस्पर्धिनः। झञ्झावातविधूतपत्रमुखराः शाखाकरास्फालिनः मित किया कि वर्षासु परस्परेण कलहायन्ते धरित्रीरुहः।। -६१८