११ वेङ्कटनाथकृत सुभाषितनीवी

सङ्कल्पसूर्योदय नामक प्रतीकनाटक के कर्ता वेदान्ताचार्य-वेङ्कटनाथ तेरहवीं शताब्दी के दक्षिण भारत के अन्यतम पंडितों तथा रचनाकारों में अन्यतम हैं। न्यायदर्शन तथा तन्त्र पर इनके अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। ना हो कि का ‘सुभाषितनीवी’ वेड्कटनाथ का नीतिपरक काव्य है। इसमें बारह पद्धतियाँ हैं। प्रत्येक पद्धति में बारह ही पद्य हैं। क्रमशः इन पद्धतियों के विषय हैं - अनिपुण, दृप्त, खल, दुर्वृत्त, असेव्य, महापुरुष, समुचित, सदाश्रुत, नीति, वदान्य, सत्कवि और परीक्षक। विषय के महाविस्तार के अनुरूप कवि की भाषा प्रांजल और प्रफुल्ल है तथा अनुष्टप् से शिखरिणी तक की छटाएँ उसमें समन्वित हैं। अन्योक्तिपरक शैली का सधा हुआ प्रयोग, व्यंग्यात्मक भाषा तथा विचार और चिन्तन का परिपोष वेड्कटनाथ के इस काव्य में मिलता है। अनिपुणपद्धति में वटवृक्ष को लेकर कहा है ह मागहमा गहानाही । नवदलपटे कल्प्या यस्य प्रभोरपि कल्पधी- का काम नटपरिवृढो यस्याधस्ताच्छमं शमयिष्यति। शिम जित निक वटविटपिनस्तस्याङकराननत्कटपल्लवान HD स्थपुटचटसापेक्षी भिक्षुः प्रतिक्षणमीक्षते ।। (१।११) जिस वट के नवदलपुट पर प्रलय होने पर प्रभु विष्णु विश्राम करते हैं, जिसके नीचे महानट शिव श्रम दूर करने के लिये विराजते हैं, उसी वटवृक्ष के नये-नये पल्लवों को भिक्षु दोना बनाने की लालसा से ताक रहा है।