संस्कृतसुभाषितसंग्रहों की परम्परा का प्राचीनतम उपलब्ध सर्वांगपूर्ण सुभाषितसंग्रह विद्याकर द्वारा संकलित ‘सुभाषितरत्नकोष’ है। इसकी एक अपूर्ण प्रति म.म. हरप्रसाद शास्त्री को १८६५ से १६०० के बीच प्राप्त हुई थी, जिसे १६१२ में एफ.डब्ल्यू. टामस ने बिल्लियोथिका इंडिका में भूमिकासहित प्रकाशित किया। प्राप्त प्रति में सुभाषितसंग्रह तथा उसके संकलनकर्ता का नाम भी नहीं दिया गया और निम्नलिखित प्रथम पद्य के आधार पर म.म. हरप्रसाद शास्त्री ने अपनी ओर से अनुमान करके इस संग्रह का नाम ‘कवीन्द्रवचनसमुच्चय’ समझ लिया नानाकवीन्द्रवचनानि मनोहराणि संख्यावतां परमकण्ठविभूषितानि। आकम्पकानि शिरसश्च महाकवीनां तेषां समुच्चयमनर्द्धमहं विधास्ये। बम्बई के विद्वानों को इस संग्रह की अपेक्षाकृत पूर्ण प्रति १६४६ ई. के लगभग जब मिली, तो विदित हुआ कि कवीन्द्रवचनसमुच्चय वस्तुतः भ्रान्त नाम है, संकलन का वास्तविक नाम ‘सुभाषितरत्नकोष’ है। संकलनकार का नाम पहले भीमार्जुनसोम समझा गया। बाद में डा. दामोदर धर्मानन्द कोसांबी के प्रयासों से तिब्बत और नेपाल से इस संग्रह सुभाषितसंग्रह तथा सुभाषितकवि की पांडुलिपियाँ मिलने पर यह निश्चित हुआ कि संकलनकार का वास्तविक नाम विद्याकर है तथा उन्होंने ११५५७ वि.सं. से ११८७ वि.सं. (११०० से ११३० ई.) के बीच इस संकलन का निर्माण किया।’ सुभाषितरलकोष के संपादकों के अनुसार विद्याकर पालवंशीयनरेशों के शासनकाल में- अनुमानतः रामपाल के समय- ११०० ई. के आसपास विद्यमान थे। ‘सुभाषितरत्नकोष’ में ५० व्रज्याओं में १७३६ पद्य संकलित हैं। प्रथम छ: बज्याएँ मांगलिक पद्यों की हैं। इनमें क्रमशः सुगत, लोकेश्वर, मंजुघोष, महेश्वर, शिवगण तथा विष्णु की स्तुति के पद्य संकलित हैं। इसके पश्चात् छहों ऋतुओं तथा शृंगार से संबद्ध व्रज्याएँ हैं। असती, अन्धकार, अपराह्मण, चंद्र, मध्याह्न-इन शीर्षकों की व्रज्याओं में अनेक प्राचीन दुर्लभ पद्य विद्याकर ने संकलित किये हैं। अन्यापदेशव्रज्या, वातव्रज्या तथा सबज्या के पद्य भी महत्त्व के हैं। विशेष रूप से इस संग्रह की दीनव्रज्या तथा जातिव्रज्या- ये दो व्रज्याएँ उल्लेखनीय हैं, जिनमें भारतीय ग्रामजीवन, मध्यवर्ग और निम्नवर्ग की जनता के यथार्थ और मार्मिक चित्र हैं। वीरव्रज्या, वार्धक्यव्रज्या, शान्तिव्रज्या, पर्वतव्रज्या तथा सड़कीर्ण व्रज्या इनमें विषयों की विविधता के साथ सम्पन्न काव्यसौन्दर्य से मंडित पद्यावली संगृहीत हैं। सुभाषितरत्नकोष में कालिदास (११ पद्य तथा ८ पद्य संदिग्ध) कुमारदास (एक पद्य), क्षेमीश्वर, भवभूति, राजशेखर, बाण, भास, मुरारि, शूद्रक, हर्षदेव शीलादित्य आदि प्रख्यात कवियों के पद्य तो उद्धृत हैं ही; अभिनन्द, योगेश्वर, उत्पलराज, धर्मकीर्ति, छित्तप, वसुकल्प, लक्ष्मीधर आदि उन अज्ञात कवियों के भी पद्य उद्धृत हैं, जो अपने समय के श्रेष्ठ कवि रहे हैं और जिनका काव्य सुरक्षित नहीं रह सका है।