महाकाव्यों, लघुकाव्यों तथा मुक्तककाव्यों के अतिरिक्त संस्कृत काव्यपरम्परा में असंख्य सुभाषित सहस्राब्दियों तक वाचिक परम्परा में ही सुरक्षित रहे। कालान्तर में ऐसे सुभाषितों का संकलन तैयार करने का प्रचलन हुआ। माना कि प्राणी सुभाषित से आशय एक पद्य में सम्पूर्ण कोई रमणीय उक्ति है, जिसका विषय कुछ भी हो सकता है। वस्तुतः मुक्तक और सुभाषित अभिन्न हैं। सुभाषितसंग्रहों तथा काव्यशास्त्र या नाट्यशास्त्र के ग्रन्थों में ऐसे अनेक सुकवियों की महत्त्वपूर्ण सरस रचनाएँ उद्भुत हैं, जिनकी काव्यकृतियाँ स्वतंत्र रूप से प्राप्त नहीं होती। सुभाषितसंग्रहों ने विलुप्तप्राय संस्कृतकाव्य की अमूल्य धरोहर को संरक्षित करने का महनीय कार्य किया है। ऐसे सुभाषितसंग्रहों तथा उन काव्यों का परिचय यहाँ प्रस्तुत है, जिनकी कृतियों के स्फुट पद्य अपनी रसवत्ता के कारण इनमें उद्धृत हुए।