रागकाव्य की परम्परा गीतगोविन्द से बहुत प्राचीन है, पर गीतगोविन्द के पूर्व रचे रागकाव्यों में कोई भी प्राप्य नहीं है। परवर्ती रागकाव्यों की भाषा, भाव, छन्दोविधान, शैली, वस्तुयोजना-सभी पर महाकवि जयदेव की अमिट छाप है। राधा-कृष्ण के समान अन्य देवी-देवों की भी माधुर्यभाव से उपासना तथा गीतगोविन्द की लोकप्रियता ने परवर्ती कवियों को रागकाव्य-रचना के लिये प्रेरित किया होगा। नायक रागकाव्यों का आकर्षण उनकी गेयता और अभिनेयता में ही अधिक है। अपभ्रंशकाल तथा नव्य भारतीय भाषाओं के उदय के साथ भारतीय साहित्य में चौपाई आदि नवीन छन्दों के प्रयोग की भी विशेषता इनमें है।
काव्य-खण्ड चर्तुदश अध्याय