०२ काव्य, रागकाव्य तथा चित्रकाव्य

अभिनवगुप्त तथा कोहल ने काव्य और रागकाव्य को पर्याय मानकर दोनों का उपरूपकभेदविशेष के अर्थ में निर्वचन किया है। आचार्य भोज ने इन तीनों में सूक्ष्म अन्तर किया है। उनके अनुसार काव्य तो उपरूपकविशेष अथवा नृत्तप्रबन्धविशेष का नाम है, जिसके दो भेद हो सकते है - रागकाव्य तथा चित्रकाव्य। यदि एक ही राग से सारा प्रबंध गाया जाय, तो रागकाव्य कहा जायेगा, तथा अलग-अलग रागों में प्रबन्धन्तर्वर्ति गीत गाये जायें, तो चित्रकाव्य होगा। आ R E गोही युक्त लयान्तरैर्यच्च ध्वनिकास्थाननिर्मितेर्भवति। तिमोर शार व काव्यमिति विविधरागं चित्रमिति तदुच्यते कृतिभिः ।। 6) T RAR HABERLER (शृङ्गारप्रकाश, खण्ड-२, पृ. ४२३) मिा पाएका एशिया दशकरूपक की अवलोक टीका में धनिक ने ‘काव्य’ (रागकाव्य) की गणना डोम्बी, श्रीगदित आदि के साथ नृत्य के भेदों में की है। वस्तुतः डोम्बी, श्रीगदित आदि के लक्षण कोहल तथा अभिनवगुप्त आदि आचार्यों ने किये हैं और इन्हें नृत्तप्रबन्ध बताया है। हेमचन्द्र ने इनको गेयरूपक कहा है। शारदातनय तथा रामचन्द्रगुणचन्द्र ने भी काव्य या रागकाव्य का रूपक-प्रभेदों में उल्लेख तथा लक्षण किया है। इन आचार्यों ने रागकाव्यों के विविध उदाहरण नामोल्लेख करते हुए दिये हैं, जिससे स्पष्ट है कि रागकाव्य इनके समय में बड़ी संख्या में लिखे गये थे। शारदातनय ने गौडविजय, सागरनन्दी ने ‘उत्कण्ठमाधवम् अमृतानन्दयोगी’ ने माधवोदय या यादवोदय तथा साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने काव्य या रागकाव्य का उदाहरण माधवोदय बताया है। चार में १. जिस प्रकार रागकाव्य के प्रसंग में प्रयुक्त ‘काव्य’ शब्द का अर्थ अलंकारशास्त्र के काव्य से सर्वथा पृथक् है, उसी प्रकार यहां प्रयुक्त चित्रकाव्य शब्द का अर्थ भी अलंकारशास्त्र के ‘चित्रकाव्य’ से पृथक् समझा जाना चाहिये। २. डोम्बी-श्रीगदितं -भाणो भाणी प्रस्थानरासकाः।

  1. काव्यं च सप्त नृत्यस्य भेदाः स्युस्ते ऽपि भाणवत्।। (दशरूपक १८ पर अवलोक) ३. अभिनवभारती, भाग-1, पृ. १८१ ४. काव्यानुशासन, ८४ : ‘गेयं डोम्बी-भाण-प्रस्थान-शिगक-माणिका-प्रेरण-रामाक्रीड-हल्लीसक-रासक-गोष्ठी-श्रीगदित-शामक रागकाव्यादि।" कि - भावप्रकाश, बड़ौदा सं., पृ. २६३ ६. नाट्यदर्पण, बडौदा सं., पृ. १२ भावप्रकाश, पृ. २६३ ८. नाटकलक्षणरत्नकौश, काशी सं., पृ. २६E 81510) मा प्रकाशित अलंकारसंग्रह : अमृतानन्दयोगी (अड्यारसं.), पृ. विमान १०. साहित्यदर्पण ६२८४-८५ पर वृत्ति। विश्वनाथ ने रागकाव्य की संक्षिप्त संज्ञा ‘काव्य’ का ही प्रसंगतः प्रयोग यहाँ किया है। काव्य-खण्ड