२५ आर्यासप्तशती विश्वेश्वर पाण्डेय

आर्यासप्तशती में (हैदराबाद संस्करण में कुल ७५७ तथा चौखम्बा संस्करण में ५ अतिरिक्त आर्याएं मिलाकर) कुल ७६२ आर्याएं संकलित हैं। कवि पाण्डेय के पाण्डित्य और वैदग्ध्य का यह कोशकाव्य विलक्षण उदाहरण है। दर्शन, व्याकरण और शास्त्र के गहन ज्ञान का काव्यों की वक्रोक्तियों में, विशेषतः शृंगार की भाषा में इस प्रकार का प्रस्तुतीकरण दुर्लभ ही है। विश्वेश्वर पाण्डेय की कविता में सहजता के स्थान पर आयास और व्युत्पत्ति का बोलबाला है। कहीं-कहीं उनकी कविता इसके कारण अतिशय दुरूह हो गयी है। सम्पूर्ण काव्य की स्वोपज्ञ पाण्डित्यपूर्ण तथा शास्त्रीय उद्धरणों से समन्वित उत्तम टीका भी कवि ने इसीलिए स्वयं लिख दी है। शास्त्रीय ज्ञान के साथ-साथ काव्य में श्लेष और यमक का चमत्कार तथा पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों के सन्दर्भ भी पाण्डेय जी ने बहुत ४८२ काव्य-खण्ड अधिक दिये हैं। किसी कुलकामिनी को उपपति के लिए आकर्षित करती हुई दूती कहती अयि सत्ता सामान्यं नास्ति न वा जातिसङ्करो दोषः। भूयांसः समवाया मार्गोऽयं श्रूयतेऽभिनवः ।। (७५) (इस संसार में सत्तासामान्य (साधुता की स्थिति, दर्शनशास्त्रीय अर्थ में सत्ता जाति की स्थिति नहीं है, जातिसाङ्कर्य का दोष भी माना नहीं जाना चाहिये। इस अभिनव मार्ग (कामिनी द्वारा अनेक प्रेमियों का ग्रहण, दर्शनशास्त्र के पक्ष में नव्य नैयायिकों के मार्ग) में अनेक समवाय हैं।) प्राचीन नैयायिक ही द्रव्य, गुण, कर्म की वृत्ति वाली सत्ता जाति को स्वीकार करते हैं, नव्य नैयायिक नहीं। एकाधिकरणवृत्तित्व रूप साकर्य को वे जातिबाधक मानते हैं। श्लेष का भी बड़ा अनूठा चमत्कार पाण्डेय जी ने अपनी कविता में दिखाया है। सुन्दरी में लोकायत, सौगत, दिगम्बर आदि सम्प्रदायों को एक साथ उपस्थित कराते हुए वे कहते हैं PRTsplays लोकायतं नयनयोः पदयोः सुगतद्वयं निरुपमानम्। शामिल किया कुचयोर्वीक्ष्य दिगम्बरमथ भवितव्यं कथं नु जीवेन? ।। (७१०) मा ऐसी कविता से रसावेशवैशद्य तथा भावप्रवणता की आशा करना व्यर्थ है। पर अनेक आर्याओं में सौन्दर्यानुभूति तथा उत्तम कल्पनाओं का योग कवि ने कराया है। उदाहरण के लिये - उता सरु चीनसिचयाञ्चलेनाविहितादधराद् विनिर्यान्ती। ह मार अति निस्तुषेव पयसो धारा तव भाति हसितश्रीः। (४३१) र नायिका का मुख मलमल के चूंघट से ढका हुआ है, उसके अधरों से हंसी फूट रही है। कवि कल्पना करता है कि हंसी सफेद वस्त्र में छनकर निकलते दूध की भांति उज्ज्वल ग्रन्थारम्भप्रकरण की मांगलिक तथा प्राचीनकवि प्रशंसाविषयक ७२ आर्याओं को छोड़कर इस कोशकाव्य में संकलित सभी आर्याओं का विषय प्रायः सम्भोग शृंगार है। कवि गाहासतसई तथा आर्यासप्तशती से प्रेरित है। व्रज्याओं की योजना आर्यासप्तशती के समान है। आर्यासप्तशतीकार गोवर्धनाचार्य की स्तुति भी कविप्रशंसाप्रकरण में श्लेष के द्वारा चमत्कारपूर्ण ढंग से पाण्डेयजी ने की है - गिरिनायकभूतोऽयं कृतगोरक्षो जलौघपरिभावात्। मीकि गोवर्धनो विजयते योग्यत्वापत्रयोगार्थः।। (५८) गाजर का काम परवर्ती गीतिकाव्य ४८३