१६ रुद्रकवि : भावविलास

‘भावविलास’ के कर्ता न्यायवाचस्पति रुद्रकवि का समय सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध है। ये राजा मानसिंह के पुत्र तथा राजा भगवानदास के पौत्र श्रीभावसिंह के दरबार में राजकवि थे। भावविलासकाव्यप्रणयन उन्होंने राजा भावसिंह की आज्ञा से किया। इस काव्य में कुल १३६ पद्य हैं। मा रुद्रकवि ने अपने पिता का नाम विद्याविलास बताया है, इसके अतिरिक्त अपना कोई परिचय उन्होंने नहीं दिया हैं। विश्वेश्वर सिद्धान्त शिरोमणि तथा डा. श्रीश्रीधरभास्कर वर्णेकर ने उक्त भावविलास के अतिरिक्त इनके निम्नलिखित ग्रंथ परिगणित किये हैं। - तत्त्वचिन्तामणिदीधितिपरीक्षा, किरणावलिप्रकाशनिवृत्तिपरीक्षा, पदार्थखण्डन-व्याख्या, भमरदूतकाव्य, वृन्दावनविनोदकाव्य तथा पिकदूत।’ मुगलकाल के ही एक रुद्रकवि ने अनेक ऐतिहासिक काव्यों की रचना की है, पर उस रुद्रकवि से ये भिन्न हैं। १. विवरण के लिये द्र. - संस्कृत साहित्य में में अन्योक्ति, पृ. २७० २. द. - इसी ग्रंथ का ऐतिहासिक महाकाव्य तथा ऐतिहासिक काव्य, शीर्षक अध्याय द्रष्टव्य। ४७० कि के भावविलास के प्रथम तीन पद्यों में राजा भगवदास के पुत्र मानसिंह के स्तवन के । अनंतर चौथे से सोलहवें पद्य तक अपने आश्रयदाता राजा भावसिंह के गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। सत्रहवें तथा एक सौ चौतीसवें पद्यों में कवि ने राजा भावसिंह के आदेश से प्रकृतकाव्य में अपने प्रवृत्त होने की बात कही है। अठारहवें से छब्बीसवें पद्य तक दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा आदि अलंकारों के प्रयोग के साथ कवि ने सुंदर और मार्मिक सूक्तियों का सनिवेश किया है। अवशिष्ट पद्यों में (पुष्पिका के अंतिम तीन पद्य छोड़कर) विभिन्न विषयों पर सरस अन्योक्तियां हैं। रुद्रकवि ने अनुष्टुप से लेकर शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता आदि विविध छन्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया है। उनकी शैली का लालित्य और अभिव्यक्ति की अनाविलता प्रशंसनीय है। अन्योक्तियों में रुद्रकवि ने सर्वाधिक अन्योक्तियां भ्रमर पर (१७) लिखी हैं। बिहारी के प्रसिद्ध दोहे ‘नहि पराग नहि मधुर मधु’ के भाव को कवि ने जरती के लिए इस प्रकार व्यक्त किया है - गलितानि मधूनि सर्वतो मनोगत त । ए कॉल कि कि विनिकीर्णानि दलानि मारुतैः। TIME अधुनापि न हन्त माधवीं कि गणित पनि मधुदो नामिह नाम मुञ्चति।। (४४) सिक्ति रुद्रकवि ने अन्योक्ति के पारंपरिक बंध और तज्जन्य विच्छित्ति के निर्वाह का अच्छा अभ्यास किया है, उनकी उक्तियों में परिपाक और प्रौढ़ता की छटा है। मुक्तामाला को लेकर उन्होंने कहा है - येनाकारि महीभृतामविरतं कण्ठेषु लीलायितं मात्र कति येन प्रापि सरोजसुन्दरदृशां तुङ्गस्तनालिङ्गनम्। फीचर FIRE टॉमीण जातं येन गजेन्द्रगण्डयुगले साधारणं गुजया कोनार नाही का को IEEE मुक्तादाम तदेव पामरपुरे नावाप कां का दशानम्।। (१३३) जना (जो सफेद मोती की माला बड़े-बड़े राजाओं के कंठों का हार बनी, जिसने सुंदरियों के उत्तुंग वक्ष का आलिंगन किया, जो गजेंद्र के मस्तक पर गुंजा के साथ रही, वही पामरों की पुरी में किस बुरी स्थिति में आज पड़ी है।)