०४ अन्योक्तिमुक्तालता : महाकवि शम्भु

भल्लटशतक के पश्चात् ‘अन्योक्तिमुक्तालता’ अन्योक्तिप्रधान काव्य की परम्परा में महत्त्वपूर्ण रचना है। इसके रचयिता कहाकवि शम्भु भी भल्लट की ही भांति कश्मीर के थे, और सुप्रसिद्ध शासक हर्षदेव (११०८६-११०१ ई.) के आश्रय में थे। (महाकवि मङ्ख श्रीकण्ठचरित के कर्ता) ने शम्भु का महाकवि के रूप में स्मरण किया है तथा उनके सुपुत्र आनन्द की भी विविध शास्त्रों के ज्ञाता के रूप में प्रशंसा की है (श्रीकण्ठचरित २५।६७) । मान भल्लटशतक की भांति अन्योक्तिमुक्तालता में विभिन्न क्षेत्रों से उठायी गयी १०८ अन्योक्तियां हैं। शम्भु के काव्य पर भल्लट का प्रभाव स्पष्ट है। इनकी अन्योक्तियों में भी उसी प्रकार व्यंग्य का तीखापन और विसंगतियों पर कटाक्ष है। भल्लट के काव्य की सहजता और प्रासादिकता के स्थान पर इनमें कहीं-कहीं शैली का चमत्कार दिखाने की आयासजन्य प्रवृत्ति भी है। हार गूंथने वाले को सम्बोधित करते हुए कवि कहता है - उत्फुल्लैर्बकुलैर्लवङ्गमुकुलैः शेफालिकाकुड्मलै नीर्लाम्भोजकुलैस्तथा विचकिलैः क्रान्तं च कान्तं च यत्। तस्मिन् सौरभधाम्नि दाम्नि किमिदं सौगन्ध्यवन्ध्यं मुधा

  • मध्ये मुग्ध कुसुम्भमुम्भसि भवेन्नैवैष युक्तः क्रमः।। (५) (अरे मालाकार! सौरभ का आगार जो हार उत्फुल्ल मौलसिरी के फूलों से, लवङ्ग की कलियों से, शेफालिका के कुड्मलों और नीलकमलों के खिले फूलों से गूंथा हुआ सुन्दर परवर्ती गीतिकाव्य है, उसके बीच अरे भोले, यह गन्धहीन कुसुम्भ क्यों गूंथे दे रहा है? यह तो कोई अच्छी रीति नहीं है।) कवि शम्भु ने स्रग्धरा तथा शार्दूलविक्रीडित छन्दों में अन्योक्तियां अधिक लिखी हैं, वसन्ततिलका और मन्दाक्रान्ता का भी प्रयोग किया है। भल्लट की तुलना में विषयगत नवीनता के स्थान पर पदावली का लालित्य और कोमलता उनमें अधिक है। भाषा में बन्ध की गाढ़ता और शैथिल्य दोनों का वाच्य के अनुरूप समान निर्वाह वे कर सके हैं। उदाहरण के लिये - कुजे कोरकितं करीरतरुभिट्टैक्काभिरुन्मुद्रितं यस्मिन्नङ्कुरितं करजविटपैरुन्मीलितं पीलुभिः। तस्मिन् पल्लवितोऽसि किं वहसि किं कान्तामनोवागुरा भङ्गीमङ्ग लवङ्गभङ्गमगमः किं नासि कोऽयं क्रमः।। (४३) (हे लवंग, जिस कुंज में करीर के पेड़ पनप रहे हैं, जहाँ द्रेक फूल रहे हैं, जहां करंज के झाड़ों में अंकुर फूट रहे हैं, और पीलु विकसित हो रहे हैं, वहां तुम क्यों व्यर्थ में खिल रहे हो? क्यों व्यर्थ ही रमणियों का मन बींधने वाली भंगिमाएं दिखा रहे हो? यह तुम्हारी कैसी रीति? तुम टूट क्यों नहीं जाते?) निश्चय ही भल्लट में कवि शम्भु की अपेक्षाा अर्थगौरव अधिक है, शम्भु ने भल्लट का अनुकरण किया है, और अपनी प्रतिभा सानुप्रास पदावली के विन्यास में अधिक खर्च की है। विषय-वस्तु की दृष्टि से उनकी अन्योक्तियों में नवीनता कम है।