०३ दुर्लभ : ऋतुवर्णन

कालिदास के ऋतुसंहार के पश्चात् ऋतुवर्णन पर लिखी गयी दुर्लभ कवि का ऋतुवर्णन गीतिकाव्य के क्षेत्र में उल्लेख्य रचना है। ऋतुसंहार की भांति इसमें भी छ: सर्गों में छ: ऋतुओं का वर्णन किया गया है। कवि का देशकाल अज्ञात है। दुर्लभ कवि का समय अनिर्णीत है। ये सम्भवतः कश्मीर के थे। ऋतुसंहार से इस काव्य की भिन्नता इस बात में है कि आरम्भ ग्रीष्मवर्णन से न करके शरवर्णन से किया गया है। कालिदास की ही भांति वर्णनों में प्रणय तथा शृगार का पुट मिला हुआ है। भारतीय वसुन्धरा की नैसर्गिक सुषमा पर कवि ने तल्लीन होकर विहगावलोकन किया है। पदावली प्रसन्न है तथा वाक्यविन्यास प्रांजल । उपमाओं का प्रयोग परम्पराश्रित होते हुए भी सटीक है। शरवर्णन का एक पद्य द्रष्टव्य है - हिक अन्तःसुशीतं बहिरुष्णमुत्तमं सुहंसरावं कमनीयपङ्कजम् । विराजते मानसमम्बुदक्षये प्रसन्नमन्तर्मुनिमानसं यथा।। (१६)